भावी सम्भावनायें और हमारा कर्त्तव्य

July 1967

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‘अखण्ड ज्योति के इस भविष्यवाणी अंक में निकट भविष्य में घटित होने वाले घटना क्रम का जो उल्लेख किया गया है। उसे किसी साधारण ज्योतिषी या भविष्य-वक्ता की कल्पना नहीं समझा जाना चाहिये। इसके पीछे कुछ ठोस आधार हैं और वे समयानुसार सामने आते चले जायेंगे।

इन सम्भावनाओं से किसी को डरने या परेशान होने की आवश्यकता नहीं है। वरन् परिस्थितियों के अनुरूप आवश्यक तैयारी करने और अपने को ढालने की तैयारी करना ही दूरदर्शिता है। समय का बदलना निश्चित है। आज की जिन अनुपयुक्त परिस्थितियों में हमें रहना पड़ रहा है वे देर तक इसी रूप में नहीं रह सकतीं इस घुटन से छुटकारा मिल सके ऐसी परिस्थितियाँ एवं सम्भावना महाकाल उत्पन्न करता चला आ रहा है।

अगले दिन बहुत ही उलट-पुलट से भरे हैं। उनमें ऐसी घटनायें घटेंगी ऐसे परिवर्तन होंगे जो हमें विचित्र भयावह एवं कष्टकर भले ही लगें पर नये संसार की अभिनव रचना के लिए आवश्यक हैं। हमें इस भविष्यता का स्वागत करने के लिए-उसके अनुरूप ढलने के लिए-तैयार होना चाहिये। यह तैयारी जितनी अधिक रहे उतना ही भावी कठिन समय अपने लिये सरल सिद्ध होगा।

भावी नर संहार में आसुरी प्रवृत्ति के लोगों को अधिक पिसना पड़ेगा। क्योंकि महाकाल का कुठाराघात सीधा उन्हीं पर होना है। “परित्राणाय साधूनाँ विनाशायश्च दुष्कृताम्” की प्रतिज्ञानुसार भगवान को युग-परिवर्तन के अवसर पर दुष्कृतों का ही संहार करना पड़ता है। हमें दुष्ट दुष्कृतियों की मरणासन्न कौरवी सेना में नहीं, धर्म-राज की धर्म संस्थापना सेना में सम्मिलित रहना चाहिये। अपनी स्वार्थपरता, तृष्णा और वासना को तीव्र गति से घटाना चाहिए और उस रीति-नीति को अपनाना चाहिये जो विवेकशील परमार्थी एवं उदारचेता सज्जनों को अपनानी चाहिये।

संकीर्णताओं और रूढ़ियों की अन्य कोठरी से हमें बाहर निकलना चाहिए। अगले दिनों विश्व-संस्कृति, विश्व-धर्म, विश्व-भाषा, विश्व-राष्ट्र का जो भावी मानव समाज बनेगा उसमें अपनी-अपनी महिमा गाने वालों और अपनी ढपली अपना राग गाने वालों के लिये कोई स्थान न रहेगा। पृथकतावादी सभी दीवारें टूट जायेंगी और समस्त मानव समाज को न्याय एवं समता के आधार पर एक परिवार का सदस्य बन कर रहना होगा। जाति लिंग या सम्पन्नता के आधार पर किसी को वर्चस्व नहीं मिलेगा। इस समता के अनुरूप हमें अभी से ढलना आरम्भ कर देना चाहिये।

धन-संचय और अभिवर्धन की मूर्खता हमें छोड़ देना ही उचित है, बेटे पोतों के लिए लम्बे चौड़े उत्तराधिकार छोड़ने की उपहासास्पद प्रवृत्ति को तिलाँजलि देनी चाहिये क्योंकि अगले दिनों धन का स्वामित्व व्यक्ति के हाथ से निकल कर समाज, सरकार के हाथ चला जायगा। केवल शिक्षा, स्वास्थ्य, संस्कार एवं सद्गुणों की सम्पत्ति ही उत्तराधिकार में दे सकने योग्य रह जायगी। इसलिए जिनके पास आर्थिक सुविधायें हैं वे उन्हें लोकोपयोगी कार्यों में समय रहते खर्च करदें ताकि उन्हें यश एवं आत्म-संतोष का लाभ मिल सके। अन्यथा वह संकीर्णता मधुमक्खी के छत्ते पर पड़ी डकैती की तरह उनके लिये बहुत ही कष्ट-कारक सिद्ध होगी।

लंका विजय में श्री राम के साथी रीछ-वानरों की तरह गिद्ध और गिलहरी की भाँति हमें युग-निर्माण योजना के महान अभियान में तत्परतापूर्वक संलग्न होना चाहिये। यह प्रयत्न एवं पुरुषार्थ नव युग के स्वागत की सच्ची अगवानी का महत्वपूर्ण आयोजन माना जायगा। विवेकशील और दूरदर्शी प्रबुद्ध व्यक्तियों को इस महत्वपूर्ण समय का उपयोग इसी दिशा में कदम उठाते हुए करना चाहिये। जो समय रहते अपने को बदल सकेंगे वस्तुतः वे ही शाँति और सन्तोष अनुभव करेंगे।


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