अनमोल रत्न
संयम जहाँ अर्थहीन है वहाँ सिर्फ निष्फल आत्म-पीड़न है और उसी को लेकर मानना सिर्फ अपने ही को ठगना नहीं बल्कि दुनिया को भी ठगना है।-शरद बाबू
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आत्म-सम्मान, आत्म-संयम, ये तीनों पूर्ण मुक्ति प्राप्त कराते हैं। मनुष्य की सर्वोत्कृष्ट विजय वह है जो अपने आप पर प्राप्त करता है। -अर्ल स्टार्लिग
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आत्म-प्रतिष्ठा, आत्म-ज्ञान, और आत्म-दमन, केवल इन्हीं तीनों से जीवन को अपार शक्ति प्राप्त होती है, केवल शक्ति ही नहीं क्योंकि शक्ति तो स्वयं ही बिना बुलाये चली आयेगी किन्तु नियम से रहना भी आ जायेगा, और बिना भय के जिस नियम से हम रहते हैं वहीं नियम हम बनाते हैं, और चूँकि ठीक बात ही ठीक होना - अनुसरण करना बुद्धिमत्ता है - परिणाम को तुच्छ समझते हुए।
-टेनीसन ।
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यह महत्व की बात नहीं है कि हमने कितने लोगों की सेवा की। निरहंकार सेवा हुई कि नहीं, इसी से सेवा का मूल्य आँका जाता है। संख्या अल्प होते हुए भी अगर उसका छेद शून्य हो, तो उसका मूल अनन्त हो जाता है। उसी प्रकार अल्प सेवा को निरहंकारिता का छेद प्राप्त होने से उसका मूल्य अनन्त हो जाता है।
-विनोबा।