मैंने सब देकर सब पाया (Kavita)

November 1955

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अक्षय कोष मिला जब मैंने अपना सारा कोष लुटाया!

मैंने सब देकर सब पाया!! जाने कब से मैं पागल बन,

मिट्टी को समझी भी कंचन, किन्तु तुम्हारी कृपा किरण ने दिया मुझे अनमोल ज्योति कण,

जिसके दिव्य प्रकाश पुँज से मैंने नूतन पंथ बनाया!

लक्ष्य प्राप्त करने का यदि प्रण करो विभव का दूर प्रलोभन,

कहीं न जड़ करदे पद की गति- सोने चाँदी का आकर्षण,

छाया बन कर पंथ न रोके मन की मृग तृष्णा की माया!

देव तुम्हारा पूजन अर्चन, करता है मन प्रतिपल प्रतिक्षण,

रोक नहीं मुझको पायेंगे सुख सौरभ के स्वप्न सुहावन,

जीवन का सर्वस्व लुटाकर पद-पद्यों में ध्यान लगाया!


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