बन्दूक की गोली नहीं छूटी (श्री. शिव शंकर शर्मा, कामठी)
माता की कृपा की अनेकों घटनायें मेरे जीवन में अवश्य घटीं, पर सबसे आश्चर्यकारी चमत्कारी यही घटना है जिसमें मेरे प्राण बचा लिये गये हैं। सर्प दंशन से बच जाना, वृक्ष गिरते समय उसे से बच निकलना और-इंजन से कटते-कटते बच जाना ये भी तो हमारे जीवन में आश्चर्य और माता की साक्षात करुणा इसी में दीख पड़ती है।
उस दिन बंगले से लौटा आ रहा था, सहसा ही पथ में जोरों का तूफान आया। घोर अन्धकार छा गया। मैं साइकिल लेकर आगे बढ़ता ही गया। रास्ते में पल्टनों की छावनी पड़ती थी, मैं सन्तरी की ओर बढ़ता जा रहा था। उसने कई बार आवाजें भी दी पर मैं सुन न सका। कुछ निकट जाने पर देखा सन्तरी मेरी ओर बन्दूक सीधा किये खड़ा है। मैं देखते ही हठात् रुका और कहा मैं तो यहीं का ठेकेदार हूँ। सन्तरी ने कहा कि अब तो हमने भी तुम्हें पहचान लिया है, पर जिस समय उस तूफान में कई बार आवाज देने पर भी तुम नहीं रुके, उस समय मैंने सरकारी अनुशासन के अनुसार दो बार तुम्हारे ऊपर बन्दूक चलायी पर आश्चर्य कि दोनों बार घोड़ा दबाने पर भी बन्दूक न छूटी। तुम्हारे सौभाग्य ने तुम्हारा प्राण बचा लिया। माता की याद करते ही मेरा हृदय गदगद हो उठा और वहाँ से अश्रु-पुष्प मातृ चरणों पर चढ़ता हुआ घर आया।