संग्रह नहीं काम करो।

April 1954

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(सन्त बिनोवा)

हमारे शास्त्र में अस्तेय और अपरिग्रह ऐसा दुहरा धर्म माना गया है। अस्तेय याने चोरी नहीं करना और अपरिग्रह याने संग्रह नहीं करना। आज हम एक स्कूल में ठहरे हैं। वहाँ दीवारों पर अच्छे-अच्छे वचन लिखे हैं। उसमें एक वचन चोरी करना पाप है यह भी लिखा है। यह भी लिखा जाना चाहिये था कि संग्रह करना पाप है। चोरी करना पाप है यह माना गया पर केवल इतना ही धर्म नहीं है। संग्रह करना भी पाप है यह माना जाना चाहिए। हमें खुशी है कि इन्होंने रुपये में आठ आना काम कर लिया है। अस्तेय के साथ-2 अपरिग्रह को भी रहना चाहिये। एक जमाना था जब संग्रह को कोई खास महत्व नहीं देते थे। पैसों को कोई पूछता ही नहीं था। घरों में गल्ला भरा रहता था पर आज हमारा सारा दारोमदार पैसे पर है- तो उसका नतीजा यह है कि एक छोटी सी पेटी में भी बहुत सारा संग्रह कर सकते हैं। जेब में लाख रुपये भी रख सकते हैं। पर अगर लाख रुपये की जगह लाख सेर अनाज रखना हो तो बहुत मुश्किल होगा। रुपया तो ऐसी चीज है जो गाँव से कोई ले आये तो कुछ पता नहीं चलेगा गाँव वाले को।

मनु ने लिखा है कि चार आश्रम और चार वर्ण मिल कर जो सोलह अवस्थाएं हैं उनमें केवल वैश्य संग्रह कर सकता है और वह कितना संग्रह करें उसका भी हिस्सा बताया। गृहस्थ तीन दिन का संग्रह रखे और अगर उतने से न निभे तो 12 दिन का संग्रह रखे । उतने से भी न निभे तो एक साल का संग्रह रखें और अगर उतने से भी नहीं निभे तो तीन साल का संग्रह रखें। तीन साल से अधिक संग्रह नहीं कर सकते। तीन साल का संग्रह रखने का मनु ने मान लिया याने यह नहीं कि उससे कम जिसके पास है उसका निर्वाह स्टेट करेगी। तीन साल से ज्यादा जिसके पास है उससे तो ले लेने का हक है ही। और अब तो कानून भी आ रहा है। कहते हैं कि सरकार को खानगी मालकियत लेने का हक है। सरकार को हक है उससे ज्यादा हक आपको है। अगर सरकार को सम्पत्ति छीनने का हक है तो आपको अधिक से अधिक त्याग करने का हक है। हम आपसे कोई जबरदस्ती लेना नहीं चाहते। हम तो आपको नीति सिखाना चाहते हैं कि अधिक संग्रह मत करो। आज की सम्पत्ति आज पैदा हुई और वह सबको मिल जाती है और तब कोई संग्रह करे तो वह हमें मान्य है पर लोगों को आज ही न मिलें तो वह संग्रह करने का अधिकारी नहीं हैं जो मनुष्य दूसरे को खाना न मिलने पर भी अपने पास संग्रह रखता है तो वह परमेश्वर को क्या मानेगा? जिसने तो पैसे को ही देवता मान लिया। जिसने पैसे को माना उसमें फिर ईश्वर निष्ठा नहीं रही। इसलिए तो गीता ने कहा ‘यदृष्टा लोभ-सन्तुष्टा’ समाज की सेवा करते जाये और जो मिले उसी में समाधान मानें। आज ये लोग कहते हैं कि हमने कमाई की और हमारे पास पैसा आया। हम कहते हैं कि हमने व्यापार किया। व्यापार के माने क्या हैं? जिसने पैदा किया था उसके पास उसे पहुँचा दिया। तो इसमें जो महनताना है वह लेने का आपको हक है। आपने केवल पहुँचाने का काम किया। उत्पादन का काम तो नहीं किया। उत्पादन करने वाले को दो चार रुपया मिलता है और पहुँचाने वाले को हजार हजार रुपया मिलें यह क्या न्याय है? ये लोग अपने भण्डार भर सकते हैं। जरूरत पड़ने पर भण्डार खोलते भी नहीं। आपको तो करना यह चाहिये कि जब लोगों को जरूरत हो भण्डार खोल दें। पर इसके बीच जो मुनाफाखोरी होती है उसे आप समझते हैं कि यही धर्म है। आप तो सेवक हैं। उसके माने आपके जो स्वामी है आम जनता वह जितना पा सकती है उससे बढ़ कर आपको पाने का क्या हक है? राम से हनुमान क्या अधिक वेतन का हकदार माना जायेगा? इस लिए यह समझने की बात है कि हम कोई न कोई अन्याय करते हैं और कमाते हैं। अगर न्याय से कमाते हैं तो हम उसके ट्रस्टी बन जाते हैं। पोस्टमैन के पास बहुत सारी डाक आई तो क्या वह उसके लिए आयी? उसके पास तो वह दूसरों के पास पहुँचाने के लिए आयी है। यह जरा समझने की बात है। आज हम यह समझते नहीं है और इस लिए आज समाज में दुःख है।

हमने ‘चोरी करना पाप है’ यह अच्छा वाक्य माना, पर यह तो नहीं माना कि संग्रह करना पाप नहीं है तो चोरी करना भी पाप नहीं है। पर कम्युनिस्ट के पुत्र हैं पुत्र को चोर समझो और पिता को चोर न समझो। यह कैसी बात? पुराणों में एक कहानी है। एक राजा अपने राज्य का वर्णन करते हुए कहता है नमस्तेना जनपदे, मेरे राज्य में कोई चोर नहीं है। इतना कहने भर से वह चुप नहीं रहा। उसने फौरन कहा ‘न कदर्यः, याने मेरे राज्य में कोई कन्जूस नहीं है। यह उसको क्यों कहना पड़ा? क्योंकि वह जानता है कि कन्जूस ही चोर को पैदा करने वाले है। जब तक इन्हें खतम नहीं करते तब तक वे मिटेंगे नहीं।

आज हम क्या करते हैं? आफिस में ग्यारह बजे गये, देखा ऊपर के अधिकारी नहीं आये हैं, दो बजे आयेंगे तो काम करने के बजाय सो गये और फिर पौने दो बजे उठ गये। यह एक नई चोरी नहीं है। चोरी के कई प्रकार हैं हम तो रात में भी चोरी करते हैं उसी को अच्छा मानते हैं क्योंकि उसे रात में जागना पड़ेगा, मेहनत करनी पड़ेगी खतरे का सामना करना पड़ेगा और तब जो कमायेगा हम कहेंगे उस पर उसका कुछ हक है। पर ये तो एक का दस करना हो तो एक पर केवल एक शून्य देकर कर लेते हैं। ऐसा सारा इनका कारोबार चलता है और खतियौनी में लिखते हैं- ‘श्रीहरि’। श्रीहरि याने ‘श्री’ का हरण करने वाले।

हमारा विचार सबको सुखी करने का है। जरा श्वासोच्छवास का भला देखिये। हवा लेते हैं और छोड़ते हैं पर ये कमबख्त लेते ही हैं, देना नहीं जानते। अगर लेते ही जायेंगे तो पेट फूट जायेगा। जलोदर होता है। पानी तो पीते जाते है पर पानी बाहर नहीं निकलता है। नतीजा पेट फूलता जाता है और आखिर वह मर जाता है। तो देने से कुछ नुकसान नहीं फायदा ही होता है। यह किसान आसानी से समझता है। वह बीज के वास्ते अच्छे से अच्छा अनाज चुनकर रख लेता है। अगर खाने के लिये अनाज नहीं बचा तो भी बीज को नहीं खाते। तरकारी आदि खाकर रह जाते हैं और अच्छे बीज को खेत में ही बोते हैं। इसलिए किसान का जीवन पवित्र है। वेदों ने कहा है कि ‘खेती करो और उससे थोड़ा भी पैसा मिलेगा वह बहुत है ऐसा समझो।’ बिना उत्पादन किये पैसा हासिल करते हैं इसके माने क्या? इस जेब का उस जेब में डाल दिया। व्यापारी, वकील, शिक्षक इन सब लोगों ने क्या कमाया? रवि बाबू ने कहा- ये लोग गुणा नहीं करते, विभाजन करते है। उत्पादन के काम ये लोग करते ही नहीं, कहते हैं वकीलों को 25) रुपया रोज मिल जाता है तो वह किस लिए कातेगा? हम चाहते हैं 25 रु. मिलता है तो क्या पैदा होता है? और सूत अगर थोड़ा भी कातोगे तो भी वह उत्पादन का काम होगा। पर यह कोई समझता ही नहीं है। और पैसा ही बटोरने में लगा रहता है। मजदूर को जो मेहनताना मिलता है उससे अधिक इसे कैसे मिलता है यह हमें अभी तक समझ में नहीं आया है।

हम आपकी इतनी सेवा करते है। दही फल खाते हैं कल अगर आप कहें कि आप हमारी वह सेवा करते हैं इसलिये हम आपको 25 केला जबरदस्ती खिलायेंगे तो हम कहेंगे हम पर इतनी मेहरबानी मत करो। सेवा करने से मगर पाचन शक्ति बढ़ी हो तो अधिक देना चाहिये और अगर नहीं बढ़ी हो तो अधिक देने से क्या फायदा! एक भाई ने हमें कहा-राष्ट्रपति को इतनी पेन्शन मिलनी चाहिये कि उसे काम न करना पड़े। हमने कहा कि अगर राष्ट्रपति बनने पर भी जिन्दा रहे तो उसे जरूर काम करना चाहिये। जब वह खाने का अधिकारी है तो उसे काम भी जरूर करना चाहिये। राष्ट्रपति एक बड़ा पद है इसलिए उसे काम नहीं करना चाहिए ऐसा क्यों? जो काम करता है वह आज हीन माना जाता है। महान पुरुष तो वह तब गिना जायेगा जब वह 24 घण्टे काम करेगा। रात-दिन सेवा ही करनी चाहिए। पर आज ऐसा नहीं मानते। तो हम कहते हैं जो खाता-पीता है उसे काम करना लाजमी है। मनुष्य अपने कर्त्तव्य कर्म से भगवान की पूजा करता है और उसे सिद्धि मिलती है। कब तक काम करना चाहिए तो कहा-‘कुर्वन् नेवेह कर्माणि जिजीविषेत् शतं समा’ अगर हम सौ साल जिये तो सौ साल काम चाहिए। आज तो ऐसा है कि संन्यासी कहेगा कि मैं काम नहीं करूंगा, मैं तो भिक्षा ही मांगूंगा। कवि कहेगा मैं काम नहीं करूंगा, मैं तो कविता ही लिखूँगा। इसी तरह व्यापारी, शिक्षक सभी कहेंगे कि हम काम नहीं करेंगे। अगर इस तरह हर कोई काम टालने का सोचे तो काम किसे करना चाहिए? यह जरा समझा दीजिए।

हम आपकी इतनी सेवा करते है। दही फल खाते हैं कल अगर आप कहें कि आप हमारी वह सेवा करते हैं इसलिये हम आपको 25 केला जबरदस्ती खिलायेंगे तो हम कहेंगे हम पर इतनी मेहरबानी मत करो। सेवा करने से मगर पाचन शक्ति बढ़ी हो तो अधिक देना चाहिये और अगर नहीं बढ़ी हो तो अधिक देने से क्या फायदा! एक भाई ने हमें कहा-राष्ट्रपति को इतनी पेन्शन मिलनी चाहिये कि उसे काम न करना पड़े। हमने कहा कि अगर राष्ट्रपति बनने पर भी जिन्दा रहे तो उसे जरूर काम करना चाहिये। जब वह खाने का अधिकारी है तो उसे काम भी जरूर करना चाहिये। राष्ट्रपति एक बड़ा पद है इसलिए उसे काम नहीं करना चाहिए ऐसा क्यों? जो काम करता है वह आज हीन माना जाता है। महान पुरुष तो वह तब गिना जायेगा जब वह 24 घण्टे काम करेगा। रात-दिन सेवा ही करनी चाहिए। पर आज ऐसा नहीं मानते। तो हम कहते हैं जो खाता-पीता है उसे काम करना लाजमी है। मनुष्य अपने कर्त्तव्य कर्म से भगवान की पूजा करता है और उसे सिद्धि मिलती है। कब तक काम करना चाहिए तो कहा-‘कुर्वन् नेवेह कर्माणि जिजीविषेत् शतं समा’ अगर हम सौ साल जिये तो सौ साल काम चाहिए। आज तो ऐसा है कि संन्यासी कहेगा कि मैं काम नहीं करूंगा, मैं तो भिक्षा ही मांगूंगा। कवि कहेगा मैं काम नहीं करूंगा, मैं तो कविता ही लिखूँगा। इसी तरह व्यापारी, शिक्षक सभी कहेंगे कि हम काम नहीं करेंगे। अगर इस तरह हर कोई काम टालने का सोचे तो काम किसे करना चाहिए? यह जरा समझा दीजिए।


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