गायत्री महायज्ञ में आप भी भाग लीजिए।

April 1954

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“अखंड ज्योति” के पाठकों से गायत्री की महिमा छिपी नहीं है। इस महामन्त्र का आश्रय लेने वाला अपने आन्तरिक और साँसारिक क्षेत्रों को मंगलमय बना सकता है। भारतीय धर्म में इससे अधिक शिक्षा पद एवं शक्तिशाली मंत्र और कोई नहीं है। इसी प्रकार यज्ञ की महिमा भी सर्वविदित है।

गत जनवरी के अंक में यज्ञ सम्बन्धी बहुत कुछ चर्चा की जा चुकी है। हिन्दू का कोई भी धर्मकृत्य व्रत, उत्सव, पर्व, त्यौहार, संस्कार यज्ञ के बिना पूर्ण नहीं होता। हम अपने शरीर को अन्त में ‘अंत्येष्टि यज्ञ’ की चिता में ही भस्म करते हैं। गायत्री को माता और यज्ञ को पिता माना गया है। इन्हीं दोनों के संयोग से मनुष्य का आध्यात्मिक जन्म होता है, जिसे “द्विजत्व” कहते हैं। जैसे स्थूल शरीर को जन्म देने वाले माता-पिता की सेवा पूजा करना मनुष्य का कर्त्तव्य है उसी प्रकार गायत्री माता और यज्ञ पिता की पूजा करना भी प्रत्येक द्विज का आवश्यक धर्म कर्त्तव्य है। यज्ञ को ‘ईश्वर का मुख’ कहा गया है। उसमें जो कुछ खिलाया जाता है वह सच्चे अर्थों में ब्रह्म भोज है।

यज्ञ एक परम रहस्यमय प्रचण्ड शक्तियों से परिपूर्ण विज्ञान है। प्राचीन काल में यज्ञ विद्या के ज्ञाता लोग शक्ति वेद मन्त्रों का उच्चारण, विविध समिधाएं तथा हव्य पदार्थों के वैज्ञानिक संमिश्रण, हवन वेदिकाओं पर देव तत्वों के आवाहन, कुण्डों में विशिष्ट अग्नियों के स्थापन एवं विभिन्न कर्मकाण्डी उपचारों द्वारा आकाश में ऐसी शक्तिमयी विद्युत तरंगें उत्पन्न करते थे जो बड़े-बड़े प्रयोजनों को पूर्ण करने के आश्चर्यजनक परिणाम उत्पन्न करती थी। उस युग में असंख्य भौतिक और आध्यात्मिक शक्तियों, शब्दों एवं विद्युत तरंगों का उद्भव यज्ञ शालाओं में ही होता था। वेदान्त यज्ञ विद्या के श्रोता विश्वामित्र, वशिष्ठ आदि ऋषि लोग थे और तंत्रोक्त होम के निष्णात रावण आदि असुर थे। आसुरी शक्तियों को भी रावण ने वेदमन्त्रों एवं यज्ञों से ही प्राप्त किया था। अनेक राजा और ऋषियों ने समय-समय पर विभिन्न आध्यात्मिक एवं साँसारिक प्रयोजनों के लिए यज्ञ किये हैं उनके इतिहास से भारतीय प्राचीन ग्रन्थों का पन्ना-पन्ना भरा पड़ा है। आज यद्यपि प्राचीन काल जैसी साँगोपाँग यज्ञ विद्या की जानकारी लुप्तप्राय हो गई है। फिर भी वर्तमान काल में विज्ञान शास्त्रोक्त विधि से ठीक प्रकार हवन यज्ञ किये जावें तो उनका परिणाम अब भी आशाजनक होता है। कई बार परिणाम आश्चर्यजनक होते हैं।

समयानुसार वर्षा, अन्न, वृक्ष तथा वनस्पतियों की वृद्धि, पशुओं की पुष्टि सुसन्तति, रोग निवारण कुबुद्धि एवं पाप वृत्तियों का नाश, वातावरण की शुद्धि, सतोगुण एवं सद्भावनाओं का विकास मंगलमय दैवी तत्वों से मनुष्य की घनिष्ठता बढ़ाना अनिष्टों का निवारण, आदि अनेक लाभ ऐसे हैं। जो यज्ञों द्वारा किसी न किसी रूप में अब भी निश्चित रूप से प्राप्त होते हैं।

महा महिमामयी गायत्री माता और प्रचण्ड शक्तियों के तेज पुँज यज्ञ पिता का एकीकरण “गायत्री महायज्ञ” है। जिस प्रकार गंगा और यमुना के मिलने से तीर्थराज संगम बनता है वैसे ही गायत्री और यज्ञ इन दोनों के सम्मिलित आयोजन का प्रभाव भी असाधारण ही होता है। गायत्री महायज्ञ का महात्म्य अन्य मन्त्र साधनों एवं यज्ञों से विशेष है। इन्हीं तथ्यों को ध्यान में रखकर गायत्री तपोभूमि मथुरा में प्रति वर्ष एक गायत्री महायज्ञ करते रहने का निश्चय किया गया है। इस बार यह यज्ञ चैत्र शुक्ल 13,14,15 संवत् 2011 वि0 तदनुसार 16,17,18 अप्रैल सन 54 शुक्रवार, शनिवार और रविवार को होने जा रहा है।

यह ऋषि कल्प आयोजन बाह्याडंबर, प्रदर्शन एवं दिखावटी तड़क-भड़क से बिलकुल शून्य रहेगा। यह यज्ञ पूर्ण शान्तिदायक वातावरण में शास्त्रोक्त रीत से लोक कल्याण एवं प्रभु प्रीत्यर्थ ही किया जायगा। इसमें एक सीमित संख्या में उतने आयोजन सम्पन्न होगा। जिन्हें इस यज्ञ में भागीदार बनना हो उन्हें पूर्व सूचना अवश्य भेजनी चाहिए ताकि सम्मिलित होने वालों की सीमित संख्या में उनका नाम भी सम्मिलित किया जा सके।

आत्मोन्नति का जो कार्य बहुत भाषण प्रवचन सुनने, बहुत पढ़ने, तथा छोटे-मोटे अन्य उपायों से पूरा नहीं होता वह ऐसे अवसरों पर सम्मिलित होने से सहज ही पूरा हो जाता है। कुम्हार के अवा में लगे हुए अनेक बर्तन एक ही अग्नि से कुछ ही समय में एक साथ पक जाते हैं। आग की तीव्र भट्टी के निकट बैठने वाले अनेक लोग उष्णता अनुभव करते है उन का शीत दूर हो जाता है, उसी प्रकार गायत्री महायज्ञ में प्रवेश करने मात्र से अन्तरात्मा के शुभ तत्वों का परिपाक, अभिवर्द्धन होता है और अनेकों रोग शोक उस गर्मी में बर्फ की तरह पिघल कर बह जाते है। बूँद-बूँद टपकने वाले सोते से जितना पानी बहुत समय में इकट्ठा किया जा सकता है उतना एक बड़े सरोवर में क्षण भर में प्राप्त हो सकता है। इसी प्रकार महीनों तक छुट-पुट चलने वाली साधना की अपेक्षा इस वृहद् अभियान में तीन दिन सम्मिलित होना प्रत्येक दृष्टि से उत्तम ही होगा। जो अधिक कार्य व्यस्त एवं अन्य कारणों से आने में असमर्थ न हों उन्हें इस अवसर पर सम्मिलित होने के लाभ से वंचित न रहना चाहिये। परन्तु स्मरण रहे हर किसी को यज्ञ में सम्मिलित होने की स्वीकृति न मिलेगी। जिन्हें सम्मिलित होना हो वे अपना स्थान पहले से ही निश्चित अवश्य करा लें। यह विज्ञप्ति ही सबके लिए आमंत्रण पत्र है। कोई सज्जन अलग से आमंत्रण आने की प्रतीक्षा न करें।

यज्ञ में भाग लेने वाले सब की पोशाक एक सी रहेगी। सफेद धोती कुर्ता, तथा कन्धे पर पीला रंगा हुआ दुपट्टा रहेगा। अशौच की स्थिति एवं बहुत छोटे-बच्चे वाली स्त्रियों को छोड़ कर अन्य महिलाएं भी भाग ले सकेंगी। स्त्रियों की धोती या चादर पीली रंगी होनी चाहिए। बाहर से आने वाले सज्जनों को ता0 15 की शाम को ही आ जाना चाहिए ताकि ता0 16 को प्रातः काल यज्ञ में सम्मिलित हो सकें। अखण्ड ज्योति प्रेस, घीयामंडी रोड़ पर है। गायत्री तपोभूमि मथुरा से वृन्दावन जाने वाली सड़क पर मथुरा से 1 मील दूर है रेलवे स्टेशन से सीधा तपोभूमि ही पहुंचना चाहिये। ठहरने की व्यवस्था प्रायः सभी की वहीं है। स्टेशन से प्रायः) सवारी ताँगे रिक्शे तपोभूमि का किराया लेते हैं। अनावश्यक लोगों को तीर्थ यात्रा कराने के लिए साथ न लायें। क्योंकि उनके ठहरने आदि की व्यवस्था न रहने, और साथियों की प्रेरणा दूसरे कार्य के लिए रहने से कार्यक्रम में गड़बड़ी फैलती है। जिन लोगों का यज्ञोपवीत अभी तक नहीं हुआ है उनको विधिपूर्वक यज्ञोपवीत लेने का भी यह परम शुभ अवसर है।

आप भी इसमें भाग लीजिए

यह यज्ञ केवल एक देशीय या कुछ सीमित संख्या या याज्ञिकों द्वारा सम्पन्न होने वाला साधारण हवन नहीं है। यह सभी गायत्री प्रेमियों का एक सम्मिलित सामूहिक एवं व्यापक क्षेत्र में सुविस्तृत महायज्ञ है। इसमें किसी न किसी रूप में भाग लेना प्रत्येक गायत्री उपासक का आवश्यक कर्तव्य है। जो लोग परिस्थितिवश मथुरा न आ सकें वे अपने-अपने स्थानों पर तीनों दिन कम से कम 24-24 आहुतियों का हवन और 10-10 मालाओं का जप अवश्य करें। जहाँ कई गायत्री उपासक हों वहाँ जप और हवन की योजना स्थानीय सुविधा की दृष्टि से की जा सकती है। इस प्रकार जो लोग इस व्यापक महायज्ञ में अपने-अपने स्थान पर सम्मिलित हों वे अपने कार्य की सूचना हमें अवश्य देदें -

आप अपने इस पारिवारिक महायज्ञ में-सम्मिलित हूजिये। मथुरा आना न हो सके तो अपने घर से ही यज्ञ आयोजन की व्यवस्था कीजिए-


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