पुत्र पिता के अनुकूल व्रती होकर रहें।

September 1953

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“स्वस्ति गोम्यो जगते पुरुषेभ्यः”

अथर्ववेद 1। 39। 4

सब पशु पक्षी और प्राणी मात्र का भला हो।

“संगच्छध्वम् संदध्वम्” ऋग्वेद 10। 19। 2

मिल कर चलो और मिल कर बोलो।

”शुद्धाः पूता भवत यज्ञियासः”

ऋग्वेद 5। 51। 1

शुद्ध और पवित्र बनो तथा परोपकारमय जीवन वाले हो।

”आप्नुहि श्रेयसिमतिसमं क्राम”

अथर्ववेद 2। 11। 1

अपने समान लोगों से आगे बढ़ और श्रेय को प्राप्त कर।

“रमन्तां पुण्या लक्ष्मीर्याः पापीस्ता अनीनशम”

पुण्य और कमाई तेरे घर की शोभा बढ़ावे, पाप की कमाई को मैं नष्ट कर देता हूं।

वर्ष १३ संपादक-श्रीराम शर्मा, आचार्य अंक 9


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