जीवन की कला

September 1953

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(प्रो. रामचरण महेन्द्र एम. ए.)

मनुष्य के जीवन में नाना प्रकार के रस हैं। जिस प्रकार मधुमक्खी सुन्दर सुरक्षित सुमनों का मधु एकत्रित करती है, उसी प्रकार वह कडुए नीम के कसैले फलों से भी शहद लेती है। मीठा और कसैला शहद मिलकर एक नया स्वाद देता है। इसी प्रकार मानव जीवन में सुख दुःख, आशा-निराशा, मजबूरियाँ, उल्लास, हर्ष-विषाद आदि नाना प्रकार के मीठे-खट्टे व कसैले पुष्प हैं, जिससे हम जीवन रस एकत्रित करते हैं।

हमारा जीवन एक वैज्ञानिक की प्रयोगशाला की तरह है, जिसमें हम स्वयं अपने साथ तथा समान के अन्य नागरिकों के साथ रहकर नित नूतन प्रयोग किया करते हैं। एक तरह हम सब ही इस संसार रूपी प्रयोगशाला में अपने अनुभवों द्वारा प्रयोग कर रहे हैं। हमारी पाँच इन्द्रियाँ, हमारा मस्तिष्क, हमारा शरीर वे यंत्र हैं, जिनसे हम जीवन और संसार विषयक ज्ञान एकत्रित कर रहे हैं।

वे कौन से जीवन सत्य हैं, जो संसार का अनुभव करने के पश्चात हमें मिलते है तथा जिनसे दूसरों को लाभ हो सकता है? आइए, विद्वानों? महर्षियों तथा ज्ञानियों द्वारा प्रदत्त कुछ जीवन सत्यों पर विचार करें :-

जीवन में रस लें

हमारा आधारभूत सत्य यह होना चाहिए कि हम अपने जीवन को प्यार करना, उसमें अधिक से अधिक सफलता, प्रतिष्ठा एवं गौरव प्राप्त करने का उद्देश्य अपने समक्ष रखें। बुद्धिमता पूर्वक जीवन का कार्यक्रम ऐसा कार्य क्षेत्र का चुनाव करें जो कार्य हमें जीवन भर करना है, उस पर रचनात्मक दृष्टि से विचार करें। उसमें आनन्द लें। लोग कुछ वर्ष पश्चात् अपने कार्य में दिलचस्पी या रस लेना छोड़ देते हैं और काम को भार स्वरूप समझने लगते हैं। यह बड़े लोभ का विषय है।

अपने कार्य में रस लीजिए, उसे दिलचस्प बनाइये। दिलचस्पी से अपना कार्य करने से मनुष्य का स्थायी उत्साह बना रहता है और कार्य सहज सरल हो उठता है। गहराई से अपने पेशे के गुप्त रहस्य मालूम करें और अपने आपको कार्य के अनुकूल बना लें, ढाल लें। जैसे-जैसे आपकी शक्ति, स्वभाव और आदतें पेशे के अनुकूल ढलती जाएंगी, वैसे-वैसे एकरसता हटती जायगी। हम निरन्तर अपने पेशों में उन्नति करते जा रहे हैं यह भाव मन में रखने से स्थायी उत्साह बना रहता है।

प्रत्येक व्यक्ति को कुछ न कुछ कार्य करना पड़ता है, हम भी अपना कार्य कर रहे हैं। अब बिना काम जिन्दा नहीं रहा जा सकता। जब बिना काम जिन्दा नहीं रहा जा सकता, तो क्यों न अपने कार्य में रस लें- यह मन में बैठा लेना चाहिए।

प्रधान कार्य के अतिरिक्त कुछ अवकाश का समय निकालें, जिसमें कुछ न कुछ मनोरंजन करते रहें। मनोरंजन जीवन का रस है। कुछ काल के लिए आप संसार की चिंताएँ भूल जाएं। उत्साह से खेलों में भाग लें। उत्साह बनाए रखने से शरीर की शक्तियां सक्रिय हो जाती है और आत्मविश्वास बढ़ता है।

पेशे में रस बनाए रखने के लिए आवश्यक है कि आपका कुछ दिनों के लिए मुख्य पेशा छोड़ते रहें और दूसरे कार्यों में संलग्न होते रहें। नया कार्य करने से सरलता बनी रहती है तथा कुछ काल पश्चात् पुराने पेशे के प्रति पुनः उत्साह जाग्रत हो उठता है।

बंधनों से मुक्त समझें

संभव है आपके मानसिक जीवन में गुप्त भावना ग्रन्थियां पड़ी हों। आप ऐसे सभी संस्कारों से मुक्त रहने का अभ्यास करें जो अनुचित रीति से आपके व्यक्तित्व पर भार डाल रहे हैं। अपने सामर्थ्य पर रह कर नए विचारों की दुनिया में रहा करें।। नए रूप में अपनी परिस्थितियों, कठिनाइयों और नाना समस्याओं पर विचार करें।

आपके बंधन बाहरी या मानसिक दोनों प्रकार के हो सकते हैं। उनका विचारपूर्वक विश्लेषण करें वर्गीकरण करें, फिर पृथक-पृथक विचार कर एक-एक को सुलझाएं। समस्याओं की गुत्थियां संभव हैं, जो आपको भयभीत कर दें, किंतु जैसे-जैसे आप उनका वर्गीकरण करेंगे वैसे-वैसे वे साफ होती जाएंगी। बिखरे और उलझे हुए बालों को देखकर मन कैसा घबराता है किन्तु उन्हीं केशों को जब स्वच्छ कर कंघे से सुलझा लिया जाता है तो वे ही सुन्दर प्रतीत होने लगते हैं। यही हाल जीवन समस्याओं का है। दूर से उलझा हुआ देखकर आपको जो घबराहट होती है, समीप आने पर वह विलुप्त हो जाती है।

आवश्यक-अनावश्यक का भेद करना सीखें

अनेक बार हमारी मानसिक शक्तियां धोखा दिया करती हैं। कठिन श्रमपूर्ण कार्यों के प्रति हमारा सम्मान नहीं होता। अरुचिकर कामों को हाथ में लेने की तबियत नहीं करती। सच्चे और ठोस कार्य से बचने के निमित्त प्रायः हम अनावश्यक कार्यों को हाथ में ले लेते हैं और उनमें ऐसे संलग्न हो जाते हैं, मानो अत्यन्त जरूरी काम कर रहे हों। कष्ट साध्य कार्यों से भागने की और खेलकूद में प्रवृत्त रहने की वृत्ति बच्चों में विशेष रूप से पाई जाती है। हम में से अनेक भी इसी प्रवृत्ति के शिकार हैं। हम उन जरूरी कार्यों को न करेंगे, जिनमें श्रम लगता है। कहानी, उपन्यास पढ़ने वाले ढेरों हैं पर गंभीर साहित्य में आनन्द लेने वाले नगण्य हैं।

कठिन, अरुचिकर, परिश्रम और मनोयोग चाहने वाले कार्यों को आप सबसे पहले करें। प्रात: काल का समय ऐसे कठोर कार्यों को बखूबी कर सकते हैं क्योंकि आपका मन और शरीर ताजा है।

कौन काम पहले, कौन बाद में करें इनका विवेक मनुष्य को अपनी दक्षतम शक्तियों को एक स्थान पर केन्द्रित करना सिखाता है। अनावश्यक कार्य सरल होते हैं पर उनसे कोई स्थायी लाभ नहीं होता। ऐसे मोहक प्रलोभन से सावधान!

सच्ची इच्छा और नकली इच्छा से विवेक करें।

आप जीवन में छोटी-बड़ी अनेकों इच्छाओं को पूर्ण करने बड़े बनने के अनेकों स्वप्न देखा करते हैं। ‘‘मैं वह भी कर लूं, वह भी कर लूं’’ ‘‘लक्ष्मी की मेरे पास कृपा हो’’ सरस्वती सहायक हो, ऐसी-ऐसी सैकड़ों इच्छाएं सागर में तरंगों की भांति मन में उत्पन्न होती रहती हैं। ये थोथी बातें है। जो निरी कपोल कल्पना में निमग्न रहता है कार्य कुछ नहीं करता, वह निरा शेखचिल्ली ही कहा जायेगा। ये सब नकली इच्छाएँ हैं, जिनका कुछ महत्व नहीं।

सच्ची इच्छा मन में रखने वाला अपने लक्ष्य के प्रति उत्साह जागरूकता और परिश्रम है। नकली इच्छा मेहनत का अवसर आते ही विलुप्त हो जाती है। असली इच्छा कठोर परिश्रम, कठिनाई, असफलता कष्टों के बावजूद स्थायी बनी रहती है। सच्ची इच्छा में स्थायी प्रयत्न की भावना है। जिसके प्रति जितनी दृढ़ सच्ची इच्छा होती है, वह उतनी ही सफल होती है। नकली इच्छा आकस्मिक सक्रियता है। नकली इच्छा को शक्ति का अपव्यय, आलस्य और व्यसन नष्ट-भ्रष्ट कर देते हैं, सच्ची इच्छा के सामने ये दुम दबाकर भाग जाते हैं।

शक्ति के अपव्यय (बिखरना) से बच। कार्य को हाथ में ले उसी में गढ़ जाएं, तब ही आप सच्ची इच्छा की साधना कर सकते हैं। सावधान, आलस्य एवं व्यसन को पास न फटकने देना। मानव संस्कृति ने जितने महान कार्य किए हैं, वे तीव्र स्थायी इच्छा शक्ति के संतुलन द्वारा ही संपन्न हुए हैं। इच्छा शक्ति ही आपको आगे प्रेरित करने वाली अमोघ शक्ति है। निश्चय में ढले न रहें।

समीप से देखें

दूर की दुनिया, व्यक्ति, मनुष्य, समस्याएँ, एक अभिनव आकर्षण से युक्त प्रतीत होते हैं। वस्तु की दूरी एक भीना धुँधलापन नेत्रों पर बिछा देती हैं। इस अस्पष्टता के आवरण में असुन्दर अकल्याणकारी भी सुन्दर और कल्याणकारी प्रतीत होने लगता है। दूर से चित्रों में नया सौन्दर्य भर जाता है। समीप से देखने पर आप ऐसे अनेक रंगे लियरों से परिचित हो जाएंगे उनके अनेक रहस्य आप के सामने प्रकट होंगे, समस्याओं की कलह खुल जायगी, गड़े व्यक्तियों की पोलें खुल जायेगी। आप देखेंगे कि जो दूर से चमकता है, वह सब सोना नहीं होता, चाँद में भी कालिमा लगी हुई है। आपको बड़े व्यक्तियों में तुच्छता और तुच्छ समझे जाने वालों में त्याग और बलिदान की महानता दृष्टिगोचर होगी।

अपनी गुप्त बातें हर किसी से न कहें

प्रत्येक व्यक्ति के पास कुछ ऐसी गुप्त बातें रहस्यों के रूप में होती हैं, जिनकी गोपनीयता पर उसकी प्रतिष्ठा, साख या सामाजिक स्थिति निर्भर रहती है। अनेक बार ऐसी गुप्त व्यथाएँ होती हैं, जिन्हें दूसरे व्यक्ति बांट नहीं सकते, केवल हँसी और व्यंग्य अवश्य कर सकते हैं। आपके कष्ट सुनकर उनकी दर्प पूर्ति और ईर्ष्या की वासनाएँ शान्त होती हैं। आपकी तकलीफों को सुनकर वे अपने आपको उनसे ऊँचा समझते हैं। आपको हेय दृष्टि से देखते हैं। मन ही मन आपकी मजबूरियों और असफलताओं पर हँसते हैं। जो बाहर से सान्त्वना भी देते दिखाई देते हैं, उनके मन में भी अपने दर्प पूर्ति का भाव है। जिनकी आप सहानुभूति चाहते हैं, उससे आपको कोई लाभ होने वाला नहीं है। जो सहानुभूति केवल मिथ्या प्रदर्शन के लिए है, उससे क्या लाभ? यही सहानुभूति प्रदर्शन करने वाले दूसरों के सम्मुख आकर आपकी गुप्त बातें फैलाएंगे और आपकी अप्रतिष्ठा का कारण बनेंगे। आपके मित्र ही आपके गुप्त भेद चारों और फैलाकर किनारा कर लेते हैं।

कविवर रहिम ने इसी तत्व को स्पष्ट करते हुए लिखा है-

‘‘रहिमन निज मन की व्यथा मन ही राखै गोय। सुनि अठिलैहै लोग सब, बांट न लहै कोय।।’’

व्यापारियों, उच्चाधिकारियों तथा नेताओं के लिए अपने कार्यालय, व्यापार, दुकान, घर या पार्टी के भेदों को गुप्त रखना आवश्यक है। गोपनीयता से आप में दूसरों को आकर्षण प्रतीत हो जायगा।

संभव है, आप में कुछ ऐसी गुप्त कमजोरियां हैं, जिनका दूसरों को बताना आपके, आपके परिवार या अन्य व्यक्तियों के लिए अहितकर हो ऐसी दुर्बलताओं को दफना देने में ही लाभ है।

व्यापार में अपने लाभ-हानि, वास्तविक आर्थिक स्थिति किसी से कहना अत्यन्त हानिप्रद है। जब तक बाहर वाले यह समझते हैं कि आपकी आन्तरिक स्थिति अच्छी है, आप खूब लाभ कमा रहें हैं, आपके पास पूँजी एकत्रित है, तब तक आपकी साख बची रहती है। उधार से भी आपके व्यापार में सहायता मिलती है किन्तु आपके घाटे की बात सुनकर आपके निकट सम्बन्धी भी किनारा कर लेंगे, कोई तनिक भी सहायता प्रदान न करेगा। बनी-बनी का सब कोई साथी है, पर बिगड़ी को कोई नहीं है। सम्भव है, धीरे-धीरे आपकी हानि दूर होकर फिर अच्छे दिन फिरें, समय की गति के साथ आप पुनः समृद्धिशाली बन जायँ। अतः जिन मानसिक उलझनों, हानि, कष्टों में आप हों, उन्हें पृथक-पृथक सुलझाकर स्वयं हल करें अपने आत्मबल, गुप्त सामर्थ्य को उत्तेजित करें और स्वयं अपनी सहायता करें। दूसरों से अपने कष्टों एवं मजबूरियों की कहानियां न कहते फिरें।


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