बन्धन में मुक्ति

February 1950

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(श्रीमती शान्ति एम. ए.)

मुक्ति आज बन्धन में, मुझको, मुक्ति आज बन्धन में!

मेरे नारी सुलभ हृदय को नहीं किसी ने बाँधा,

मैंने थक कर व्यापकता से सीमा का वृत साधा,

अन्तर्यामी निहित हो गया मेरे छोटे मन में!

मुक्ति आज बन्धन में, मुझको, मुक्ति आज बन्धन में!

बन्धन में ही स्वतंत्रता की विजय-श्री मिलती है,

श्वासों के पिंजड़े में कोमल काव्य कली खिलती है,

मुझको शाश्वत शाँति मिल गई अपने ही रोदन में!

मुक्ति आज बन्धन में, मुझको, मुक्ति आज बन्धन में!

मैं तो जानी नहीं कभी भी निराकार की माया,

मैं तो समझी यही कि तुम हो प्राण और मैं काया,

स्वयं पूज्य बन गई पूज्य के पुराण चरन पूजन में!

मुक्ति आज बन्धन में, मुझको, मुक्ति आज बन्धन में!


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