दृढ़ विश्वास (कविता)

March 1962

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अब आयें कितनी ही बाधा,
मैं न रुकूँगा, मैं न झुकूँगा।

डर कर तज दूँ यदि मैं चलना,
आशाओं को होगा जलना,
कितने दिन सुख से रह सकता?
अलग कहाँ जीवन से व्याधा,
मैं न डरूँगा, मैं न हटूँगा॥1॥

बढ़े कदम अब रुक न सकेंगे,
प्राण भला अपमान सहेंगे!
जितना कष्ट मिले, सह लूँगा,
मैंने काट दिया पथ आधा,
पीर सहूँगा, उफ् कहूँगा॥2॥

माना कठिन हुआ है जीना,
पग पग पर पड़ता विष पीना,
फिर भी क्या चिन्ता है मुझको,
जीवन संघर्षो में साधा,
चला चलूँगा, लक्ष्य गहूँगा।
मैं न रुकूँगा, मैं न झूकूँग॥3॥


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