युग परिवर्तन और उसकी संभावनाऐं

March 1962

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युग परिवर्तन की संभावनाओं के सम्बन्ध में महायोगी श्री अरविन्द ने अब से कुछ वर्ष पूर्व एक पत्र लेखक को जो उत्तर दिया था वह विशेष रूप से मननीय है। उन्होंने लिखा था—

“इस समय संसार में बहुत बुरी—बुरी से बुरी घटनायें हो रही हैं और मैं कहना चाहता हूँ कि अभी इससे भी कहीं अधिक बुरी परिस्थिति आना निश्चित है। पर इसमें घबराने की कोई बात नहीं, वरन् मनुष्यों को यह समझना चाहिये कि इस प्रकार की घटनाओं का होना अनिवार्य है, क्योंकि हमारे भीतर घुसे हुए अनेक दोषों का निराकरण तभी हो सकेगा जब कि वे बाहर निकल कर विनष्ट हो जायें। तभी एक नवीन और श्रेष्ठ संसार की रचना हो सकनी संभव है। इस दृष्टि से इन घटनाओं को अब अधिक समय तक रोका नहीं जा सकता। इस सम्बन्ध में हमको इस कहावत को ध्यान में रखना चाहिये कि प्रभात होने के पूर्व एक बार अन्धकार और भी गहरा हो जाता है। साथ ही मैं यह भी बतला देना चाहता हूँ अब जो दुनिया बनेगी वह नई तरह की सामग्री से और नये नमूने की बनेगी, इसलिये हमको पुरानी चीजों के नष्ट होने का अधिक शोक नहीं करना चाहिये।”

इसी प्रकार की सम्भावनायें अन्य कई भारतीय सन्त भी प्रकट कर चुके हैं। महात्मा सूरदास के नाम से एक भजन तो सर्वत्र प्रसिद्ध है कि “सहस बरस लों सतयुग बीते धर्म की बेल बढ़े। स्वर्ण−फूल पृथ्वी पर फूले पुनि जग दशा फिरे” आदि−आदि। मान सरोवर पर निवास करने वाले योग−विद्या के महान अभ्यासी श्री अवधूत स्वामी का कहना है कि− ‟सन् 1964 से सतयुग−आगमन के चिन्ह प्रत्यक्ष दिखाई देने लगेंगे और उसकी शक्ति दिन पर दिन बढ़ने लगेगी। इसके फल से संसार में से पाप, ताप, रोग, शोक मिटकर मनुष्य सुखपूर्वक रहने लगेंगे।” इसी प्रकार गंगोत्री के प्रसिद्ध तपस्वी, बर्फ के बीच में नग्न रहकर तपस्या करने वाले स्वामी रामानन्द महाराज ने कहा है कि—‟अब संसार का रूप बहुत शीघ्र बदलेगा।” हिमालय के परम सिद्ध महात्मा शतानन्द ने कहा है—‟साधक श्रेष्ठ कलिजीव आज क्रम−विकास के उच्च शिखर पर चढ़कर भगवान की चरण वन्दना की आशा में हैं। प्रभु आज शरणागति रूपी नौका में स्वयं कर्णधार बनकर भवसागर पार करा रहे हैं।”

महात्मा विश्वरञ्जन ब्रह्मचारी ने लिखा है—जगदीश्वर की जैसी प्रेरणा मिल रही है उससे अब हम लोगों को हताश होने का कोई कारण नहीं है। इस घोर मिथ्यायुग में ही सत्ययुग का प्रकाश बिखर जायेगा। अब पुनः इस देश में ऋषियुग आयेगा। फिर यह भारत ही समग्र वसुधा को ज्ञानप्रकाश द्वारा अमृत का पथ प्रदर्शन करायेगा, लक्ष्यवस्तु का सन्धान बतायेगा। वह दिन आयेगा—अवश्य ही आयेगा।”

यह नहीं समझ लेना चाहिये कि इस प्रकार की सम्मतियाँ आधुनिक समय के महापुरुषों ने ही प्रकट की हैं। नहीं, हमारे प्राचीन धर्म ग्रन्थों में भी इनका समर्थन किया गया है और स्पष्ट लिखा है कि इस प्रकार का युग−परिवर्तन सृष्टि का अटल नियम है और यथा अवसर नियमपूर्वक होता ही रहता है। महाभारत के वनपर्व में महाराज युधिष्ठिर के कलियुग के सम्बन्ध में प्रश्न करने पर महामुनि मार्कण्डेय का निम्न कथन इस सम्बन्ध में विशेष महत्वपूर्ण है—

ततस्तुमुल संघाते वर्तमान युगक्षये ॥88॥
द्विजाति पूर्वको लोकः क्रमेण प्रभविष्यति।
दैवः कालान्तरे ऽन्यासीन पुवर्लोक विवद्धये॥89॥
भविष्यति पुनः दैवमनुकूलं यदृव्छया ।
यदाँ चंद्रश्च सूर्यश्च तथा तिष्य बृहस्पतिः ।
एक राशौसमेष्यन्ति प्रवत्स्यति तदाकृतम्॥90॥
काल वर्षीय पर्जन्यो नक्षत्राणि शुभानिच ।
क्षेमं सुभिक्ष मारोग्यं भविष्यति निरामयम्॥91॥

“पहले युग के समाप्त होने के अवसर पर बड़ी ही कठिन अवस्था तथा संघर्ष को सहन करते हुये क्रम से श्रेष्ठ जनों की वृद्धि होती है। इसके पश्चात् ईश्वर की दया से फिर अनुकूल समय आता है। जब चन्द्र, सूर्य, पुष्य और बृहस्पति एक राशि में समान अंश पर हो जायेंगे तब फिर सतयुग आरम्भ होगा। तत्पश्चात् शुभ नक्षत्रों में समयानुकूल वर्षा होने लगेगी और सुकाल होकर सब लोग आरोग्यता तथा सुख का उपभोग करने लगेंगे।”

इस प्रकार के युग−परिवर्तन के वर्णन भागवत तथा अन्य ग्रन्थों में भी जगह−जगह पाये जाते हैं, पर उपर्युक्त कथन की एक विशेषता यह है कि इसमें युग−परिवर्तन के समय ग्रहों की क्या स्थिति होती है, इसे प्रकट कर दिया गया है और इस आधार पर हम उसका बहुत कुछ सही अनुमान लगा सकते हैं। यह चन्द्रमा, सूर्य और बृहस्पति तथा पुष्य नक्षत्र का जो एक साथ योग होना लिखा है वह ज्योतिर्विज्ञान के ज्ञाताओं के मतानुसार अभी कुछ ही समय पहले हुआ है। पर जैसा ऊपर कहा गया है यह सत् तत्वों का विकास और तामसी तत्वों का निराकरण क्रमशः ही होगा। यों तो हमने ऐसे भी लोग देखे थे जो कहते थे कि युग−परिवर्तन एक दिन में होगा। शाम को लोग कलियुग की अवस्था में सोयेंगे और सुबह उठेंगे तो समस्त लक्षण धर्म−युग के दिखाई पड़ेंगे। पर ये सब तो मनोरञ्जन या अर्थ का अनर्थ करने वालों की बातें हैं। युग−परिवर्तन विकास और इतिहास के सिद्धान्तों के अनुसार क्रमशः ही होगा और उसे नियमानुसार महा कठिन प्रक्रिया और परिस्थितियों से होकर गुजरना पड़ेगा। वैसी एक परिस्थिति सन् 1962 से आरम्भ होगी, जिसका प्रत्यक्ष फल दस−पाँच वर्ष के भीतर दिखलाई पड़ने लगेगा।

इस सम्बन्ध में ईसाइयों की एकमात्र धर्म पुस्तक बाइबिल में वर्णित भविष्य कथन भी कम महत्वपूर्ण नहीं है। महात्मा ईसा के प्रधान शिष्य ‘महायोगी’ जनने ‘रिवेलेशन’ शीर्षक अध्याय में संसार का भविष्य कथन करते हुए भावी युग परिवर्तन का स्पष्ट रूप से वर्णन किया है। उन्होंने कल−कारखानों और पूँजीवाद की वृद्धि का जिक्र करते हुये संसारव्यापी महायुद्ध का रोमाँचकारी वर्णन किया है और बतलाया है कि अन्त में मानव जाति की रक्षा के लिये ईश्वरीय शक्ति का आविर्भाव होगा और पृथ्वी पर धर्मराज की स्थापना की जायगी। उस धर्म राज्य का वर्णन ‘बाइबिल’ में इन शब्दों में मिलता है—

ईश्वरीय दण्ड स्वरूप

‟लड़ाई और प्राकृतिक दुर्घटनाओं में करोड़ों मनुष्यों के नष्ट हो जाने के पश्चात् जब पृथ्वी की शासन व्यवस्था धार्मिक सन्त पुरुषों द्वारा होने लगेगी तो सब कष्टों का अन्त हो जायेगा और मानव समाज सुख से जीवन व्यतीत करने लगेगा। सब लोग ईश्वरीय आदेश के अनुसार चलने लगेंगे और पाप कर्मों को त्याग देंगे। तब दुनियाँ में सेनाओं और जहाजी बेड़ों का नाम भी न रहेगा और लोग तलवारों को तोड़कर हल का फार बना लेंगे। एक देश के निवासी दूसरे देश के निवासियों से झगड़ा न करेंगे और युद्ध सदा के लिए बन्द हो जायेगा। सब स्त्री और पुरुष दूसरे स्त्री−पुरुषों को बहिन या भाई कह कर पुकारने लगेंगे। कोई मनुष्य छोटी उम्र में न मरेगा और सब सौ वर्ष की पूरी आयु तक जीवित रहेंगे। इस युग में शासनाधिकार सिर्फ उन्हीं लोगों के हाथ में रहेगा जिनका चरित्र शुद्ध तथा पवित्र होगा, जो नम्र तथा विनयशील होंगे और त्याग वृत्ति का जीवन पसन्द करेंगे।”

ईसाई धर्म के बड़े−बड़े विद्वानों ने इन भविष्यवाणियों की आलोचना तथा व्याख्या करके बड़े−बड़े ग्रन्थ लिखे हैं और सिद्ध किया है कि यह जमाना अब सर्वथा समीप आ चुका है। राजनीति तथा इतिहास के ज्ञाता, जो प्राचीन धर्म ग्रन्थों से किसी तरह का सम्बन्ध नहीं रखते, वे भी भिन्न शब्दों में इसी से बिल्कुल मिलती−जुलती संभावना प्रकट कर रहे हैं। अंग्रेजी के महान लेखक श्री एच. जी. वेल्स ने ‘शेप आफ दी थिंग्स टू कम’ (आने वाली घटनाओं का स्वरूप) नामक एक बड़ी पुस्तक लिखी है, उसमें भी भावी−समाज का हूबहू ऐसा ही चित्र खींचा गया है। उनके मतानुसार सन 2000 ईस्वी से पहले ऐसी दुनियाँ का निर्माण सर्वत्र आरम्भ हो जायेगा।


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