सामूहिक सत्प्रयत्नों की प्रगति

March 1962

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सामूहिक प्रयत्नों के बलबूते पर ही समाज का सुधार एवं परिवर्तन सम्भव है। जो कार्य एक व्यक्ति के लिये असम्भव होता है, वही सामूहिक प्रयत्नों से सरल हो जाता है। आन्दोलन के द्वारा जन−मानस में आवश्यक हेर फेर करना एवं सामूहिक श्रम शक्ति से बड़े−बड़े श्रेष्ठ कार्यों को सम्पन्न कर सकना अधिक कठिन नहीं रहता। राष्ट्र निर्माण के लिये जन−आन्दोलन के रूप में सत्प्रवृत्तियों को प्रोत्साहित किया जाना आवश्यक है। इस प्रकार के प्रयत्न जहाँ−तहाँ चल भी रहे हैं।

आचार्य विनोबा भावे ने उज्जैन से 10 मील दूर पन्त पिपलिया गाँव में पत्रकारों को बताया कि उनकी 9 वर्षीय पदयात्रा में 9 लाख एकड़ भूमि भूदान में मिली है। अभी तक मिली सारी जमीन देश के भूमि−हीनों में वितरित कर दी गई है और इन जमीनों पर अब अच्छी फसल उगी हुई है। आचार्य ने कहा कि भूदान आन्दोलन में अधिक से अधिक 3500 लोग लगे हुए हैं और 9 वर्षों में 9 लाख एकड़ भूमि का वितरण काफी महत्वपूर्ण बात है।

इलाहाबाद से 24 मील दूर, मेजा तहसील के बरनपुर गाँव के किसानों के अपनी कुल खेती की जमीन ग्राम सर्वोदय मंडल को दान में दे दी है। जिला सर्वोदय मंडल के मंत्री श्री सुरेश राम ने कहा कि इस समय बरनपुर सर्वोदय मंडल के पास 1300 एकड़ जमीन है और गाँव में एक भी भूमिहीन व्यक्ति नहीं है। किसान अब इस बात का प्रयत्न कर रहे हैं कि वे अपनी खादी स्वयं तैयार करें और अपने यहाँ ग्रामोद्योग चालू करें।

झाँसी जिले में एक गाँव है गोरा कलाँ। यहाँ के 60 में से 40 परिवारों ने बाँध बनाने के लिए 4,045 रुपये नकद और 10,000 रुपये मूल्य के सामान एवं श्रम की व्यवस्था की। बाँध की लम्बाई और चौड़ाई क्रमशः 316 फुट एवं 38 फुट है तथा इससे 150 एकड़ भूमि की सिंचाई होगी। उसकी कुल लागत अनुमानतः 20,575 रुपये होगी। राज्य सरकार ने 6,500 रुपये का अनुदान स्वीकार किया है।

बाडमेर जिले के खडीन ग्राम के लोगों ने अपने श्रमबल से एक कुआँ खोदा है, जिसमें 120 फीट की गहराई पर मीठा पानी प्राप्त हो गया है। गत 40 दिनों से ग्रामवासी अपने पुरुषार्थ से अपनी समस्या को सुलझाने के लिए श्रमदान कर रहे थे। अब इस कुएँ पर पनघट, स्नानागार, पशुओं के लिए कुण्ड आदि के निर्माण होंगे। इन सब पर 20 हजार के व्यय का अनुमान है। श्री हीरालाल ने संपत्तिदान के रूप में इस रकम को देने की घोषणा की है।

बीकानेर जिले की बीकानेर नोखा तथा कोलायत पंचायत समितियों के कई ग्रामों के निवासियों ने मृत्यु−भोज का बहिष्कार करने का निश्चय कर लिया है। इन ग्रामों की हरिजन तथा अन्य पिछड़ी हुई जातियों के बूढ़े लोगों का कहना है कि यह जरूरी नहीं कि जो गलत काम हमारे पूर्वजों ने किये हम भी उन्हीं की पुनरावृत्ति करें। पहले जब आवागमन के मार्ग नहीं थे, पारस्परिक रूप से मिलना कम हो जाता था, उस समय मृत्यु−भोज के बहाने हम लोग मिलकर अपनी समस्याओं के समाधान हेतु वार्तालाप कर लेते थे तथा उसके उपराँत थकान मिटाने हेतु भोजन करके विश्राम किया जाता था। पर अब जब कि वे परिस्थितियाँ नहीं रहीं तो मृत्यु−भोज क्यों किये जायें?

आगरा की कंजर सभा ने निश्चय किया है कि भविष्य में कोई भी कंजर महिला न तो बाजार में भीख माँगेगी न झूठन ही लेगी। यदि कोई कंजर इसके विरुद्ध कार्य करेगा तो उसे जातीय दण्ड दिया जायेगा। कंजर सभा के मन्त्री ने नगर की आम जनता और पुलिस से अपील की है कि वे इस प्रकार भीख माँगती महिलाओं को सभा के पास पहुँचा दें।

नसीराबाद के निकटवर्ती ग्राम सनोद में होलिकोत्सव पर 100 जाट, 25 गूजर, 10 नायक एवं 10 भंगियों ने ग्राम द्वारा आयोजित एक सभा में शराब व बीड़ी न पीने का प्रण किया। सभी ग्रामीणों ने बीड़ी व शराब का परित्याग करने के साथ−साथ इसके विरुद्ध चलने वाले पर 50 रुपया आर्थिक दण्ड का भी निश्चय किया है।

बूंदी जिले की जैथल ग्राम पंचायत ने राजस्थान धूम्रपान अधिनियम के अंतर्गत बालकों में धूम्रपान की बढ़ती हुई प्रवृत्ति को रोकने का निश्चय किया है। उक्त निश्चय के अनुसार पंचायत ने धूम्रपान की हानियों से अनभिज्ञ एवं बीड़ी विक्रेताओं को नोटिस दिया है कि यदि 16 वर्ष से कम आयु के बालकों को बीड़ी या तम्बाकू प्राप्त करने या पिलाने में किसी प्रकार की सहायता दी गई तो पंचायत सहायता देने वाले व्यक्ति के विरुद्ध कड़ी कार्यवाही करेगी जिसके अनुसार 25 रु. से 100 रु. तक का अर्थ−दण्ड दिया जा सकता है।

बाँसवाड़ा जिले की बागीदौरा पंचायत समिति क्षेत्र के मोटी टेम्बी आदिवासी गाँव के ग्राम मुखिया प्रशिक्षण शिविर में पंचायत समिति के प्रधान एवं समाज शिक्षा प्रसार अधिकारी की अपील पर 11 भील नवयुवकों ने पीढ़ियों से चली आई प्रथा को तोड़कर अपने गले व हाथों के गहनों को उतार फेंका और प्रण किया कि अब से गहने कभी नहीं पहनेंगे। बाँसवाड़ा के आदिवासियों ने जिले में यह अनूठा उदाहरण उपस्थित किया है।

दिल्ली, अमृतकौर पुरी के अनेकों नागरिकों ने एक सभा में यह प्रतिज्ञा की कि भविष्य में चोरी, डाका आदि डालने का काम नहीं करेंगे। इसके अतिरिक्त मद्यपान, धूम्रपान एवं माँस भक्षण न करने की भी प्रतिज्ञा की। प्रतिज्ञा अणुव्रत समिति की नैतिक आँदोलन सम्बन्धी एक सभा में की गयी। सभा में मुनि नागराज ने आदर्श जीवन बिताने पर बल दिया कि जीवन में जो प्रण ले उस पर चल कर जीवन बिताये।

जयपुर का समाचार है कि कंजर जाति के लिए बसाई गई आदर्श बस्ती रामनगर में इस पिछड़ी जाति के लोग, जो अपनी अपराधी प्रवृत्तियों के कारण बदनाम थे, अब अच्छे और आधुनिक नागरिक जीवन के अभ्यस्त हो रहे हैं। बस्तियों में रहना और वैध उपायों से कमाकर खाना, इन लोगों ने आरम्भ कर दिया है। शराब, माँस, भूत−प्रेत, गंदगी, जुआ, चोरी आदि अनेकों बुराइयों को उनने बहुत हद तक छोड़ दिया है।

इन्दौर वाणगंज क्षेत्र के पास कुष्ठ निवारक अस्पताल के समीप बसे हुये कष्ट रोग ग्रस्त 20 स्त्री पुरुषों ने भीख माँगकर अपने लिए एक कुँआ बनवाया है। कुष्ठ रोगियों ने अपने लिए एक कुष्ठ सेवा समिति भी गठित की है जिसका मंत्री भी उनमें से ही एक चुना गया है। ये कोढ़ी इस अस्पताल से ही निकले हैं पर समाज में अपना कोई स्थान न पाकर एक अलग गाँव बसाकर रहने लगे हैं।

लुधियाना की महिलाओं के इस निर्णय के बाद कि अश्लील पोस्टरों और सिनेमा विज्ञापनों के खिलाफ आन्दोलन शुरू किया जाय, कुछ शिक्षित पुरुषों ने फैशनेबल औरतों के खिलाफ भी आन्दोलन चलाने का निर्णय किया है। इन शिक्षित पुरुषों के एक प्रवक्ता ने बताया कि इसके लिए एक संस्था बनायी जा रही है। उक्त आन्दोलन 1951 के नमूने पर होगा। छोटे−छोटे कार्ड छपवाये जायेंगे, जिन पर लिखा होगा। ‟बहनजी, सिर कज्जो” (बहनजी सिर ढ़ककर चलो।) ये कार्ड उन औरतों को पकड़ाये जायेंगे, जो नंगे सिर होंगी।

लोदी कालोनी दिल्ली में बसे कायस्थों की एक उपजाति की संस्था ने फैसला किया है कि हर दूसरा रविवार “स्त्री अवकाश दिवस” मनाया जाय। स्त्री अवकाश दिवस का अर्थ है कि इस दिन गृहणियाँ बाहर बाग−बगीचों में घूमने जायँ और गृह प्रमुख घर का सारा कामकाज संभालें। घर का कामकाज संभालने में झाडू बुहारी देना, साग−सब्जी खरीदना, बच्चों को नहलाना−धुलाना, साफ कपड़े पहनाना और रसोई की देख−भाल करना आदि सब कुछ है। यदि किसी परिवार में नौकर अथवा महरी नहीं है, तो गृहपति को घर के कामकाज के अंतर्गत बर्तन भी स्वयं माँजने पड़ेंगे। उपरोक्त संस्था द्वारा किये गये निश्चय के अनुसार महिलाओं को हर पन्द्रहवें दिन पूर्ण विश्राम दिया जायेगा। विश्राम के दिन वे रविवारीय समाचार पत्रों के पन्ने पलटेंगी अथवा रेडियो सुनेंगी। घर के किसी काम को हाथ ने लगायेंगी। यह योजना कितनी लाभदायक होगी, यह तो इसके क्रियान्वित होने के बाद ही पता चल सकेगा। लेकिन इसका उद्देश्य निस्सन्देह खरा है।

राजस्थान के सीकर जिले में टोडा गाँव कदाचित सारे राज्य में पहला ऐसा गाँव है जहाँ कोई प्रौढ़ निरिक्षक नहीं हैं। गाँव के सभी प्रौढ़ों को साक्षर बनाने के लिये ग्रीष्मावकाश में प्राथमिक पाठशाला के अध्यापकों द्वारा प्रौढ़ शिक्षा अभियान आयोजित किया गया था और इसके परिणामस्वरूप गाँव के सभी प्रौढ़ों को साक्षर बनाया जा चुका है।

अश्लीलता विरोधी आन्दोलन सर्वोदय कार्यकर्ताओं द्वारा देश भर में चलाया जा रहा है। दीवारों पर लगे हुए कुरुचिपूर्ण सिनेमाओं के पोस्टरों को हटाना तथा अश्लील साहित्य एवं चित्रों की होली जलाना इस आन्दोलन का एक जनप्रिय कार्यक्रम बन गया है।

विदिशा (मध्य प्रदेश) में सनातन धर्म विद्यार्थी परिषद ने ‘चोटी रखाओ आन्दोलन’ आरम्भ करने का निश्चय किया है। आन्दोलन का उद्घाटन करने के लिए लोकसभा के अध्यक्ष श्री अनन्त शयनम् आयंगर से प्रार्थना की गई है।

राजस्थान में प्रजातान्त्रिक विकेन्द्रीकरण के फलस्वरूप ग्रामीण जीवन में कितनी विचार क्राँति आई है उसका उदाहरण रतन नगर पंचायत समिति के बूटिया ग्राम पंचायत के सरपंच श्री हरिराम ने उपस्थित किया है। यहाँ के ग्रामीण क्षेत्रों में मृत्युभोज की मूढ़ परम्परा इतनी रुढ़ हो चुकी थी कि कोई उसे तोड़ने की हिम्मत नहीं करता था। किन्तु श्री हरिराम ने ग्रामीणों एवं निकट संबंधियों के घोर विरोध के बावजूद अपने पिता के दिवंगत होने पर उनका मृत्यु−भोज करने से सर्वथा इंकार कर दिया। श्री हरिराम एक संपन्न परिवार के व्यक्ति हैं तथा उनके दिवंगत पिता श्री टीकूराम भी बहुत प्रभावशाली थे। इस घटना की यहाँ काफी चर्चा है।

प्रयाग स्वराज्य भवन अब निराश्रित बच्चों और नवजात शिशुओं के आश्रम के रूप में चल रहा है। इसमें अधिकतर निराश्रित शरणार्थी बच्चे हैं जिनकी संख्या लगभग दो सौ है। स्वराज्य भवन में माताओं द्वारा लोक−लाज के भय से अपने किये पापों पर पर्दा डालने के लिए सड़कों के किनारे अथवा कूड़े पर फेंके गये नवजात शिशुओं के लिए एक अलग कक्ष है जिसमें इस समय लगभग 10 बच्चे हैं।

क्यूबा में गत वर्ष निरक्षरता के विरुद्ध राष्ट्रव्यापी युद्ध छेड़ा गया। क्यूबा की 65 लाख जनसंख्या में से दस वर्ष से अधिक उम्र के कोई दस लाख व्यक्ति लिखना−पढ़ना नहीं जानते थे। यह तय किया गया कि उनको प्रारंभिक लिखना−पढ़ना आ जाना चाहिए। कोई 3 लाख कार्यकर्ता निरक्षरता निवारण की लड़ाई में कूद पड़े। माध्यमिक स्कूलों को एक वर्ष के लिए बन्द कर दिया गया और उनके सब छात्रों को शहरों और गाँवों में निरक्षरता के मोर्चे पर भेज दिया गया। इस राष्ट्रव्यापी युद्ध का यह नतीजा निकला कि अब क्यूबा में निरक्षरों की संख्या 3 प्रतिशत ही रह गई है। निरक्षरता के मोर्चे पर विजय प्राप्त करके लौटने वाले कार्यकर्त्ताओं का क्यूबा में शानदार स्वागत किया गया। विजयी सेना का स्वागत होना भी चाहिए। क्या हम क्यूबा के इस उदाहरण से कुछ सबक लेंगे? हमारे यहाँ बालकों को प्राथमिक शिक्षा देने का प्रयास तो किया जा रहा है, किन्तु प्रौढ़ों को साक्षर बनाने की दिशा में कुछ नहीं हो रहा है। जब सन् 37 में काँग्रेस ने मंत्रिमंडल बनाए थे, तो साक्षरता प्रसार का कार्यक्रम जोरों से चला था। अब भी प्रौढ़ों को साक्षर बनाने के लिए कुछ न कुछ विशेष कार्यक्रम अपनाया जाना चाहिए।

लन्दन की सर्वे रिपोर्ट है कि आज से सात सौ वर्ष पूर्व योरोप में 20 हजार कुष्ठ केन्द्र 1, 80, 70, 700 रोगियों की सेवा शुश्रूषा में व्यस्त थे। किन्तु अब वहाँ कुष्ठ रोगियों की संख्या 20 हजार से भी कम बताई जाती है। यह सब वहाँ की जनता के महान प्रयत्न एवं लगन से ही संभव हो सका है, सरकारी सहयोग तो इसमें मिला ही है।

इस प्रकार की सत्प्रवृत्तियाँ भारत में चल तो रही हैं पर उनकी स्थिति अभी दुर्बल ही है। अपने पिछड़े हुए देश में सुधारात्मक एवं रचनात्मक आन्दोलन अधिक सक्रिय होने चाहिएं।


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