महिलाऐं और बच्चे भी पीछे नहीं

March 1962

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समझा जाता है कि स्त्री और बच्चे कमजोर होते हैं, उनमें साहस नहीं होता। पर यह अनुमान सर्वथा सत्य नहीं है। प्रत्येक सद्गुण सभी श्रेणी के, सभी स्थिति के और सभी आयु के मनुष्यों में मौजूद रहता है। यदि उन्हें बढ़ने और विकसित होने के अवसर मिलें तो श्रेष्ठ प्रवृत्तियाँ सभी में—स्त्री, बच्चों में भी समुचित मात्रा में पनप सकती हैं।

समाचार पत्रों में ऐसे अनेक समाचार छपते रहते हैं जिनसे स्त्रियों और बच्चों में पाये जाने वाले साहस, धैर्य, पराक्रम, त्याग और महानता का प्रत्यक्ष परिचय मिलता है। इस देश की मिट्टी में सद्गुणों का प्रचुर प्रभाव छिपा पड़ा है। हमारे रक्त में सत्प्रवृत्तियों की धारा लाखों वर्षों से अपनी उत्कृष्ट संस्कृति के रूप में प्रवाहित हो रही है। आवश्यकता उसके उद्बोधन और जागरण की है। पुरुष तो बहुत कुछ कर ही सकता है पर सीमित क्षेत्र एवं सामर्थ्य होते हुए भी हमारी नारी और हमारे बालक तक अपनी महानता का कितना उत्कृष्ट परिचय दे सकते हैं इसके कुछ समाचार नीचे देखिए।

जबलपुर के बहुरीबंद गाँव की एक ग्रामीण महिला ने खूँखार बाघ से निहत्थे द्वन्द्व युद्ध करके अपने तीन वर्षीय बालक को बचा लिया। महिला ने साहस नहीं खोया उसने एक हाथ से बच्चे को पकड़े रखा और दूसरे हाथ से अपनी लाठी बाघ के मुँह में घुसेड़ दी। बाघ बच्चे को छोड़ कर भाग खड़ा हुआ और घायल बच्चे को अस्पताल पहुँचाया गया जहाँ उसकी जीवन रक्षा हो गई।

हिमाचल प्रदेश के एक गाँव की हरिजन महिला ने खेत पर काम करते हुए अपने पति को चीते द्वारा ग्रास बनाये जाने से बचा लिया। चीता जैसे ही पुरुष पर झपटा कि उसकी स्त्री कुल्हाड़ी लेकर उस दुर्दान्त पशु से भिड़ गई और कई प्रहार करके उसका काम तमाम कर दिया मण्डी के डिप्टी कमिश्नर ने इस वीरांगना को पुरस्कृत करके शासन की ओर से उसका सम्मान किया है।

सकल गढ़ के बैरारा गाँव की एक महिला ने उसका जेवर उतारते हुए एक बदमाश को पकड़ लिया और उसकी मूँछें जोर से पकड़ कर मूली की तरह उखाड़ ली। गोहाटी का समाचार है कि एक महिला से घर में छुप कर घुसे बदमाश ने जब बलात्कार करना चाहा तो महिला ने साहसपूर्वक उसके हाथ में लगा छुरा छीन लिया और उससे उसके गुप्त अंग ही काट डाले। घायल बदमाश की चिल्लाहट सुनकर लोग इकट्ठे हो गये और उसे पकड़कर पुलिस के सुपुर्द कर दिया।

ग्वालियर जिले के सेवरी गाँव में आये हुए डाकुओं का एक पति-पत्नी ने बड़े साहस के साथ मुकाबला किया। डाकू ने दम्पत्ति पर गोली चलाई पर वह निशाना चूक गई। इस पर दोनों ने मिलकर तमंचा छीनकर एक डाकू पकड़ लिया। शोर सुनकर ग्रामीण भी आ गये और डाकू पुलिस के सुपुर्द कर दिया गया। पुलिस सुपरिन्डेन्ट ने दम्पत्ति को वीरता के उपलक्ष में पुरुष को साफा कुर्ता और पाजामा तथा महिला को एक साड़ी पुरस्कार स्वरूप भेंट की।

प्रेरणा की पुँज महिलाएँ

बदाऊं की अबला स्त्रियों ने कर्मठता के क्षेत्र में सबल पुरुषों को चुनौती दे दी। मलखानपुर ग्राम के निवासियों को सलाह दी गई थी कि गाँव के समीप यदि 700 फुट लम्बा और 6 फुट ऊँचा बाँध बना दिया जाय, तो वहाँ वर्षा में पानी जमा न हो सकेगा। परन्तु आलसी ग्रामीण इस सुझाव के समीप भी न फटके। वर्षा का पानी गाँव में इस प्रकार जमा हो जाता था कि एक झील−सी बन जाया करती थी और हर साल एक न एक बच्चा उसमें अवश्य डूबता था। गतवर्ष मोहिनी नामक एक ग्रामीण महिला की 8 वर्षीय बच्ची इसी जल प्लावन की भेंट चढ़ गई थी। मोहिनी देवी ने भी ग्रामीणों को प्रेरित किया, किन्तु कोई भी इसके लिए तैयार न हुआ। तब मोहिनी देवी स्वयं हाथ में फावड़ा लेकर बाँध बनाने पर अकेली जुट गई। ग्रामीण महिलाओं ने अपने पतियों को धिक्कारा, पर उनके कान पर जूँ भी न रेंगी। इस पर ग्रामीण महिलाओं का एक समूह मोहिनी देवी की मदद के लिए आया। इन 36 महिलाओं ने चिलचिलाती धूप की तनिक भी परवा न कर अपना काम जारी रखा और सात दिनों में न केवल बाँध तैयार कर दिया, बल्कि उसके ऊपर 15 फुट चौड़ी सड़क भी तैयार कर डाली, जिसे उन्होंने कंकड़ों और पत्थरों से कूट−कूट कर पक्का भी कर दिया है।

देवास मंडल में ग्राम गूजर गाँव की एक महिला ने विकास कार्यों में अपनी रुचि एवं निष्ठा के कारण समूचे विकास कार्यक्रम को एक अपूर्व गति प्रदान कर दी है। गूजर गाँव की महिला श्रीमती सीताबाई ने अपने ग्राम को एक आदर्श ग्राम के रूप में परिवर्तित करने का संकल्प कर लिया है। उन्होंने ग्रामवासियों को साथ ले ग्रामीण मार्गों को कीचड़ से मुक्त करने हेतु बोल्डरों को बिछवाया एवं लगभग दो हजार रुपये का श्रमदान करवाया। लगभग 17 सौ रुपये की ग्राम−सहायता से एक पेय नलकूप तथा केवल श्रमदान से एक कुण्डी तैयार की गयी। ग्राम का शालाभवन तैयार हो चुका है तथा पंचायत भवन शीघ्र ही बनाया जाने को प्रस्ताव है। ग्राम को मुख्य सड़क से जोड़ने के लिये एक कच्ची सड़क बनाने का कार्य हाथ में ले लिया गया है। श्रीमती सीताबाई जो ग्राम की महिला सरपंच हैं, इन्हीं को यह श्रेय है कि ग्राम के झगड़े समाप्त हुए। एक महिला मंडल का भी आप संचालन कर रही हैं। इस प्रकार एक ग्रामीण महिला की प्रेरणा से न सिर्फ गूजरगाँव चहुँमुखी प्रगति के लिए कृतसंकल्प है; अपितु अन्य ग्राम भी यहाँ से प्रेरणा ग्रहण कर रहे हैं।

पिथौरागढ़ के समीप भारत तिब्बत सीमा पर स्थित चौंदस पट्टी के सिरखा और रुंगा गाँवों की महिलाओं ने भूमि कटाव से अपने मकानों को बचाने के लिए श्रमदान प्रारम्भ किया है। पहाड़ी नाले की तेज धार से, जो बरसात में बहुत तीव्र हो जाती थी, गाँव की भूमि निरन्तर कटती जा रही थी और कभी−कभी मकानों के अन्दर भी पानी भर जाता था। ग्रामवासियों को सुझाया गया कि नाले की धार की तीव्रता कम करने के लिए उस पर सीढ़ियाँ काटी जावें और पत्थर बिछाये जावें। कुछ आगे चलकर पानी के कटाव के लिए बड़ा गड्ढा बनाया जावे। परन्तु जब इस योजना को कार्यान्वित करने की बात आई तो इस गाँव के पुरुष हमेशा की तरह सीमा की मंडियों की ओर व्यापार के लिए चले गए थे। महिलाओं ने संगठित होकर भूक्षरण से गाँव की रक्षा का काम प्रारम्भ कर दिया और एक भारी संकट को टाल दिया।

साहसी और उदार मन बच्चे

जोधपुर जिले के चौकड़ी ग्राम में एक खूनी बघेरे ने 16 स्त्री−पुरुषों को घायल करके एक झोपड़ी में प्रवेश किया और वहाँ बैठे हुए एक व्यक्ति की गरदन पीछे से पकड़ ली। पास में बैठे हुए एक 9 वर्षीय बालक ने अद्भुत साहस का परिचय दिया। वह डरा नहीं वरन् घास काटने की करसी बघेरा के पेट में मारी। बालक लगातार करसी मारता ही रहा और बाद में उसका अन्त ही कर दिया।

नाथद्वारा के समीप साँपों का खेड़ा नामक गाँव में चीते ने बहुत उत्पात मचा रखा था। एक दिन दो लड़के बकरियाँ चराने जंगल में गये तो उस आठ फुट लम्बे चीते ने बड़े लड़के पर आक्रमण कर दिया। छोटे 9 वर्ष के बालक ने उस अवसर पर साहस से काम लेकर अपनी छोटी तलवार चीते के पेट में घुसेड़ दी और उसे मार डाला। रतलाम के पास खरसार गाँव के युवक शंकरलाल ने भी इसी प्रकार द्वन्द्व युद्ध करके तलवार से एक चीते को मारा।

हैदराबाद में करीम नगर के एक दस वर्षीय चिगुरु वेंकट नरसु नामक एक हरिजन लड़के को भारतीय बाल कल्याण परिषद् की ओर से एक राष्ट्रीय पदक प्रदान किया गया है। इसे यह पदक एक साहसपूर्ण कार्य के लिये दिया गया है, जो उसने गत जनवरी में किया था। गत जनवरी में उसने एक 6 वर्षीय लड़की को बचाया था, जो अकस्मात् कुँए में गिर गई थी। जिस समय वह बच्ची कुँए में गिर गई तो उसके साथ खेल रही एक अन्य बालिका तथा माँ ने शोर मचाया। वेंकट नरसु उस समय कहीं नजदीक में ही खेल रहा था। वह फौरन भागा आया और कुँए में कूद पड़ा। उसने बच्ची को बचा लिया। राज्य के शिक्षा मंत्री श्री एस. वी. पी. पट्टाभिराम राव ने इस साहसी लड़के को उक्त पदक से स्कूली बच्चों की एक सभा में विभूषित किया।

भारतीय शिशु कल्याण परिषद नई दिल्ली ने पश्चिमी गोदावरी जिले के इलुरु निवासी एक 16 वर्षीय लड़के कुमार पी. नरसिंह को असाधारण साहस दिखाने के लिए इस वर्ष के राष्ट्रीय पुरस्कार के लिए छाँटा है। आन्ध्र प्रदेश शिशु कल्याण परिषद के अनुसार इस लड़के ने बुटगेसबरम गाँव में एक 60 वर्षीय वृद्धा को उसके जलते हुये मकान से बचाया।

ग्वालियर जिले के भितरवार नामक गाँव में एक आठ वर्ष का लड़का अपने पौच वर्ष के भाई को बचाने के लिये एक कुँए में कूद पड़ा। उसका छोटा भाई सहसा कुँए में गिर पड़ा था। अपने छोटे भाई को बचाने के प्रयत्न में असफल होने पर बड़े भाई ने जोरों से चिल्लाना शुरू कर दिया, जिससे गाँव के बहुत से लोग एकत्र हो गए और उन्होंने उन दोनों भाइयों को उस कुँए से निकाल लिया। अब वे दोनों भाई स्वस्थ हैं।

मथुरा के बाटी ग्राम में श्री वन्दनसिंह के 10 वर्षीय पुत्र रामजीत सिंह ने अपनी माँ के साथ स्नान करते समय डूबते हुये एक 7 वर्षीय बालक को बचाने का साहसिक कार्य किया, जिसकी सारे गाँव ने मुक्त कंठ से प्रशंसा की और मंडल काँग्रेस के अध्यक्ष श्री मोतीलाल ने 10 रु. का पुरस्कार देकर बालक को प्रोत्साहन दिया।

रायपुर में एक पच्चीस वर्षीय नवयुवक की कल सायंकाल भिलाई के पास सुपेला नामक स्थान पर अपनी छोटी बहन को बचाते हुये रेल दुर्घटना में मृत्यु हो गई। दोनों भाई−बहन उक्त स्थान के पास रेलवे लाइन को पार कर रहे थे, कि एक इंजन भी उसी लाइन पर बड़ी रफ्तार से गुजर रहा था। भाई ने तत्परता से बहन को तो लाइन से बाहर धकेल दिया परन्तु स्वयं इंजन के नीचे आ जाने से दुर्घटना ग्रस्त हो गया। बहन को कोई चोट नहीं पहुँची।

जयपुर बाड़मेर में स्थानीय राजकीय मिडल स्कूल की 7 वीं कक्षा के 12 वर्षीय छात्र चेतनदास ने पिछले 4 वर्षों में अल्प बचत योजना में लगभग 450 रु. जमा कराए हैं। इस विद्यार्थी को अपने माता−पिता से न किसी प्रकार का जेब खर्च मिलता है और न इसने आज तक कभी अल्प बचत में जमा कराने के लिए द्रव्य ही माँगा है। यह धनराशि चेतनदास ने स्वयं अर्जित की है। विद्यार्थी ने अवकाश के समय में प्रतिदिन समाचार पत्रों की बिक्री करके जो धन कमाया है उसे नियमित रूप से अल्प बचत योजना में लगाकर अन्य विद्यार्थियों के लिये एक नया उदाहरण प्रस्तुत किया है। इसके छोटे भाई ने, जो पाँचवीं कक्षा में पढ़ता है, पत्र पत्रिकाएँ बेचकर एक साइकिल भी खरीद ली है।

इन समाचारों से उस युग की याद हरी हो जाती है जब यहाँ कुन्ती जैसी नारी और अभिमन्यु जैसे बालक घर−घर में पाये जाते थे।


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