गायत्री का अतुलित महत्व।

June 1948

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गायत्री चैव वेदाशच ब्रह्मखा तोलितापुरा। वेदेम्पश्च चतस्त्रेभ्यो गायेर्त्यति गरीयसीं॥ − षृ पाराशर स्मृति

प्राचीन काल में ब्रह्माजी ने गायत्री को वेदों से तोला, परन्तु चारों वेदों से भी गायत्री का पल्ला भारी रहा।

नास्ति गंगा संम तीर्थ न देवः केशवात्परः। गायर्त्यास्तु परं जप्यं न भूतं न भविष्यति॥ − वृ पो याशवल्क

गंगा के समान कोई तीर्थ नहीं। केशव से श्रेष्ठ कोई देवता नहीं। गायत्री से श्रेष्ठ कोई जप न अब तक हुआ न आगे होगा।

गायर्त्या परमं नास्ति दिविचेह न पावन्। हस्तत्राणप्रदा देवी पतताँ नरकार्णये॥ − शंखस्मृति।

नरक रूपी समुद्र में गिरते हुए को हाथ पकड़ कर बचाने वाली, इस पृथ्वी और स्वर्ग में गायत्री के समान पवित्र वस्तु और कोई नहीं है।

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