आध्यात्म विद्या की नवीन शिक्षा।

June 1948

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आध्यात्म बाद एक ऐसा महा विज्ञान है, जिसके ऊपर शारीरिक, मानसिक, आर्थिक, सामाजिक, राजनैतिक सब प्रकार की उन्नतियाँ निर्भर है। प्राचीन काल में गरीब से लेकर राजा तक अपने बालकों को शिक्षा के लिए योगियों के आश्रम में छोड़कर निश्चिन्त हो जाते थे। क्योंकि वे समझते थे कि आध्यात्म शिक्षा मानव जीवन को सुसंचालित करने की एक वैज्ञानिक पद्धति है, सफल जीवन बनाने की एक कला पूर्ण विद्या है। जिसके द्वारा बलवान, वीर्यवान, तेजस्वी, योद्धा, धनी प्रतिष्ठित, लोक प्रिय, उच्च पदारुढ, अधिकारी, विद्वान एवं महापुरुष बना जा सकता है। आज भिखमंगों ने योग के नाम को कलंकित करने में कुछ उठा नहीं रखा है, तो भी मूल तत्व की सत्यता पर जरा भी रखा है, तो भी मूल तत्व की सत्यता पर जरा भी आँच नहीं आया है।

आत्म−विज्ञान−नकद धर्म है। उसके फल की प्रतीक्षा के लिए परलोक की प्रतीक्षा नहीं करनी पड़ती, वरन् ‘इस हाथ दे उस हाथ ले’ की नीति के अनुसार प्रत्यक्ष फल मिलता है। व्यापार में अधिक लाभ, नौकरी में सुविधा और तरक्की, पत्नी का प्रेम, पुत्र, शिष्य और सेवकों का आज्ञा पालन, मित्रों का भ्रातृ भाव, गुरुजनों का आशीर्वाद, परिचितों में आदर, समाज में प्रतिष्ठा, निर्मल कीर्ति, अनेक हृदयों पर शासन, निरोग शरीर, सुन्दर स्वास्थ्य, प्रसन्न चित्त, हर घड़ी आनन्द, दुख शोकों से छुटकारा, विद्वत्ता में वृद्धि, तीव्र बुद्धि, शत्रुओं पर विजय, वशीकरण का जादू, अकाट्य नेतृत्व, प्रभावशाली प्रतिभा, धन−धान्य, तृप्ति दायक भोग वैभव ऐश्वर्य, ऐश−आराम, सुख−संतोष, परलोक में सद्गति, यह सब सम्पदायें प्राप्त करने का सीधा मार्ग आध्यात्मवाद है। इस पथ पर चलकर जो सफलता प्राप्त की जाती है, वह अधिक दिन ठहरने वाली, अधिक आनन्द देने वाली और अधिक आसानी से प्राप्त होने वाली होती है। एक शब्द में यों कहा जा सकता है, कि सारी लौकिक और पारलौकिक इच्छा आकाँक्षी की पूर्ति का अद्वितीय साधन आध्यात्म बाद है।

प्राचीन पुस्तकों में ‘कल्पवृक्ष’ नामक एक ऐसे वृक्ष का उल्लेख मिलता है, जिसके समीप जाकर जो इच्छा की जाए, वह तुरन्त ही पूरी हो जाती है। ढूंढ़ने वालों को बहुत खोज करने पर भी किसी देश में ऐसा पेड़ अभी नहीं मिला है, लेकिन हम कहते है कि वह वृक्ष है और दूर नहीं, आपके अपने अन्दर छिपा हुआ है। यदि आप आत्म साधना द्वारा उसके समीप तक पहुँच जावें तो निःसंदेह आप अपनी समस्त आकांक्षायें पूर्ण कर सकेंगे, इस कल्पवृक्ष के पास पहुँचने का जो मार्ग है उसे ही आध्यात्मवाद, ब्रह्म विद्या या योग साधन कहते है। प्रफुल्ल, आनन्द मय और सन्तुष्ट जीवन बिताने के लिए हरएक व्यक्ति को इसी मार्ग से चलना पड़ता है।

पूज्यपाद स्वामी विवेकानन्द जी जब पाश्चात्य देशों का भ्रमण करके वापिस आये थे, तो उन्होंने कहा था कि गोरी जातियाँ आध्यात्म मार्ग के प्रारम्भिक सिद्धाँतों का पालन कर रही है और उसके फल स्वरूप जो शक्ति प्राप्त होती है, उससे राज सी सिद्धियों का सुख भोग रही है। भारतवासी योग के नाम पर बगल बजाते है, पर उसका आचरण

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*समाप्त*


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