इस प्रकार बुद्ध ने लगातार ४५ वर्ष तक देश भर में भ्रमण करके जनता को 'सत्य- धर्म' का उपदेश दिया और उनको अनेक कुरीतियों एवं अंध- विश्वासों से छुडा़कर कल्याणकारी मार्ग पर चलने की प्रेरणा दी। इसमें उनको काफी परिश्रम करना पड़ता था और अनेक कठिनाइयाँ भी सहन करनी पड़ती थीं। सभी सुधार के कामों में अनेक दुष्ट प्रकृति के लोग बाधा पहुँचाने को भी उतारू हो जाते हैं। बुद्ध को भी कभी- कभी ऐसे विरोध को सहन करना पड़ता था। जब वे 'जेतवन' नामक स्थान में थे तो उनके कुछ शत्रुओं ने सुंदरी नामक बौद्ध भिक्षुणी को लालच देकर अपनी तरफ मिला लिया और उससे यह कहलाया कि- "मैं बुद्ध के पास जाया करती हूँ," अर्थात् मेरे साथ उनका अवैध संबंध है ! जब वह अनेक लोगों के सामने यह बात कह चुकी तो उन्हीं दुष्ट लोगों ने चुपके से उसे मार डाला और यह शोर मचाया कि बुद्ध के आदमियों ने इसे मार दिया है।
उन्होंने अपनी तरफ से जाल तो बहुत बड़ा रचा था, पर बुद्ध के अब तक की जीवन- चर्या और महान् त्याग को जानने के कारण किसी ने इस पर जल्दी विश्वास न किया। जब यह समाचार महाराज बिंबिसार के पास पहुँचा तो उन्होंने इस समाचार को फैलाने वालों को ही पकड़ लिया और उनको धमकाकर सच्ची बात पूछी। लोग शराब के नशे में चूर थे, इसलिए अपने आप ही अपना कसूर मान लिया और षड्यंत्र की पूरी कहानी प्रकट कर दी। फिर उनको अपनी करतूत पर इतनी ग्लानि हुई कि वे बुद्ध की शरण में गए। और क्षमा माँगने लगे। निर्विकार चित्त भगवान् बुद्ध ने उनको भी क्षमा कर दिया और संघ में शामिल होने की अनुमति दे दी।
इसी प्रकार एक बार वे अकेले ही यात्रा करते हुए अंगुलिमाल डाकू के सामने जा पहुँचे। यह बडा़ क्रूर और भयंकर व्यक्ति था और जिन व्यक्तियों को मारता था। उनकी एक अंगुलि काटकर अपने गले की माला में शामिल कर लेता था। इस प्रकार वह लगभग एक हजार व्यक्तियों को मार चुका था। वह बुद्ध को मारने को उद्यत हुआ, पर उन्होंने निर्भय भाव से उसे इस प्रकार उसकी गलती समझाई कि उसकी आँखे खुल गईं और वह अपने कुकृत्य पर पश्चात्ताप करने लगा। बुद्ध ने उसे भी धर्मोंपदेश देकर बुद्ध संघ में सम्मिलित कर लिया और आगे चलकर वह एक बडा़ धर्म- प्रचारक बन गया।