महात्मा गौत्तम बुद्ध
ढाई हजार वर्ष पुरानी बात है। कपिलवस्तु नगरी के राजमार्ग पर एक बुड्ढा भिखारी चला जा रहा था। जरावस्था ने उसकी कमर को झुका दिया था। नेत्रों की ज्योति को क्षीण कर दिया था, दाँतों को गिरा दिया था और पैरों को लड़खड़ाकर चलने वाला बना दिया था। वह रोटी के एक टुकडे़ के लिए पुकार मचा रहा था, पर रोटी देने के बदले कितने ही शरारती बालक उसके पीछे पड़ गए थे और तरह- तरह से छेड़करउसे तंग कर रहे थे। इतने में एक राजकीय रथ चलते- चलते उसके पास रुका और उसमें से एक देव- कांति वाला युवा पुरुष उतरकर उस भिखारी को ध्यानपूर्वक देखने लगा। उसने अपने सारथी से पूछा कि- यह कौन है और इसकी यह दुर्दशा क्यों हो रही है? तब उसे मालूम हुआ कि यह एक बुड्ढा आदमी है, जो शरीर के अशक्त हो जाने से जीविकोपार्जन में असमर्थ हो गया है और भूख की व्यथा को दूर करने के लिए इधर- उधर रोटी माँगता फिरता है। राजकुमार को यह एक अनोखा दृश्य जान पडा़, क्योंकि उसने आज से पहले किसी दीन दुःखी वृद्ध पुरुष को नहीं देखा था।
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