युग संस्कार पद्धति

वानप्रस्थ (प्रव्रज्या) संस्कार

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(1) यज्ञोपवीत पूजन— दोनों हाथों के सम्पुट में यज्ञोपवतीत को लेकर पांच बार गायत्री मंत्र बोलते हुए, उसमें गायत्री की प्राण-प्रतिष्ठा की जाय। 

(2) पंच देवावाहन— निम्नांकित सूत्र दुहराकर क्रमशः ब्रह्मा, विष्णु, महेश, यज्ञ और सूर्य देवता का यज्ञोपवीत में आवाहन करें। ‘नमः’ के साथ यज्ञोपवीत को हाथ के सम्पुट सहित मस्तक से लगा लिया करें।

 सूत्र—

1. ब्रह्मा हमें सृजनशीलता  प्रदान करें

 ॐ ब्रह्मा सृजननशीलता प्रदार करें।शीलतां ददातु ॐ ब्रह्मणे नमः । आवाहयामि, स्थापयामि, ध्यायामि ।

2. विष्णु हमें पोषण-क्षमता से युक्त बनावें।

 ॐ विष्णुः पोषणक्षमतां ददातु । ॐ आवाहयामि, स्थापयामि, ध्यायामि ।

3. शिव हमें अमरत्व प्रदान करें।

 ॐ शिवः अमरतां ददातु । ॐ शिवाय नमः । आवाहयामि, स्थापयामि, ध्यायामि ।

4. यज्ञदेव हमें सत्कर्म सिखायें ।

 ॐ यज्ञदेवः सत्पथे नियोजयेत् । ॐ यज्ञपुरुषाय नमः । आवाहयामि, स्थापयामि, ध्यायामि ।

5. सविता हमें तेजस्वी बनायें

 ॐ सवितादेवता तेजस्वितां वर्धयेत् । ॐ सवित्रे नमः । आवाहयामि, स्थापयामि, ध्यायामि । 

(3) यज्ञोपवीत धारण— इसके बाद मंत्रोच्चारण के साथ यज्ञोपवीत धारण करें—

 मन्त्र—

ॐ यज्ञोपवीतं परमं पवित्रं, प्रजापतेर्यत्सहजं पुरस्तात् ।
     आयुष्यमग्र्यं प्रतिमुञ्च शुभ्रं, यज्ञोपवीतं बलमस्तु तेजः ।।

 (4) मेखला-कोपीन धारण— कलावा या कोपीन दोनों हाथों के सम्पुट में रखकर निम्नांकित सूत्र दुहराकर अभिमंत्रित करें—

 सूत्र—

ॐ संयमशीलः तत्परश्च भविष्यामि ।
  (संयमशील और तत्पर रहेंगे।)

 अभिमंत्रित कलावे को गायत्री मंत्रोच्चारण करते हुए कमर में धारण कर लें। 

(5) दण्डधारण— सूत्र दुहराकर दण्ड को मस्तक से लगाकर अपनी दाहिनी ओर रख लें।

 सूत्र—

ॐ अनुशासनानि पालयिष्यामि ।
(गुरु द्वारा निर्धारित अनुशासनों का पालन करेंगे।)

(6) पीतवस्त्र धारण— हाथ में अक्षत-पुष्प लेकर सूत्र दुहरायें—

सूत्र—

ॐ अहन्तां उत्सृज्य विनम्रतां धारयिष्ये। 
(अहन्ता को त्यागकर विनम्रता अपनाऊंगा।)

 इसके बाद गायत्री मंत्र बोलते हुए पीले वस्त्र के प्रतीक रूप में पीला दुपट्टा धारण कर लें।

(7) त्रिदेव पूजन— हाथ में अक्षत-पुष्प लेकर सूत्र दुहरायें और त्रिदेव-देव, ऋषि एवं वेद का आवाहन करें—

सूत्र—

(क) देव-  ॐ साधना-उपासना-आराधनैः देवत्वं वर्धयिष्यामि । 
              (उपासना, साधना और आराधना के सहारे देवत्व की ओर बढ़ूंगा।) 

सूत्र— 

(ख) ऋषि—  ॐ सामान्यजनमिव निर्वाहं करिष्यामि । 
          (औसत नागरिक के स्तर के निर्वाह का अभ्यास बनाये रखूंगा।)

सूत्र— 

(ग) वेद—  ॐ ज्ञानक्रान्तेः अनुगमनं करिष्यामि । 
           (विचार क्रांति का अनुगमन करूंगा।)

इसके बाद निम्नांकित मंत्रोच्चारण के बाद हाथ के अक्षत-पुष्प को पूजावेदी पर चढ़ा दें—

मंत्र—

ॐ मनोजूतिर्जुषतामाज्यस्य, बृहस्पतिर्यज्ञमिमं तनोत्वरिष्टं
ॐ समिमं दधातु । विश्वेदेवासऽइह मादयन्तामो३म्प्रतिष्ठ ।।

 (8) व्रतधारण— हाथ में क्रमशः अक्षत-पुष्प लेकर व्रत धारण का सूत्र दुहराकर देवों की साक्षी में उन्हें नमन करते हुए हर बार पूजा वेदी पर चढ़ा दिया जाये—

सूत्र

(क) ॐ आयुष्यार्धं परमार्थे नियोजयिष्ये ।
     (आधा जीवन परमार्थ में लगाऊंगा।)

मंत्र—

ॐ अग्ने व्रतपते व्रतं चरिष्यामि । ॐ अग्नये नमः । 

सूत्र—

(ख) ॐ संयमादर्शयुतं सुसंस्कृतं व्यक्तित्वं रचयिष्ये । 
       (संयमी, आदर्शयुक्त एवं सुसंस्कृत व्यक्तित्व बनाऊंगा।)

मंत्र—

ॐ वायो व्रतपते व्रतं चरिष्यामि । ॐ वायवे नमः । 

सूत्र—

(ग) ॐ युगधर्मणे सततं चरिष्यामि ।
 (युग धर्म के परिपालन के लिए सतत गतिशील रहूंगा।)

 मंत्र—

ॐ सूर्य ! व्रतपते व्रतं चरिष्यामि ! ॐ सूर्याय नमः

सूत्र—

(घ) ॐ विश्वपरिावरसदस्यः भविष्यामि ।
 (विशाल विश्वपरिवार का सदस्य बनूंगा।)

 मंत्र—

ॐ चन्द्र व्रतपते व्रतं चरिष्यामि । ॐ चन्द्राय नमः ।

सूत्र—

(ङ) ॐ सत्प्रवृत्तिसंवर्धनाय दुष्प्रवृत्युन्मूलनाय पुरुषार्थं नियोजयिष्ये । 
    (सत्प्रवृत्ति संवर्धन और दुष्प्रवृत्ति उन्मूलन में अपना पुरुषार्थ नियोजित रहेगा।)

मंत्र—     

ॐ व्रतानां व्रतपते व्रतं चरिष्यामि ।
ॐ व्रतपतये इन्द्राय नमः 

नोट:— यहां यज्ञ-दीपयज्ञ की प्रक्रिया जोड़ें।

(9) प्रव्रज्या— निरन्तर चलते रहने का व्रत ग्रहण करके, खड़े होकर हाथ जोड़े हुए अपने स्थान से देवमंच की ओर तथा अन्य गुरुजनों के समक्ष चलते हुए प्रणाम किया जाय। गुरुजन अक्षत-पुष्प की वर्षा करें। प्रतिनिधि, चरैवेति-चरैवेति, का सिद्धान्त और मंत्र बोलते जायें।

 मंत्र—

ॐ कलिः शयानो भवति संजिहानस्तु द्वापरः । 
     उत्तिष्ठंस्त्रेता भवति कृतं सम्पद्यते चरन् । चरैवेति- चरैवेति ।। 
     चरन् वै मधु विन्दति चरन् स्वादुमुदुम्बरम् ।
     सूर्यस्य पश्य श्रेमाणं, यो न तन्त्रयते चरन् ।। चरैवेति-चरैवेति ।



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