युग संस्कार पद्धति

नामकरण संस्कार

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(1) मेखला बन्धन — माता या पिता अपने हाथ में मेखला (बनी हुई करधनी या कलावा) लें और सूत्र दुहरायें-

 सूत्र —

ॐ स्फूर्तं तत्परं करिष्यामि। 
(शिशु में स्फूर्ति और तत्परता बढ़ायेंगे।)

शिशु की कमर में सूत्र बांधते हुए यह मंत्र बोला जाये-

 मंत्र-

ॐ गणानां त्वा गणपति ॐ हवामहे,
     प्रियाणां त्वा प्रियपति ॐ हवामहे, निधीनां त्वा निधिपति ॐ हवामहे,
     वसोमम। आहमजानि गर्भधमा त्वम जासि गर्भधम्।।

 (2) मधुप्राशन — माता चम्मच में शहद लेकर सूत्र दुहरायें

 सूत्र —

ॐ शिष्टतां शालीनतां वर्धयष्यामि।
(शिशु में शिष्टता-शालीनता की वृद्धि करेंगे।)

शिशु को शहद चटाते हुए यह मंत्र बोला जाये

 मंत्र —

ॐ मंगलं भगवान् विष्णु, मंगलं गरुडध्वजः।
     मंगलं पुण्डरीकाक्षो, मंगलायतनो हरिः।। 

(3) सूर्य नमस्कार — पिता शिशु को गोदी में लेकर सूत्र दुहराये

 सूत्र —

ॐ तेजस्वितां वर्धयिष्यामि। 
(शिशु की तेजस्विता में वृद्धि करेंगे।)

इसके बाद उसे सूर्य के प्रकाश में ले जायें। इस बीच गायत्री मंत्र का सस्वर पाठ चलायें।

 (4) भूमि पूजन-स्पर्श — माता हाथ में अक्षत-पुष्प लेकर सूत्र दुहराये

 सूत्र—

ॐ सहिष्णुं कर्तव्यनिष्ठं विधास्या
(शिशु को सहनशील और कर्तव्यनिष्ठ बनायेंगे।)

सूत्र पूरा होने पर अक्षत-पुष्प पृथ्वी पर अर्पित करें और मन्त्रोच्चारण के साथ शिशु का स्पर्श पृथ्वी से करें

मंत्र —

ॐ मही द्यौः पृथिवी च नऽ, इमं यज्ञं मिमिक्षताम् ।
     पिपृतां नो भरीमभिः ।। ॐ पृथिव्यै नमः ।

 (5) नाम घोषणा — नाम लिखी थाली पर से आवरण हटाकर प्रतिनिधि शिशु के नाम की घोषणा करें, फिर उसका नाम लेते हुए उद्घोष करायें

 (1) प्रतिनिधि शिशु का नाम लें — (सब कहें) चिरंजीवी हो ।
 (2) ’’ ’’ (सब कहें) धर्मशील हो ।। 
 (3) ’’ ’’ (सब कहें) प्रगतिशील हो ।। 

(6) परस्पर परिवर्तन-लोकदर्शन — सभी उपस्थित जन सूत्र दुहरायें

 सूत्र—

ॐ उपलालनं करिष्यामि-अनुशिष्टं विधास्यामि । 
    (शिशु को दुलार देंगे-अनुशासन में रखेंगे।)

तदुपरान्त गायत्री मंत्र बोलते हुए पहले मां शिशु को पिता के हाथ में दे, पिता घर के सभी सदस्यों-गुरुजनों को दें और वे उपस्थित पड़ौसी आदि परिजनों को दें।

(7) बालप्रबोधन — प्रतिनिधि शिशु को अपनी गोद में लेकर उसके कान के पास बोलें

(क) भो तात ! त्वं ईश्वरांशोऽसि । 
   (हे तात! तुम ईश्वर के अंश हो।)

(ख) मनुष्यता तव महती विशिष्टता ।
 (तुम्हारी सबसे बड़ी विशेषता मनुष्यता है।)

(ग) ऋष्यनुशासनं पालयेः ।
(जीवन भर ऋषि-अनुशासन का पालन करना।)

 यहां यज्ञ-दीपयज्ञ की प्रक्रिया जोड़ें।

(8) आशीवर्चन — सभी लोग अक्षत-पुष्प की वर्षा करते हुए आशीर्वाद प्रदान करें।

प्रतिनिधि निम्नांकित मंत्र वाक्य बोलें—

भो शिशो! त्वं आयुष्मान् वर्चस्वी तेजस्वी श्रीमान् भूयाः । 

(9) संकल्प एवं पूर्णाहुति — घर के प्रमुख सदस्य हाथ में अक्षत, पुष्प, जल लेकर संकल्प सूत्र दुहरायें और पूर्णाहुति मंत्र के साथ दीपक की थाली में चढ़ा दें—

संकल्प – अद्य ........ गोत्रोत्पन्नः ......... नामाहं नामकरण संस्कार सिद्ध्यर्थं देवानां तुष्ट्यर्थं देवदक्षिणा अन्तर्गते- स्फूर्तं तत्परं करिष्यामि, शिष्टतं शालीनतां वर्धयिष्यामि, तेजस्वितां वर्धयिष्यामि, सहिष्णुं कर्तव्यनिष्ठं विधास्यामि, उपलालनं करिष्यामि, अनुशिष्टं विधास्यामि इत्येषां व्रतानां धारणार्थं संकल्पं अहं करिष्ये ।।





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