युग संस्कार पद्धति

विद्यारम्भ संस्कार

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(1) गणेश पूजन— बच्चे के हाथ में अक्षत-पुष्प देकर सूत्र दुहरवायें—

 सूत्र—

ॐ विद्यां संवर्धयिष्यामि ।
(बच्चे में शिक्षा के साथ-साथ विद्या का भी विकास करेंगे।)

 तदुपरान्त मन्त्रोच्चारण के साथ्ज्ञ पूजा वेदी पर उसे चढ़वा दें।

मंत्र—

ॐ गणानां त्वा गणपति ॐ हवामहे, 
    प्रियाणां त्वा प्रियपति ॐ हवामहे, 
    निधीनां त्वा निधिपति ॐ हवामहे, वसो मम । आहमजानि गर्भधमात्वमजासि गर्भधम् ।। 

(2) सरस्वतीपूजन— पुनः अक्षत-पुष्प देकर सूत्र दुहरवायें।

 सूत्र—

ॐ कलां सवंदनशीलतां वर्धयिष्यामि । 
(बच्चे में कलात्मकता और संवेदनशीलता का विकास करेंगे।)

 तदुपरान्त मंत्र बोलते हुए उसे पूजा-वेदी पर चढ़वा दें।

मंत्र—

ॐ पावका नः सरस्वती, 
    वाजेभिर्वाजिनीवती । यज्ञं वष्टु धिया वसुः ।।

(3) उपकरण पूजन— बच्चे एवं अभिभावकों के हाथ में अक्षत-पुष्प देकर सूत्र दुहरवायें

 सूत्र—

 ॐ विद्यासंसाधनमहत्त्वं स्वीकरिष्ये
(विद्या विकास के साधनों की गरिमा का अनुभव करते रहेंगे।)

इसके बाद स्लेट, बत्ती, कलम-कॉपी पर मंत्रोच्चारण पूर्वक चढ़वा दें।

 मंत्र—

ॐ मनोजूतिर्जुषतामाज्यस्य, बृहस्पतिर्यज्ञमिमं तनोत्वरिष्टं, यज्ञ ॐ समिमं दधातु ।
विश्वे देवासऽइह मादयन्तामो३म्प्रतिष्ठ ।।

 (4) गुरुपूजन— हाथ में अक्षत-पुष्प देकर बच्चे एवं अभिभावकों से सूत्र दुहरवायें-

सत्र—

ॐ आचार्यनिष्ठां वर्धयिष्यामि । 
(शिक्षकों-गुरुजनों के प्रति निष्ठा को सतत बढ़ाते रहेंगे।)

मंत्र बोलने के साथ उसे पूजा-वेदी पर चढ़वा दें।

मंत्र—

ॐ अज्ञानातिमिरान्धस्य, ज्ञानाञ्जनशलाकया ।
    चक्षुरुन्मीलितं येन, तस्मै श्री गुरवे नमः ।। 

(5) अक्षर लेखन-पूजन— माता-पिता हाथ में बत्ती या कलम लिये हुए बच्चे का हाथ पकड़कर पहले सूत्र दुहरवायें—

सूत्र—

नीतिनिष्ठां वर्धयिष्यामि ।
(बच्चे में नीति के प्रति निष्ठा की वृद्धि करते रहेंगे।)

तत्पश्चात् गायत्री मंत्र बोलते हुए ‘ॐ भूर्भुवः स्वः’ लिखायें और उस पर अक्षत-पुष्प चढ़वा दें।

यहां यज्ञ या दीपयज्ञ की प्रक्रिया जोड़ें।

(6) संकल्प एवं पूर्णाहुति— घर के प्रमुख परिजन तथा बच्चे (जिनका संस्कार हो रहा है) के हाथ में अक्षत-पुष्प-जल देकर संकल्प सूत्र दुहरवायें, तत्पश्चात् पूर्णाहुति का क्रम संपन्न करें।

संकल्प— अद्य .......... गोत्रोत्पन्नः ............नामाहं विद्यारम्भसंस्कारसिद्ध्यर्थं देवानां तुष्ट्यर्थं देवदक्षिणान्तर्गतेविद्यां संवर्धयिष्यामि, कलात्मकतां संवेदनशीलतां वर्धयिष्यामि, विद्यासंसाधनमहत्त्वं स्वीकरिष्ये, आचार्यनिष्ठां वर्धयिष्यामि, नीतिनिष्ठां वर्धयिष्यामि, इत्येषां व्रतानां धारणार्थं संकल्पं अहं करिष्ये ।



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