युग संस्कार पद्धति

विवाह दिवसोत्सव

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(1) ग्रन्थिबन्धन— पति-पत्नी हाथ में अक्षत-पुष्प लेकर सूत्र दुहरायें—
 
सूत्र—

ॐ द्विशरीरं एकप्राणं भविष्यामि ।
 (हम दो शरीर एक प्राण होकर रहेंगे।)

इसके बाद फल-अक्षत-दूर्वा-हल्दी व द्रव्य इन पांच वस्तुओं को पति-पत्नी के दुपट्टे में बांधकर कोई बुजुर्ग महिला अथवा पुरुष ग्रन्थि बन्धन करें। सब लोग गायत्री मंत्र बोलें।

(2) पाणिग्रहण— पति-पत्नी दोनों अपने हाथ में अक्षत-पुष्प लेकर सूत्र दुहराते हुए वैसे ही भाव बनायें—

सूत्र—

ॐ परस्परं सम्भावयिष्यामि ।
 (एक दूसरे को सम्मान देंगे और सुयोग्य बनायेंगे।) 

इसके बाद दोनों मित्र की तरह मंत्रोच्चारण के साथ-साथ हाथ मिलायें।

मंत्र—

ॐ मंगलं भगवान् विष्णुः, मंगलं गरुडध्वजः ।
    मंगलं पुण्डीकाक्षो, मंगलायतनो हरिः ।।

(3) प्रतिज्ञा— पति-पत्नी, वर-वधू के लिए निर्धारित प्रतिज्ञाएं क्रमशः दुहरायें।

(4) सप्तपदी— पति-पत्नी हाथ में अक्षत-पुष्प लेकर सूत्र दुहरायें।

 सूत्र—

ॐ कुटुंबं आदर्शं विधास्यामि ।
(परिवार के वातावरण को आदर्शमय बनायेंगे।)

इसके बाद सात चावलों की ढेरियों पर क्रमशः दोनों एक साथ कदम बढ़ायें, मन्त्र बोलते रहें।

प्रथम चरण— (दायां) अन्न वृद्धि के लिए- परिवार के लिए सुसंस्कारी अन्न की व्यवस्था करेंगे।

 ॐ परमात्मने नमः ।

दूसरा चरण— (बायां) बलवृद्धि के लिए- कमजोर नहीं, सशक्त बनकर रहेंगे, एक दूसरे को सशक्त बनायेंगे।

 ॐ जीवब्रह्माभ्यां नमः ।

तीसरा चरण— (दायां) धनवृद्धि के लिए- धन के उत्पादन के साथ उसके सदुपयोग की व्यवस्था बनायेंगे।

 ॐ त्रिगुणेभ्यो नमः ।

चौथा चरण— (बायां) सुख वृद्धि के लिए- ऐसे आचरण बनायेंगे, जिससे परिवार को सुख प्राप्त हो।

 ॐ चतुर्वेदेभ्यो नमः । 

पांचवां चरण— (दांया) प्रजापालन के लिए- आश्रितों को स्वस्थ, समुन्नत और सुसंस्कारी बनायेंगे।

 ॐ प्रचप्राणेभ्यो नमः

छठवां चरण— (बायां) ऋतु अनुसार व्यवहार के लिए- परिस्थितियों के अनुकूल एक दूसरे के मानस (मूड) के अनुरूप व्यवहार करेंगे।

 ॐ षड्रसेभ्यो नमः । 

सातवां चरण— (दायां) मित्रता वृद्धि के लिए- परस्पर मित्र भाव बढ़ायेंगे तथा सुसंस्कारी-हितैषी मित्र बनायेंगे।

 ॐ सप्तऋषिभ्यो नमः ।

(5) आश्वात्सना— पति-पत्नी एक दूसरे के कंधे पर हाथ रखकर सूत्र दुहरायें।

सूत्र—

ॐ अधिकारापेक्षया कर्त्तव्यं प्रधानं मनिष्ये ।
(कर्त्तव्यों को महत्त्व देंगे- अधिकारों की उपेक्षा करेंगे।) 

(6) तिलक— पति-पत्नी एक दूसरे के माथे पर तिलक लगायें। भावना करें- एक दूसरे के सम्मान और गौरव के कारण बनेंगे

सूत्र—  

ॐ स्वस्ति नऽइन्द्रो वृद्धश्रवाः, स्वस्ति नः पूषा विश्ववेदाः ।
     स्वस्तिनस्ताक्र्ष्योऽअरिष्टनेमिः, स्वस्तिनो बृहस्पतिर्दधातु ।।


यज्ञ-दीपयज्ञ की प्रक्रिया यहां जोड़ें। 

(7) संकल्प एवं पूर्णाहुति

पति-पत्नी हाथ में अक्षत-पुष्प-जल लेकर संकल्प के सूत्र दुहरायें और पूर्णाहुति की प्रक्रिया पूर्ववत् सम्पन्न करें।

संकल्प

अद्य..............गोत्रोत्पन्नः................ नामाहं विवाहदिवसोत्सव संस्कार सिद्ध्यर्थं देवानां तुष्ट्यर्थं देवदक्षिणान्तर्गतेद्विशरीरं एकप्राणं भविष्यामि, परस्परं सम्भावयिष्यामि, कुटम्बं आदर्शं विधास्यामि, अधिकारापेक्षया कर्त्तव्यं प्रधानं मनिष्ये इत्येषां व्रतानां धारणार्थं संकल्पं अहं करिष्ये ।।

(8) आशीवर्चन— इसके बाद सभी समुपस्थित जन पति-पत्नी के ऊपर अक्षत-पुष्प डालते हुए आशीर्वाद प्रदान करें। प्रतिनिधि मन्त्र बोलते रहें—

ॐ मंगलं भगवान् विष्णुः, मंगलं गरुडध्वजः ।
     मंगलं पुण्डरीकाक्षो, मंगलायतनो हरिः ।।




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