युग संस्कार पद्धति

(1) औषधि अवघ्राण — गर्भिणी दोनों हाथों में औषधि की कटोरी लेकर निम्नांकित सूत्रों का भाव समझते हुए, उन्हें दुहराये और इष्ट का ध्यान करे- 
सूत्र- (क) ॐ दिव्यचेतनां स्वात्मीयां करोमि ।
 (हम दिव्य चेतना को आत्मसात् कर रहे हैं।) 

(ख) ॐ भूयो भूयो विधास्यामि ।
(यह क्रम आगे भी बनाये रखेंगे।) 

गर्भिणी औषधि को सूंघे, उस समय मंत्र बोला जाय-
मंत्र- ॐ विश्वानि देवसवितर्दुरितानि परासुव । यद् भद्रं तन्नऽ आसुव 

(2) गर्भ — घर की वयोवृद्ध महिला अथवा गर्भिणी का पति अक्षत-पुष्प लेकर सूत्र दुहराये-
सूत्र- ॐ सुसंस्काराय यत्नं करिष्ये।
(नवागन्तुक को सुसंस्कृत और समुन्नत बनायेंगे।)
 सूत्र पूरा होने पर गायत्री मंत्र बोलते हुए वह पुष्प-अक्षत गर्भिणी के हाथ में दिया जाये, वह उसे अपने उदर से स्पर्श कराकर पूजा वेदी पर अर्पित करे।

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