विवाद से परे ईश्वर का अस्तित्व

भाव सम्वेदनाओं में व्यक्त विश्वात्मा

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किस आधार पर यह माना जाय कि सभी प्राणियों में एक ही परमसत्ता का आवास है? सब में एक ही ईश्वरीय प्रकाश प्रतिबिम्बित होता है, इसे स्थूल रूप में किस प्रकार देखा अनुभव किया जाय। ईश्वर के अस्तित्व की अनुभूति उसका प्रत्यक्ष अनुभव तो उच्चस्तरीय साधनाओं द्वारा ही किया जा सकता है, पर विवेक दृष्टि से अध्ययन किया जाय तो भावनात्मक अभिव्यक्तियों की विभिन्न घटनायें यह दर्शाती हैं कि जीव मात्र में विद्यमान भावनायें उनका पारस्परिक आकर्षण, लगाव, रुझान किसी ऐसे तत्व को विद्यमानता प्रमाणित करती है जो सभी प्राणियों में समान रूप से उपस्थित है।

मनुष्य अपने पास भी विभिन्न तरह की सम्पत्तियां एकत्रित करने के लिए प्रयत्नशील रहता है। उनमें सफलता भी प्राप्त करता है। लेकिन इन सम्पदाओं को सर्वोत्तम नहीं कहा जाता, न समझा ही जाता है। मनुष्य के पास यदि कोई सर्वोत्तम सम्पत्ति हो सकती है तो वह भावनाएं ही हैं, इनसे ही व्यक्तित्व की परख होती और मान-सम्मान मिलता है। सम्वेदनाएं परमात्मा से जोड़े रहने वाला एक ऐसा तत्व है कि वह जिस भी हृदय में रहता है उसी को आत्मिक सन्तोष और गरिमा प्रदान किये रहता है। जंगल में आग लगती है तो नष्ट जीव जन्तु ही नहीं होते, वृक्ष, वनस्पति, वहां बसने वाले गांव सभी उजड़ जाते हैं इन दिनों भौतिकता की जो भयंकर दावाग्नि लगी हुई है उसने न केवल सांसारिक यथार्थ, सौन्दर्य को नष्ट किया अपितु सम्वेदनाओं को भी मटियामेट कर दिया है इससे लगता है मनुष्य जड़ पत्थरों का बना पिशाच है जो न किसी का दर्द समझता है न दुःख, न किसी के प्रति दया बरतता है न करुणा। उसने तो पशु-पक्षी ही अच्छे जिन्होंने अपनी भावनाओं को तिलांजलि नहीं दी अपितु उन्हें विकसित ही किया है।

हिरनी का वात्सल्य सर्वविदित है। एकबार दिल्ली के सुल्तान सुबुक्तगीन जंगल में शिकार खेलने गये। वहां उन्हें हिरण का एक नन्हा बच्चा मिल गया। सुल्तान उसे घोड़े की पीठ पर लादकर वापस लौटे तो यह देखकर आश्चर्यचकित रह गये कि बच्चे की ममता के वशीभूत हिरनी मृत्यु भय को तिलांजलि देकर पीछे-पीछे चली आ रही है। यह दृश्य देखकर सुल्तान का हृदय उमड़ने लगा, उन्होंने करुणावश बच्चे को छोड़ दिया। हिरणी बड़ी देर तक खड़ी अपने बच्चे को चाटती और कृतज्ञता भरी दृष्टि से सुल्तान को देखती रही।

जीवों की सम्वेदना सजातियों तक ही सीमित नहीं रहती अपितु उनका हृदय औरों के प्रति भी सदय होता है इस प्रकार के उदाहरण सामने आते हैं तो मनुष्य की स्वार्थपरता स्वयं अपना ही धिक्कार करने लगती है। जंगल के जीवन में ऐसे उदाहरण बहुतायत से मिलते हैं बात उन दिनों की है जब भारत-पाकिस्तान में गृह युद्ध की स्थिति थी। हिन्दू मुसलमान एक दूसरे के प्राणों के प्यासे घूम रहे थे। एबटाबाद (अब पाकिस्तान में) भी उसमें अछूता नहीं था। एक पालतू बंदरिया बुजो जिसका अपना बच्चा मौत की नींद सो गया था, दुःखी बैठी थी। उधर सड़क पर एक कुतिया अपने नवजात पिल्ले को दूध पिला रही थी। तभी उधर से एक ट्रक गुजरा। कुतिया ने भागने की कोशिश की, पर शीघ्रता में वह ट्रक की चपेट में आकर अपनी जान गंवा बैठी। पिल्ला किसी तरह बच गया, पर भूख से तड़फड़ाता वह इधर-उधर अपनी मां को खोज रहा था। यह देखकर बुजो की करुणा छलक उठी वह पेड़ से उत्तरी और पिल्ले को छाती से चिपटाकर भाग गई। लोगों ने पिल्ले को बचाने के लिए उसका पीछा किया, पर जब वे मकान की उस छत पर पहुंचे तो यह देखकर आश्चर्यचकित रह गये कि बुजो लेटी हुई है और पिल्ले को अपना दूध पिला रही है। वह उसके सिर पर हाथ भी फेरती जा रही थी उसका वात्सल्य साफ झलक रहा था। यह दृश्य देखकर लोगों का हृदय भर आया। मजहब के नाम पर रक्तपात करने वाली इन्सानियत शर्म से पानी-पानी हो उठी। यह चर्चा बिजली की तरह सारे नगर में फैल गई। एबटाबाद, पाकिस्तान में चला गया, पर इस घटना के बाद वहां फिर कोई रक्तपात नहीं हुआ।

शहबाजपुर के निकट कलड़ी गांव। बाज ने तोते पर झपट्टा मारा। वह लेकर उड़ तो न सका, पर उसके खरोंच काफी लगी। रक्त प्रवाहित होने लगा। बाज काफी देर तक आकाश में मंडराता रहा। यह दृश्य पास के वृक्ष पर बैठे कुछ बन्दर देख रहे थे। इनमें से एक मोटा बन्दर तोते के पास आया। तोता समझ गया कि जीवित बचना बहुत कठिन है। वह भयभीत होकर चें-चें करने लगा।

बन्दर ने दया भाव से उस तोते को धीरे से पकड़ लिया। अपने सीने से लगाया। अब उसका भय दूर हो गया। अपने को सुरक्षित जान उसने चिल्लाना भी बन्द कर दिया। अन्य बन्दरों के मन में भी सहानुभूति जाग उठी वे पके बेर तोड़ लाये और प्रेम से तोते को खिलाने लगे। स्वास्थ्य लाभ प्राप्त कर कुछ घण्टों के पश्चात् तोता उड़ गया। सन् 1808 ई. में कच्छ में भयानक अकाल पड़ा उस समय वहां के सेनापति फतहमुहम्मद थे। अकाल के कारण चारे के अभाव में प्रतिदिन सैकड़ों पशु मर जाते। एक दिन एक छोटा-सा बछड़ा सेनापति के अस्तबल में घुस गया। करुणावश सईसों ने उसे वहीं पाल लिया। बछड़े की घोड़ों के साथ एक परिवार जैसी दोस्ती हो गई।

कुछ दिन बाद फतहमुहम्मद ने जामनगर रियासत पर चढ़ाई कर दी। घोड़े बाहर निकाल लिये गये बछड़े को भीतर ही बन्द कर दिया गया वह इस स्थिति को सहन नहीं कर सका। लातों से पीट-पीटकर उसने दरवाजा तोड़ डाला आखिर उसे भी साथ लेना पड़ा।

युद्ध के दौरान सेनापति की एक तोप दल-दल में फंस गई। सारे घोड़े जोत दिये गये, पर तोप टस से मस न हुई। किसी सैनिक ने कहा यदि बछड़े को इसमें जोता जाये और घोड़ों का आगे बढ़ा दिया जाये तो सम्भव है वह इसे निकाल दे क्योंकि बछड़े को सभी कुछ बर्दाश्त था अपने मित्रों का विछोह नहीं।

यही किया गया। उसे तोप में जोतकर जैसे ही घोड़े आगे को बढ़ाये गये उसने सम्पूर्ण शक्ति लगा दी आगे बढ़ने के लिए और सच ही तोप बाहर आ गई, किन्तु उस बछड़े के प्राण लेकर। फतह मुहम्मद ने यह सुना तो उनका हृदय करुणा से उमड़ पड़ा उन्होंने युद्ध बन्द करा दिया और पशु हृदय की इस मूक अभिव्यक्ति को साकार करने के लिए उन्होंने वहां बछड़े की सुन्दर समाधि बनवाई।

जीवों का जीवों से प्यार हो और मनुष्य का मनुष्य से घृणा करे तो पशु अपने से अच्छे माने जायेंगे। पशु-पक्षी मनुष्य जाति के साथ उपकार करें और मनुष्य उनके प्रति नृशंसता का आचरण करे तो इसे मनुष्य का अपराध पूर्ण कृत्य माना जायेगा। मानव के प्रति जीवों की उदारता से कई बार मन आविर्भूत हो उठता है।

सन् 1974 में वाराणसी के समीप मघई पुल ट्रेन दुर्घटना हुई, उस समय सात कबूतरों की मानवीय सम्वेदना ने लोगों को अश्रुपूरित कर दिया। यह सात कबूतर गोरखपुर के एक कारखाने के कर्मचारी के थे जिन्हें वह एक टोकरी में अपने साथ ले जा रहा था। सातों कबूतर सात घण्टे तक अपने मालिक के आस-पास मंडराते रहे। अधिकारीगण जब उसकी लाश निकालने लगे तो उन्होंने अनुभव किया कि उनके मालिक का कष्ट दे रहे हैं। कबूतर तो एक अनाक्रमणकारी पक्षी है उन्होंने भी तब अपने मालिक की रक्षा के लिए उन अधिकारियों पर बार-बार आक्रमण कर विलक्षण दृश्य प्रस्तुत कर दिया। इतने समय तक जब तक शव वहां से हटा नहीं दिया गया, कबूतर भूखे-प्यासे पहरेदारी करते रहे अपने स्थान से टस से मस न हुए।

26 जून 1971 के बम्बई से छपने वाले नवभारत टाइम्स में एक समाचार में बताया गया है कि सिवली जिले के हरई ग्राम में मल्लू नामक एक ग्वाला अपनी गायें चरा रहा था तभी उस पर एक शेर ने आक्रमण कर दिया जबकि उनके साथी भयभीत होकर भाग खड़े हुए उसकी दो गायों ने शेर पर हमला कर दिया। सींगों की चपेट न सहन कर पाने के कारण शेर भाग खड़ा हुआ और इस तरह गायों ने अपने मालिक मल्लू की रक्षा कर ली।

केरल के मौपला विद्रोह के समय सर्पों ने डकैतों के एक समूचे दल पर आक्रमण कर जिस घर में वे निवास करते थे उसके मालिक की रक्षा की थी। इस तरह यह जीव यह शिक्षा देते हैं कि तब तुच्छ प्राणी भी भावनाओं से रिक्त नहीं तो मनुष्य सम्वेदना शून्य हो जाये यह उचित नहीं है।
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