सहयोग और सहिष्णुता

दूसरी की अच्छाइयाँ देखा कीजिए

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>
घृणा को दूषित मनोवृत्ति को दबाने का सरल मार्ग यही है कि हम दूसरों की अच्छाइयों को देखने का स्वभाव डालें । हमको गुण-ग्राहक बनना चाहिए । दूसरों की कमजोरियाँ तथा त्रुटियाँ निकालना बड़ा आसान कार्य है । हममें से कौन ऐसा है जिसमें निर्बलताएँ मौजूद नहीं हैं । श्रेष्ठ तो यह है कि हम दूसरों के गुणों को परखे जाने समझें उनकी दाद दें और उन्हें निरन्तर प्रोत्साहित करते रहें । वह व्यक्ति किस अर्थ का है जो ईर्ष्यावश दूसरों की बुराई करता रहता है । उनके चरित्र के दुर्गुण ही निकालता रहता है । बुराइयाँ देखने की प्रवृत्ति एक मानसिक रोग है । इससे वृत्तियाँ नीचे की ओर गिरती हैं । अच्छाइयाँ देखने से गुण-ग्राहकता का गुण विकसित होता है । जब आप दूसरों के गुण देखकर उन्हें व्यवहार में लाते हैं, तो दूसरे आपसे प्रसन्न रहते हैं । जिससे मित्रता और सहयोग की वृद्धि होती है ।

यदि आपने अपने मित्र, सम्बन्धी या घर के व्यक्ति के विषय में कोई निन्दनीय बात सुनी है तो उसे सबके समक्ष मत कह बैठिए । कोई अपनी निन्दा पसन्द नहीं करता । चोर, डाकू, कातिल तक अपनी बुराई अपने कानों से श्रवण नहीं करना चाहता । सबको अपनी प्रतिष्ठा आत्म सम्मान इज्जत का ख्याल रहता है । इसीलिए जिस किसी के विषय में जो आप चाहते हैं उसे एकान्त में जाकर सहानुभूति पूर्ण शब्दों में व्यक्त कीजिए । यह जोड़ देना मत भूलिये कि आप उस निन्दा में कोई विश्वास नहीं करते हैं । वह आपकी राय में गलत बात है, जिसमें कोई तथ्य नही है ।

दूसरे का अपने प्रति विश्वास न तोड़ डालिए । आपके पास अपनी स्वयं की मित्रों की, ऑफीसरों व्यापारियों, स्त्री घर-बाहर के पड़ौसियों की अनेक गुप्त बातें चरित्र विषयक बातें संचित रहती हैं । ये गुप्त भेद आपके पास रखे रहने हैं तथा उनके प्रकाश में आपको सम्हल कर काम करना है । स्मरण रखिये ये गुप्त भेद दूसरों के समक्ष प्रकट करने में आप दूसरों के साथ बड़ी बेईमानी का व्यवहार करते हैं । अपने गुप्त भेद भी दूसरों से न कहिए ।

विश्वासी बनिए । बिना विश्वास के काम नहीं चलता । किन्तु जिस पर विश्वास करना है उसे बुद्धि प्रलोभन दृढ़ता आदि से खूब परख लो । जीवन को प्यार करो किन्तु मृत्यु का भय त्याग दो । जब मरने का समय आएगा चल देगे । अभी से क्यों उसकी चिन्ता करें । जीवन को यदि प्यार न करोगे, तो उससे हाथ धो बैठोगे । किन्तु जीवन को आवश्यकता से अधिक प्यार करने की आवश्यकता नहीं है ।

दैनिक व्यवहार में सहनशीलता ऐसा आवश्यक गुण है जिसके असंख्य लाभ हैं । तुम्हारे अफसर ग्राहक घर बाले झगड़ बैठेगे माता-पिता लडे़गे स्वयं तुम्हारे बाल-बच्चे तुम्हारे दृष्टिकोण से सहमत न होगे, ऐसे अवसरों पर तुम्हें सहनशीलता से काम लेना है । भयंकर क्रोधी तूफान में भी तुम्हें शान्त आत्म-निर्भर दृढ़ रहना चाहिए ।
<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:







Warning: fopen(var/log/access.log): failed to open stream: Permission denied in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 113

Warning: fwrite() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 115

Warning: fclose() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 118