सहयोग और सहिष्णुता

गायत्री मंत्र का दसवाँ अक्षर 'गो' अपने आस-पास वालों को सहयोग करने और सहिष्णु बनने की शिक्षा देता है । गोप्या: स्वयां मनोवृत्तीर्नासहिष्णुर्नरो भवेत । स्थिति मज्यस्य वै वीक्ष्य तदनुरूप माचरेत ।। अर्थात-"अपने मनोभावों को छिपाना नहीं चाहिए, आत्मीयता का भाव रखना चाहिए । मनुष्य को असहिष्णु नहीं होना चाहिए । दूसरों की परिस्थिति का जान रखना चाहिए ।'' अपने मनोभाव और मनोवृत्ति को छिपाना ही छल, कपट और पाप है । जैसा भाव भीतर है वैसा ही बाहर प्रकट कर दिया जाय तो वह पाप निवृत्ति का सबसे बड़ा राजमार्ग है । स्पष्ट और खरी कहने वाले, पेट में जैसा है वैसा ही मुँह से कह देने वाले लोग चाहे किसी को कितने ही बुरे लगें पर दे ईश्वर और आत्मा के आगे अपराधी नहीं ठहरते । जो आत्मा पर असत्य का आवरण चढ़ाते हैं, वे एक प्रकार के आत्म हत्यारे हैं । कोई व्यक्ति यदि अधिक रहस्यवादी हो, अधिक अपराधी कार्य करता हो, तो भी उसके अपने कुछ ऐसे विश्वासी मित्र अवश्य होने चाहिए जिनके आगे अपने रहस्य प्रकट करके मन को हल्का कर लिया करें और उनकी सलाह से अपनी बुराइयों का निवारण कर सके । प्रत्येक मनुष्य का दृष्टिकोण, विचार, अनुभव, अभ्यास, ज्ञान, स्वार्थ, रुचि एवं संस्कार अलग-अलग होते हैं । इसलिए सबका सोचना एक प्रकार से नहीं हो सकता । इस तथ्य को समझते हुए हर व्यक्ति को दूसरों के प्रति सहिष्णु एवं उदार होना चाहिए ।

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