महिला जागृति अभियान

दो बड़े कदम-शिक्षा और स्वावलंबन

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नारी- उत्थान के लिए सर्वप्रथम आवश्यकता शिक्षा- संवर्द्धन की है। मध्यवर्गीय परिवारों की लड़कियाँ तो स्कूल जाने लगती हैं, पर घर- गृहस्थी वाली प्रौढ़ महिलाओं के लिए वैसा सुयोग ही नहीं बन पड़ता। इस आवश्यकता की पूर्ति के लिए वेतनभोगी अध्यापिकाएँ जुटाने की अपेक्षा सही समाधान यही हो सकता है कि शिक्षित महिलाएँ अपने घर- परिवार के कार्यों में से किसी प्रकार समय बचाकर अपने समीपवर्ती क्षेत्र में प्रौढ़- पाठशालाओं को चलाने के लिए भरसक प्रयत्न करें, दूसरी शिक्षित महिलाओं को प्रोत्साहित करके उन्हें इस कार्य में लगाएँ, वयोवृद्ध अन्य शिक्षितों को भी खाली समय उनके साथ लगने के लिए प्रेरित करें। प्रगति के लिए शिक्षा की अनिवार्य आवश्यकता समझी जानी चाहिए। प्रयत्न यह होना चाहिए कि किसी भी आयु की, किसी भी स्थिति में रहने वाली महिलाओं में से प्रत्येक को साक्षर बनने का अवसर मिले। अक्षरज्ञान होते ही उन्हें ऐसी सरल पुस्तकें मिलनी चाहिए, जो व्यक्तित्व निखारने का, परिवार को सुदृढ़ बनाने का तथा अपने समुदाय को हर दृष्टि से समुन्नत बनाने का मार्गदर्शन दे सकें ।।

इसे दुर्भाग्य ही कहना चाहिए कि अपने देश के लेखकों व प्रकाशकों क ध्यान इस ओर नहीं गया। इस कमी की पूर्ति के लिए जनस्तर की स्वेच्छा सेवी संस्थाओं को आगे आना चाहिए और अपने देश की महिलाओं को जिस स्तर से रहना पड़ रहा है, उससे ऊँचा उठाने वाले साहित्य की कमी को पूरा करना चाहिए। इस निमित्त वहाँ महिला- पुस्तकालय भी चलें, जहाँ उनकी शिक्षा का किसी प्रकार कोई छोटा- बड़ा प्रयत्न बन पड़ना संभव हो सकता हो ।।

शिक्षा के साथ ही दूसरा चरण स्वावलंबन की दिशा में उठना चाहिए। स्थानीय परिस्थितियों के अनुरूप कोई- न कुटीर उद्योग हर क्षेत्र में चल सकते हैं। उन्हें ढूँढ़ा और सहकारिता के आधार पर चलाया जा सके तो कच्चा माल मिलने और तैयार माल बेचने का कार्य स्थानीय सहकारी समितियों द्वारा संपन्न हो सकता है। आवश्यक नहीं कि गरीबों द्वारा ही प्रयास अपनाया जाए, स्वावलंबन एक ऐसी प्रवृत्ति है, जिसे हर व्यक्ति द्वारा अपनाया जाना चाहिए। नारी का अवमूल्यन इसी कारण हुआ है कि गृहकार्यों में दिन- रात लगी रहने पर भी प्रत्यक्षतः: वे कुछ कमाई करती दिखाई नहीं पड़तीं। इस स्थिति के समाधान के लिए जापान की तरह अपने देश में भी प्रयत्न होने चाहिए, जहाँ कुटीर उद्योगों के लिए हर क्षेत्र में किसी- न प्रकार की सुविधा उपलब्ध है।

स्त्रियाँ कुछ कमाने लगें या कोई अन्य प्रशंसा योग्य कार्य करने पर उतरें, तो घर के पुरुषों को उसमें हेठी लगती है और वे उसका विरोध तक करते हैं। इस विचार- विकृति से निपटने के लिए आवश्यक है कि गरीब- अमीर सभी घरों में कुटीर उद्योग जैसे स्वावलंबन के उपायों का प्रचलन किया जाए। न्यूनतम शाक- वाटिका तो हर घर में लगाई ही जा सकती है। स्त्रियों को भी आर्थिक स्वावलंबन की आवश्यकता है। उनकी भी निजी आजीविका होनी चाहिए, ताकि उन्हें परावलम्बन का दबाव हर घड़ी सहना न पड़े और वे भी स्वेच्छानुसार कुछ- न प्रगति- प्रक्रिया के लिए सुविधा- साधन जुटा सकें।

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