साक्षात्कार संपन्न पुरूष
न तो दूसरों को दोष लगाता है और न अपने को अधिक शक्तिमान
वस्तुओं से आच्छादित होने के कारण वह स्थितियों की अवहेलना करता
है।
अहंकार से उतना ही सावधान रहो जितना एक पागल कुत्ते
से। जैसे तुम विष या विषधर सर्प को नहीं छूते ,, उसी प्रकार
सिद्धियों से अलग रहो और उन लोगों से भी जो इनका प्रतिवाद
करते हैं। अपने मन और हृदय की संपूर्ण क्रियाओं को ईश्वर की ओर
संचारित करो।
दूसरों का विश्वास तुम्हें अधिकाधिक असहाय और दु:खी
बनाएगा। मार्गदर्शन के लिए अपनी ही ओर देखो, दूसरों की ओर नहीं
।। तुम्हारी सत्यता तुम्हें दृढ़ बनाएगी। तुम्हारी दृढ़ता तुम्हें
लक्ष्य तक ले जाएगी।