तुम्हें यह सीखना होगा कि इस संसार में कुछ कठिनाइयाँ हैं जो तुम्हें सहन करनी हैं। वे पूर्व कर्मों के फलस्वरूप तुम्हें अजेय प्रतीत होती हैं। जहाँ कहीं भी कार्य में घबराहट, थकावट और निराशाऐं हैं, वहाँ अत्यंत प्रबल शक्ति भी है। अपना कार्य कर चुकने पर एक ओर खड़े होओ। कर्म के फल को समय की धारा में प्रवाहित हो जाने दो ।।
अपनी शक्ति भर कार्य करो और तब अपना आत्मसमर्पण करो। किन्हीं भी घटनाओं में हतोत्साहित न हेाओ। तुम्हारा अपने ही कर्मों पर अधिकार हो सकता है। दूसरों के कर्मों पर नहीं ।। आलोचना न करो, आशा न करो, भय न करो, सब अच्छा ही होगा ।। अनुभव आता है और जाता है। खिन्न न होओ। तुम दृढ़ भित्ति पर खड़े हुए हो।