प्रतिमानव भी मिल जायेगा पर हमें जीवित नहीं छोड़ेगा

October 1973

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क्रिया की प्रतिक्रिया और ध्वनि की प्रतिध्वनि के उदाहरण हम पग पग पर देखते हैं। दीवार पर फेंक कर मारी गई गेंद फेंके गये स्थान की ओर वापिस लौटती है। गुम्बज में जोर से बोले हुये शब्द प्रतिध्वनि होकर गूँजते हैं। क्रोधकारी कटुता का उत्तर उसी स्तर के विरोध प्रतिशोध में मिलता है और सज्जनता लौटकर दूसरों के सद्व्यवहार के रूप में अपने पास ही वापिस लौट आती है। दिन के बाद रात-सर्दी के बाद गर्मी जैसे घटना क्रमों को जन्म के साथ मरण को - जुड़ा देखते हुए इस सहज निष्कर्ष पर पहुँचा जा सकता है कि इस संसार में क्रिया की प्रतिक्रिया का क्रम बहुत ही सुव्यवस्थित रीति से चल रहा है। पेंडुलम की तरह यहाँ सब कुछ दिशा और विदिशा के स्तर पर आगे पीछे चल कर सृष्टि संचालक की व्यवस्था में योगदान देने में संलग्न है। शरीर के अंतर्गत श्वास प्रश्वास, आकुंचन प्रकुँचन रक्ताभिषरण, निद्रा-जागरण, ग्रहण-विसर्जन के रूप में यही सब हो रहा है। नर-नारी के विरोधी किन्तु पूरक अस्तित्व ने ही प्राणधारियों की वंश परम्परा को गतिशील रखा है।

इस संदर्भ में विज्ञान ने एक अद्भुत खोज की है। पदार्थ की सत्ता बहुत समय से ज्ञात है उसी के उपयोग से तो हम साधन सम्पन्न एवं प्रगतिशील बन सके हैं। अब प्रति पदार्थ की सत्ता सामने आई है और उसके बारे में कहा गया है कि वह पदार्थ की तुलना में कम शक्तिशाली नहीं है। यदि उसका उपयोग कर सकना भी मनुष्य की क्षमता के अंतर्गत आ जाय तो पदार्थ में हलचल पैदा करके जो शक्ति उत्पन्न की जाती है वह प्रकृति के स्वसंचालित प्रतिपक्ष के आधार पर सहज ही बिना श्रम के हस्तगत हो जायगी और तब मनुष्य को सर्व शक्तिमान कहला सकने का गौरव प्राप्त हो सकेगा। विश्व के आधार उपलब्ध कर सकेंगे। तब मानव से ठीक विरोधी दानव तत्व का अस्तित्व और भी अधिक स्पष्टता पूर्वक देखा समझा जा सकेगा।

उपलब्धियों की दिशा में बढ़ते हुए हमारे चरण अपने साथ यह उत्तरदायित्व भी जोड़े हुए हैं कि उपार्जन का उपयोग उच्छृंखल रूप से नहीं वरन् मर्यादित क्रम से किया जाय। ऐसा न हो सका तो विभूतियों का परिणाम विघातक ही होगा।

प्रति अणु, प्रति पदार्थ, प्रति विश्व और यहाँ तक कि प्रति मानव और प्रति भगवान के अस्तित्व को भविष्य में प्रत्यक्ष किया जा सकता है और करतल गत भी। इन उपलब्धियों से गर्वोन्नत और अनन्त सामर्थ्य सम्पन्न बना जा सकता है। पर मूल प्रश्न की जटिलता बढ़ती ही जाती है कि इन उपलब्धियों का सदुपयोग हो सकेगा या नहीं। यदि उद्धत उच्छ खलता ही बरती जाती रही तो हम प्रति मानव - असुर के रूप में ही विकसित होंगे।

कैंब्रिज विश्वविद्यालय के प्राध्यापक डिराक ने इंग्लैण्ड की रायल सोसाइटी के सामने एक शोध प्रबन्ध प्रस्तुत किया कि भौतिक जगत में पदार्थ की ही भाँति प्रति पदार्थ का भी अस्तित्व मौजूद है। डिराक ने आइन्स्टोइन की सापेक्षता और क्वाँटम की भौतिकी का हवाला देते हुए सिद्ध करने का प्रयत्न किया कि क्रिया की प्रतिक्रिया जिस तरह होती है उसी तरह पदार्थ का प्रतिद्वंद्वी प्रतिपदार्थ भी होता है।

उस समय उस प्रतिपादन को आश्चर्यचकित करने वाला मात्र कहा गया था पीछे उस संदर्भ में शोध कार्य निरन्तर चलता रहा तो इस निष्कर्ष पर पहुँचना पड़ा कि वस्तुतः इस प्रकार की शक्ति इस जगत में मौजूद है और क्षमता की सम्भावना अब तक के उपलब्ध शक्ति स्रोतों की तुलना में कम नहीं वरन् अधिक है।

परमाणु के सम्बन्ध में कभी ऐसा माना जाता था कि वह विभक्त न हो सकने वाली इकाई है पर पीछे वह मान्यता गलत निकली और परमाणु के भीतर इलेक्ट्रॉन, प्रोटोन, न्यूट्रान, आदि विभाजनों का पता चल गया ह। सौरमण्डल की तरह परमाणु की संरचना पाई गई हैं उसका मध्य केन्द्र नाभिक-न्यूक्लियस-कहलाता है। वह प्रोटीन और न्यूट्रान से मिलकर बनता है। मेसान कण इन्हें नाभिक के साथ मजबूती से बाँधे रहते हैं। इसके अतिरिक्त न्यूट्रिनों नामक एक मात्रा विहीन अत्यन्त रहस्य मय कण नाभिक में विद्यमान रहता है।

एक डिब्बे में गोलियाँ ठूँस-ठूँस कर खचाखच भर दी जाय तो उनके प्रथक अस्तित्व का देखना या गिनना हमारे लिये सम्भव न हो सकेगा। कुछ गोलियाँ उनमें से निकाल ली जायें तो बीच में थोड़ी पोल बन जाने के बाद ही उनकी संख्या तथा आकृति समझ सकना सम्भव होगा। परमाणु के अन्तःक्षेत्र में इसी प्रकार की पोल रहती है उसी के कारण उसके विविध अवयवों का अस्तित्व दृष्टिगोचर एवं गतिशील रहता है।

डिब्बे की गोलियों की पोल को भी कम क्षमता गया है। परमाणु के भीतर की पोल भी कम क्षमता सम्पन्न नहीं होती। विज्ञान ने पदार्थ की तरह उसके इर्द-गिर्द वाले शून्य भाग को कम शक्तिशाली नहीं माना है वरन् उसमें ऊर्जा का एक अतिरिक्त प्रवाह देखा है।

परमाणु के अन्तः मण्डल की पोल को डिराक ने छिद्र होला - शब्द से सम्बोधित किया है और उन छिद्रों में विद्युत का धन आवेश भरा पाया है जब कि ठोस कणों में ऋण विद्युत आवेश रहा करता है। उसने इन छिद्रों में भरी शक्ति को एन्टी इलेक्ट्रान अथवा पाजिट्रान का नाम दिया है। पाजिट्रान का अस्तित्व देर तक नहीं रहता। उस रिक्तता को भरने के लिए समीपवर्ती कण दौड़ पड़ते हैं। फलतः इलेक्ट्रान और पाजिट्रान के आपसी सम्मिश्रण की क्रिया सम्पन्न होती है। जिसे ध्वंस अथवा विलोपन कहते हैं। इसी विलोपन के कारण फोटोन के रूप में अधिक शक्तिशाली ऊर्जा उत्पन्न होती है। इन फोटानों को विद्युत चुम्बकीय विकरण समझा जा सकता है।

पदार्थ की “प्रति” पक्ष की शोध अब बहुत आगे बढ़ गई है और प्रति इलेक्ट्रान, प्रति प्रोट्रान, प्रति न्यूट्रान, का अस्तित्व प्रकाश में आया है। पदार्थ के प्रतिद्वंद्वी प्रति पदार्थ की अब कोई कल्पना नहीं रही वरन् उसे सुनिश्चित तथ्य के रूप में स्वीकार किया गया है। अब ब्रह्माण्ड का प्रतिद्वंद्वी प्रति ब्रह्माण्ड भी शोधकर्ताओं के लिये गंभीर दिलचस्पी का विषय बन गया है। ऐन्टी मैटर, ऐन्टी पार्टिकल और एण्टी युनिवर्स के सम्बन्ध में जो कल्पनायें और सम्भावनाओं सामने हैं उनसे प्रतीत होता है कि भगवान के समतुल्य शैतान की सत्ता भी अब सत्य एवं प्रत्यक्ष होने जा रही है।

ब्रह्माण्ड में प्रति पदार्थ का अस्तित्व है इतना ही नहीं वह अपने उग्र क्रिया कलाप में भी संलग्न है ऐसा आभास अन्तरिक्ष विज्ञानियों को मिला है। साइग्रेस और विर्गो निहारिकाओं से जो संदेश धरती पर आ रहें हैं उनसे प्रतीत होता है कि उस क्षेत्र में पदार्थ और प्रति पदार्थ के बीच देवासुर संग्राम जैसा अत्यन्त रोमाँचकारी मल्ल युद्ध हो रहा है। प्रो. राटजेन द्वारा आविष्कृत एक्सरे, हेनरी बेक्रेल कृत प्राकृतिक रेडियोधर्मिता, जसर टामसन द्वारा प्रतिपादित इलेक्ट्रान, तथ्य, अलबर्ट आइन्स्टाइन द्वारा शोधित सापेक्षिता, अर्नेस्ट रैदर फोर्ड द्वारा सौरमण्डल और परमाणु का समीकरण, नील्स बोर का हाइड्रोजन का हलकापन किसी समय बहुत आश्चर्य और चर्चा के विषय थे। इन दिनों प्रति पदार्थ की सत्ता के सम्बन्ध में उससे भी अधिक ऊहापोह किया जा रहा है।

प्रति पदार्थ में तथ्य, तथ्य और कारण पर्याप्त मात्रा में जुटते जा रहे हैं। यदि इलेक्ट्रान ऋण विद्युत के स्वतन्त्र आवेश हैं तो धन विद्युत के स्वतन्त्र ग्रस्त इलेक्ट्रान क्यों नहीं हो सकते? यदि पदार्थ की मूल इकाई न्यूट्रान एक धनावेश ग्रहण करके प्रोटान बन सकता है तो ऋणावेश ग्रहण करके ऋणावेशित प्रोटान क्यों नहीं बन सकता? इन तर्कों के आधार पर प्रति पदार्थ का अस्तित्व अब असंदिग्ध बनता जा रहा है।

ओवेन चेम्बरलेन और एमीलिओ जी सिग्नेने कुछ त्रुटि पूर्ण प्रति प्रोटान बना कर दिखा भी दिये हैं। अन्तर इतना ही रहा कि वे धनावेशित न होकर ऋणावेशित बन पाये।

कोलम्बिया विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने सामान्य हाइड्रोजन से ठीक विपरीत ‘प्रति ड्यूटिकियम’ की खोज की है। उसका निर्माण प्रति प्रोटान और प्रति न्यूट्रान को मिला कर किया गया है। इस निर्माण के अग्रणी डा. सैम्युडालटिंग और डा. लियन एम. लेडर मैन का कथन है इस खोज से आगे एक कदम आगे बढ़ने की गुंजाइश है। प्रति हाइड्रोजन से परे प्रति द्रव्य भी सम्भावित है।

अब प्रति हीलियम से लेकर प्रति यूरेनियम तक की सम्भावना भी उज्ज्वल होती जा रही है और खोजे गये रासायनिक तत्वों से विपरीत प्रकार के तत्वों का अस्तित्व सामने आने के सम्बन्ध में भी विज्ञानी आशान्वित हैं। इस आधार पर प्रति द्रव्य ही नहीं प्राप्त ब्रह्माण्ड को भी किसी दिन मानव अपने करतलगत कर लेगा ऐसा सोचना अब तक उत्साह मात्र न रह कर अधिक ठोस तथ्य बनता जा रहा है।

इस संदर्भ में एक बड़ी कठिनाई यह अड़ी हुई है कि यदि ये प्रति स्पर्धा घटक साथ साथ रखे जाये तो वे एक दोनों किसी भी क्षेत्र में साथ साथ नहीं रह सकेंगे। जहाँ एक रहेगा वहाँ से दूसरा मुख मोड़कर चल देगा। कणों के साथ प्रतिकणों का ताल-मेल न बैठ सका तो फिर पदार्थ के क्षेत्र में प्रति पदार्थ का अस्तित्व प्रयोगशालाओं तक सीमित रह जायगा और दोनों की सत्ता से लाभान्वित हो सकना मनुष्य के लिए सम्भव न हो सकेगा।

इतना होते हुये भी अमेरिका की ब्रूक हेवेन प्रयोगशाला के अन्वेषी इस सम्भावना के प्रति बहुत ही उत्साही हैं कि पदार्थ का प्रतिपक्ष आधुनिक भौतिकी को अत्यन्त क्रान्तिकारी सम्भावनायें प्रदान करेगा।

भगवान और शैतान की - देवता और असुर की - पुण्य और पाप की - बन्धन और मुक्ति की प्रति पक्षी सत्ताओं का परिचय प्रतिपादन चिरकाल से तत्वदर्शी मनीषियों द्वारा प्रस्तुत किया जाता रहा है। पदार्थ के प्रतिपक्षी प्रति पदार्थ का अस्तित्व भी कुछ अनहोनी या असम्भव बात नहीं है।

शक्ति के स्त्रोत जितने हाथ लग चुके हैं उससे यह आशा बँधी है कि अभी प्रकृति के अन्तराल में जो पाया जा चुका है उसकी तुलना में जो अविज्ञात एवं अनुपलब्ध है वह असंख्य गुना अधिक है। मानवी प्रयासों में वह संभावनाएं भी मौजूद हैं जिसके आधार पर जो प्राप्त करने को रह गया है उसे प्राप्त किया जा सकेगा। ऐसा ही भावी उपलब्धि सम्भावनाओं की कड़ी में प्रति पदार्थ को भी एक और चमत्कारी सिद्धि गिना जा सकता है। प्रति विश्व की खोजकर हम दृश्यमान संसार से ठीक विपरीत के एक नये प्रति विश्व की आग में उस सबको जलाकर खाक कर देंगे जो लाखों वर्षों के सौम्यक्रम को अपना कर प्राप्त किया जा सका है।

आगे बढ़ने और बहुत कुछ प्राप्त करने की तत्परता और तन्मयता को जितना सराहा जाय उतना ही कम है पर उसका पूरक तत्व भी विस्तृत नहीं किया जाना चाहिए शक्ति सम्पन्नता के साथ उत्तरदायित्व के निर्वाह को भी उतनी सावधानी के साथ सम्भाला जाना चाहिए अन्यथा अवाँछनीय प्रयोग में लगी हुई समर्थता जड़-मूल को ही नष्ट करती है। प्रति मानव यदि उभर पड़ा तो फिर न व्यवस्था बनेगी और न शान्ति। हमें इस उद्धत प्रगति के साथ-साथ अपना और अपनी सभ्यता का ही अन्त करना पड़ेगा।


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