चिर-आकाँक्षा (kavita)

October 1973

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जिन्दगी तो है लम्बा सफर, जिन्दगी एक पड़ाव नहीं। प्राण की श्वास-श्वास गतिवान, पवन का रुकता नहीं बहाव। नदी का टहरा नहीं प्रवाह, नीर का वहना सहज स्वभाव॥

यहाँ पर चरण-चरण गतिवान, यहाँ कोई ठहराव नहीं। जिन्दगी तो है लम्बा सफर, जिन्दगी एक पड़ाव नहीं॥

सृष्ठि-सरिता, पथरीली धार, धार का तीखा तेज प्रहार। इसे तरना आसान नहीं-धार, विरले कर पाते पार॥

खड़े तट गिनते, लहर-उभार-तारती उनको नाव नहीं। जिन्दगी तो है लम्बा सफर, जिन्दगी एक पड़ाव नहीं॥

नीर में ही मछली का वास, जाल में फँसी हुई हर मीन। देखते-चलते हम चल-चित्र, राह का चित्र-चित्र ग्गीन॥

दृष्टि के लिए अनेकों दृश्य, दृश्य है अपना गाँव नहीं। जिन्दगी तो है लम्बा सफर, जिन्दगी एक पड़ाव नहीं॥

जन्म कब उसका पहला प्रात, मृत्यु कब उसकी अन्तिम रात। जिन्दगी, जन्म-मरण के पार-जागती रहती है दिन-रात॥

सफर है धूप-छाँव के साथ, डगर से मगर लगाव नहीं। जिन्दगी तो है लम्बा सुर, जिन्दगी एक पड़ाव नहीं॥

राह की बेचैनी में राम, राम की बेचैनी अराम। बने रस घूँट लक्ष्य का चाव, नहीं नीरस चलना अविराम॥

भाव के साथ-साथ भगवान, भाव का कभी अभाव नहीं। जिन्दगी तो है लम्बा सफर, जिन्दगी एक पड़ाव नहीं॥

*समाप्त*


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