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December 1950

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मैं परमेश्वर से आठ सिद्धियों वाली उत्तम गति या मुक्ति नहीं चाहता, मैं केवल यही चाहता हूँ कि समस्त देहधारियों के अन्तःकरण में स्थित होकर उनमें कष्टों को भोगूँ जिससे उन्हें कष्ट न हो।

-राजा रन्तिदेव।

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लोभ, दीनता, भय और धन आदि किसी भी कारण से मैं अपना धर्म नहीं छोड़ सकता-यह मेरा दृढ़ निश्चय है। -भीष्म पितामह।

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सब जीवों में आत्म भावना रखने के कारण यदि समस्त गुणों के आधार अद्वितीय परमात्मा मुझ पर प्रसन्न हो तो (मुझे मारने की चेष्टा करने वाले ) ये ब्राह्मण (दुर्वासा जी) सन्ताप से छूट जाएं।

-भक्त अम्बरीष।

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तुम परमेश्वर और भोग दोनों की सेवा नहीं कर सकते, विषय न बटोरो, कल के लिए चिन्ता न करो कल अपनी चिन्ता आप करेगा।

महात्मा ईसामसीह।


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