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इस संसार रूपी समुद्र में असंख्य प्रकार के अत्यन्त मूल्यवान महत्वपूर्ण रत्न इंच-इंच भूमि में प्रचुर परिमाण में भरे पड़े हैं। यह रत्न राशि परमात्मा ने इस लिए बिछा रखी है कि उनका राजकुमार-मनुष्य-उसके द्वारा अपनी श्री वृद्धि करे। परन्तु यह है कि जो उन्हें प्राप्त करने की योग्यता सिद्ध करे उसे ही वे दिये जाएं। जैसे छोटे बालक को, या बुद्धिहीनों को बन्दूक नहीं सौंपी जा सकती, वैसे ही अयोग्य व्यक्तियों को यह रत्न राशि उपलब्ध नहीं होती। नाबालिगों को राज्य दरबार में अप्रमाणिक माना जाता है, उन्हें वे अधिकार नहीं मिलते जो एक साधारण नागरिक को मिलने चाहिएं किन्तु जैसे ही वह नाबालिग अपनी आवश्यकता का प्रमाण प्रस्तुत कर देता है वैसे ही उसे राज्य दरबार में प्रमाणिकता प्राप्त हो जाती है। मनुष्य की नाबालिगी उसकी लापरवाही और आलस्य है। जब तक सावधानी जागरुकता और परिश्रमशीलता जागृत नहीं होती तब तक वह नाबालिगी दूर नहीं होती और न तब तक संसार की बहुमूल्य संपदाएं प्राप्त हो सकती हैं। किन्तु जब अपनी उद्योगशीलता, परिश्रम प्रियता, जागरुकता प्रमाणित कर दी जाती है तो परमात्मा द्वारा इस सृष्टि में पग-पग पर बिछाये हुए रत्नों की राशि हमें आसानी से प्राप्त होने लगती है।