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March 1947

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छल सब से बड़ी नीचता है। जो दूसरों को धोखे में डाल कर अपना उल्लू सीधा करता है उसे निकृष्ट श्रेणी का मनुष्य समझना चाहिए।

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जो दूसरों को धोखा देना चाहता है वास्तव में वह अपने आप को ही धोखा देता है।

ताशों के खेल

दर्शकों को चारों रंग (ईंट, पान, चिड़ी, हुकुम) के इक्के दिखाइये। अब इनमें से एक इक्का हटा कर अलग रख दीजिये और उसके स्थान पर एक पंजा लगा लीजिये। बस, अब शेष तीन इक्के भी पंजे बन जावेंगे।

इस खेल का रहस्य यह है कि तीन पँजे पान ईंट के लेकर उनके नीचे की बूँदें रेगमाल से घिस देनी चाहिएं। अब इन तीन पत्तों में दो ऊपर की और एक बीच की केवल तीन बूंदें रह जावेंगी। इन पत्तों को दिखाते समय उन्हें तिरछा एक के ऊपर एक लगाना चाहिए जिससे हर एक ताश की दो बूंदें ऊपर वाले दूसरे ताश से ढक जावें सिर्फ बीच की एक बूँद दिखाई पड़े। यह एक बूँद ही दीखने के कारण वह ताश का इक्का प्रतीत होता है। सबसे ऊपर हुकुम का इक्का लगाना चाहिए क्योंकि एक तो आमतौर से विशेष अप्राकृतिक होता है दूसरे एक पूरा इक्का ऊपर लगा कर चारों पत्ते दिखते हैं इस दिखने पर किसी को यह शक नहीं होगा कि यह चारों ताश इक्के नहीं हैं।

अब एक हुकुम का पंजा लीजिए और उसे हुकुम के स्थान पर रख दीजिए। यह हटाने की तथा रखने की क्रिया इस सफाई से होनी चाहिए कि नीचे वाले नकली इक्कों का भेद प्रकट न होने पावे। अब इन चारों पत्तों का नीचे का भाग ऊपर की ओर और ऊपर का नीचे की ओर कर दीजिए। पहले जैसे एक के ऊपर एक ताश तिरछा रख कर बूँदें दबा दी गई थीं उसी प्रकार इस बार घिसा हुआ भाग दबा कर तीनों बूँदें प्रकट कर देनी चाहिएं। ऊपर पंजा होने से यह सब पत्ते पंजे ही दिखाई पड़ते हैं। इस प्रकार एक ताश बदलने से चार ताश बदलने का खेल हो जाता है लोग इससे बहुत आश्चर्य करते हैं।

(2) चार रंग के चार बादशाह दिखाइए। उनमें से एक बादशाह हटा कर उसके स्थान पर एक सत्ता रख दीजिए, चारों ताश सत्ता बन जायेंगे।

इस खेल का आधार तो पहले खेल का सा ही है पर अन्तर यह है कि उस में पंजों की नीचे की बूंदें घिस दी जाती थीं, इसमें एक कोने से दूसरे कोने तक तिरछा (त्रिभुजाकर) तीन बादशाह काटे जाते हैं और उन्हें तीन सत्तों पर चिपका देते हैं। इस प्रकार तिकोने आकार में वह ताश आधे बादशाह और आधे सत्ते होते हैं। दिखाते समय तिरछे एक के ऊपर दूसरा ताश रखकर दिखाते हैं। ऊपर पूरा ठीक ताश रहता है। जब बादशाह को सत्ता बनाना होता है तो ऊपर वाले पूरे बादशाह को हटा कर उसके स्थान पर पूरा सत्ता रख देते हैं और नीचे के तीन ताशों का बादशाह वाला भाग छिपा कर सत्ते वाला भाग खोल देते हैं।

(3) एक हाथ में एक ताश लेकर दिखाया जाता है, दूसरे हाथ को खाली दिखाया जाता है। खाली हाथ को उस ताश के ऊपर फिरा देने से वह दूसरी आकृति का बदल जाता है इस प्रकार चार बार हाथ फेरने पर वह एक ही ताश चार रंग पलटता है और फिर अपने असली रूप में आता है।

इसका भेद यह है कि चार ताश लेकर उनको ठीक बीच में से लम्बाई की ओर आधा मोड़ के। एक ताश के आधे भाग की पीठ दूसरे ताश की आधे भाग की पीठ से चिपकाते हैं। इस तरह चार ताशों की आधी-आधी पीठ आपस में एक दूसरे से चिपक जाती है।

दिखाते समय बाएं हाथ में एक ताश को पूरा पूरा दिखाते हैं, तीन ताश उसकी पीठ पर चिपके रहते हैं। हाथ में पकड़ते समय सावधानी रखी जाती है कि कहीं बीच से मुड़ न जाय या पीठ के चिपके ताश दिखाई ने दे जाएं। दूसरे हाथ को मंत्र चलाने जैसी मुद्रा बना कर उसे ताश पर हाथ फेरते हैं। इसी बहाने एक पत्ते को पलट दिया जाता है। इसी प्रकार हाथ फिराने से चार प्रकार के ताश दिखाई देते हैं।

(4) ऐसे कोने पर एक ताश को पकड़ कर दर्शकों को दिखाते हैं यह छक्का होता है। उसे जरा सा हवा में हिलाने पर चौका हो जाता है। ताश को दोनों ओर से दिखा देता पर और दूसरे हाथ का स्पर्श न होने पर यह खेल बहुत आश्चर्यजनक और बिना लाग लपेट का मालूम पड़ता है।

रहस्य यह है कि किसी रंग का एक छक्का लेकर उसके बीच की बूंदों में से एक ओर की एक बूँद रेगमाल या चाकू से मिटा देते हैं खेल दिखाते समय अंगूठा और तर्जनी के सहारे उस छिले हुए स्थान को पकड़ कर दिखाते हैं, दर्शक पाँच बूंदें देखते हुए भी उसके छक्का होने का विश्वास कर लेते हैं। ताश को जरा हवा में हिला कर इसे दूसरी तरफ बदल देते हैं और छिले हुए स्थान की बराबर वाली बूँद को उंगली और अँगूठे से दबा देते हैं। अब यह चौथा दीखने लगता है।

(5) ताशों की एक गड्डी लेकर उसमें सारे किस्म के पत्ते दर्शकों को दिखा दीजिए। अब इस गड्डी को लेकर सब दर्शकों के पास जाइए और कहिए कि एक पत्ता निकाल कर पहचान लें और उसे मन में याद रखें। उसी प्रकार स्वेच्छापूर्वक सब को पत्ते निकालने और पहचान कर मन में याद रखने के लिए कहें। जब दस बीस पचास चालीस आदमी अपने अपने पत्ते पहचान चुकें तो गड्डी को उठा कर एक ओर रख दीजिए और केवल एक ताश हाथ में लेकर चलिए। लोगों से कहिए कि मेरे हाथ में यह जादुई ताश है वह सब लोगों के पहचाने हुए ताश की शक्ल में बदल जाता है। उस ताश को जिसे दिखावेंगे वही कहेगा कि यही मैंने पहचाना था।

इस खेल का भेद यह है कि कोई एक ताश 26 की संख्या में लिया जाता है। 26 गड्डी पैकिटों में मान लीजिए आपने चिड़ी की 26 बेगमें निकाल लीं। इनको नीचे ऊपर जरा-जरा सा कैंची से काट दीजिए। काट देने से वह अन्य ताशों की अपेक्षा कुछ छोटी हो जावेगी। अब इस क्रम से पत्ते लगाये जायं कि एक बेगम एक सादा, एक बेगम एक सादा, इस प्रकार बनाई हुई गड्डी के नीचे भाग को हाथ में पकड़ लिया जाता है और ऊपर भाग को जल्दी-जल्दी फर्राटे के साथ लोगों के हाथों खूब फेंटवा दीजिए ताकि किसी प्रकार का सन्देह न रहे। अब आप आँख से पट्टी बाँध कर गड्डी को हाथ में लेते ही उसे पहचाने हुए ताश को निकाल कर दे सकते हैं।

भेद यह है कि इस गड्डी को दोनों बगलों के नीचे वाले हिस्से को रेगमाल से थोड़ा थोड़ा घिस दिया जाता है। जिससे उधर का भाग जरा छोटा पड़ जाता है। जैसे ही कोई दर्शक गड्डी में से पत्ता खींच कर अपने पास ले जाय वैसे ही जादूगर उसे उधर को फेर देता है। दर्शक जब वापिस उस पत्ते को गड्डी में मिलाता है तो उसका बड़ा ऊपर वाला भाग अन्य पत्तों के नीचे के छोटे भाग की ओर हो जाता है। आंखों पर पट्टी बाँध कर टटोलने से मालूम पड़ जाता है कि किस ताश का कोना बढ़ा हुआ है। उसे ही निकाल कर बता दिया जाता कि यह पहचाना गया था।

(10) दर्शक जो ताश पहचाने उसे गड्डी में मिलवा दीजिए। आवाज देने पर यह ताश उछल कर दूर जा गिरेगा।

कारण यह है कि उन्हीं ताशों के बीच में नीचे की ओर लचीली रबड़ का टुकड़ा बाँध देते हैं। नं. 5 या नं. 6 के तरीके से दर्शक को कोई ताश पहचनवाते हैं जिससे यह तो तुरन्त मालूम हो जाता है कि इसने कौन सा पत्ता देखा था उसी ताश को रबड़ लगे पत्तों के बीच में लगा देते हैं और हाथ से दबा के पकड़े रहते हैं। जब आवाज देते हैं कि पहचाना हुआ ताश बाहर निकले तो हाथ को जरा ढीला कर देते हैं। ढील पाते ही रबड़ के दबाव के कारण ताश उछल कर दूर जा गिरता है।

(11) लोगों का पहचाना हुआ ताश गड्डी में से अपने आप दो फुट ऊपर उड़ता हुआ जादूगर के दूसरे हाथ में पहुंचता है। जादूगर उसे सब को दिखाता है ताश के अपने ऊपर उड़ने का दृश्य बड़ा मनोहर होता है।

इस खेल का भेद यह है कि जादूगर काला कोट पहनता है। कोट में काले बटन होते हैं। बटन में काला रेशमी बारीक डोरा या लम्बा बाल बंधा होता है। और बाल के दूसरे सिरे पर मोम और राल मिलाकर बनाया हुआ चिपकना गाढ़ा मसाला लगा होता है। पीछे बताये हुए तरीकों से यह मालूम होता है कि कौन सा ताश दर्शक ने पहचाना है। उसकी पीठ पर चिपकना मसाला आहिस्ता से चिपका देता है और दूसरे हाथ को ऊपर उठाता है। हाथ को उठाने के साथ ही डोरे को ऊपर उठाता है जिससे ताश ऊपर उठता है और जादूगर के दूसरे हाथ से जा सटता है।

रुमाल के खेल

(12) एक रुपया लेकर रुमाल के बीचों बीच रखिए और उसे किसी आदमी के हाथ में दे दीजिए उस आदमी से कहिए कि रुपये को जोर से पकड़े रहे कहीं उड़ न जावे। थोड़ी देर इधर-उधर की बातें करके रुमाल को उसके हाथ से लीजिए रुपया कहीं भी न मिलेगा।

कारण यह है कि रुमाल के चारों किनारे एक-एक इंच चौड़े दुहरे सिलवाये जाते हैं उनके एक कोने पर किसी धातु का बना हुआ रुपये जैसा गोल टुकड़ा सिलवा देते हैं। जिस समय किसी आदमी को रुपया समेत रुमाल पकड़ने के लिए दिया जाता है उस समय सफाई के साथ रुपये को तो निकाल लेते हैं और कोने में सिले हुए गोल टुकड़े को उसके हाथ में पकड़वा देते हैं, पीछे जब रुमाल वापिस लिया जाता है तो उसमें कुछ नहीं निकलता। सिले हुए टुकड़े वाले कोने को पकड़ कर जादूगर इस रुमाल को भली प्रकार हिला-डुला देता है, जिससे सन्देह का निवारण हो जाता है।

(13) एक पीतल या काँच का गिलास रुमाल से ढ़ककर किसी आदमी के हाथ में पकड़वा दीजिए। थोड़ी देर इधर-उधर की बातें करने के बाद रुमाल वापिस माँगिए और उसे सब लोगों के सामने झाड़ दीजिए-उसमें गिलास नहीं निकलेगा।

जिस प्रकार रुपया गायब होने वाले खेल में एक कोने पर रुपये की शकल का धातु का टुकड़ा सी दिया जाता है वैसे ही इस खेल में एक कोने पर उस छोटे गिलास की बराबर काँच की चूड़ी सी दी जाती है। रुपये को पकड़ते समय तो दर्शक रुमाल को मुट्ठी में पकड़ता है पर गिलास पकड़ने का तरीका दूसरा है। पाँचों उंगलियों से चूड़ी के किनारों को इस प्रकार लटकता हुआ पकड़वा देते हैं जैसे लोटे को हाथ में लटका कर टट्टी के लिए ले जाते हैं। इस प्रकार पकड़ने वाले को यह पता नहीं चल पाता कि उसके हाथ में चूड़ी है या गिलास। गिलास जैसी बड़ी चीज के हाथों हाथ गायब होने का लोगों को बहुत अचँभा होता है।

(14) कोई डिब्बा टोप या टोकरी खाली दिखाए। थोड़ी देर में इसमें से ढेरों रुमाल निकाल निकाल कर दिखाते जाइए। खाली हाथ दिखा कर हाथों में से भी अनेकों रुमाल निकाल कर दिखाये जा सकते हैं।

इस खेल के लिए बहुत ही बारीक रेशम के छोटे छोटे रुमाल तैयार किये जाते हैं। इनकी तह करके दबा-दबा कर रखा जावे तो थोड़ी जगह में दर्जनों रुमाल आ सकते हैं। उन्हें लपेट कर एक छोटी गेंद सी बनाली जाती है। खेल दिखाते समय टोप, डिब्बा, टोकरा खाली दिखाया जाता है। इसके बाद उसे मेज पर रखते समय, या हाथ में जादू का डंडा उठाते समय उस गेंद को मेज पर से उठा लेते हैं और फिर रुमालों को खोल कर ढेर लगाते हैं।

(15) एक रुमाल लेकर दर्शकों के सामने जला दीजिए। आवाज देने पर मेज के ऊपर उठता नजर आवेगा।

इस खेल के लिए एक ही किसम के दो रुमाल लिये जाते हैं। एक सफेद बोतल का पेंदा काँच काटने वालों से कटवा कर अलग करवा लिया जाता है। इस बिना पेंदे की बोतल में नीचे की ओर एक अंगुल ऊँचाई तक काला रंग लगा देते हैं। इस बोतल के भीतर एक रुमाल रख दिया जाता है। और उसके एक कोने में बोतल के रंग का पतला रेशमी डोरा बाँध कर बोतल के मुँह से ऊपर निकाल दिया जाता है।

एक रुमाल को दर्शकों के सामने जला देने के बाद बोतल में पड़े हुए डोरे को दूर से खींचते हैं डोरे के सहारे रुमाल ऊपर उठने लगता है लोग समझते हैं कि जला हुआ रुमाल बोतल के अन्दर फिर से पैदा हो रहा है।

(16) जादूगर एक मोटा कागज सब को दिखाता है। उसको लपेट कर गोल पोला फूँकना सा बना देता है। उस में एक सिरे से सफेद रुमाल ठूँसने आरंभ किये जाते हैं, ये दूसरी ओर से रंग बिरंगे बनकर निकलते हैं। सादा कागज के फूँकने को उस प्रकार रंगाई का कारखाना देख कर लोगों को बड़ी हैरत होती है।

इस खेल का रहस्य यह है कि कागज को गोल करके फूँकने बनाते समय रंगीन रेशमी रुमालों को एक छोटी सी पोटली बीच में रख देता है। एक सिरे से सफेद रुमाल ढूँसता है। दूसरी ओर से वे बीच में रखे हुए रंगीन रुमाल सरक-सरक कर बाहर निकलने लगते हैं जब सब रंगीन रुमाल निकल चुकते हैं तो जादूगर दर्शकों को कहता है कि आप ऐसा न समझें कि इस कागज के फूँकना के भीतर कोई चोरी की बात है। उस कागज को वह फिर खोल कर चौरस कर देता है। उसके भीतर सिर्फ सफेद रुमाल ही होते हैं। देखने वालों को जादूगर की विद्या पर विश्वास हो जाता है।

(17) जादूगर एक रुमाल हाथ में लेकर एक बोतल में ठूँसता है। फिर दर्शकों को कहता है कि यह रुमाल उचट कर पास रखी हुई दूसरी बोतल में अपने आप घुसेगा। सचमुच होता ऐसा ही है। दर्शक अचंभा करते हैं।

होता यह है कि जादूगर के हाथ में रबड़ (साईकिल का बाल ट्यूब) बँधा होता है। उसका एक सिरा एक रुमाल के कोने में सिला होता है। इसी रुमाल को वह बोतल में ठूँसता है। पास रखी हुई दूसरी बोतल के भीतर पर्दे में एक दूसरा रुमाल रखा होता है। और उसके एक कोने में बँधा हुआ बारीक डोरा बोतल से बाहर निकला होता है।

खेल करते समय पहला हाथ जो पहली बोतल के पास ही रखा था उसे जादूगर भटका देता है। झटका लगते ही रुमाल बोतल से बाहर निकलता है और बालट्यूब की रबड़ द्वारा खिंच कर जादूगर की आस्तीन में घुस जाता है। ठीक इसी समय दूसरी बोतल के बाहर लटका हुआ डोरा चुपके से खींच दिया जाता है जिससे पर्दे का रुमाल बोतल के मुँह पर आ जाता है। दोनों काम एक साथ बड़ी फुर्ती से होने के कारण दर्शक यही समझते है कि एक बोतल का रुमाल उचट कर दूसरी में गया है।

गिलासों का खेल

एक काँच का पारदर्शी गिलास लीजिए। इसमें कोई चीज रख कर दर्शकों को दिखाइए। दर्शकों में से कुछ दूसरी चीज बतावेंगे। जैसे कुछ लोग कहेंगे कि गिलास में फूल रखे हैं तो कुछ बतायेंगे कि कोयले भरे हुए हैं।

भेद यह है कि काँच का एक गिलास लेकर उसकी बाँध की चौड़ाई की बराबर दर्पण के दो टुकड़े कटवा कर इस प्रकार फिट कर दिये जाते हैं कि दोनों दर्पणों का मुँह दो तरफ रहे। इस गिलास को दर्शकों को दिखाया जाय तो बीच का पर्दा मालूम नहीं पड़ता। दोनों ओर दो चीजें रख दी जाती हैं। गिलास को जरा मोड़ कर एक ओर दिखाया जाय तो एक तरफ रखी हुई वस्तु दिखाई पड़ती है। दूसरी तरफ मोड़ कर दिखने से दूसरी वस्तु दिखाई पड़ती है। इस गिलास में सैकड़ों किस्म की दो-दो चीजें बदल कर दिखाई जा सकती हैं और घंटों दर्शकों का मनोरंजन किया जा सकता है।

(19) एक काँच का छोटा सा गिलास बिल्कुल खाली लोगों का दिखाइए। इसमें एक रुपया डाल दीजिए। अब लोगों को कहिए कि रुपया ऊपर उड़ाया जा रहा है। गिलास में से रुपया निकाल कर हाथ में छिपा लिया है। उस पर आप गिलास को हिला कर दिखाइए उसमें रुपये की आवाज होगी। फिर लोगों को उस गिलास को दिखाइए उसमें कुछ नहीं होगा। पर हिलाने से हर बार रुपया खड़कने की आवाज होगी। गिलास में रुपये की आवाज होना पर रुपया दिखाई न देना दर्शकों को हैरत में डाल देगा।

भेद यह है कि छोटे गिलास के भीतरी पेंदे की बराबर एक काँच का गोल टुकड़ा बनवा कर डाले रहते हैं। इस गिलास को ऊपर से देखने में कोई चीज दिखाई नहीं पड़ती, अन्दर पेन्सिल डाल कर उलटा कर देने पर कोई चीज नीचे नहीं गिरती इस प्रकार दर्शक उसके खाली होने का विश्वास कर लेते हैं जब इस गिलास को हिलाया जाता है तो वह काँच का गोल टुकड़ा खड़खड़ाता है और ऐसा मालूम पड़ता है मानो रुपया खड़क रहा है। इस गिलास को जरा पानी से तर कर लेते हैं जिससे गिलास उलटा करके दिखाने पर भी पेंदे में पड़ा हुआ काँच का गोल टुकड़े उसी में चिपक कर रह जाता है। गिरता नहीं।

(20) एक काँच के गिलास में काली स्याही पोत कर ले जाइए और चम्मच में निकाल-निकाल कर लोगों को दिखाइए। इसके बाद दर्शकों से कहिए कि आप लोग होशियार बैठें मुझे होली खेलनी है इस स्याही को आप लोगों के ऊपर फूँकूँगा। थोड़ी देर बाद उस गिलास को दर्शकों की ओर फेंकिए स्याही की बजाय बढ़िया फूल गिरेंगे।

इस खेल के लिए दो काँच के गिलास तैयार किये जाते हैं। एक गिलास में काली स्याही पानी में घोल कर रखते हैं। दूसरे में मोटा काला कपड़ा लेकर गिलास के भीतर आ सकने लायक ठीक नाप का एक खोल बना लेते हैं। उस खोल को काँच में भीतर फिट करके अन्दर फूल भर देते हैं दोनों गिलासों को काले रुमाल से ढक कर मेज पर बराबर-बराबर रख देते हैं। फूल वाले गिलास का काला खोल रुमाल के एक कोने पर आलपिन या सुई डोरे से टाँका होता है।

पहली बार स्याही वाला गिलास लेकर जादूगर निकालता है और चम्मच से निकल-निकाल कर सब को स्याही दिखा जाता है। अब उसे लौटा कर मेज पर रख देता है। और एकाध बात इधर-उधर की कहने लगता है। इसके बाद गिलास उठाता है उठाने में यह चालाकी को जाती है कि पहले की बजाय दूसरा गिलास उठा लिया जाता है, चूँकि उसके भीतर काला कपड़ा लगा होता है इसलिए किसी को संदेह नहीं होता कि गिलास बदल गया है। अब जादूगर रुमाल पकड़ कर गिलास के पानी को दर्शकों की ओर फेंकता है पर स्याही के स्थान पर फूल बरसते हैं। क्योंकि उस गिलास में पहले से ही फूल रखे हुए थे।

(21) एक काँच के गिलास में लाल रंग भर लिया जाता है और जादूगर कहता है कि पहली बार तो स्याही की जगह पर फूल बरसे थे पर अबकी बार ऐसा न होगा। जिसके अच्छे कपड़े होंगे वे इस रंग से रंगे जायेंगे। यह कह कर जादूगर एक चक्कर लगाता है और देखता है कि बढ़िया कपड़े किसके हैं, उसी के ऊपर रंग उड़ेल देता है, कपड़े बिल्कुल सुर्ख हो जाते हैं। कपड़े वाला नाराज होने लगता है। तब जादूगर कपड़ों पर फूँक मारता है और रंग गायब हो जाता है। कपड़े जैसे के वैसे हो जाते हैं।

यह रंग खास किस्म से तैयार किया जाता है। पानी लेकर अमोनिया और फ्लफानीन नामक अंग्रेजी दवाओं की थोड़ी-थोड़ी मात्रा मिला देने से पानी का रंग लाल हो जाता है। थोड़ी देर में हवा लगते ही रंग उड़ जाता है। इसे बेच-बेच कर दुकानदार खूब लाभ उठाते हैं।

(22) एक काँच के गिलास में सब के सामने सादा पानी भरिए। सब प्रकार विश्वास करा दीजिए कि इसमें कोई खास बात नहीं है। अब इस गिलास को उल्टा कर दीजिए पानी बिल्कुल न फैलेगा।

इस खेल के लिए शराब पीने की काँच की प्यालियाँ सबसे अच्छी रहती हैं। उनके तले के ठीक बराबर सलोलाइट, गटापार्ग या अभ्रक का गोल टुकड़ा काट लिया जाता है। इस टुकड़े को पानी में डुबो कर पेंदे से लगा दिया जाता है इससे वह ठीक तरह चिपका रहता है, गिरता नहीं। जब प्याली को उलटना होता है तब पेंदे में लगे हुए गोल टुकड़े को हथेली के सहारे से हटा कर प्याली के मुँह पर लगा देते हैं और उसे उल्टा कर देते है। वह टुकड़ा मुँह पर चिपक जाता है और पानी नहीं फैलता।

(23) एक काँच के गिलास को मुँह तक लकड़ी के बुरादे से भरा हुआ दिखाइए थोड़ी देर में यह बुरादा मिठाई बन जायगा।

इस खेल के लिए काँच के गिलास के भीतर फिट होने योग्य टीन का बिना पेंदे का गिलास जैसा ही एक खोल बनाया जाया है और उसका ऊपर का मुँह टीन से ही बन्द बनवाया जाता है। इस टीन के खोल के बाहर बाहर सब और सरेस पोत कर उस पर लकड़ी का बुरादा चिपका दिया जाता है गिलास के मुंह पर विशेष रूप से कुछ अधिक बुरादा लगा देते हैं जिससे गिलास ऊपर मुँह तक भरा हुआ मालूम दे। टीन पोले खोल के अन्दर मिठाई भर दी जाती है। इस प्रकार बने हुए गिलास को दर्शकों को दिखाया जाय तो वह समझ जाता है कि काँच के सारे गिलास में लकड़ी का बुरादा भरा हुआ है।

एक टीन या कार्ड बोर्ड का एक ऐसा खोल बनाया जाता है जो इस गिलास के ऊपर पूरी तरह ढक्कन की तरह आ आ जाय। इन ढक्कन का खोल दिखाकर उससे गिलास को ढक देते हैं।

कुछ देर बाद इस ढक्कन को जरा दबा कर इस प्रकार उठाते हैं कि गिलास के भीतर लगा हुआ टीन का पोला खोल उस ढक्कन के साथ ही खिंचा चला जाता है और गिलास में केवल मिठाई रह जाती है।

(24) दो खाली गिलास मेज पर रखे जाते हैं। सिगरेट पीकर उसका धुँआ आकाश में फूँक दिया जाता है। दर्शकों से कहते हैं कि यह आकाश में उड़ता हुआ धुआँ मेरा कहना मानता है। जहाँ कहता हूँ वहाँ चला जाता है। देखिए अब इस धुँए को एक गिलास में बंद किया जाता है। फिर एक गिलास से दूसरे में भेजा जायगा। इस कथन को अक्षरशः चरितार्थ होते देख कर दर्शक बहुत आश्चर्य करते रहे रहस्य यह है कि गिलास के भीतर चारों ओर एसिड होइड्रोकोरिक पोत दिया जाता है और गिलास ढकने की तश्तरी में टाइकर अमोनिया फोर्ट पोत दिया जाता है। तश्तरी गिलास पर ऊपर को मुँह करके रखी रहने देते हैं। जब गिलास में धुँआ पैदा करना होता है तो तश्तरी को उलट कर गिलास पर रख देते है दोनों दवाओं का आमना सामना होने पर धुँआ पैदा होने लगता है, ढक्कन रखा होने के कारण गिलास का धुँआ दूसरे गिलास में भेजना होता है तो धुँए वाले गिलास का मुँह खोल देते हैं उसका धुँआ निकल जाता है। दूसरे गिलास के ऊपर की तश्तरी उलटी करके रखते ही उसमें भी धुँआ पैदा होने लगता है, सिगरेट का, पहले गिलास का, दूसरे गिलास का, यह तीनों ही धुँए अलग-अलग हैं पर दर्शक समझते हैं कि एक ही धुँआ इधर से उधर जा रहा है।

(25) पीतल के दो सादा गिलास लेते हैं। एक को एक हाथ में पकड़ते हैं, दूसरे को ऊपर से उस गिलास के बीच में गिराते हैं। ऊपर वाला गिलास नीचे वाले गिलास के पेंदे को पार करके नीचे निकल जाता है।

इस खेल में देखने वालों को दृष्टिभ्रम होता है। पीतल के छोटे ढाई तीन इंच के गिलास बाजार में बिकते हैं वे इस खेल के लिये अधिक उपयुक्त रहते हैं। गिलास को इस प्रकार पकड़ते हैं कि उंगली का पोरुवा अंरण और तर्जनी के सहारे से गोलाई में आधा गिलास के किनारे से सटा रहे और आधा ऊपर रहे। जब दूसरे गिलास को ऊपर से छोड़ते हैं और जब नीचे के गिलास में ऊपर का गिलास पहुँच जाता है तो तुरन्त ही जादूगर उंगली और अंगूठे का नीचे वाला हिस्सा ढीला करके ऊपर के गिलास का किनारा दबा देता है। फलस्वरूप नीचे वाला गिलास टपक पड़ता है और ऊपर का हाथ में रह जाता है। यह क्रिया इतनी जल्दी में होती है कि देखने वाले उसे समझ नहीं पाते। उन्हें यही लगता है कि ऊपर वाला गिलास नीचे के गिलास का पेंदा पार करके नीचे गिरता है। जल्दी जल्दी कई बार इस खेल को दुहराने से दर्शकों को बड़ा आनन्द आता है।

बिना सामान के हो सकने वाले खेल

(26) एक साबुत केला दिखा कर लोगों से पूछा जाता है कि इसके गूदे को कितने टुकड़े में काट दिया जाय। लोग जितने टुकड़े में काटने को कहें छिलका उतरने पर उसके उतने ही टुकड़े निकलते हैं।

तरीका यह है कि जितनी जगह से जहाँ-जहाँ केले को काटना हो वहाँ सुई चुभा कर भीतर ही भीतर चारों ओर घुमा दिया जाता है। गूदा कट जाता है और केला साबुत बना रहता है। सुई का छेद अपने आप बन्द हो जाता है वह दिखाई नहीं पड़ता।

(27) एक पैसा या रुपया किसी से लेकर हथेली पर रखिए। आवाज देते ही वह रुपया चलना शुरू कर देगा। हथेली पर से पहुँचे पर होता हुआ रुपया कोहनी तक पहुँचेगा और ऊपर कन्धे की तरफ बढ़ेगा। जादूगर तब इसे दूसरे हाथ पर ले लेता है। फिर भी वह दौड़ता ही रहता है। कंधे के पास पहुँचने पर उसे फिर दूसरे हाथ पर लेना पड़ता है। इसी प्रकार बार-बार हाथ बदलना पड़ता है। जब तक जादूगर चाहे तब तक रुपया दौड़ता ही रहता है। उसकी आज्ञानुसार रुपये की चाल धीमी व तेज भी हो जाती है।

इस खेल के लिये काले कपड़े पहनने पड़ते हैं। कमीज या कोट के बटन वाले छेद में एक काले रंग का बहुत पतला रेशमी डोरा था मनुष्य के सिर का लम्बा बाल लेकर उसका एक छोर बाँध देते हैं। दूसरे छोर में अलकतरा में राख मिला कर उसकी छोटी गोली लगा देते हैं रुपया लेकर जब चलाने का समय आता है तो उस अलकतरा की गोली को हथेली पर रखकर उस पर रुपये की पीठ चिपका देते हैं। अब हाथ को आगे बढ़ाना शुरू करते हैं, रुपया जहाँ का तहाँ रहता है डोरे या बाल से खिंचा रहने के कारण वह हाथ के साथ साथ आगे नहीं चलता। हाथ चलता है, रुपया नहीं चलता पर दर्शकों को ऐसा मालूम पड़ता है कि रुपया चल रहा है। हाथ बहुत आगे बढ़ जाने पर रुपया कोहनी तक पहुँच जाता है तब उसे दूसरे हाथ पर ले लेते हैं।

(28) जादूगर हवा में हाथ मार कर एक रुपया मंगाता है। दूसरे हाथ में एक डिब्बा पकड़े रहता है। मँगाये हुए रुपये को डिब्बे में छोड़ता जाता है। इसी प्रकार हवा में मारकर अनेकों रुपये मंगाता है और डिब्बे में छोड़ता जाता है। एक दो दर्जन रुपये जमा हो जाने पर डिब्बे को पलट कर दर्शकों को दिखाता है। लोग बहुत अचंभा मानते हैं।

बाएं हाथ की हथेली में बीस पच्चीस रुपये की गड्डी दबा कर डिब्बे को इस प्रकार पकड़ते हैं कि अंगूठा तो डिब्बे में बाहर रहता है और हथेली तथा उंगलियाँ भीतर चली जाती हैं। दाएं हाथ की हथेली में एक रुपया दबा रहता है। हवा में दाहिने हाथ को भड़क कर इस प्रकार का भाव बनाने हैं मानो ऊपर आकाश में से रुपया प्राप्त किया गया हो हथेली में छिपे हुए रुपये को डिब्बे में डालने की क्रिया प्रदर्शित करते हैं इस समय रुपये को तो फिर हथेली में छिपा लेते हैं और झूठ मूठ हाथ का इशारा डिब्बे की तरफ कर देते हैं। इसी समय बाएं हाथ की हथेली में छिपे हुए रुपयों से एक रुपया डिब्बे में खिसका देते हैं। उसी समय में दाहिने हाथ द्वारा रुपये को डिब्बे में डालने का इशारा होना और उसी समय डिब्बे में रुपया गिरने की आवाज होना, यह दोनों बात एक साथ होने से दर्शकों को पूरा विश्वास हो जाता है कि दाहिने हाथ वाला रुपया ही गिरा है। जब तक बाँए हाथ की हथेली में छिपे हुए रुपये एक-एक करके सब डिब्बे में गिर नहीं जाते तब तक दाहिने हाथ को हवा में पार कर, हथेली में छिपे रुपयों को दिखा कर बार-बार रुपये बनाता रहता है।

(29) एक हाथ में उपरोक्त प्रकार से डिब्बा लेकर दूसरे हाथ से सिगरेट हवा में से मंगाते हैं और डिब्बे में डालते जाते हैं। बहुत सी सिगरेटें जमा हो जाने पर दर्शकों को दिखाते हैं।

यह खेल सब प्रकार उपरोक्त रुपये वाले खेल की तरह है पर अन्तर यह है कि उसमें हथेली में रुपया छिपाना पड़ता है इसमें सिगरेट छिपाने का स्थान दूसरा है। सितार बजाने के लिए उंगली में एक तार का छल्ला-सा पहना जाता है, इसी प्रकार का एक बहुत बारीक छल्ला बीच की उंगली के नाप का तैयार करते हैं, उसी छल्ले के पिछले भाग में एक सिगरेट फंसा लेने योग्य एक खाँचा बना देते हैं। छल्ले की बीच की उंगली के ऊपर वाले पोरुये में पहन लेते हैं और सिगरेट उंगली के पीछे छिपी रहती है। दर्शकों को उंगली चौड़ा कर पूरी हथेली साफ-साफ दिखा देते हैं। हवा में हाथ मार कर मुट्ठी बन्द करते हैं। उंगली या पोरुवा मोड़ते ही सिगरेट ऊपर की ओर तन कर खड़ी हो जाती हैं। इसे डिब्बे में डालने का बहाना करते हैं साथ ही उंगली खड़ी कर देते हैं जिससे वह सिगरेट पुनः उंगली के पीछे छिप जाती है। इस प्रकार बार-बार इस क्रिया को बार-बार दुहरा कर बहुत सी सिगरेटें बुझाते और डिब्बे में डालते जाते हैं। जब बाएं हाथ में छिपी हुई सब सिगरेटें खतम हो जाती हैं तो डिब्बा उलट कर दर्शकों के आगे उनका ढेर लगा देते हैं।

(30) दर्जी लोग लोहे की एक टोपी सी उंगली में सुई दबाने के लिए पहनते हैं इस टोपी को जादूगर एक हाथ की उंगली में पहनता है। सब को दिखाता है। इशारा करते ही वह टोपी इस हाथ की उंगली में पहुंचती है। फिर इशारा करने पर उस हाथ में से पहले हाथ की उंगली में आ जाती है। बार बार यह परिवर्तन होता है। दर्शकों का मनोरंजन होता है।

असल में दो टोपी होती हैं। तर्जनी उंगली खड़ी रहती है और शेष सब उंगली मुट्ठी बाँधने की शकल में मुँदी रहती हैं जादूगर जब एक हाथ से दूसरे हाथ में टोपी भेजने का इशारा करता है तो तर्जनी को मोड़ कर अन्य उंगलियाँ तथा अंगूठे की मोड़ के बीच में उस लोहे की टोपी को उतार देता है। दूसरे हाथ में उसी जगह दूसरी टोपी छिपी होती है उसे दूसरे हाथ की तर्जनी में पहन लेता है इस प्रकार वास्तव में एक उंगली की टोपी को जादूगर उतारता और दूसरे को पहनता रहता है। पर मालूम ऐसा पड़ता है मानो एक ही टोपी इस हाथ से उस हाथ में आती जाती है।

(31) एक बेंत लेकर जादूगर उसके दोनों सिरे किसी आदमी के दोनों हाथों में पकड़वाता है और बीच में रुमाल डाल देता है। अब तक अंगूठी लेकर जादूगर उसे बेंत पर फेंकने जैसी ऐक्टिंग करता है दोनों सिरे पकड़े रहने पर भी अंगूठी बेंत के बीच में पहुँचती है और रुमाल हटाते ही बीच में पिरोई दीखती है।

जादूगर बेंत के सिरे को किसी के हाथ में पकड़वाते समय पहले ही उसमें अपनी अंगूठी पिरो लेता है। पहले तो उसे अपने हाथ के नीचे छिपाये रहता है पीछे उसे रुमाल लपेट कर ढक देता है। रुमाल हटाते ही वह अंगूठी दीखने लगती है।

छुरी के खेल

(32) एक छुरी लेकर दर्शकों को दिखाइए, थोड़ी देर उसे हवा में घुमाने पर उसकी नोंक पर सुन्दर फूल आकर गड़ जायगा।

यह छुरी अंग्रेजी उस्तरे की तरह पोली होती है। नीचे का भाग धार वाला होता है पर ऊपर वाला भाग पोला होता है। उसे पोले भाग की जड़ से लेकर नोंक तक साईकिल कि बालट्यूब की रबड़ डाल देते हैं। नोंक के पास एक फूल इस रबड़ से बाँध दिया जाता है।

खेल दिखाते समय उसे फूल को खींच कर पीछे ले जाते हैं रबड़ तन कर बढ़ जाती है और फूल पीछे खिंच जाता है। फूल को जादूगर मुट्ठी में दबा लेता है। इस प्रकार वह दीखता नहीं। पर जब हवा में छुरी फिराते हैं तो मुट्ठी में लगे हुए फूल को ढीला कर देते हैं। रबड़ सिकुड़ जाती है और फूल छुरी की नोंक पर जा पहुँचता है।

(33) एक चाकू लेकर किसी मनुष्य के पेट पर रखते हैं और जोर से दबा देते हैं। चाकू पेट में घुस जाता है और खून निकलने लगता है पर जब चाकू को पेट में से बाहर निकालते हैं तो कहीं भी घाव का निशान नहीं पड़ता। इस चाकू घुसेड़ने और निकालने में किसी को जरा भी कष्ट नहीं होता।

इस खेल के लिए जो चाकू बनाया जाता है वह मुड़कर बन्द नहीं होता वरन् खुला ही रहता है और उसकी नोंक सपाट होती है। इसकी बेंटी पोली होती है और भीतर स्प्रिंग लगे होते हैं जिनके दबाव के कारण चाकू का फल यथावत खड़ा रहता है। पर जब उसे पेट पर रख कर दबाते हैं तो चाकू का फल स्प्रिंगों को दबाता हुआ बढ़ा से भीतर भीतर घुसने लगता है। फल का बेंटी में धंसना दर्शकों को ऐसा मालूम होता है मानो इतना भाग पेट में घुस गया हो। बेंटी के भीतर लाल रंग में डुबा कर स्पंज रख दी जाती है जो स्प्रिंगों का दबाव पाकर निचुड़ पड़ती है यही रंग खून जैसा दिखाई पड़ता है। चाकू को पेट पर से हटाते ही स्प्रिंगों के दबाव से फल बाहर निकल आता है। चूँकि चाकू पेट में घुसा ही न था इसलिए घाव होने या कष्ट होने का कोई कारण ही नहीं होता।

(34) नाक, गरदन, हाथ या किसी अन्य रंग से एक छुरी या तलवार मारी जाती है तलवार का बीच का हिस्सा उस अंग में काफी घुस जाता है। इस प्रकार घुसी हुई त


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