आगत का स्वागत (Kavita)

February 1996

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आगत का स्वागत साधे हम और विगत की करे विदाई। नव प्रभात की नव किरणों से, किलक उठे सूनी अंगनाई॥ 1॥

विगत नशा भूले विसरायें। दुर्भावों का भूत भगायें। कलुषित कृत्य नहीं दोहरायें। सत्कर्मों की राह बनाये॥

भेछ-भावना को विस्मृत कर, गुँजे समता की शहनाई। नव प्रभात की नव किरणों से, किलक उठे सूनी अंगनाई॥ 2॥

जीर्ण-शीर्ण में ममता तोड़े। नव प्राणों से रिश्ता जोड़े। नीरसता, निष्क्रियता छोड़े। पतन पराभव से मुँह मोड़ें ॥

नव जीवन में रहे न पतझर, फूटे वासंती तरुणाई। नव प्रभात की नव किरणों से, किलक उठे सूनी अंगनाई॥ 3॥

पुलक उठे ऐसे मानव मन। जैसे पुष्पित हो नन्दन वन। स्नेह और समता का चिंतन। पाये मानवता का मधुवन॥

‘श्रम’ ‘ आतिथ्य करे आगत का, गाये सुख सुविध बधाई। नव प्रभात की नव किरणों से, किलक उठे सूनी अंगनाई॥ 4॥

नूतन वर्ष विवेक जगाये। सदाचरण के चरण जमाये। मानव के देवत्व समाये। मनुज धरा को स्वर्ग बनाये॥

वसुधा हो कुटुंब, मानव हो आपस में सब भाई भाई। नव प्रभात की नव किरणों से, किलक उठे सूनी अंगनाई॥ 5॥

सृजनात्मक मानव चिंतन हो, जन हिताय ही जग जीवन हो। शोषण- उत्पीड़न, अभाव अज्ञान न दें फिर कही दिखाई॥

नव प्रभात की नव किरणों से, किलक उठे सूनी अंगनाई॥ 6॥


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