वे हमारी धरती का द्वार खटखटा रहे हैं।

February 1996

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सृष्टि का विस्तार असीम है। अपने सौर-मण्डल को ही लें तो उसके सम्बन्ध में जितनी जानकारियाँ अब तक मिल पायी हैं वे इतनी अल्प हैं कि उनके आधार पर सब कुछ जानने का दावा नहीं किया जा सकता। सीमित मानवी बुद्धि अपनी प्रतिभा, योग्यता एवं वर्चस्व का गुणगान भले ही करले, पर इतने मात्र से वह सर्वज्ञ नहीं हो सकती। इस विश्व-ब्रह्माण्ड में अकेला मनुष्य ही बुद्धिमान प्राणी नहीं है, वरन् वैज्ञानिक खोजों से जो प्रमाण उपलब्ध हुये हैं, उनसे पता लगता है कि अन्याय ग्रहों पर भी जीवन है। ब्रह्माण्ड में पृथ्वी से अधिक विकसित सभ्यताएं विद्यमान हैं। वे सशरीर अन्य ग्रहों पर भी जीवन है। ब्रह्माण्ड में पृथ्वी आदि की टोह लेने के लिए कभी-कभी पृथ्वी पर उतरते हैं। यह मात्र कल्पना लोक की बातें नहीं हैं, वरन् एक तथ्य है। समय’समय पर दिखाई पड़ने वाली उड़न तश्तरियों के प्रमाण इस तथ्य की पुष्टि करते हैं। उड़न तश्तरियों की बनावट, अचानक प्रकट होकर लुप्त हो जाना कुशल वैज्ञानिक मस्तिष्क एवं विकसित सभ्यता का प्रमाण देती है।

“स्ट्रेन्ज हैपनिंग्स” नामक अपनी कृति में मूर्धन्य विज्ञानवेत्ता पॉल बेनिस्टर ने इस तरह की अनेकों घटनाओं का वर्णन किया है। उनका कहना है कि वैज्ञानिक खोजों ने आज यह सिद्ध कर दिया है। कि अन्य ग्रहों पर भी कही जीवन है अवश्य । यह भी सत्य है कि अन्य ग्रहों के जीवों का आकार प्रकार एवं जीवन यापन का तरीका पृथ्वी वासियों से भिन्न प्रकार का हो। आवश्यक नहीं कि वहाँ कि परिस्थितियाँ हम मनुष्यों के भी जीवित रहने लायक हो। पर आज यह एक वास्तविकता बन गयी है कि अन्य ग्रहों से उन्नत सभ्यता वाले आते जरूर है जिनका प्रमाण उड़न तश्तरियां प्रस्तुत करती है। सन् 1947 की एक घटना का वर्णन करते हुए उनने लिखा है कि अमेरिका के पश्चिमी तट राकोया के निकट मोटर वोट में बैठे दो तटरक्षक ए. एस. डहल एवं फ्रेडराल क्रेसवेल समुद्री तट की निगरानी कर रहे थे। अचानक दो हजार फीट की ऊँचाई पर आकाश में एक गोलाकार आकार की चमकीली मशीनों को घूमते देखा । वे क्रमशः नीचे उतरने लगी और समुद्रतट से लगभग 500 फिट की ऊँचाई पर आकर रुक गयी। उनकी तस्वीरें खींची जा रही थी। कि एकाएक उन मशीनों में जबरदस्त विस्फोट हो गया । नाव में बैठे दोनों तटरक्षक जान बचाने के लिए छलाँग लगाकर समीपस्थ गुफा में छिप गये।उनके साथ का कुत्ता वही मरा पड़ा था। कुछ देर बाद जब दोनों बाहर निकले तो आकाश में उड़ने वाली उन वस्तुओं का नामों निशान तक न था।

खोजबीन करने पर पाया गया कि विस्फोट का कारण उनके टुकड़े समुद्र के किनारे बिखरे पड़े थे । दुर्घटना की सूचना देने के लिए जब ट्राँसमीटर का प्रयोग करना चाहा तो पता चला कि वह भी बन्द हो गया है । और बाद में निरक्षण के लिए आया अनुसंधान दल वाशिंगटन के उक्त टापू से लगभग 20 टन धातु के टुकड़े एकत्र किये । परीक्षण करने पर मालूम हुआ कि धातु के टुकड़े में 16 तत्वों का सम्मिश्रण है तथा उनके ऊपर कैल्शियम की मोटी परत चढ़ी है।वैज्ञानिक को यह जानकर बहुत आश्चर्य हुआ कि 16 धातुओं में से एक भी धातु पृथ्वी पर नहीं पायी जाती।

इस संदर्भ में सुप्रसिद्ध अनुसंधान कर्त्ता ऐरिक वॉन डेनिकन का कहना है कि निश्चय ही ग्रहों पर निवास करने वाले प्राणी हम से कहीं अधिक बुद्धिमान एवं प्रभावशाली हैं। उन्होंने कश्मीर घाटी में अन्य ग्रहों से आने वाले प्राणियों का पता लगाया है। अमेरिकी अंतरिक्ष अनुसंधान केन्द्र नासा के जाने माने वैज्ञानिक जोसेफ ब्लुमरिच का भी कहना है कि प्राचीन काल में अन्य ग्रहों के प्राणी समय समय पर धरती पर आते रहे है। इस संदर्भ में प्रमाण प्रस्तुत करते हुए उन्होंने बताया कि ईसा के समय में भी अंतर्ग्रही आदान प्रदान का प्रमाण मिलता है। श्रीनगर से बीस मील दूर दक्षिण पूर्व में मारतंड़ नामक गाँव में एक अति प्राचीन सूर्य मंदिर है जो किसी अन्य लोकों से आने वाले निवासियों की वेधशाला थी। ऐरिक वाँन डेनिकन ने भी इस क्षेत्र में यात्रा की थी। वैज्ञानिकों ने इस क्षेत्र में परीक्षण करने पर पाया है कि 42 मीटर लम्बे और डेढ़ मीटर चौड़े इस क्षेत्र में सशक्त एक प्रकार का सतत् विकिरण निकलता रहता है जहाँ ग्रीगर काउन्टर जैसे उपकरण भी काम करना बन्द कर देते हैं। इस संदर्भ में एक अन्य वैज्ञानिक विशेषज्ञ डॉ0 ब्लुमरिच का कहना है कि इन पहाड़ियों को लोकोत्तर वासियों ने ऐसे विकिरण धर्मी पदार्थ कभी छोड़े थे जिनके माध्यम से अंतरिक्ष यानों को यात्रा के समय उक्त स्थानों को पहचानने और वहाँ उतरने में आसानी रहे। डॉ0 ब्लुमरिच के साथ उनके सहायक भारतीय वैज्ञानिक डॉ एफ. एम. हसन ने भी उक्त तथ्यों की पुष्टि की है । वे इस केन्द्र को प्राचीन काल के अंतरिक्ष वासियों के अंतरिक्षयान की मरम्मत करने की वर्कशाप मानते थे। उनने 30 हजार वर्ष तक लोकोत्तर वासियों की धरती पर अनेकों बार यात्रा करने की घटनाओं का संकलन किया है।

दक्षिण अमेरिका के पेरु राज्य के प्रख्यात नृवंशशास्त्री एवं इतिहासवेत्ता डॉ काबररी ने अपने अनुसंधान निष्कर्ष में बताया कि 30 हजार वर्ष पूर्व पेरु के मूल निवासियों से अन्य ग्रहों के निवासियों से संपर्क कर रखा था। इसके प्रमाण स्वरूप उनने कोई 14 हजार से अधिक स्थापत्य के नमूने एकत्रित किये हैं। उनका कहना है कि ये स्थापत्य मात्र चित्र नहीं है।, वरन् उसकी विकसित सभ्यता के विकास चिन्ह है।केवल पेरु ही नहीं मैक्सिको की पहाड़ियों में भी कई ऐसी गुफायें पायी गयी है जिनमें बने भित्ति चित्र यह दर्शाते हैं कि लोकोत्तर वासियों के निवास केन्द्र रहे होंगे। एक गुफा में एक प्रसिद्ध चित्र है- “ लापिहान्डा” जिसमें एक उड़न तस्तरी को उड़ते हुए दिखाया गया है । अंतरिक्ष यात्रियों के अनेकों मित्र भी वहाँ है। इसी प्रकार के तेल चित्र सहारा के रेगिस्तान, आस्ट्रेलिया एवं विश्व के अन्य स्थानों पर पाये गये हैं। ख्यातिलब्ध जीवनशास्त्री एवं ‘मय’ सभ्यता के विशेषज्ञ डॉ0 जे. मेनसन वेलेन्टिन का इस संदर्भ में कहना है कि उपरोक्त सभी प्रमाण अंतरिक्ष से आये है और किन्हीं बुद्धिमान प्राणियों के है, जो यह बताते हैं कि पृथ्वी की तुलना में विकसित सभ्यताएँ ब्रह्मांड में और भी कहीं है। यहाँ के निवासी बुद्धिमता आध्र सभ्यतों हमसे कही आगे हैं।

उड़नतश्तरी जैसे अंतरिक्षयान अब मात्र किंवदंती नहीं, वरन् एक वास्तविकता बन गये हैं । पिछले दिनों 24 अक्टूबर सन् 1978 को मेलबोर्न को एक कुशल युवा विमान चालक श्री फ्रेडरिक वाकेटिच आस्ट्रेलिया एवं तस्मानिया के मध्य अपने चार्ट उड़ान पर थे। अचानक विमान के इंजन में गड़बड़ी के कुछ संकेत मिलने लगे। । उसने अधिकारियों को बताया कि 137 मीटर की ऊपर किंग आइस लैण्ड के पास उड़ रहा है और विमान के ऊपर एक लम्बी चमकदार उड़नतश्तरी चक्कर काट रही है। उसके भीतर से हरे रंग का प्रकाश निकल रहा है। यान सहित लुप्त होने के पूर्व फ्रेडरिक के अंतिम शब्द थे कि मेरे विमान के इंजन में रुकावट आ रही है तथा यह विचित्र चमकीली वस्तु अब भी यान के ऊपर मँडरा रही है। इसके पश्चात रेडियो पर किसी धातु के टकराने जैसा शोर सुनाई पड़ा तथा विमान का नियंत्रण कक्ष से संपर्क टूट गया । मेलबोर्न हवाई अड्डे से कई जहाजों ने खोज के लिए उड़ाने भरी, लेकिन दुर्घटना ग्रस्त विमान का कोई चिन्ह नहीं मिला।

अमेरिका के विख्यात खगोलवेत्ता डॉ0 जे एल एलेन टिकेन एवं डॉ0 जेकिस वेली ने उड़न तस्तरी जैसे विमानों के संदर्भ में खोजबीन की है ।उनका कहना है कि दुनिया के लगभग 50 लाख लोगों ने अब तक उड़न तश्तरियों को अंतरिक्ष में तैरते हुए देखा है। 2 नवम्बर 1957 कि एक घटना का वर्णन करते हुए लिखते हैं। कि टैक्सास क्षेत्र के लीपलोड स्थान में रात्रि के 11 बजे पुलिस केन्द्र को एक संदेश मिला कि ट्रक डिरावर व उसके साथी का टारपीडों नामक एक अति प्रकाशित यान ने उसका पीछा किया। वह अति तीव्र गति से ट्रक के ऊपर चढ़ रहा था जैसे ही वह अंतरिक्ष यान आगे निकल गया इंजन पूर्ववत चालू हो गया ।

इस घटना के एक घण्टे बाद पुनः पुलिस केन्द्र को एक संदेश मिला कि क्लीव लैण्ड के चार मील की दूरी पर वही अंतरिक्ष यान जमीन पर उतर आया है पुलिस वहाँ तक पहुँच पाती कि उससे पूर्व उनकी गाड़ी का इंजन बन्द हो गया और देखते ही देखते वह यान उड़ गया। प्रत्यक्ष दर्शियों के अनुसार उस यान से नीला हरा प्रकाश निकल रहा था और ऐसा मालूम पड़ता था कि ऐल्यूमीनियम या किसी अन्य धातु विनिर्मित थी। क्षणार्थ में ही जमीन से सीधे अनुलम्ब दिशा में उठकर वह गायब हो गया था । उस रात्रि में इस तरह की घटनाओं की पन्द्रह से ज्यादा सूचनायें मिली।कुछ इन्हीं घटना क्रमों के आधार पर हालीवुड द्वारा एक काल्पनिक फिल्म आज से प्रायः 8 वर्ष पूर्व बनायी गयी थी। नाम था ईटी । यह फिल्म अपने फन्टासी भर्र दृश्यों के कारण काफी लोकप्रिय हुई थी। डॉ0 ऐनराइन ने अपनी पुस्तक- “दी यू0 एफ॰ ओ॰ एक्पीरियेन्स “ में उड़न तश्तरियों के विभिन्न अनुभवों का वर्णन किया है।वे अमेरिका की प्रसिद्ध शोध संस्था - “नासा” के अध्यक्ष रह चुके है उनके अनुसार सन 1973 में ट्युपोलो क्लीवलैण्ड के एक मजिस्ट्रेट एवं वन्य विभाग के चार रेजरों ने एक उड़न तस्तरी को आकाश में उड़ते हुए देखा था जिससे लाल, पीले व हरे रंग की रोशनी निकल रही थी। उसके ठीक दो सप्ताह बाद इसी नगर में एक सैनिक हैलिकाप्टर एक गुम्बदाकार धातु से बने एक अंतरिक्ष यान से टकराते टकराते बचा था। उस यान का चुम्बकीय आकर्षण इतना प्रचण्ड था कि उसके साथ हैलिकाप्टर 600 मीटर की अधिक ऊँचाई तक ऊपर उठ गया था। बड़ी मुश्किल से उस पर नियंत्रण हो सका था । कोरिया युद्ध के समय में भी दो सैनिकों ने एक विलक्षण अंतरिक्ष यान को पृथ्वी पर उतरते देखा था। जिसमें से चार फुट कद वाले तीन साँवले व्यक्ति बाहर निकल आये थे और उन सिपाहियों में से एक को पकड़कर अपने यान के भीतर ले गये थे । उस पर अनेक परीक्षण करने के पश्चात उसे जमीन पर बेहोशी की हालत में छोड़कर न जाने यान सहित कहां लुप्त हो गये थे । बाद में अनुसंधान कर्त्ताओं को उस स्थान पर रेडियोधर्मिता के स्पष्ट प्रमाण मिले ।

ऐसी भी अनेक घटनायें है जिनमें उड़न तश्तरियों की खोज करने वाले उनका आंखों देखा विवरण प्रकाशित करने वाले अधिकाँश व्यक्ति बेमौत मारे गये । उन्हें इसके लिए पहले से ही लोकोत्तर वासियों से चेतावनी मिल गयी थी कि वे इस कार्य में हाथ न डाले, अन्यथा खतरा उठायेंगे। यह खतरा उनकी जान लेने के रूप में सामने आया । इससे स्पष्ट है कि उड़न तश्तरियां मात्र किम्वदंतियां नहीं रह गयी हैं, वरन् अन्य लोकों से आने वालों के वाहन है जिसमें बैठ कर अंतरिक्ष वासी धरती वासियों से संपर्क साधने का प्रयत्न कर रहें है।


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