भगवान की लीला और हमारी लीलाएँ

May 1957

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संसार में प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से जितने कार्य हो रहे हैं उनमें एक प्राकृतिक नियम काम कर रहा है। यद्यपि एक साधारण मनुष्य को समस्त प्राणियों तथा विभिन्न जातियों और सभ्यताओं के जन्म-मरण अथवा आविर्भाव और नाश में कोई खास तथ्य नहीं जान पड़ता, पर उन पर गम्भीर रूप से विचार करने से यही विदित होता है कि विश्व में जो कुछ भी हो रहा है वह ईश्वरीय-विधान का अंग है। इसको हम भगवान की लीला भी कह सकते हैं।

साधारणतः लोग भगवान की लीला से प्राकृतिक लीला का भाव नहीं लेते। भगवान के भिन्न-वे भगवान की लीला समझते हैं। अवतारों में भगवान रामावतार और कृष्णावतार की लीलाएं ही विशेष प्रसिद्ध हैं। आज भी लोग इन लीलाओं की नकल करते हैं, पर दुःख की बात है कि वे न तो उनके असली मतलब को समझते हैं और न उन अवतारों के दिखाये रास्ते पर चलते हैं। इसके विपरीत वे उन लीलाओं की नकलों को अपनी पतित रुचि के अनुसार ऐसा विकृत कर देते हैं कि वे हमारा कल्याण करने के बजाय अकल्याणकारी बन जाती हैं।

भगवान के अवतार लेने के अनेक गूढ़ कारण होते हैं जिनका पता शास्त्रों का गहन अध्ययन करने से लग सकता है। यदि हम उन सब को न भी हमें यह तो सीखना चाहिये कि हम अपना जीवन किस प्रकार व्यतीत करें। रामलीला और कृष्ण लीला करने का यही असली तात्पर्य है।

पर इस समय इस अभिप्राय को लोगों ने बहुत कुछ भुला दिया है। इसके बजाय वे यह समझ बैठे हैं कि भगवान की इन लीलाओं की नकल करने से वे हम पर खुश होंगे और हमारे पापों का नाश कर हमको स्वर्ग के सुख देंगे तथा इस लोक में भी हमारा कल्याण करेंगे। इस प्रकार का विचार करने वाले लोगों में से बहुत से बड़े भोले होते हैं और उनके हृदय में भक्ति भाव भी होता है, पर उनको अच्छाई-बुराई का विवेक बहुत कम रहता है। खास कर जो लोग मंडलियाँ बनाकर इन लीलाओं को करते हैं वे तो अर्थ का अनर्थ ही कर डालते हैं। साधारण जनता को अधिक संख्या में आकर्षित करने के उद्देश्य से वे इन लीलाओं के बीच में ऐसी-ऐसी भद्दी नकलें मिला दिया करते हैं कि जो मनुष्यों की पाशविक वृत्तियों को उत्तेजित करने वाली होती हैं। विशेष कर ऐसी बातें कृष्ण भगवान की लीलाओं में और खास कर उनकी रासलीला में पाई जाती हैं। श्री रामचन्द्र जी और श्री कृष्ण भगवान के जीवन-ऐसे पवित्र, आदर्श तथा प्रेमपूर्ण थे कि यदि उन पर थोड़ा भी विचार किया जाय तो मनुष्य के हृदय में अवश्य ही उच्च वृत्तियाँ जागृत हो सकती हैं और उसमें स्वभावतः ऊँचे आदर्शों पर चलने की अभिलाषा उत्पन्न हो सकती है। पर हमारे समाज के मुखियों का ध्यान इधर कम रहता है और साधारण श्रेणी के लोग तो ऊँची शिक्षाओं के बजाय हंसी मजाक की तथा वासनाओं को उत्तेजित करने वाली बातों को ही अधिक पसंद करते हैं। इस लिए आजकल लीलाओं से लाभ के बजाय हानि ही अधिक होने लगी है।

हमारा उद्देश्य लीलाओं का विरोध करना नहीं है। यह तो एक ऐसी अच्छी रीति है जिसके द्वारा साधारण अपढ़ जनता को अच्छी से अच्छी शिक्षा चरित्र पर बहुत बड़ा प्रभाव पड़ता है। पर इनका सदुपयोग करने से जिस प्रकार लाभ उठाया जा सकता है उसी प्रकार इनका दुरुपयोग करने से मनुष्य का चरित्र सहज में भ्रष्ट भी किया जा सकता है। आजकल इनका दुरुपयोग करके समाज को हानि ही अधिक पहुँचाई जा रही है। सौ-पचास वर्ष पहले जब वर्ष में एकाध बार कृष्ण लीला हुआ करती थी तब लोग भक्ति के साथ जाकर उसका तमाशा देखते थे। पर आजकल इस कार्य को करने वाली जो अनेकों मंडलियाँ बन गई हैं उनकी लीलाओं और तमाशे के प्रभाव से अनेक नवयुवकों तथा नवयुवतियों का चरित्र भ्रष्ट हो जाता है इसमें तनिक भी संदेह नहीं। इस बुराई का अनुभव सभी सज्जन पुरुष करते हैं और समय-समय पर उनके विरुद्ध शिकायतें भी सुनने में आती हैं।

इसलिए हमारा कहना यही है कि आप राम लीला और कृष्ण लीला तो अवश्य कीजिये, पर उनको उचित रीति से, उचित भाव से, उचित श्रद्धा के साथ करना चाहिये। ऐसी महत्वपूर्ण, प्रभावशाली और पवित्र लीलाओं में गन्दे भावों और विचारों के प्रवेश करने का मौका कभी नहीं आने देना चाहिए। इनका उद्देश्य मनुष्य का चरित्र गठन करना है। इसलिए इन लीलाओं को करते समय या देखते समय चरित्र तथा जीवन के सुधार के लक्ष्य को सदैव ध्यान में रखना चाहिए। जो लोग इनको भक्ति के भाव से देखते हैं वे भी अच्छा ही करते हैं, पर भक्ति के असली तत्व पर भी कुछ विचार करना चाहिए। हम अक्सर ऐसा समझा करते हैं कि भाई हम भगवान के नाम को रट लें अथवा भगवान की लीला को देख आयें तो भगवान हमारे सभी पापों का नाश करके हमारे दुखों को दूर करेंगे। इस भाव का नतीजा यह होता है कि जब हम भगवान के नाम पर पूजा, पाठ, जप आदि करते हैं तो हम समझते हैं कि उस समय तक किए पापों का नाश हो गया, और फिर हम जान-बूझ कर उन्हीं पाप के उसका भी कुछ असर मनुष्य के ऊपर पड़ता ही है, पर उसके साथ-साथ अपने चरित्र और जीवन को सुधारने की भी कोशिश करनी चाहिए। ऐसी कोशिश न करके केवल भगवान के भरोसे बैठे रहना कि उनका नाम लेने से ही सब पाप कट जायेंगे, यह अपने आपको धोखा देना है। याद रखिये कि भगवान अन्तर्यामी हैं, उनसे कोई भी बात नहीं छिप सकती, मनुष्यों के हृदय की गुप्त से गुप्त बात को वे जानते हैं, इसलिए उनको धोखे में नहीं डाला जा सकता। भगवान के नजदीक वही मनुष्य सच्चा हो सकता है जिसका हृदय साफ है और भगवान उसी की सहायता करते हैं जो अपनी सहायता को स्वयं उद्यत होता है। इन बातों को ध्यान में न रख कर आज भगवान को हमने अपने पापों तथा अकर्मण्यता को छिपाने की एक आड़ बना रखा है।

गीता में भी भगवान ने भक्ति की बड़ी बड़ाई की है, पर साथ ही उन्होंने यह भी बतलाया है कि सच्ची भक्ति वही है जो ज्ञान युक्त है और कर्म का भी त्याग नहीं करती। भगवान की भक्ति तभी उचित रीति से पालन की जा सकती है जब मनुष्य उनकी लीला के अभिप्राय को समझ कर सर्वांग भाव से उसे पूरा करने में अपने आपको लगा देता है। इसलिये हमारा कर्तव्य है कि इस समय भगवान की लीला का जो दुरुपयोग होने लगा है उसे सुधारने का हम प्रयत्न करें और लीलाओं को उनके वास्तविक रूप में करके उनसे लाभ उठाएं।


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