आश्विन की नवरात्रि में मथुरा पधारिए।

September 1954

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गत अंक में अश्विन के शिविर की चर्चा की जा चुकी है। जीवन को उत्तम बनाने वाले उपयोगी ज्ञान को अन्तःकरण में गहराई तक प्रवेश कराने के लिये यज्ञ, पुरश्चरण द्वारा आत्म शुद्धि के साथ-साथ ज्ञान का आदान-प्रदान किया जाय तो ऐसे ज्ञान को कार्य रूप में फलित होने की आशा की जा सकती है। नवरात्रि में अनेक व्यक्ति जप अनुष्ठान करते हैं। यदि वे गायत्री तपोभूमि के तीर्थ में किये जावें तो निश्चय ही उसका फल बहुत अधिक होता है। यज्ञ, अनुष्ठान और सत्संग का यह बहुत ही बहुमूल्य स्वर्ण सुयोग है। मथुरा, वृन्दावन, एवं गोवर्धन के दर्शनों के लिये भी कार्यक्रम रखा गया है। इस प्रकार एक उत्तम तीर्थ यात्रा भी हो जायेगी। जिन्हें अवकाश मिल सके उन्हें ऐसे अमूल्य अवसर पर आने का प्रयत्न अवश्य करना चाहिये। इन दस दिनों का शक्ति संचय प्रायः एक वर्ष तक के लिये समुचित बल दे जाता है। मनुष्य सदा साँसारिक कार्यों में लगा रहता है। थोड़े दिन आत्म चिन्तन, तप, साधन, सत्संग, तीर्थ यात्रा जैसे सत्कार्यों के लिये भी अवश्य निकालना चाहिये। जिन्हें आना हो उन्हें पूर्व स्वीकृति अवश्य प्राप्त कर लेनी चाहिये। क्योंकि एक सीमित संख्या में उतने ही व्यक्तियों को हम आने देते हैं जिनके साथ समुचित श्रम करना तथा ध्यान देना सम्भव हो सके। बड़ी भीड़ में सदा ही अव्यवस्था अधिक और लाभ कम होता है।

आश्विन सुदी 1 से लेकर आश्विन सुदी 10 तदनुसार ता0 27 सितम्बर चन्द्रावार से लेकर 6 अक्टूबर बुधवार तक दस दिन का गायत्री महापुराण, गायत्री महायज्ञ तथा साँस्कृतिक शिक्षण शिविर होगा। दस दिनों में सभी आगन्तुक एक-एक 24 हजार का लघु पुराण तथा जप का शताँश हवन करेंगे। प्रातः काल 6 बजे से 10 बजे तक जप तथा हवन का कार्यक्रम चला करेगा। सायंकाल 2 से 6 बजे तक साँस्कृतिक शिक्षण शिविर की क्रमबद्ध शिक्षा होगी। इस प्रकार 10 दिनों में दोनों ही महत्वपूर्ण कार्य सम्पन्न हो जावेंगे। आने वालों को ता0 26 सितम्बर रविवार की शाम तक मथुरा पहुँच जाना चाहिए। ताकि आश्विन सुदी 1 को प्रातःकाल से गायत्री महापुरश्चरण में सम्मिलित हो सकें।

ठहरने के लिए गायत्री तपोभूमि में स्थान है सभी लोग तपस्वी जीवन व्यतीत करेंगे। सामान्य तय दस दिन के लिये सात्विक भोजन की व्यवस्था की गई है। अन्न के सभी संस्कार ऐसे कराये जायेंगे कि वह फलाहार के सदृश्य सात्विक हो जाय। (10 दिन के लिये 10) भोजन व्यय लगेगा जो पहले ही जमा कर देना चाहिये, ताकि आवश्यक वस्तुएं खरीदने में सुविधा हो। जो लोग फल दूध आदि की अपनी व्यवस्था अलग से करना चाहें वे पहले ही इसकी सूचना दे दें, ताकि उनके लिए भोजन प्रबन्ध न किया जाय। सभी की पोशाक एक सी रहेंगी। धोती, कुर्ता तथा कन्धे पर पीले दुपट्टे। पजामा तथा पतलून पहनकर आना उचित न होगा। अपना पूरा बिस्तर तथा थाली, लोटा, कटोरी साथ लाना चाहिये। गायत्री तपोभूमि वृन्दावन रोड़ पर मथुरा से 1 मील पर है। इस शिविर में स्त्रियाँ भी आ सकती हैं पर जिनकी गोदी में बहुत छोटे बच्चे हैं उन्हें न आना चाहिये। क्योंकि बहुत छोटे बच्चों के रोने-धोने तथा टट्टी पेशाब करने से शुद्धता तथा व्यवस्था में गड़बड़ी फैलती है।

जीवन की सभी महत्वपूर्ण समस्याओं पर शिविर में क्रमबद्ध रूप से उच्चकोटि के प्रवचनों की व्यवस्था की जायेगी। जिनके आधार पर मनुष्य अपने जीवन का सर्वांगीण विकास करता हुआ सच्ची शान्ति का अधिकारी बन सके। शिक्षण शिविर के शिक्षा कार्य को भली भाँति हृदयंगम कराने के लिए परीक्षा की व्यवस्था भी रखी गई है। उत्तीर्ण होने वालों को साँस्कृतिक विश्व विद्यापीठ के बड़े साइज के तिरंगे छपे हुए सुन्दर प्रमाण पत्र भी दिये जायेंगे। जिनके यज्ञोपवीत न हुए हों उनके लिए बिना खर्च के यज्ञोपवीत संस्कार का यह सुअवसर है।


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