समर्थ गुरु रामदास

पंचवटी में साधन

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इस घटना के पश्चात रामदास ने जीवन-साधना में लग जाना आवश्यक समझा और वे अपने गाँव से कई सौ मील की यात्रा करके प्रसिद्ध तीर्थ पंचवटी (नासिक) पहुँच गए। यह गोदावरी के तट पर भगवान् राम का प्रसिद्ध तीर्थ है। वहीं पर वे 'टाकली' नामक स्थान में रहकर जप-तप और भजन करने लगे। वे प्रातःकाल से दोपहर तक गोदावरी के जल में खड़े होकर गायत्री का जप करते रहते थे। दोपहर के बाद भिक्षा लेकर भोजन करते तथा भजन और जप में लग जाते। इस प्रकार बारह वर्ष तक तपस्या करके उन्होंने गायत्री के कितने ही पुरश्चरण कर डाले।

इस तपस्या के फल से उनकी आत्मिक शक्ति कितनी अधिक बढ़ गई थी, इसके संबंध में एक घटना प्रसिद्ध है ? इनकी तपोभूमि 'टाकली' के पास ही 'दशकपेचक' ग्राम में एक पटवारी रहता था। उसे क्षय रोग हो गया और हालत खराब होते-होते एक दिन वह संज्ञाशून्य हो गया। लोगों ने उसे मरा हुआ समझकर उसके अंतिम- संस्कार की व्यवस्था की और उसकी अर्थी बनाकर गोदावरी के किनारे ले चले। उसकी युवती भार्या भी सती होने की मनोकामना से उसके पीछे-पीछे जा रही थी। मार्ग में ही समर्थ गुरु रामदास की गुफा पड़ी और उस स्त्री ने महात्मा जानकर समीप जाकर प्रणाम किया। उन्होंने परिस्थिति को न जानते हुए साधारण भाव से आशीर्वाद दे दिया-'सौभाग्यवती-पुत्रवती होओ।' यह सुनकर स्त्री ने अपने पति का देहांत होने की बात कही।' पर रामदास ने स्त्री के लक्षण देखकर समझ लिया कि यह विधवा नहीं हो सकती। इसलिए उन्होंने कहा कि तुम्हारा पति मर नहीं सकता, उसकी फिर से अच्छी तरह परीक्षण करो। इस पर लोगों ने ध्यान देकर देखा, तो उसमें जीवन के लक्षण जान पड़े। कुछ उपचार करने से वह होश में आ गया और फिर क्रमश: स्वस्थ भी हो गया। कुछ वर्ष पश्चात् उसके जो प्रथम पुत्र हुआ उसको उन्होंने समर्थ गुरु का शिष्य बना दिया। आगे चलकर उद्धव गोस्वामी के नाम से वह उनका प्रधान शिष्य हुआ।

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