काया में समाया प्राणग्नि का जखीरा

क्यों धधक उठते हैं अग्नि के ये शोले

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स्वतः किसी शरीर में से प्राणाग्नि प्रकट होने की घटनाओं का विवरण सत्रहवीं सदी के बाद में खोजा और पंजीकृत किया गया है। उनमें से कितनी ही घटनाएं प्रकाशित पुस्तकों और पत्र-पत्रिकाओं में छपती रहती हैं। जहां इस प्रकार की जांच-पड़ताल की व्यवस्था नहीं है वहां भी कुछ ऐसा ही होता रहता होगा, पर उसका प्रामाणिक उल्लेख न होने से ऐसी चर्चा का विषय नहीं बनाया जा सकता जिसके सहारे किसी तथ्य तक पहुंचने का प्रयास किया जा सके।

प्रामाणिक घटनाओं में से कुछ उल्लेख उपलब्ध हैं—
फ्रान्सिस हिचिंग की पुस्तक ‘दि वर्ल्ड एटलस ऑफ मिस्ट्ररीज’ में सन् 1938 की एक अमेरिकी घटना का उल्लेख है कि गर्मी के मौसम में एक दिन नारफॉक ब्राड्स नामक स्थान पर नौका विहार कर रही एक महिला के शरीर से अग्नि की लपटें स्वतः फूट पड़ीं। साथ में उसके पति और बच्चे भी थे। पानी से आग बुझाने का प्रयास किया गया। पर उस भभकती अग्नि पर काबू नहीं पाया जा सका। वह मेरी कारपेण्टर नामक उस महिला के शरीर को भस्मीभूत करके अपने आप बुझ गई।

ओहियो की एक फैक्ट्री में आठ बार आग लग चुकी थी। इसके कारण को पता करने के लिए वैज्ञानिक जासूस रॉबिन बीच को आमन्त्रित किया गया। रॉबिन बीच ने सभी कर्मचारियों को एक-एक करके इलैक्ट्रोड और वोल्ट मीटर से जुड़ी एक धातु पट्टिका पर चलाया। फैक्ट्री की एक महिला कर्मचारी ने जैसे ही धातु पट्टिका पर पांव रखा, वोल्ट मीटर की संकेतक सुई उच्च बिन्दु पर जा टिकी, जबकि अन्य कर्मचारियों के समय वह औसत बिन्दुओं के बीच डोलती रही थी। फैक्ट्री में आग लगने का कारण वह महिला ही थी जिसके भीतर विद्युत-शक्ति अत्यधिक मात्रा में विद्यमान थी। उस महिला को दूसरे विभाग में भेजा गया तब से आग लगने का सिलसिला समाप्त हो गया। कुछ वर्षों पूर्व लन्दन में एक डिस्कोथिक में नार रहे एक प्रेमी युगल का सारा आनन्द महाशोक में बदल गया जब उस लड़के के साथ थिरक रही सुनहरे बालों वाली युवती सहसा चीख पड़ी। लड़की के सुनहरे केश आग की लपटों में लहरा रहे थे। लड़के ने आग बुझाने की कोशिश की तो उसके हाथ जल गए। कुछ क्षणों बाद वह उन्नीस वर्ष की युवती राख की ढेरी में बदल गई। यह प्राण विद्युत के विस्फोट का ही परिणाम था। इसके पहले चेम्सफोर्ड में ऐसी ही एक घटना 20 सितम्बर 1938 को घटित हुई थी और एक महिला देखते-देखते अनेक व्यक्तियों के सामने नीली लपटों में खो गई थी।

हिवटले (इंग्लैंड) का एक नागरिक जोनहार्ट 31 मार्च 1908 को अपने घर में बहन के साथ बैठा था। सहसा उसकी बहन के शरीर से आग की लपटें निकलने लगीं। जोनहार्ट ने उसे कम्बल से लपेट दिया, पर कम्बल, कुर्सी समेंत वह आग में स्वाहा हो गई।

‘स्पान्टेनियस ह्यूमन कम्वशन’ की इन घटनाओं की श्रृंखला में बिहार के भागलपुर जिले की पांच वर्ष पूर्व 1982 के सूर्य ग्रहण के अवसर पर घटी एक घटना का उल्लेख यहां करना समीचीन होगा। एक युवक अपने घर के आंगन में मौन बैठा था। बारम्बार घर वालों के पूछने पर उसने बताया कि आज उसके जीवन का अन्तिम दिन है घर के सदस्यों ने उसके कथन की ओर ध्यान नहीं दिया। थोड़ी देर तक वह सूर्य की ओर मुंह किए ताकता रहा। अचानक उसके शरीर से अग्नि की नीली ज्वालाएं फूटने लगीं। घर के सदस्यों ने शरीर पर पानी फेंका तथा कंबल से ढंक दिया पर शरीर उस तीव्र ज्वाला में बुरी तरह झुलस गया। आग तो बुझ गयी पर उसे बचाया न जा सका। अस्पताल पहुंचने पर उसने दम तोड़ दिया।

वैज्ञानिकों का ऐसा मत है कि पच्चीस वोल्ट से 30 वोल्ट तक का विद्युत बल्ब जला सकने योग्य बिजली की मात्रा प्रत्येक शरीर में न्यूनाधिक अनुपात में क्षेत्र में पायी जाती है। हाथों, आंखो और हृदय में इसकी सक्रियता कुछ अधिक सघन होती है। ट्रांजिस्टर के एण्टीना को हाथ की उंगलियां छूकर बजायें तो आवाज तेज हो उठती है। उंगलियां हटाने पर आवाज पहले जैसी हो जाती है। आंखों की विद्युत-शक्ति को त्राटक साधना में घनीभूत कर उपयोगी बनाया जाता है। हिप्नोटिज्म में इसी विद्युत शक्ति को प्रखर और वशीभूत बनाने की साधना की जाती है।

सत्रहवीं सदी का एक प्रसंग है। ससेक्स की एक वृद्धा की प्राण विद्युत सहसा धधक उठी और वह अपनी झोंपड़ी में झुलस कर जल मरी। ‘डेली टेलिग्राफ’ लन्दन ने एक बार एक ट्रक ड्राइवर के ट्रक के भीतर ही अपनी सीट पर जल जाने की खबर छापी थी। इसी प्रकार ‘रेनाल्ड न्यूज’ ने पश्चिमी लन्दन की एक खबर छापी थी कि एक व्यक्ति वहां सड़क से जा रहा था तभी सहसा उसके भीतर से लपट निकली और वह वहीं झुलस कर सिमट गया।

काउडर स्पोर्ट पेन्सिलवानियां में डान. ई. गास्नेल मीटर रीडिंग का काम करता था। इसी क्षेत्र में एक वृद्ध फिजिशियन डॉ. जॉन इर्विन वेन्टले रहते थे। वृद्ध होते हुए भी वे पूर्णतया स्वस्थ थे। 5 दिसम्बर 1966 को नित्य की तरह डान गास्नेल मीटर रीडिंग के लिए निकला। डॉ. जॉन इर्विन वेन्टले के दरवाजे पर उसने दस्तक दी। प्रत्युत्तर न मिलने पर उसने आवाज लगाई। फिर भी कोई उत्तर नहीं मिला। वह मकान के ही एक पाइप के सहारे ऊपर के कमरे में पहुंचा। कारण यह था कि ऊपर कमरे की ओर से एक विचित्र प्रकार की जलने की गन्ध आ रही थी। कमरे में पहुंचकर देखा तो वहां से हल्का नीला धुआं उठ रहा था। कमरे की सतह पर राख की ढेर पड़ी हुई थी। अन्दर कमरे का दृश्य अत्यन्त वीभत्स था। डॉ. वेन्टले का दाहिना पैर जूते सहित मात्र अधजली स्थिति में पड़ा था। अवशेष शरीर के सभी अंग जलकर राख हो गये थे। विशेषज्ञों ने भली-भांति घटना का अध्ययन किया और अन्ततः स्वतः जलने की संज्ञा दी। ऐसा कोई सुराग नहीं मिला जो किसी अन्य प्रकार से आग लगने की पुष्टि कर सके। सबसे आश्चर्य की बात यह थी कि कमरे से निकलने वाली दुर्गन्ध मांस के जलने जैसी न होकर मीठी महक से युक्त थी।

इसी तरह की एक घटना जुलाई 1951 के एक दिन प्रातः सेण्ट पीटर्स बर्ग फ्लोरिडा में घटी। मेरीरिजर नामक एक अत्यन्त हृष्ट-पुष्ट महिला कुर्सी पर ही बैठे-बैठे जल गई। इस कायिक दहन की विशेषता यह थी कि भयंकर अग्नि शरीर से निकली, उसे जलाती रही पर मात्र एक मीटर के घेरे तक ही सीमित रही। मेरी का 80 किलो वजनी शरीर पूर्णतया भस्मीभूत होकर चार किलो राख में परिवर्तित हो गया। वेन्टले की भांति उसका भी एक पैर अधजला उस घेरे में बच गया था। खोपड़ी सिकुड़कर सन्तरे के आकार में बदल गई थी।

अवशेषों की जांच के लिए पेन्सिलवानिया स्कूल ऑफ मेडिसिन के फिजिकल एन्थ्रोपोलॉजी के प्रोफेसर डॉ. विल्टन क्रोगमैन के पास भेजा गया तो खोपड़ी की आकृति देखकर वे आश्चर्यचकित रह गए। वह एक ख्याति प्राप्त फरेंसिक वैज्ञानिक थे तथा वर्षों का अनुभव था। जब तक कि घटनाओं में ऐसी कोई घटना उनके पास नहीं आयी थी कि जलने के उपरान्त खोपड़ी सिकुड़कर छोटी हो गई हो। क्योंकि विज्ञान के नियमानुसार जलने के बाद खोपड़ी को या तो फूल जाना चाहिए अथवा टुकड़े-टुकड़े हो जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि इस विचित्र अग्निकाण्ड में खोपड़ी का सिकुड़कर छोटा हो जाना निस्सन्देह एक आश्चर्यजनक बात है। अपने अनुभव के आधार पर उन्होंने यह बताया कि बारह घण्टे तक लगातार तीन हजार डिग्री फारेनहाइट तापक्रम पर रहने पर भी शरीर की सम्पूर्ण हड्डियां जलकर भस्मसात हो गई हों ऐसा अब तक देखा-सुना नहीं गया था। पर यह घटना अपने में सबसे विलक्षण है जिसकी यथार्थता पर बिल्कुल ही सन्देह करने की गुंजाइश नहीं है।

पेरिस की 1951 में घटी एक घटना और भी अधिक आश्चर्यजनक है। ‘‘ग्रेट मिस्ट्रीज’’ पुस्तक के लेखक हैं इलेनार वान जान्ड्ट तथा राय स्टेमन। पुस्तक में वर्णित घटना के अनुसार एक व्यक्ति ने अपने एक मित्र से शर्त लगाई कि वह जलती मोमबत्ती को निगल सकता है। सत्यता को परखने के लिए दूसरे मित्र ने उसकी ओर तुरन्त एक जलती मोमबत्ती बढ़ा दी। जैसे ही उस व्यक्ति ने निगलने के लिए मोमबत्ती को अपने मुंह की ओर बढ़ाया वह जोर से ही चिल्लाया। मोमबत्ती की लौ से उसके होठों पर नीली लौ दीखने लगी। आधे घण्टे के भीतर ही पूरे शरीर में आग फैल गई और कुछ ही समय में उसके शरीर के अंगों, मांसपेशियों, त्वचा एवं हड्डियों को जलाकर राख कर दिया। अग्नि के भौतिक जगत में अगणित प्रयोग हैं। प्राणाग्नि का स्तर उसमें कुछ ऊंचा ही है नीचा नहीं। यदि उसका स्वरूप और प्रयोग जाना जा सकता है तो हानियों से बचना और लाभों को उठाना ये दोनों ही प्रयोजन भली प्रकार पूर्ण हो सकते हैं।

सन् 1847 में फ्रांस में एक 71 वर्षीय बूढ़े की मृत्यु स्वतः प्रवर्तित अग्नि में जल जाने के कारण हुई। कोर्ट ने इसे हत्या का मामला मानकर मृतक के पुत्र और जमाई को गिरफ्तार कर लिया। दोनों पर वृद्ध को मार डालने और जला देने का संगीन अपराध थोपा गया।

लड़के और जमाई का कहना था कि उसके पिता रात्रि के समय अपने बिस्तर पर सो रहे थे। अचानक उनका शरीर अग्नि की सफेद लपटों से घिर गया और चन्द मिनटों में ही राख की ढेर में परिणित हो गया। हाथ और पैरों के निचले हिस्से को छोड़कर शेष कुछ नहीं बचा। अवशिष्ट राख भी बहुत थोड़ी थी। सम्पूर्ण कमरा गहरे धुएं से भर गया था। लड़कों के इस कथन की पुष्टि के लिए कोर्ट ने डा. मैसन के एक दलीय आयोग को नियुक्त किया। डा. मैसन ने छान-बीन करने पर पाया कि लड़के और जमाई का कथन सत्य है। कोर्ट ने स्वतः प्रवर्तित अग्निकाण्ड का मामला मानकर दोनों अभियुक्तों को बरी कर दिया।

19 फरवरी 1888 को रविवार के दिन कोलचेस्टर, इंग्लैण्ड में एक बूढ़ा सिपाही शराब पीकर सूखी घास के गट्ठरों पर सोने के लिए चढ़ गया। लेटते ही उसके शरीर के चारों तरफ उठती ज्वाला की लपटों ने शरीर को भस्मीभूत बना दिया। आश्चर्य यह था कि सूखी घास का एक तिनका भी नहीं जला।

इंग्लैण्ड में साउथम्पटन शहर के पास बुटलाक्स हीथ गांव में श्रीमान जान किले नामक दंपत्ति निवास कर रहे थे। 23 फरवरी 1905 को सुबह जान के मकान से खड़खड़ाहट की आवाज सुनकर पड़ौसियों ने उनके मकान के अन्दर प्रविष्ट किया। अंदर आग की लपटें फैली हुई थीं। मि. किले फर्श पर पड़े राख के ढेर में परिणत हो गये थे। श्रीमती किले उसी कमरे में कुर्सी पर बैठी बुरी तरह जलकर कोयले में बदल गई थीं। परन्तु जिस कुर्सी पर श्रीमती किले बैठी थी उस पर आंच तक नहीं लगी थी। थोड़ी दूर फर्श पर तेल का लैम्प लुढ़का पड़ा था जिसे देखकर पुलिस को आग लगने के कारणों का पता लगाने के लिए कहा गया। लैम्प से आग लगाने का अर्थ था कमरे के फर्नीचर, कपड़े आदि सभी जल जाने चाहिए थे, किन्तु ऐसा नहीं हुआ था। अतः दंपत्ति को ‘‘एक्सीडेन्टल डेथ’’ का प्रकरण मानकर जांच पड़ताल को वहीं समाप्त कर दिया गया।

सन् 1932 में जनवरी के ठंडक के दिनों में नार्थ कैरोलिना के ब्लैडेनबोरो शहर में निवास करने वाली महिला श्रीमती चार्ल्स विलियम्सन के रुई के कपड़े में अचानक आग धधकने लगी। उनके आस-पास कहीं कोई आग नहीं थी और न ही उनका ड्रेस किसी ज्वलनशील पदार्थ के सम्पर्क में ही था। उनके पति और लड़की ने जलते हुए कपड़ों को उतारकर उनकी प्राण रक्षा की। इस तरह घटना उनके साथ तीन बार घट चुकी थी। इसके बाद श्रीमान विलियम्सन का एक जोड़ी पेन्ट एक आलमारी में टंगा था उसमें भी आग लग गई और जल कर भस्म हो गया। इसके बाद बिस्तर और पर्दे में आग लग गई। कमरे के बहुत से सामान नीली लौ में जलते देखे गये परन्तु उनके समीप पड़े किसी अन्य वस्तु को आग की लपटों ने छुआ तक नहीं। इस ज्वाला में न तो कोई गन्ध थी और न ही किसी प्रकार का धुआं था। जिस वस्तु को आग लगी वह पूर्णतया भस्मीभूत हो गयी।

विभिन्न हस्तियां—आर्सेन एक्सपर्ट, पुलिस दस्ते, गैस और विद्युत कम्पनी के विशेषज्ञ सभी बुलाये गये। परन्तु आग लगने का कारण रहस्यमय ही बना रहा। चार दिनों तक यह अग्निकाण्ड चलता रहा और पांचवें दिन अचानक अपने आप समाप्त हो गया। अदृश्य हाथों द्वारा संचालित इस अग्निकाण्ड का उत्तर किसी के पास नहीं था।

सन् 1907 में भारतवर्ष के दीनापुर, जिले के मनेर गांव से एक जली हुई महिला का शव ले जाते हुए दो व्यक्तियों को दो पुलिस वालों ने पकड़ लिया। महिला का शव जिला मजिस्ट्रेट के सामने प्रस्तुत किया गया। कपड़े के अन्दर शरीर से तब भी लपटें निकल रही थीं। महिला के कमरे का निरीक्षण किया गया। वहां बाहरी आग लगने के कोई चिह्न नहीं मिले।

ये घटनायें बताती हैं कि मानवी सत्ता मात्र रासायनिक पदार्थों की बनी नहीं है उसमें प्राण ऊर्जा की प्रचण्डता भी विद्यमान है। यह विद्युत भण्डार सामान्यतया शरीर निर्वाह भर के काम आता है। इसका बहुत बड़ा अंश प्रसुप्त स्थिति में निरर्थक पड़ा रहता है। प्राणाग्नि के ऐसे असंख्य उपयोग हो सकते हैं जिनके सहारे मनुष्य अब की अपेक्षा कहीं अधिक समर्थ वरिष्ठ सिद्ध हो सके।

घटना 2 जुलाई 1951 की है अमेरिका के सेण्ट पीटर्स बर्ग (फ्लोरिडा) के एक मुहल्ले मेरी स्ट्रीट में रहने वाली श्रीमती मेरी हार्डी रोजर अपने मकान में विचित्र ढंग से जली हुई मरी पाई गई। 2 जुलाई की पूर्व सन्ध्या को हार्डी रोजर ने अपने मित्रों को एक पार्टी दी थी और उसका घर आधी रात तक चहल-पहल से भरा था। मित्रों के ठहाके गूंज रहे थे। देर रात गए पार्टी समाप्त हुई और हार्डी रोजर अपने मित्रों को विदा कर हलके चित्त से आकर अपने बिस्तर पर लेट गई। सुबह देर तक उसके मकान का दरवाजा बन्द रहा। मकान मालकिन पी. कार्पेण्टर ने सोचा कि रात में देर तक जागने के कारण रोजर अभी तक सो रही है। उसके काम पर जाने का समय हो गया है, इसलिए उसे जगा देना चाहिए।

यह सोचकर श्रीमती कार्पेण्टर ने रोजर के घर का दरवाजा खटखटाया किन्तु अन्दर से कोई उत्तर नहीं मिला। दो तीन बार दरवाजा खटखटाने के बाद जब कोई उत्तर नहीं मिला तो श्रीमती कार्पेण्टर ने सोचा कि रोजर को ज्यादा ही गहरी नींद आ गई होगी इसलिए स्वयं ही दरवाजा खोलकर उसे जगा देना चाहिए। यह सोचकर दरवाजा खोलने के लिए मकान मालकिन ने पीतल की बनी हुई कुण्डी पर जैसे ही हाथ रखा उसके मुंह से चीख निकल गई। पीतल की कुण्डी इतनी गरम हो गई थी जैसे उसे घण्टों आग से तपाया गया हो। उसी से मिसेज कार्पेण्टर का हाथ जल गया था।

उसकी चीख सुनकर पास ही रहने वाले दोनों पड़ौसी निकल आए। मिसेज कार्पेण्टर ने उन्हें सारी बात बताई और कहा कि शायद फ्लैट में कोई दुर्घटना घट गई है। दुर्घटना की सम्भावना का अनुमान लगा कर दोनों पड़ौसियों ने दरवाजे को कन्धे से धक्का देना शुरू किया। दो चार धक्कों में ही कुण्डी निकलकर अलग हो गई और तीन व्यक्ति अन्दर प्रविष्ट हुए।

फ्लैट के भीतर कमरे की दोनों खिड़कियां खुली हुई थीं और कमरे की छत तथा दीवारें कालिख से इस तरह पुती हुई थी जैसे किसी ने वहां आग लगाई हो। कमरे का तापक्रम भी असाधारण रूप से गरम था और वहां रखा हुआ आदमकद शीशा इतनी अधिक आंच के कारण टूटकर पिघल गया था एवं बुरी तरह टुकड़े-टुकड़े हो गया था किंतु आश्चर्य की बात यह थी कि कमरे में धुएं या जलने की गन्ध का कहीं नामो-निशान तक नहीं था।

उन लोगों ने मेरी हार्डी को आवाज दी। पर कोई उत्तर नहीं मिला। मेरी हार्डी वहां हों तो उत्तर भी दें, उसके अवशेष तो राख की एक ढेरी के रूप में कमरे की ही एक खिड़की के पास पड़े थे। मिसेज कार्पेण्टर और दोनों पड़ौसियों ने उन अवशेषों को देखा तो दंग रह गए और तत्काल इस घटना की सूचना पुलिस को दी। पुलिस आई, उसने जांच की परन्तु रहस्य सुलझने का कोई सूत्र हाथ में नहीं आ रहा था। पहले तो जांच अधिकारी इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि मामला असाधारण रूप से की गई आत्म-हत्या का है परन्तु शीघ्र ही उन्हें अपना विचार बदलना पड़ा क्योंकि आत्महत्या के लिए अपने शरीर को किसी भी प्रकार आग लगाई जाए किन्तु वह उस ढंग से राख में परिवर्तित नहीं हो सकता, जिस प्रकार मिसेज हार्डी का शरीर राख में परिणत हो गया था। आग लगने के बाद आखिर कोई भी व्यक्ति छटपटाता तो है ही और उस छटपटाहट के कारण मरणांतक स्थिति में पहुंचने तक भी आग निश्चित रूप से बुझ सकती है। फिर मानवी काया एवं उस पर भी अस्थियों को भस्मीभूत करने के लिए जितना ऊंचा भट्ठी के स्तर का तापमान चाहिए, इतना तापमान आग के किसी प्रचण्ड भयंकर स्रोत से ही उत्पन्न हो सकता था। वहां पर कमरे की जो स्थिति थी और कमरे के सामान को जो क्षति पहुंची थी, उसके आधार पर किसी भी प्रकार यह नहीं कहा जा सकता कि कमरे में इतना उच्च तापमान पैदा हुआ हो।

जांच अधिकारियों को जिस बात ने सबसे अधिक उलझन में डाला वह यह थी कि मेरी हार्डी की देह जिस स्थान पर राख हुई पड़ी थी, वहां फर्श पर बिछे कालीन पर आग लगने के बहुत ही सामान्य निशान थे। उसके पास ही रखी मेज पर पड़े हुए अखबार और कपड़ों को तो आग ने छुआ तक नहीं था। जांच अधिकारी एडवर्ड डेविस इन विचित्र विरोधाभासों के कारण जब किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुंच सके तो उन्होंने प्रसिद्ध शरीर विज्ञानी डा. विंस्टन क्रागमैन की सहायता ली।

डा. विंस्टन क्रागमैन इस दुर्घटना के विभिन्न कारणों की सम्भावना पर विचार करते हुए इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि मिसेस हार्डी रोजर उस रहस्यमयी आग की शिकार हुई हैं, जिसे विज्ञान भाषा में ‘‘स्पांटेनियस ह्यूमन कम्बशन’’ (स्वतः दहन) कहते हैं। स्पांटेनियस ह्यूमन कम्बशन अथवा अनायास अपने आप जलने की यह प्रक्रिया ऐसी है जो पिछले दसियों वर्षों से वैज्ञानिकों को उलझन में डाले हुए है। इस रहस्यमयी आग की उत्पत्ति के कारणों को जानने के लिए विभिन्न प्रयोगों और अब तक इस तरह की घटी सैकड़ों घटनाओं में से करीब 100 घटनाओं का अध्ययन करने के बाद भी वैज्ञानिक यह पता नहीं लगा पाये हैं कि यह रहस्यमयी आग किस प्रकार और किन कारणों से उत्पन्न होती है? इसका स्रोत क्या है?

अपने आप शरीर में आग उत्पन्न होना और उस आग में जलकर शरीर का भस्मीभूत हो जाना ऐसा विचित्र रहस्य है कि सामान्य अग्निकाण्डों से उसकी तुलना नहीं की जा सकती। क्योंकि जिस किसी के भी साथ इस प्रकार की घटना घटती है पहले तो उसे इसका कोई लक्षण ही पता नहीं चलता। अचानक हार्ट अटैक की तरह बिना किसी पूर्व सूचना के अग्नि विस्फोट होता है और जो व्यक्ति इस रहस्यमयी अग्नि का शिकार होता है उसे सम्भवतः इसकी कोई यन्त्रणा भी अनुभव नहीं होती।

उपरोक्त घटना के पहले और बाद में भी इस तरह के ढेरों अग्निकाण्ड हुए हैं, इनमें 7 दिसम्बर 1956 को होनोलूलू द्वीप में ऐसा ही अग्निकाण्ड घटित हुआ। उस द्वीप की एक साधारण-सी बस्ती में रहने वाली पचहत्तर वर्षीय महिला यग सिककिम इस घटना की प्रत्यक्ष साक्षी रहीं। उस दिन दोपहर को वृद्धा किम किसी घरेलू काम में व्यस्त थी अचानक उसे किसी काम से अपनी पड़ौसिन वर्जीनिया कॉगेट की याद आई। किम दयालु, व्यवहार कुशल और पर दुःखकातर महिला थी। उसके स्वभाव से सभी खुश रहते थे और कॉगेट तो उसकी विशेष रूप से आभारी थी क्योंकि वक्त बेवक्त उसे किम से सहायता मिल जाया करती थी इसलिए वह किम के कई छोटे बड़े काम कर दिया करती थी। किम को किसी काम के सिलसिले में कॉगेट की याद आई तो उसके घर पहुंची। वहां पहुंचकर उसने जो कुछ देखा उससे किम की भय के मारे चीख निकल गई। किम ने देखा कि कॉगेट का शरीर नीली लपटें छोड़ता हुआ जल रहा है। उसकी चीख सुनकर आस-पास रहने वाले लोग दौड़ आए। उन्होंने भी वह दृश्य देखा। वे कॉगेट को बचाने का कोई उपाय करने की बात सोच ही रहे थे कि देखते ही देखते उसका शरीर मुट्ठी भर राख में बदल गया। आश्चर्य की बात यह थी कि कॉगेट न तो अचेत हुई थीं और न ही चीखी-चिल्लाई ही थीं।

सैन फ्रांसिस्को के लागूना होम में भी 31 जनवरी 1959 को ऐसी ही घटना घटी जिसका प्रत्यक्षदर्शी वहां का एक चपरासी थी। लागूना होम में बूढ़े व्यक्तियों की देखभाल की जाती थी। सरकार की ओर से चलाया जाने वाला वह एक ऐसा संस्थान है, जहां वृद्ध व्यक्ति ही रहते थे। उस घटना का प्रत्यक्षदर्शी चपरासी सिलेवेस्टर एलिस 31 जनवरी की शाम को चार बजे के लगभग जैक लार्बर को दूध का गिलास देने गया था, जो वृद्ध व्यक्तियों को होम की ओर से वितरित किया जाता था। जैक लार्वर ने दूध का गिलास ले लिया और पीने लगा। इसके बाद एलिस रसोई में चला आया।

कोई पन्द्रह मिनट के बाद एलिस लार्वर के कमरे में दूध का खाली गिलास वापस लेने के लिए पहुंचा जब वह लार्वर के कमरे में पहुंचा तो वहां उसने जो कुछ देखा वह बेहद भयावह दृश्य था। उसने देखा कि जैक लार्वर नीले रंग की लपटों में बुरी तरह जल रहा है। यह दृश्य देखकर उसने एक कम्बल लार्वर के शरीर पर लपेट देना चाहा परन्तु जैसे ही कमरे के कोने में रखा कम्बल लेकर उसके पास दौड़ता हुआ सा जाने लगा, एलिस को कुछ फीट की दूरी पर आग की तेज असह्य आंच अनुभव हुई। उसे लगा कि वह भी उस आंच में झुलसने लगा है।

अपने को बचाते हुए एलिस ने कम्बल लार्वर पर फेंका और दौड़कर कमरे के बाहर आया तथा मदद के लिए चीखने पुकारने लगा। लोग मदद के लिए दौड़े आए। इसमें मुश्किल से पांच सात मिनट लगे होंगे। सहायता के लिए आए संस्था के कर्मचारी तथा अन्य व्यक्ति लार्वर के कमरे में पहुंचे तो उन्होंने देखा कि वहां राख का एक ढेर मात्र पड़ा है और कमरे के भीतर झुलसा देने वाली गर्मी व्याप रही है। आश्चर्य की बात तो यह थी कि एलिस ने जो कम्बल लार्वर के ऊपर फेंका था, उस पर कहीं-कहीं ही आग ने अपना प्रभाव दिखाया था। कमरे की सभी वस्तुएं यथावत् सुरक्षित थीं। वहां न तो किसी प्रकार का धुआं फैला हुआ था और न ही कोई चीज जलने की गन्ध आ रही थी। इस घटना की रिपोर्ट पुलिस में की गई। जांच अधिकारियों ने पहले तो उसे आत्म-हत्या का असाधारण प्रयास माना परन्तु इस विचार की कहीं से भी पुष्टि नहीं होती थी। कमरे में ऐसी कोई वस्तु नहीं पाई गई जो ज्वलनशील हो फिर यदि लार्वर ने आत्मदाह ही किया था तो उस आग से आस-पास की वस्तुएं कैसे अप्रभावित रह गई थीं? यहां तक कि उसके ऊपर जो कम्बल फेंका गया था, वही बिना जले कैसे बच गया था? अन्त में जांच अधिकारियों को अपना निष्कर्ष बदलना पड़ा और इस केस को फाइल कर दिया गया।

इस तरह की जितनी भी घटनाएं अब तक प्रकाश में आई हैं और जिनका विश्लेषण किया गाय है उनमें यह तथ्य आश्चर्यजनक रूप से सामने आया है कि यह आग केवल शरीर को ही जलाती है। धातुओं पर इसका कोई विशेष प्रभाव नहीं पड़ता, अलबत्ता वह उन पर कुछ निशान जरूर छोड़ जाती है।

13 जनवरी 1943 को 52 वर्षीय एलन एम. स्माल का जला हुआ शरीर डियर इस्ले, मेन स्थित उनके मकान से बरामद किया गया। शरीर के नीचे बिछा हुआ कार्पेट झुलस गया था। इसके अतिरिक्त कमरे की किसी भी वस्तु पर आग का कोई प्रभाव नहीं पड़ा।

सन् 1904 के अन्त में इंग्लैण्ड के लिंकन शाय प्रांत में स्थित बिन ब्रूक पुरोहिताश्रम में दिसम्बर महीने में एक अजीबो-गरीब घटना घटित हुई। पुरोहिताश्रम के इस विशाल भवन में अचानक तीन बार आग लगी जिससे भवन का बहुत-सा हिस्सा जलकर नष्ट हो गया। आग लगने के कारणों का पता अज्ञात ही बना रहा। एक महीने बाद बिन ब्रूक का एक किसान अपने रसोईघर में गया जहां नौकरानी लड़की झाड़ू लगा रही थी। उसकी पीठ से लम्बी-लम्बी लपटें निकल रही थीं। किसान ने आवाज लगाई और तुरन्त ही उस लड़की पर झपट पड़ा। आग निकलने वाले स्थान पर हाथ से ढक दिया और आग बुझ गई। परन्तु तब तक लड़की बुरी तरह से जल चुकी थी।

प्रोफेसर जेम्स हैमिल्टन ‘टेनेसी’ प्रान्त के नशेवाइल विश्वविद्यालय में कार्यरत थे। 5 जनवरी 1835 को विश्वविद्यालय से वापस घर आये जो तीन चौथाई मील की दूरी पर था। घर के बाहर दीवाल पर टंगे हुए हाइग्रोमीटर को देखा उस समय शून्य से भी 8 डिग्री तापमान कम था।

अचानक हैमिल्टन को बायें जंघे पर बिच्छू के डंक मारने जैसी वेदा महसूस हुई। उस स्थान पर गर्मी भी अत्यधिग लग रही थी। नजर पड़ते ही उन्होंने देखा कि उस स्थान से कई इन्च लम्बी चमकीली लपटें निकल रही थीं। हैमिल्टन को उपाय सूझा और उस स्थान को हाथ से ढककर ऑक्सीजन की सप्लाई को रोक दिया। थोड़ी देर बाद ज्वाला शान्त हो गयी।

घर जाकर कपड़े उतारे और घाव का निरीक्षण किया। तीन चौथाई चौड़ा और तीन इन्च गहरा घाव था। घाव वाले स्थान पर पैंट के जल जाने से उसमें एक छोटा-सा छिद्र हो गया था। घाव की मरहम पट्टी टेनेसी के प्रख्यात डा. जन ओवर्टन एम.डी. की देख-रेख में सम्पन्न हुआ। इस छिद्र को भरने में 32 दिन लगे।
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