काया में समाया प्राणग्नि का जखीरा

बीज में प्राण तत्त्व होता है । वही नमी और आरंभिक पोषक अनुकूलता प्राप्त करके अंकुरित होने लगता है । इसके उपरांत वह बढ़ता, पौधा बनता और वृक्ष की शकल पकड़ता है या नहीं, यह इस बात पर निर्भर है कि उसे जड़ें जमाने का आवश्यक खाद, पानी व पोषण प्राप्त हुआ या नहीं । यदि उसकी आवश्यताएँ पूरी होती चलें तो बढ़वार रुकती नहीं, किंतु यदि बीज अपने स्थान पर बोरे में ही बंद रखा रहे, उसे सुखाया और कीड़ों से बचाया जाता रहे तो वह मुद्दतों तक यथा स्थिति अपनाए रहेगा । बहुत पुराना हो जाने पर काल के प्रभाव से वह हतवीर्य हो जाएगा अथवा घुन जैसे कीड़े लगकर उसे नष्ट कर देंगे । बीज में उगने की शक्ति होती है यदि वह पका हुआ हो । यदि उसे कच्ची स्थिति में ही तोड़ लिया गया है तो वह खाने के काम भले ही आ सके; बोने और उगने की क्षमता विकसित न होगी । वह देखने में तो अन्य बीजों के समान ही होगा, पर परखने पर प्रतीत होगा कि उसमें वह गुण नहीं है, जो परिपक्व स्थिति वाले बीजों में पाया जाता है । हर मनुष्य में प्राणशक्ति होती है, पर उसकी मात्रा में न्यूनाधिकता बनी रहती है ।

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