दैवी शक्ति के अनुदान और वरदान

दैवी संरक्षण देने वाले अदृश्य सहायक

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ब्रह्मविद्या के गूढ़ रहस्यों के प्रतिपादनकर्त्ता एवं थियॉसोफी संस्था के संचालकों का कहना है कि उच्च उद्देश्यों की पूर्ति के लिये दैवी शक्तियां मनुष्य को कठपुतली की तरह नचातीं और संकटकालीन परिस्थितियों में उनकी रक्षा करती हैं। मेडम ब्लावट्सकी, प्रो0 लेडबीटर तथा एनीबीसेन्ट आदि ने अध्यात्म तत्वज्ञान के अन्यान्य पक्षों पर प्रकाश डालते हुए यह प्रतिपादन विशेष रूप से किया है कि उच्च भावना सम्पन्न मनुष्यों का उद्देश्य दिव्य शक्तियां तलाशती रहती हैं और जो उनकी कसौटी पर खरे उतरते हैं उनको आगे बढ़ने की प्रेरणा और समय-समय पर समुचित सहायता प्रदान करती रहती हैं। देवत्व का संवर्धन एवं अभिवर्धन उनका प्रधान कार्य है। इस समुदाय को थियोसोफी ने ‘‘मास्टर्स्’’ कहा है। उनका तात्पर्य देवात्माओं से है, जो सूक्ष्म शरीरधारी होते हैं, अन्तरिक्ष में विचरण करते हैं, भावनाशील चरित्रवानों की तलाश करते हैं और उन्हें श्रेष्ठता की दिशा में बढ़ाने के लिये निरन्तर प्रयत्नशील रहते हैं। ऐसी आत्माओं का निवास बहुधा हिमालय के उस क्षेत्र में रहता है, जो तिब्बत के समीप पड़ता है। यह अध्यात्म का ध्रुव केन्द्र है। ईश्वरीय इच्छा को जानकर देवात्मा ‘मास्टर्स्’ इसी क्षेत्र में संसार भर की देखभाल करते हैं और धर्मतत्व का—सद्भाव का अभिवर्धन करने के लिये देवदूतों जैसी मध्यवर्ती भूमिका सम्पन्न करते हैं। स्थूल शरीर न होने से वे प्रत्यक्ष क्रियायें तो नहीं कर पाते, पर अपने दिव्य शरीर से पवित्र आत्माओं के माध्यम से वैसा कराते रहते हैं, जो सामयिक लोक कल्याण के लिये आवश्यक है।

थियोसोफी के मूर्धन्य संचालकों के द्वारा कतिपय बड़े और प्रामाणिक ग्रन्थ लिखे गये हैं, जिनमें ‘‘टाक्स ऑन दी पाथ ऑफ आकल्टिज्म’’ ‘‘एट दी फीट ऑफ दी मास्टर्स्’’ और ‘‘दी लाइट ऑन दी पाथ’’ अधिक प्रख्यात हैं।

इन पुस्तकों का प्रधान प्रतिपादन यह है कि यदि मनुष्य अपने आपको पवित्र, प्रखर एवं सत्पात्र बना ले और आत्मोत्कर्ष तथा लोकमंगल के प्रति अभिरुचि का अभिवर्धन करे तो उसे देवात्माओं का अदृश्य अनुदान एवं वरदान हस्तगत हो सकता है।

इन मान्यताओं की पुष्टि में सोसाइटी द्वारा प्रकाशित अनेक घटनाओं तथा व्यक्तियों के उद्धरण हैं जिनमें धर्म प्रेमियों ने सत्प्रयोजनों के लिये कदम बढ़ाते हुए किस प्रकार और कितनी अदृश्य सहायतायें प्राप्त कीं? यह हो सकता है कि इन सहायकों के प्रत्यक्ष दर्शन न हों या विशेष परिस्थितियों में हो भी जायं, किन्तु वे भीतर ही भीतर यह अनुभव अवश्य करते हैं कि सत्प्रयोजनों में इतनी प्रगति मात्र उनके निजी पुरुषार्थ से नहीं हो रही है वरन् उसकी सफलता के पीछे कोई अदृश्य किन्तु अति समर्थ हाथ भी काम कर रहे हैं।

परामनोविज्ञान के शोधकर्ताओं ने संसार में ऐसी अनेक घटनायें ढूंढ़ निकाली हैं, जिनमें किसी अशिक्षित के मुंह से आवेश की स्थिति में अपरिचित भाषाओं में उच्चस्तरीय प्रवचन होते सुने गये।

कई वैज्ञानिकों, कलाकारों ने अपने अनुभव बताते हुए लिखा है कि उनका मार्गदर्शन और प्रशिक्षण किन्हीं दिव्य अदृश्य आत्माओं द्वारा हुआ। थियोसॉफी के जन्मदाताओं में से मैडम ब्लैवेट्स्की और सर ओलिवर लॉज को भी ऐसे अदृश्य सहायकों की आश्चर्यजनक दिव्य सहायतायें प्राप्त होती रही हैं। सुप्रसिद्ध वैज्ञानिक एवं अध्यात्मवेत्ता लैडवीटर का कथन है कि आपत्तिकालीन स्थिति में उनकी सहायता 7000 मील दूर के अदृश्य सहायकों ने ही की।

थियोसॉफिकल सोसाइटी की जन्मदात्री मैडम ब्लैवेट्स्की को तो चार वर्ष की आयु से ही देवात्माओं का सहयोग प्राप्त होने लगा था। वह उनकी सहायता से इस प्रकार के कार्य कर डालती थीं, जो साधारण लोगों के वश की बात नहीं होतीं।

ब्लैवेट्स्की जीवन के अन्तिम दिनों में अपना महान ग्रन्थ ‘सीक्रेट ऑफ डाक्ट्रिन’ लिख रहीं थीं। वह सात बड़े खण्डों में प्रकाशित हुआ है। लेखन कार्य की अधूरी स्थिति में ही उनका अन्त समय आ पहुंचा। वे गहरी बीमारी में फंस गयीं, पर उनके ‘मास्टर’ ने प्रकट होकर आश्वासन दिया कि उनकी मृत्यु को तब तक रोक रखा जायगा, जब तक वे हाथ में लिये कार्य को पूरा नहीं कर लेतीं। ऐसा हुआ भी।

थियोसॉफिस्ट अन्वेषणकर्त्ता सी0 डब्लू0 लेडबीटर आजीवन परोक्ष जगत पर शोधरत रहे। उनका कथन था कि देवात्मायें निर्दोष बच्चों और सज्जन लोगों की मुसीबतों में रक्षा करती हैं तथा कई तरह से लाभ पहुंचाती हैं। एक बार लंदन की हालबर्न सड़क के किनारे एक मकान में भयंकर आग लगी। वह पूरा जल गया, पर उसमें एक बालक पूर्णतः सोता रहा और बच गया। एक दिव्य तेज उसकी रक्षा करता रहा व आग उसे प्रभावित नहीं कर पायी।

वर्किंघम शायर में बर्नहालवीयो के निकट हुई घटना में इस तरह का दैवी हस्तक्षेप लगभग एक घण्टे तक विद्यमान रहा। एक किसान अपने खेत पर काम कर रहा था। उसके दो छोटे-छोटे बच्चे भी थे, जो पेड़ के नीचे छाया में खेल रहे थे। किसान को ध्यान नहीं रहा और दोनों बच्चे खेलते-खेलते जंगल में दूर तक चले गये और रात्रि के अंधेरे में भटक गये।

इधर किसान जब घर पहुंचा और बच्चे न दिखाई दिये तो चारों तरफ खोज हुई। परिवार और पड़ौस के अनेकों लोग उस खेत के पास गये, जहां बच्चे खोये थे। वहां जाकर सब देखते हैं कि दीप-शिखा के आकार का एक अत्यन्त दिव्य नीला प्रकाश बिना किसी माध्यम के जल रहा है, फिर वह प्रकाश सड़क की ओर बढ़ा, यह लोग उसके पीछे अनुसरण करते हुए चले गये। प्रकाश मन्द गति से चलता हुआ, उस जंगल में प्रविष्ट हुआ जहां एक वृक्ष के नीचे दोनों बच्चे सकुशल सोये हुए थे। मां-बाप ने जैसे ही बच्चों को गोदी में उठाया कि प्रकाश अदृश्य हो गया।

दैवी सहायता ने सदैव बचाया :

‘‘द अनएक्सप्लेण्ड मिस्ट्रीज ऑफ माइण्ड एण्ड स्पेस’’ में द्वितीय विश्व युद्ध के हीरो विंस्टन चर्चिल, जो कि अवकाश प्राप्ति के बाद पुनः युद्ध में ध्वस्त इंग्लैण्ड का आत्म विश्वास लौटाने के लिये ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बनाये गये थे, के जीवन से जुड़े ऐसे पूर्वाभासों की चर्चा है जो बताते हैं कि दैवी चेतना नहीं चाहती थी कि वे अकाल मृत्यु के शिकार बनें। उन्हें समय-समय पर आसन्न संकटों का पूर्वाभास होता रहा और वे संकटों से बचते रहे।

एक रात्रि वे 10, डाउनिंग स्ट्रीट जो कि ब्रिटिश प्रधानमंत्री का अधिकृत निवास स्थान है, में अपने विश्वस्त मंत्रियों के साथ उच्चस्तरीय विचार विमर्श कर रहे थे। उसी समय जर्मनी के बम-वर्षक लन्दन के आकाश में मंडरा रहे थे। सायरन बज रहे थे परन्तु विचार विमर्श जारी था। अकस्मात् चर्चिल उठे, अपने भोजन कक्ष में पहुंचे, जहां उनका रसोइया भोजन बना रहा था। उनने उस रसोइये व उसके सहायक से खाना गर्म तवे पर दूसरे कक्ष में रखकर तुरन्त भोजन कक्ष खाली कर उन्हें बंकरों में जाने को कहा। 3 मिनट बाद ही एक बम गिरा एवं उसी भोजन कक्ष के पिछवाड़े एवं सारे किचन को ध्वस्त कर गया। किन्तु चमत्कारिक रूप से चर्चिल व उसके मंत्री बच गये। बाद में उनने कहा कि मुझे पूर्वाभास हुआ था कि भोजन कक्ष पर बम गिरेगा अतः उन्हें चेतावनी दे आया।

चर्चिल स्वयं हवाई जहाजों पर हमला करने वाली तोपों, बैटरीज का निरीक्षण करने युद्ध स्थल पर जाया करते थे। एक बार जब वे निरीक्षण करके वापिस आये व कार में बैठ ही रहे थे तो एक क्षण दरवाजे पर खड़े रहे, फिर घूमकर दूसरी ओर से आकर उस दरवाजे की ओर बैठ गये जिधर वह कभी नहीं बैठते थे। ड्राइवर को आश्चर्य तो हुआ पर उसने कुछ कहा नहीं। गाड़ी वापस प्रधानमंत्री निवास की ओर चल दी। एकाएक एक बम विस्फोट हुआ व उनकी गाड़ी का दूसरा हिस्सा जो मुश्किल से उनसे दो फुट दूरी पर था, दूर जाकर गिरा। किसी तरह बिना उल्टे गाड़ी चलती चली गई व लगभग नष्ट हुई उस गाड़ी से उतर कर वे घर में प्रवेश कर गये। बाद में उनने अपनी पत्नी व साथियों को बताया कि मैं जब उस द्वार की ओर से बैठने लगा, जिससे हमेशा बैठता था तो मुझे लगा कि कोई कह रहा है ‘‘रुको! दूसरी ओर जाकर बैठो, यंत्र चालित सा मैं उधर जाकर बैठा जो कि सुरक्षित रहा।’’ वे अपनी जान बचाने के लिये हमेशा अपने अन्तःकरण में अवतरित होने वाली ऐसी प्रेरणा को ही श्रेय देते थे। इसे उनने ‘‘इनर वाइस’’—अन्तः की पुकार का नाम दिया था जो कि पूर्वाभास, दैवी प्रेरणा, अदृश्य सहायता किसी भी नाम से पुकारी जा सकती है। लार्ड डफरिन को भी इसी प्रकार अपनी मृत्यु की पूर्व सूचना एक भयंकर आकार-प्रकार के व्यक्ति को देखकर मिली थी। यह बहुचर्चित घटना, जिसमें वे लिफ्ट दुर्घटना में मरने से बच गये थे, अदृश्य सहायता एवं पूर्वाभास का एक विलक्षण उदाहरण है।

टीपू सुलतान को अपने समय के सफलतम शासकों में माना जाता रहा है। 18वीं सदी का यह योद्धा अन्ततः जब श्रीरंगपट्टम में वीरता के साथ संघर्ष करता हुआ सन् 1799 में युद्ध में मारा गया तो उसके पास से एक डायरी प्राप्त हुई, उससे यह स्पष्ट हुआ कि टीपू को अपनी रणनीति के सम्बन्ध में पूर्वाभास होता था। कभी स्वप्न में, कभी अनायास बैठे-बैठे यह अन्तःप्रेरणा होती थी कि अब यह कदम उठाना चाहिये। वैसा ही होता था। अदृश्य सहायता एवं साथ जुड़े पराक्रम के कारण वह अजेय बना रहा। अपने साथ संभावित विश्वासघात व मृत्यु की संभावना की भी जानकारी उसे मिल गयी थी, जिसे उसने अपनी डायरी में लिख दिया था। दैवी कृतियों को चमत्कार कहा जाता है। वह घोर अंधेरे के बीच न जाने कहां से सूर्य का गरमागरम गोला निकाल देते हैं। चिर अभ्यास में आ जाने के कारण वे अजनबी प्रतीत नहीं होते। पर वस्तुतः है तो सही। आकाश में न जाने कहां से बादल आ जाते हैं और न जाने किस प्रकार बरस कर सारा जल-जंगल एक कर देते हैं। दैवी चेतना ही इस विश्व वसुन्धरा को विपन्न परिस्थितियों से समय-समय पर उबारती और संतुलन की व्यवस्था बनाती रहती है। कभी-कभी तत्संबंधित चमत्कार भी प्रस्तुत करती है और ऐसे दृश्य उत्पन्न करती है, जिसे देख कर लोगों को उसकी समर्थता पर सहज ही विश्वास हो उठता है।

घटना 13 अक्टूबर 1917 की है। पुर्तगाल के कोबिडा इरिया नामक स्थान में तीन बच्चों ने पेड़ पर लटकते एक प्रकाश को देखा। प्रकाश के बीच में एक चन्द्र बदनी देवी मुस्करा रही थी। लड़के डरने लगे तो उस देवी ने कहा—‘‘डरो मत! मैं स्वर्ग से आयी हूं। तुम लोग इसी समय आया करो, तो प्रकाश सहित मेरे दर्शन करते रह सकोगे।’’

लड़कों ने बात सब जगह फैला दी दूसरे दिन उस गांव के आस-पास के लोग सत्तर हजार की संख्या में उस स्वर्ग की देवी के दर्शन करने के लिये एकत्रित हुए। युवती के दर्शन तो न हुए पर लोगों ने बादलों के बीच चांदी जैसा चमकता हुआ एक दिव्य प्रकाश का गोला देखा। दर्शकों में पढ़े बिना पढ़े, आस्तिक-नास्तिक, मूढ़-तार्किक विद्वान सभी किस्म के लोग थे। सभी ने उस समय वह प्रकाश पुंज देखा और आश्चर्यचकित रह गये कि आखिर यह है क्या? गोला स्थिर न रहा। उसने कई घेरे बनाकर कलाबाजियां खानी शुरू कीं। गोला तश्तरी जैसा हो गया। इससे कई प्रकार की आकृतियां बनने लगीं। बहुत समय इसमें इन्द्र धनुष उभरा रहा। इन्द्र धनुष बहुत लम्बा था। अन्तरिक्ष के एक कोने से लेकर दूसरे कोने तक उसकी लम्बाई थी। इस समय हल्की वर्षा हो रही थी। दर्शकों के कपड़े उसमें भीग रहे थे। इतने में प्रकाश के गोले ने एक गरम लहर का चक्कर लगाया और देखते ही देखते सबके कपड़ों से भाप उठने लगी और वे सब ऐसे सूख गये मानो वर्षा से किसी के कपड़े भीगे ही न हों।

इस घटना की जानकारी मिलने पर सारे पुर्तगाल में तहलका मच गया। पुर्तगाल के सर्व प्रख्यात दैनिक पत्र मार्से क्यूलों के सम्पादक ने इस घटना का आंखों देखा विवरण छापा और उसे ‘‘सूर्य का नृत्य’’ नाम दिया।

मनोवैज्ञानिकों में से कुछ ने तुक भिड़ाई कि सत्तर हजार व्यक्ति एक ही कल्पना से आबद्ध थे। फलतः उन्हें वैसा ही स्वरूप प्रतीत हुआ। जिनकी समझ में यह तुक नहीं आई, उनने सीधे-साधे शब्दों में इसे देवी चमत्कार कहते हुए, प्रथम विश्व युद्ध की समाप्ति पर शान्ति का बोधक इसे बताया। हुआ भी वैसा ही।

फैलमाउथ (मेन-यू0एस0ए0) के एडविन राबिन्सन नामक व्यक्ति की आंखों की ज्योति 9 वर्ष पूर्व एक सड़क दुर्घटना में चली गयी थी। उसके चिकित्सक विलियम टेलर ने परीक्षणोपरान्त बताया कि अब इसका आना संभव नहीं। संयोगवश 1982 की जुलाई में वे अकेले घर लौटते समय भयंकर वर्षा वाले तूफान में फंस गये। पेड़ के नीचे शरण पाने के लिये उन्होंने अपनी धातु की छड़ी का प्रयोग किया। तभी जोरों से विद्यत्गर्जन हुआ और उन्हें लगा कि कहीं पास ही बिजली गिरी है। वे धक्का खा कर गिर पड़े, लेकिन पांच मिनट बाद जब किसी तरह उठे तो पाया कि उनका श्रवण यन्त्र तो बेकाम हो निकल गया, लेकिन वे इसके बिना भी सुन सकते हैं। आंखों से उन्हें सब कुछ दिखाई भी दे रहा है। प्रसन्न मन वे वापिस घट लौटे। चिकित्सकों के अनुसार यह विज्ञान की समझ में न आ पाने वाले वैचित्र्यपूर्ण संयोगों में से एक है, जिसका कोई समाधान नहीं दिया जा सकता।

मैरी गैलेन्ट प्रान्त के फ्रांसीसी गवर्नर की तीन वर्षीय पुत्री एक समुद्री यात्रा पर अपने पिता के साथ थी। रास्ते में वह बीमार पड़ी और मर गयी। उसकी लाश बोरे में सींकर बन्द कर दी गई ताकि उसे जल में उपयुक्त स्थान पर डाला जा सके। कुछ समय उपरान्त देखा गया कि जहाज में पालतू बिल्ली उस लाश के पास चक्कर काट रही है। आमतौर से बिल्ली लाश से दूर रहती है। सन्देह हुआ कि कहीं बच्ची जीवित तो नहीं है। 24 घण्टे बीत चुके थे, फिर भी लाश का बोरा खोला गया, तो देखा कि लड़की की हल्की-हल्की सांसें चल रही हैं। उसको उपचार मिला और वह ठीक हो गयी। बड़ी होने पर उसका विवाह फ्रांस के राजा लुई चौदहवें के साथ हुआ और वह 84 वर्ष की आयु तक जीवित रही।

सन् 1825 की घटना है। पश्चिमी जर्मनी के वाइक कस्बे के समुद्र तट पर भयानक समुद्री तूफान आया। असंख्यों परिवार उसमें डूब गये। फिर भी पालने से बंधे दो बच्चे जीवित अवस्था में किनारे पर पड़े पाये गये। किसी माता-पिता ने इनके तैरने की सुविधा सोचकर पालने से बांध दिया होगा। वे डूबे नहीं, किनारे आ लगे। उन्हें समुद्री जहाज के मालिक ने उठाया और पाल लिया। बड़े होने पर वे उस पालने वाले के उत्तराधिकारी बने और जहाजों के मालिक कहलाये। जिन्दगी उन्होंने समुद्र में ही बिताई और अन्ततः किसी समुद्री तूफान में फंसकर जहाज समेत समुद्र के गर्भ में ही समा गये।

कन्सास के आर्थर स्टिवैल ने एक लम्बा रेल मार्ग बनाने की जिम्मेदारी ली थी। काम ठीक तरह आरंभ भी नहीं हो पाया था कि एक अप्रत्याशित झंझट आ खड़ा हुआ। इस जमीन पर एक व्यक्ति ने अपने अधिकार का दावा किया और कोर्ट से निषेधाज्ञा निकलवाकर काम रुकवा दिया। बहुत समय तक इस अवरोध के बाद आर्थर ने सपना देखा कि जमीन का असली मालिक कोई कर्से नामक व्यक्ति है। खोज की गयी, कर्से मर चुका था। उसके उत्तराधिकारी भी इस जमीन के सम्बन्ध में अनभिज्ञ थे। पर जब सपने के हवाले से उसने जबरन कागजों की खोजबीन कराई तो ऐसे प्रमाण मिल गये जिनसे वे लोग ही जमीन के मालिक सिद्ध होते थे। अन्ततः उन लोगों से समझौता करके रेलवे लाइन का काम फिर चालू किया गया और यथासमय पूरा भी हो गया। यह काम पूरा होने पर उन्हें करोड़ों का लाभ हुआ।

अपनी पुस्तक ‘‘द रूट्स ऑफ काइन्सीडेन्स’’ में कोस्लर ने स्पष्ट लिखा है कि हम निस्संदेह संयोगपरक चमत्कारों से घिरे हैं, जिनके अस्तित्व की अब तक हम उपेक्षा करते रहे हैं। यही कारण है कि इन्हें अन्धविश्वास से अधिक कुछ माना नहीं गया है। यह रहस्य मनुष्य सदियों तक नहीं समझ पाया कि सूक्ष्म जगत कितना अद्भुत, विलक्षण है, ऐसी कितनी ही घटनायें इसकी साक्षी हैं।

प्रसिद्ध लेखक रिचर्ड बॉक 1966 में अमेरिका के मध्य पश्चिम क्षेत्र में दो फलक वाले एक विमान में यात्रा कर रहे थे। यह विमान दुर्लभ प्रकार का था क्योंकि 1929 में निर्मित डेट्राइट—पी-2 ए के विमान केवल आठ ही बने थे व इतने ही विश्व में थे। विस्कॉन्सिन स्थित पायीरो नामक स्थान में रिचर्ड ने यह विमान अपने पायलट साथी मित्र को चलाने के लिये दिया। विमान उतारते समय मित्र से थोड़ी भूल हो गयी और विमान क्षतिग्रस्त हो गया। ‘‘नथिंग वाइचान्स’’ (कुछ भी अनायास नहीं) नामक पुस्तक में रिचर्ड बॉक स्वयं लिखते हैं कि ‘‘हमने दबाव को रोकने वाले पुर्जे को छोड़कर शेष हर पुर्जे की मरम्मत कर दी थी। इस पुर्जे की मरम्मत इसलिये न हो सकी कि उसके दुर्लभ होने से वह भाग कहीं भी मिलना सम्भव न था। तभी एक व्यक्ति आया जिसने स्वयं ही उत्सुकतावश उनकी परेशानी पूछी। संयोगवश उसकी विमानशाला में उस विमान के उपयुक्त 40 वर्ष पुराना पुर्जा मिल गया। यह एक संयोग ही था कि उस अपरिचित इलाके में ठीक वही पुर्जा मिल गया। जिसे खोज कर हम हार गये थे।

न्यूजीलैण्ड के कुक जलडमरुमध्य में दो शौकिया नाविक महिलायें अपना सप्ताहान्त बिता रही थीं। इसी बीच उनकी नाव एक समुद्री चक्रवात में फंसकर उलट गयी। दोनों महिलायें कुछ दूर तक तैरीं पर किनारा मीलों दूर था, नजदीक कोई साधन नहीं। इसी बीच एक मृत ह्वेल मछली की लाश पानी में तैरती हुई उनके समीप लहरों के साथ आयी। वे उस पर चढ़कर उसे नाव की तरह खेती हुई किनारे पर आ गयीं और सकुशल घर पहुंच गयीं।
अदृश्य और उदार आत्मायें कितनी ही बार स्थूल सहायता भी करती हैं। द्वितीय महायुद्ध के समय मोन्स की लड़ाई में ब्रिटिश सेनाओं की बुरी तरह हार हो गयी, मात्र 500 सैनिक बचे। वे भी बुरी तरह हौसला पस्त हो चुके थे। दूसरी ओर जर्मनों की 10 हजार की संख्या वाली सेना जिसकी कोई समानता न थी। तभी ऐसे आड़े समय में ब्रिटिश सेनाधिकारी को अपने स्वर्गीय सेना नायक सेन्ट जार्ज का स्मरण हो आया। उसने अपने सभी साथियों सहित इस महान सेना नायक का ऐसी परिस्थिति में भावनापूर्वक एक साथ स्मरण किया। सभी सैनिक तन्मय स्मरण में व्यस्त थे कि अचानक एक बिजली सी कौंधी। पांच सौ सैनिकों को पीछे शुभ्र आभा प्रकट होती दिखाई दी कि कुछ ही क्षणों में रणभूमि में सभी जर्मन सैनिक खेत हो गये। न गोला, न बारूद, न अस्त्र, न शस्त्र। फिर सैनिक कैसे मरे? यह आज तक अचरज बना हुआ है।
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