सृष्टा की नियति व्यवस्था ने ने केवल जीवन का सृजन किया है, वरन् उसका निर्वाह ठीक प्रकार होता रहे, इस निमित्त अन्न, वनस्पति, जलवायु आदि का भी प्रचुर भाण्डागार मानव समुदाय हेतु उपलब्ध किया है। जिन साधनों के आधार पर हम जीवित हैं और अनेकानेक गतिविधियों का संचालन करते हैं, वे अपने पुरुषार्थ से नहीं उगाये गये हैं। पुरुषार्थ अपने स्थान पर सराहनीय है किन्तु यह नहीं भुला दिया जाना चाहिये कि जो उपलब्ध है उसमें परोक्ष से किसी अदृश्य सहायक का योगदान भी कम मात्रा में सम्मिलित नहीं है।