वशीकरण की सच्ची सिद्धि

दंपत्ति वशीकरण

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इंद्रिय वासना से प्रेरित होकर किसी को वश में करने का या उसके ऊपर अपनी इच्छा लादने का प्रयत्न मत कीजिए। खास तौर से यदि वैसा करना धर्म के विरुद्ध हो। पाश्चात्य देशों में जहां पति-पत्नी का चुनाव करने की आजादी है, वहां की बात दूसरी है। यहां हमारे देश में ऐसा रिवाज नहीं है। लड़की-लड़कों की अंधवासना को वैध रूप से विवाह कार्य में कोई स्थान नहीं दिया जाता। लड़की या लड़के के कुल, संस्कार, परिवार, स्वास्थ्य, समानता आदि पर ही यहां विशेष जोर दिया जाता है और निर्णय करने का अधिकार अनुभवी गृहपतियों को होता है। यहां भावी-पत्नी के लिए आकर्षित होने का प्रश्न ही नहीं उठता, वरन् उनके संरक्षकों को संतोषजनक स्थिति का विश्वास कराना होता है। इसलिए पति-पत्नी का चुनाव करने के लिए कथित वशीकरण की कुछ भी आवश्यकता नहीं है। वे गंधर्व विवाह, जिनमें स्त्री-पुरुष एक-दूसरे के साथ हो लेते हैं, उनमें एक-दूसरे को संतोष करा देने की बात होती है। जब एक-दूसरे को अपनी आवश्यकता को पूर्ण करने की योग्यता देखते हैं, तो आपस में बंध जाते हैं। वशीकरण की आवश्यकता वहां समझी जाती है, जहां एक पक्ष अरुचि रखता है या विरोधी होता है, किंतु दूसरा पक्ष सहयोग के लिए उत्सुक होता है, यह स्थिति अवांछनीय है। इंद्रिय वासना बहुत प्रबल है, वह प्रायः सभी प्राणियों को सताती है। यदि एक पक्ष अपनी वासना को रोककर उत्सुक पक्ष की बात अस्वीकार करता है, तो अवश्य ही उसमें कोई तथ्य होना चाहिए। धर्म-अधर्म का विचार ऐसे अवसरों पर प्रमुख होता है। स्त्री जाति में धर्म का विचार सतीत्व बहुत अधिक है, वह कष्ट सहकर भी पतिव्रत धर्म का पालन करती है। अनेक लुच्चे-गुंडे उनकी ओर पाप दृष्टि से देखते हैं, पर वे विचलित नहीं होतीं और उनकी अंतरात्मा फिसलते हुए पांव को रोक लेती है। उपरोक्त दोनों प्रकार की देवियों को पतित करने का प्रयत्न करना पहले दर्जे की असुरता है। इस असुरता में कोई सात्त्विक-आध्यात्मिक शक्ति सहायक नहीं हो सकती। कुछ तामसी तंत्र इस कार्य में मदद कर सकते हैं, पर वह धर्म विरुद्ध होने के कारण प्रयोक्ता को बड़ी अधोगति में डालते हैं। ऐसी सिद्धियां कुछ क्षणिक चमत्कार दिखाकर लुप्त हो जाती हैं। बाजारों में जिस प्रकार के वशीकरण के गंडे-ताबीज बिकते हैं, उनमें ठगी के अतिरिक्त और कुछ नहीं है। पहले तो ईश्वरीय इच्छा के विपरीत होने के कारण ऐसी सिद्धि किसी स्वार्थी मनुष्य को प्राप्त नहीं होती। यदि हो भी जाए, तो इतने बड़े परिमाण में नहीं कि हजारों ताबीज हर महीने बेचे जा सकें। यदि वह विज्ञापनबाजी सत्य होती, तो शायद संसार से सतीत्व धर्म अब तक उठ गया होता। लुच्चे-गुंडों ने गृहस्थ धर्म की पवित्रता को कब समाप्त कर दिया होता है।

यदि आप अब तक ऐसा विचार किए हुए हों कि किसी स्त्री का सतीत्व अधर्मपूर्वक, वशीकरण मंत्र की सहायता से नष्ट करेंगे, तो उन विचारों को अपने मन से इसी क्षण हटा दीजिए। इस मार्ग से किसी की मानसिक चेतना को किसी तंत्र शक्ति से अर्द्ध निद्रित कर व्यक्ति की स्वेच्छा आपको प्राप्त न होगी। क्या ऐसा संयोग कुछ तृप्ति दे सकता है? दूसरे यह निद्रा अधिक समय तक कायम नहीं रखी जा सकती। इसलिए जब भी वह जाग्रत होगा, पहले की अपेक्षा और अधिक घृणा करने लगेगा एवं विरोधी बन जावेगा, इसलिए सबसे प्रथम इस मार्ग में आगे बढ़ने से पूर्व यह विचार कीजिए कि आप कोई धर्म विरुद्ध कार्य तो नहीं कर रहे हैं। यदि कर रहे हैं, तो तुरंत ही पीछे हट जाइए। यदि आपका मार्ग विरुद्ध है, केवल रूठे को मना रहे हैं, तो बात अलग है। पति-पत्नी में आपस में अनबन रहती हो, तो वह एक-दूसरे को मनाने या आकर्षित करने का प्रयत्न कर सकते हैं। जहां पति-पत्नी का चुनाव आपस में ही करने की स्वतंत्रता है, वहां भी ऐसे प्रयत्न उचित समझे जाएंगे।

किसी के हृदय को केवल बातूनी जमा खर्च या मंत्र जप से वश में नहीं किया जा सकता। दो मनुष्यों का सम्मिलन, किन्हीं स्वार्थों के आधार पर होता है। योग्यता ही वह आकर्षण है, जो दूसरों के हृदय में अपने लिए स्थान बनाती है। शारीरिक, बौद्धिक और आर्थिक योग्यताओं को दंपत्ति चुनाव में प्रमुख स्थान मिलता है। आपकी ये योग्यताएं जितनी ही ऊंची होंगी उतना ही पात्र को आकर्षित करने में सहायता मिलेगी। यदि आपका प्रेमी धार्मिक या अन्य किसी विशिष्ट कारण से केवल आपसे व्यक्तिगत रूप से उदासीन है, तो समझना चाहिए कि उपरोक्त तीन कारणों में से कोई न कोई बात अवश्य होगी। उन्हें सुधारना चाहिए। कम-से-कम इतना सुधार तो अवश्य करना चाहिए कि दूसरे पक्ष को काम चलाऊ संतोष हो जाए। हार्दिक प्रेम का स्थान बहुत ऊंचा है, पर ऊंचे प्रेमी अपने प्रिय मित्र से कुछ लेने की नहीं, वरन् देने की इच्छा करते हैं। साधारण मनुष्य जो दांपत्य संबंध स्थापित करने के इच्छुक हैं, उन्हें अपनी योग्यताओं को ठीक करना चाहिए। बिना इसके वह दूसरे के मन को नहीं जीत सकता। एक नवयुवती अपने वृद्ध पति को शायद ही कभी हृदय से प्रेम करे, चाहे वह स्त्री को कितना ही चाहता हो या उसके पास कितना ही धन क्यों न हो। इसी प्रकार बदमिजाजी के कारण भी मन नहीं मिलते। बड़बड़ाने, संदेह करने, अपशब्द कहने, जरा-जरा सी बात पर तुनक जाने आदि बातें भी ऐसी बेहूदी हैं कि धन और शरीर की योग्यताओं के बावजूद भी कलह के बीज बोती है। मूर्खता, मंद बुद्धि, व्यावहारिक ज्ञान की कमी, उदासीनता इन कारणों से भी दूसरा पक्ष असंतुष्ट हो जाता है। धन का कारण चाहे तीसरा है, तो भी उसका बहुत कुछ महत्त्व है। शारीरिक और मानसिक योग्यता अच्छी होने पर भी यदि आर्थिक दशा ठीक नहीं है, तो बड़ी कठिनाई का सामना करना पड़ता है। कमाने का भार पुरुष पर होता है, यदि पुरुष निरुद्यमी है या उसकी उपार्जन शक्ति न्यून है, तो चंचल स्वभाव की स्त्री से उसे तिरस्कृत होना ही पड़ेगा। शरीर और मन की योग्यता का अभाव बहुत बड़ा कारण है। दंपत्ति में से जो इन योग्यताओं को खो देगा, वह दूसरे पक्ष को असंतुष्ट कर देगा। दांपत्य जीवन यथार्थ में एक साझे की दुकान है, जो समान योग्यता की आवश्यकता रखती है। संतान उत्पन्न करने का कार्य स्त्री के हिस्से और धन उत्पन्न करना पुरुष के हिस्से में है। देश की बढ़ी हुई गरीबी, शारीरिक स्वास्थ्य की निर्बलता, पालन-पोषण की असुविधा आदि कारणों से संतानोत्पत्ति कम से कम होनी चाहिए। इस दृष्टि से यदि स्त्री संतानोत्पन्न न करे, तो कुछ हर्ज नहीं, किंतु पति का कार्य अनिवार्य है, उसे पैसा कमाना ही चाहिए।

चरित्रहीनता या प्रेम की कमी, या आध्यात्मिकता का अभाव है। वास्तव में देखा जाए, तो इन्हीं दोनों की आवश्यकता सबसे अधिक है, पर इस युग में तो पिछली तीन भौतिक बातों पर ही अधिक ध्यान दिया जाता है। आप किसी को अपने सहयोग के लिए तैयार करना चाहते हैं, तो अपनी योग्यताओं को उसकी रुचि के अनुकूल बनाइए। यह वशीकरण का उत्तम मार्ग है।

एक हीन प्रकार का तीसरे दर्जे का वशीकरण देश में और प्रचलित है। यहां परदे की प्रथा के कारण निर्धारित सीमा के अंदर ही स्त्री, पुरुष आपस में मिल सकते हैं। इसलिए दोनों की इच्छा होते हुए भी प्रेमी आपस में नहीं मिल पाते। इसके विपरीत वासना की प्रबलता के कारण अथवा अन्य स्वार्थों से प्रेरित होकर अरुचिकर और अयोग्य संबंध स्थापित हो जाते हैं। बहकावा, ठगी, लोभ, अज्ञान ऐसे संबंधों की जड़ में होता है। अपहरण आदि की दुःखद घटनाएं अधिकतर होती हैं, जिनमें दोनों की नाम मात्र की पसंदगी होती है, किंतु तात्कालिक कारण प्रबल होते हैं। यह बहकावे या किसी प्रकार इंद्रिय शांति के निमित्त किए गए सहयोग एक प्रकार के नारकीय समझौते हैं, जिनमें समझौते की हजार शर्तों में से एक ही पूरी होती है। यह समझौते बहुत कमजोर होते हैं और बात की बात में टूट जाते हैं।

योग्यता और तात्कालिक स्वार्थ के वशीकरण इन्हीं दोनों का प्रचलन आज अधिक है। इनके लिए दूसरे पक्ष की खुशामद, मीठी बातें, सहायता, प्रशंसा, निकट संपर्क में रहना, लोभ, भेंट, पुरस्कार तरह-तरह के वायदे आदि द्वारा काम चलाया जाता है। एक चलता पुरजा आदमी इन बातों को अपने आप जानता है या दूसरे अपने सहकर्मियों से सीख लेता है। चेतावनी और दिग्दर्शन के तरीके पर इस संबंध में कुछ प्रकाश डाल देने के अतिरिक्त इस विषय में कुछ चर्चा करने से हमारा कुछ प्रयोजन नहीं है। जिन्हें वैध रूप में दांपत्य संबंध स्थापित करने की सुविधा है, वे अपनी योग्यताओं, सद्गुणों, आंतरिक सदिच्छाओं और निष्कपट प्रेम का परिचय देकर दूसरे पक्ष को आकर्षित कर सकते हैं। यदि उनने अपने प्रेमी का चुनाव समान दर्जे का किया है और प्रिय पात्र के सम्मुख कोई अधिक उत्तम अवसर नहीं है, तो आपको सफलता मिलेगी। अपने से बहुत असम्मान परिस्थिति के व्यक्तियों में या तो मैत्री होती ही नहीं, यदि हो भी जाए तो बहुत जल्द टूट जाती है, इसलिए प्राथमिक इच्छा उठते ही इन बातों पर विचार कर लेना चाहिए कि जिस मैत्री को हम चाहते हैं, वह संभव भी है कि नहीं, यदि असंभव प्रतीत हो, तो अधिक कांटों में उलझने की अपेक्षा पहले ही समझ से काम लेना चाहिए। आध्यात्मिक मित्रता बहुत उच्चकोटि की है। एक प्रेम-बंधन में बंध जाने के उपरांत प्रेमी प्राण देकर भी पूरी तरह निभाता है। ‘‘अंध बधिर रोगी अति दीना।’’ जैसे पतियों को भी ईश्वर तुल्य समझकर पूजने वाली और चाहे जैसी अल्प योग्यता की स्त्री हो, उसे लक्ष्मी के समान आदर करने वाले दंपत्ति कम मिलते हैं, पर वास्तव में उन्हीं का प्रेम सराहनीय है। कर्तव्य और धर्म को वशीकरण मानकर, जो स्वेच्छा से उसके बंधन में बंधे हुए हैं, उन्हीं का वशीकरण धन्य है।

अब प्रश्न यह उठता है कि यदि एक पक्ष अनुचित मार्ग पर हो तो क्या करना चाहिए? यदि धर्म-बंधन में बंधने से पूर्व ऐसी स्थिति उपस्थित हो, तो घोर विरोध करना चाहिए। यदि रोगी या अयोग्य पति के साथ विवाह कराया जा रहा हो, तो कन्या का धर्म है कि प्राणपण से उसका विरोध करे और इस संस्कार में सम्मिलित होने से इनकार कर दे, इसी प्रकार किसी लोभ से यदि अयोग्य कन्या का पाणिग्रहण कराया जा रहा हो, तो पति को ऐसा विवाह करने से इनकार कर दे, इसी प्रकार किसी लोभ से यदि अयोग्य कन्या का पाणिग्रहण कराया जा रहा हो, तो पति को ऐसा विवाह करने से इनकार कर देना चाहिए। किंतु यह विरोध, विवाह करने से पूर्व तक ही उचित है। एक धर्म-बंधन में बंध जाने पर एक-दूसरे को निभाना ही कर्तव्य है। माना कि विपरीत परिस्थितियों में हार्दिक ऐक्य नहीं हो सकता है तो ऊंचे पक्ष का कर्तव्य है कि नीचे पक्ष को स्वयं कष्ट सहकर निभा ले और गृहस्थी को कलह की नाट्यशाला न बनावे, क्योंकि गृह-कलह का अपने परिवार पर तथा परिवार से बाहर भी अनेक व्यक्तियों पर बुरा प्रभाव पड़ता है। यह प्रभाव अप्रत्यक्ष रूप से समाज में बड़ा उपद्रव उत्पन्न कर सकता है, इसलिए जो हो गया, उसे हर दृष्टि से अपनी भूल का प्रायश्चित करने की दृष्टि से भी सहन करना उचित है

प्रसन्नता के कारणों में से जिनका सुधार नहीं हो सकता हो, उनके लिए ईश्वरेच्छा समझकर संतोष करना चाहिए। जैसे एक पक्ष कुरूप, अंग-भंग, वृद्ध या संतानोत्पादन में असमर्थ या ऐसी ही किसी स्थायी शारीरिक अयोग्यता से ग्रसित है, तो उसे सहन ही करना पड़ेगा। यदि रोग या दुर्बलता से पीड़ित है, तो उसकी चिकित्सा करानी चाहिए, इसी प्रकार बौद्धिक या आर्थिक उन्नति के लिए परस्पर मिलकर प्रयत्न करना चाहिए। जैसे भी उचित हो काम चलाऊ समझौता कर लेना चाहिए। बुद्धिमान् पक्ष को चाहिए कि कलह के बीजांकुरों को बढ़ने न दे, अपनी सहनशीलता का परिचय देकर तथा दूसरे पक्ष को अधिक सुविधा देकर झगड़े को निबटा लेना चाहिए। एक-दूसरे से निजी संबंध रखने वाले दोषों का समाधान इस प्रकार हो सकता है, किंतु एक पक्ष किन्हीं लज्जाजनक कुटेवों में ग्रसित हो, तो दूसरे पक्ष को चाहिए कि जैसे भी बन सके उसकी बुरी आदतों को छुड़ावें। केवल विरोध, झगड़ा या बदनामी करने में कुछ सफलता नहीं मिल सकती, इससे तो दूसरा और भी अधिक हठी, चिड़चिड़ा, एवं दुराग्रही बन जावेगा। वह गुप्त या प्रकट रीति से अपनी आदतों को विरोध की प्रतिक्रिया स्वरूप जारी रखेगा, इसलिए यदि दंपत्ति में से कोई किसी कुटेव में ग्रसित हो, तो मामूली कहने-सुनने के अतिरिक्त अत्यंत उग्र झगड़ा कभी न करना चाहिए। दुर्गुणी पर दूसरों के कहने का उतना असर नहीं पड़ता। अस्तु, ऐसे अवसर उपस्थित करने चाहिए कि वह स्वयं ही अपनी भूल की गंभीरता अनुभव करे और लज्जित होकर प्रायश्चित की ओर झुके। शराबी और व्यभिचारी पतियों को बुद्धिमान् स्त्री आसानी से सुधार सकती हैं। देखने में यह दो दुर्गुण प्रतीत होते हैं, परंतु इनका मूल एक ही कारण है, वह है—‘‘मनोरंजन का अभाव।’’ पत्नी का कर्तव्य है कि पति के मनोरंजन की समुचित व्यवस्था रखे। काली-कलूटी स्त्रियां भी यदि पति की मनोवृत्तियों को पहचानती हुई उन्हें प्रसन्न रखने की कला को समझ लें, तो वे उन्हें कुमार्ग से बचाकर अपना गृहस्थ जीवन सुखमय बना सकती हैं। रूठने, अभिमान करने, जिद्दी होने और अपनी भूल को अनुभव न करने से कलह बढ़ता है, कर्कश स्वर से द्वेष पैदा होता है, इसलिए दूसरे पक्ष से आपको जो शिकायत है एकांत में गंभीरतापूर्वक प्रेम और सरलता के साथ कहिए। मन में जो संदेह या शिकायत उठे, उसका शीघ्र ही निराकरण कर लीजिए अधिक समय तक अविश्वास के मिथ्या विचार भी मन में पड़े रहें, तो अपना स्थान बना लेते हैं।

दांपत्य जीवन को शुद्ध रखने के लिए आवश्यक है कि हृदय इतना उदार हो कि उसमें संदेह को उठने का स्थान ही न हो। यदि उठे भी तो उसका समाधान उससे ही करना चाहिए, जिसके प्रति संदेह उठा हो। दुनिया में तीन-चौथाई झगड़े भ्रम के कारण होते हैं, वास्तविक कारण चौथाई से भी कम होते हैं। यह भ्रम ही बढ़ते-बढ़ते ऐसा विकट रूप धारण कर लेते हैं कि उनके द्वारा लोमहर्षक परिणाम उपस्थित होते हैं। यदि हम इस सिद्धांत को अपना लें कि जिनकी शिकायत हो, उसी से पूछकर अपना समाधान करें, तो निश्चय ही हमारा जीवन कलह से मुक्त हो सकता है। शिकायत कड़ुई होती है और चूंकि लोग कड़वी बात कहने-सुनने के आदी नहीं होते, इसलिए वे उन बातों को पेट में ही डाले रहते हैं। पेट में पड़ी-पड़ी वे बातें चक्रवृद्धि ब्याज की रीति से बढ़ती रहती हैं और तिल का ताड़ बन जाती है। दुनिया में सुख-शांति फैलाने के लिए इस बात की आवश्यकता है कि आप कड़वी बात को मीठे शब्दों में कहने की कला को सीख जाएं, एकांत में अपने संदेह को निवारण करने की इच्छा के लिए विशुद्ध भाव से यदि किसी से पूछा जाए, तो वह वास्तविक बात का बहुत कुछ अंश अवश्य बता देगा। यदि नहीं भी बतावे, तो यह पूछना ही उसके लिए सौ विरोधों और हजार उपदेश से अधिक काम कर सकेगा, ऐसे प्रश्नों से आदमी अपनी कीर्ति की रक्षा के लिए तुरंत सावधान हो जाता है और यदि वह दुर्गुण उसके अंदर प्रवेश हुआ तो तुरंत ही त्याग देता है। कड़ुई बातों में स्वयं नाराज करने वाली कोई वस्तु नहीं है, नाराज तो आदमी तब होता है, जब कर्णकटु शब्दों में, अपमानित-लांछित या बदनाम करने की बुरी नीयत से सबके सामने पूछा जाए। आप अपने प्रियजन की शिकायत सुनें कि प्रेम पूर्वक उसी से एकांत में पूछें, इसी में दोनों का ही हित है।

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