हमारे पास अनेक ऐसे पत्र आते रहते हैं, जिनमें लेखकों की इच्छा वशीकरण विद्या सीखने की होती है। अखबारों में जंत्र, मंत्र, ताबीज, अंगूठी आदि के ऐसे विज्ञापन छपते रहते हैं, जिनमें यह बताया जाता है कि इनका प्रयोग करने से हर कोई स्त्री-पुरुष वश में हो सकता है। इसके अतिरिक्त ऐसी भी अनेक कथा और किंवदंतियां प्रचलित हैं, जिनमें एक मंत्र विशेष द्वारा किसी व्यक्ति का बहुत व्यक्तियों को मोहित कर लेने का कथानक होता है। आल्हा, ढोला के ग्रामीण गीतों में ऐसे किस्से खूब भरे होते हैं, जिनमें किसी जादूगर द्वारा वशीकरण मंत्र से साधारण लोगों को वश में किया गया हो। पुराणों में भी ऐसी कथा खूब मिलती हैं। इन जनश्रुतियों से प्रभावित होकर साधारण जनता ऐसा विश्वास कर लेती है कि कोई ऐसा गुप्त मंत्र होगा, जिसकी सहायता से दूसरों को वश में किया जा सकता है। हम इस विद्या को क्यों सीखना चाहते हैं? इन प्रश्न का उत्तर देने में कोई शब्दाडंबर भले ही रचे, पर सीखने वाले की हार्दिक इच्छा दो पाई जाती हैं— (1) अपने से भिन्न योनि के मनुष्य को वश में करके उससे कामतृप्ति की जाए, (2) बुद्धि को भ्रमित करके उसका पैसा झटक लिया जाए। वशीकरण सीखने के लिए हजारों महानुभाव हमें पत्र भेजा करते हैं, परंतु उनमें अब तक एक भी हमें ऐसा न मिला, जो कामिनी-कंचन प्राप्त करने के स्वार्थ को छोड़कर अन्य किसी कारण से वशीकरण विद्या को सीखना चाहते हों।
एक बार एक महानुभाव हमारे यहां जिला वारीसाल (बंगाल) से पधारे, उन्होंने अपना अभिप्राय प्रकट किया कि वे वशीकरण सीखना चाहते हैं। उसके लिए वे बंगाल के विभिन्न जिलों में, आसाम प्रांत में तथा अन्यान्य बहुत-से स्थानों पर ऐसे सिद्ध योगियों की तलाश में घूम चुके थे, किंतु उन्हें कोई ऐसा गुरु नहीं मिला था। उनसे किसी ने अखंड ज्योति के बारे में जरा बढ़ाकर बातें कह दी थीं, इसलिए यहां चले आए और इच्छा करते थे कि ऐसा मंत्र सिद्ध करा दिया जाए, जिससे पलक मारते ही स्त्री-पुरुष जिसे वे चाहें अपने वश में कर लें।
उनका अभिप्राय सुनने के बाद हमने उनसे कहा—‘‘महोदय! वशीकरण के तो कितने ही प्रकार हैं। उनमें से किस प्रकार का और कितनी सिद्धि का वशीकरण आप चाहते हैं? वह सब भी प्रकट कर दीजिए।’’ उन्होंने बताया कि वे भिन्न बातें चाहते हैं, ‘‘(1) जिसपर वे प्रयोग करें, वह अपनी निज की बुद्धि खो दे और उनकी आज्ञा का पालन करे। जैसा वे आदेश करें, उसका अविलंब आचरण करे, उचित और अनुचित के बारे में कुछ विरोध न हो। (2) उसका मन और शरीर पूरी तरह हमारे काबू में रहे। जैसा रखना चाहें, वैसा रख सकें। (3) जरूरत पड़ने पर शरीर का ढांचा बदल सकें।’’ वे चाहते थे कि जिस स्त्री को चाहें वह बिना धर्म, लज्जा, अवसर का ध्यान रखे उनके साथ पत्नी भाव का आचरण करने के लिए तैयार हो जाए। कोई अदालत, अफसर, मैनेजर, सेठ उनका इशारा पाते ही मनोवांछा पूरी कर दे। किसी को रोगी, स्थिर, पागल, मूर्च्छित बना सकें। जिसे चाहें उसे भेड़, बकरा, सुअर, कबूतर, मक्खी, बिल्ली आदि बनाकर रखें और फिर जब चाहे, तब आदमी बना लें। इतने बड़े काम वे इसलिए करना चाहते थे कि मनमाने सुख भोग सकें और धन-प्रतिष्ठा प्राप्त करें।
वारीसाल निवासी वे महानुभाव यह विश्वास किए हुए थे कि बंगाल और आसाम में यह विद्या खूब प्रचलित थी और वहां की स्त्रियां तक इसमें निपुण थीं और कहीं-कहीं अब भी हैं। उनने दर्जनों ऐसे किस्से सुनाए, जिनमें उनके विश्वास को पुष्ट करने वाली घटनाओं का वर्णन था। यह सज्जन भोले और जिज्ञासु थे।
पंद्रह दिन मथुरा ठहरे, बहुत गम्भीर विचार-विनिमय के पश्चात् उन्हें यह विश्वास कराया गया कि साधारण लोगों को ऐसी सिद्धि का प्राप्त होना असंभव है और वे कथाएं किंवदंतियां मात्र हैं। यह हो सकता है कि उच्च आध्यात्मिक भूमिका में जाग्रत् हुए कोई सिद्ध पुरुष ऐसी योग्यता रखते हों, पर वे भी साधारण सांसारिक कार्यों के लिए या अनुचित इच्छाओं की तृप्ति के लिए उनका प्रयोग कदापि नहीं करते। विषय-विकारों में, राग-द्वेषों में जब तक मन लगा हुआ है, तब तक ऐसी सिद्धियां नहीं मिल सकतीं। मिल भी जाएं, तो उसके प्रयोक्ता को कुछ ही समय के बाद जड़-मूल से नष्ट करती हुई विलुप्त हो जाती हैं। ईश्वर ने अपनी सृष्टि का क्रम बड़े सुंदर ढंग से बनाया है और हर प्राणी को अपना स्वतंत्र अधिकार प्रदान किया है। कर्म करने में मनुष्य को स्वतंत्रता देकर उसे अपना भविष्य निर्माण करने का अधिकार दिया है। अपनी जिन की ज्ञात या अविज्ञात इच्छाओं के अतिरिक्त और किसी के बंधन में कोई मनुष्य नहीं हो सकता। हमारे लिए अपनी ज्ञात या अज्ञात इच्छाएं ही बंधन हो सकती हैं, अन्य किसी में भी इतनी सामर्थ्य नहीं है, जो मनुष्य की प्रबुद्ध आत्मा को बांध सके, उसे अपने वश में रख सके। गर्मी, हवा और आकाश को कैद करना कठिन है। जो महापुरुष किसी की मानसिक योग्यता को बांध सकते हैं, उनकी स्थिति बहुत ऊंची होती है, वे अपनी दिव्यशक्ति का साधारण सांसारिक झगड़ों में प्रयोग नहीं करते। आपके छोटे-छोटे बच्चों में लड़ाई होने लगे, तो उनके लिए फटकार या एक तमाचा ही काफी है। भला कौन पिता अपने अल्प ज्ञानी बालकों का झगड़ा मिटाने के लिए दुनाली बंदूक का प्रयोग करेगा? इंद्रियासक्त मनुष्य बच्चे हैं और वासनाओं का बखेड़ा बालू के किले बनाना है। महापुरुष इन्हें मनोरंजन की दृष्टि से देखते हैं, यदि बच्चे बालू के किले में सोने का फाटक चढ़ाना चाहें, तो पिता अपनी तिजोरी से सोने की तख्तियां निकालकर उन्हें नहीं दे देता। इसी प्रकार जिन सिद्ध महापुरुषों को कठोर तपस्या के उपरांत कोई योग्यता प्राप्त हो जाती है, वे भूलकर भी उसका दुरुपयोग नहीं होने देते। विषयी पुरुषों को तो ऐसी सिद्धियों का प्राप्त होना सर्वथा असंभव ही है।
बहुत विचार-विनिमय के पश्चात् उन्होंने यह विश्वास कर लिया कि इस प्रकार का वशीकरण जैसा कि वे चाहते हैं, तब तक प्राप्त नहीं हो सकता जब तक कि आत्मा राग-द्वेषों और विषयों से ऊंची न उठ जाए और जब आत्मा ऊंची उठ जाती है, तब उन्हें इस प्रकार के साधन व्यर्थ और हानिकारक प्रतीत होने लगते हैं। फिर भी उन्होंने पूछा कि, क्या कोई ऐसा उपाय नहीं हो सकता कि दूसरों को अपना आज्ञानुवर्ती बनाया जा सके। हमने कहा—क्यों नहीं? ऐसे उपायों से आध्यात्मिक तत्त्व ज्ञान कोना-कोना भरा पड़ा है। मनुष्य जड़ या अंतःकरण से रहित जीव नहीं है, जिस पर कि बाह्य अनुभूतियों का कोई प्रभाव ही न होता हो। पशु-पक्षी तक एक बंधन में बंध जाते हैं और वे एक-दूसरे के लिए प्राण तक दे देते हैं, फिर मनुष्य तो बहुत उच्च भावनाएं रखने वाला प्राणी है, इसकी अनुभूतियां और मानसिक संवेदनाएं तो बड़ी ही कोमल हैं। माता अपनी संतान के साथ, पत्नी के पति के साथ, मित्र-मित्र के साथ इतने गहरे बंधनों में बंधे देखे जाते हैं, जितने कि तथाकथित वशीकरण मंत्र से भी नहीं हो सकते। मंत्र मोहित व्यक्ति बुद्धिहीन होकर अपनी क्रियाएं आपके चित्त के अनुसार कर सकता है, पर उसकी स्वेच्छा तो सोयी हुई है, उसे आपके कार्यों में कोई आंतरिक सहयोग न होगा। मंत्र मोहित कोई स्त्री यदि अपना सतीत्व दे दे, तो भी उसका हृदय प्राप्त नहीं किया जा सकता है।
किंतु एक ऐसा व्यवहारिक वशीकरण मौजूद है और लाखों-करोड़ों व्यक्तियों पर उसका नित्य सफल प्रयोग होता है, जो हृदय को भी वश में कर लेता है। यह मंत्र है—प्रेम और त्याग। यह मंत्र अकाट्य है। संसार में एक भी जीवित प्राणी ऐसा नहीं हो सकता जिसे प्रेम और त्याग की शक्ति के सामने नत मस्तक न होना पड़े। रामचरितमानस में कहा गया है कि—
जाकर जापर सत्य सनेहू । सो तेहि मिलत न कछु संदेहू ।।
यदि सच्चा प्रेम हृदय में हो, तो किसी भी व्यक्ति को वश में कर लेना कुछ कठिन नहीं है। प्रेम और भलाई से पशु-पक्षी भी वश में हो सकते हैं। इस प्रकार वार्त्तालाप के सिलसिले में उन्हें नारदीय भक्तिसूत्र भी सविस्तार सुनाया गया। तब समझ गए कि जीवित वशीकरण भी मौजूद है और वह सत्य, सुंदर एवं सरल भी है। जब उनकी जिज्ञासा पूरी तरह शांत हो गई तो वे वापस लौट गए।
कितनी ही भोली बहनें भी इसी प्रकार के पत्र हमें लिखा करती हैं। वे पतियों के दुर्व्यवहार या रूखे स्वभाव के कारण खिन्न होती हैं और चाहती हैं कि कोई ऐसा मंत्र-जादू अनायास ही उन्हें मिल जाए, जिसे वे गुप्त रीति से अपने पति पर प्रयोग कर दें और वह उनके वश में हो जाए, प्रेम करे, आज्ञानुवर्ती बन जाए। गत वर्ष एक पत्र तो हमारे पास ऐसा आया, जिसमें एक बहन बड़ी घातक मूर्खता कर बैठी थी। उसने लिखा था कि एक कंजड़ जाति की स्त्री की शिक्षा मानकर मैंने रजोधर्म का रक्त गुप्त रूप से पति को इसलिए खिला दिया कि वे मेरे वश में हो जावे, इसका फल हुआ कि पति का सारा शरीर विषैले फोड़ों से भर गया और वे मृत्यु शय्या पर पहुंच गए। यह बहन कोई ऐसा उपाय हमसे पूछती थीं कि उसके पति नीरोग हो जाएं, साथ ही वह यह भी चाहती थीं कि किसी को भी उसका नाम प्रकट न किया जाए, अन्यथा पतिगृह से उसे या तो निकाल दिया जाएगा या कुछ और दुर्गति की जाएगी। उस बहन के पति भी हमारे मित्र थे, उन्हें अपने स्वतंत्र व्यवहार से रोग मुक्त के उपाय बताए, जिनकी सहायता से तीन-चार महीने में वे नीरोग हो गए। कुछ ऐसी स्त्रियों के पत्र हमारे पास आए हैं जो वशीकरण के फेर में पड़कर अपना धन, धर्म गंवा चुकी हैं और फिर भी उन्हें सफलता प्राप्त करने का अवसर प्राप्त नहीं हुआ।
वशीकरण के संबंध में जनता की जो विचित्र धारणाएं हैं उनके भ्रम-जंजाल में बड़ी कष्टकारक स्थिति का सामना करना पड़ता है, कई बार तो बेचारे निर्दोष व्यक्तियों की हत्याएं करा दी गईं या अमानुषिक दंड इस संदेह में दिए गए कि इन्होंने हमारे ऊपर कुछ मंत्र-जंत्र कर दिया है। इस प्रकार के भ्रम-जंजालों का सदैव ही हम खंडन करते रहे हैं और इस पुस्तक में तो इस विषय का और भी स्पष्ट रूप से विवेचन कर रहे हैं, जिससे कि सर्वसाधारण को वास्तविकता का ठीक तरह ज्ञान हो जाए।
किसी को वश में करने का कार्य छू-मंत्र से नहीं हो सकता और यदि कर भी ले, तो बड़ा अधूरा, कष्टसाध्य एवं अंत में हानिकारक सिद्ध होगा। वशीकरण का सर्वसुलभ मंत्र हमारी आंतरिक भावनाओं के अंतर्गत रहता है। मनुष्य में दूसरे के भाव पहचानने की असाधारण योग्यता है। छोटा बालक जो लोकाचार और वाणी व्यापार को नहीं जानता, वह भी आंतरिक प्रेम और अप्रेम को बात की बात में ताड़ लेता है और उन्हीं की तरफ आकर्षित होता है, जिनमें तुलनात्मक दृष्टि से अधिक प्रेम पाता है। फिर बड़ी उम्र के समझदार व्यक्तियों की तो बात ही क्या है? जब पशु-पक्षी भी हित-अनहित पहचान लेते हैं, तो मनुष्य क्यों नहीं पहचान लेगा। जिसका आंतरिक स्नेह जिस पर होता है, वह उसे पहचान ही लेता है और एक दिन अपनी भूल सुधारकर सच्चे मार्ग पर आ जाता है। सच्चे प्रेम की यह कसौटी है कि वह प्रेमी की अवनति नहीं उन्नति चाहता है। जो अपने प्रेमी का धन, धर्म, समय, यश या और कुछ नष्ट करने की चेष्टा करता है वह प्रेमी नहीं हो सकता। स्वार्थी मनुष्य अपने मतलब के लिये प्रिय के धन, धर्म की परवाह नहीं करता और न ही उसका भाव निःस्वार्थ रहता है, किंतु जो सच्चा प्रेमी है, वह अपने प्रेमी को सब प्रकार की उन्नति चाहता है और उसमें अपने को तनिक भी बाधक नहीं बनने देता। निःस्वार्थ और निष्कपट प्रेम में वह आकर्षण है, जो प्रेमी के हृदय को बांध लेता है। पवित्र प्रेम का बंधन ऐसा उच्च है कि वह नरक की यातनाओं में अब प्रेमी को सड़ाने के लिए नहीं रोकता, वरन् शांति और आनंद का रसास्वादन करते हुए उच्च कक्षा की ओर, मुक्ति की ओर बढ़ता जाता है। सात्त्विक प्रेम बंधन का नहीं, वरन् मुक्ति का सोपान है। इसके द्वारा एक मनुष्य दूसरे को सहायता देकर देवत्व के पुण्य पथ पर अग्रसर करता है। प्रेम ही वशीकरण है।