व्यक्तित्व निर्माण युवा शिविर - 2

आदर्श कन्या बनने के सूत्र

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  माता पिता घर में कन्या जब तक रहती है, अपने भावी जीवन की नींव का निर्माण करती है। यह नींव मजबूत हो गई तो वह आदर्श नारी में रुपान्तरित होकर समुन्नत परिवार, श्रेष्ठ व आदर्श समाज का सुदृढ़ सांचा बन जाती है। इसके लिए कन्या की क्या तैयारी हो?

1.    नियमित उपासना, साधना व स्वाध्याय में रूचि रखें।  यह उसकी दिनचर्या में आदत में शुमार हो। पिक्चर व टी.वी. देखने, सहेलियों से गप्प करने से बच्चें।

2.    माता-पिता की आज्ञा का पालन करें, हठधर्मिता अपनाकर मनमानापन के लिए उद्यत न हों। फैशन व अन्य वस्तुओं में अपव्यय करने की गन्दी आदत पनपने ही न दें।

3.    घर में श्रमशीलता का परिचय दें। माता के कार्यों में, रसोई घर में, अन्य कार्य में सहयोग करें। रसोई व स्वास्थ्य के नियमों की पर्याप्त जानकारी रखें और उसका अभ्यास बनाएं।

4.    अपने समय का नियोजन करने हेतु गम्भीरता बरतें। विवाह पूर्व सिलाई, कढ़ाई, कम्प्यूटर, वांछित शिक्षा एवं संगीत युगनिर्माण प्रशिक्षण आदि पूरा कर लेने का लक्ष्य बनाएं। आत्मिक उन्नति हेतु सबसे अधिक समय कुं आरेपन में ही निकाला जा सकता है। अत: समय का पूरा सदुपयोग करें। परिवार में छोटे भाईयों, बहनों से स्नेह सहकारयुक्त व्यवहार करें। उनसे ईष्र्या, प्रतिद्वन्दता न रखें।

आदर्श वधू बनने के सूत्र

1.    विवाह हेतु वर का चयन प्रथम संस्कार, द्वितीय शिक्षा स्वावलम्बन हो। धन व तथाकथित सुंदरता या स्मार्टनेस को वर चयन का मापदण्ड बनाने पर बहुत धोखा होता है।

2.    वधु, पति व सास ससूर का हृदय से सम्मान करे। छोटे सदस्यों से वैसे ही स्नेहयुक्त व्यवहार रखें जैसे मायके में रखते रहे। ध्यान रहे अपना पति, ससूर व सास की सन्तान है, जिसके कारण ही ससुराल में अपनी पहचान है।

3.    घर के कार्यों को जिम्मेदारी के साथ प्राथमिक कत्र्तव्य मानते हुए निभाएं। श्रम से जी न चुराएं। खर्च में पर्याप्त मितव्ययता बरतें। पति की कमाई नीतिपरक ही हो, इसका ध्यान रखें।

4.    परिवार में प्रचलित मर्यादाओं का पालन अवश्य करें। परन्तु कुरीतिजन्य प्रचलनों के प्रति धीरे-धीरे प्रेम से ससुराल में लोगों की मानसिकता को बदलने का प्रयास करें।

5.    शिक्षित होकर नौकरी पाने के पीछे भागने की ही महत्वाकांक्षा न पालें। स्वावलम्बी अवश्य बनें। परिवर में सन्तान की देखभाल, उसका निर्माण बहुत बड़ी जिम्मेदारी एवं पुण्य का कार्य है।

6.    पति के परिवार की प्रतिष्ठा में अपनी प्रतिष्ठा है, समझें। हर समय केवल अपने मायके का गुणवान करना या मायके को ससूराल की अपेक्षा श्रेष्ठ बताना, मायके के सम्पत्ति का घमण्ड करना, ससुराल की छोटी-छोटी बातों को मायके में प्रसारित करना, बारम्बार मायके जाने और वहां रहने की इच्छा या जिद करना, वधू के लिए त्याज्य है। इससे पति के परिवार की प्रतिष्ठा घटती है। वधू को अपने मायके से मिलने वाला सम्मान घटता है। पति का घर ही अपना संसार है, वहां ताल मेल बिठाने का अभ्यास करें।

7.    वधू अपनी सेवा व शालीन व्यवहार से ससुराल में बसका हृदय जीते। पूरे परिवार के सदस्यों को अपनी संतान की तरह मानें तो वह देवी की तरह स्तुत्य हो जाएगी। उसी को गृह लक्ष्मी कहा जाता है।


    विचार करने का तरीका


    ‘‘जिसे तुम अच्छा मानते हो यदि तुम उसे आचरण में नहीं लाते तो वह तुम्हारी कायरता है। हो सकता है कि भय तुम्हें ऐसा न करने देता हो। लेकिन इनसे न तो तुम्हारा चरित्र ऊँचा उठेगा और न ही तुम्हें गौरव मिलेगा।
    मन में उठने वाले अच्छे विचारों को दबाकर तुम बार बार जो आत्महत्या कर रहे हो, आखिर उनसे तुमने किस लाभ का अन्दाजा लगाया है। शान्ति और तृप्ति आचारवान व्यक्ति को ही प्राप्त होती है।’’
                

                                                               - पं० श्रीराम शर्मा आचार्य

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