व्यक्तित्व निर्माण युवा शिविर - 2

बाल संस्कार शाला आचार्य प्रशिक्षण से पूर्व ध्यान देने योग्य बातें

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प्रशिक्षकों से -

1. 2 घंटे की बालसंस्कार शाला के 4 कालखण्ड के प्रायेगिक शिक्षण हेतु आपके पास कुल 3 घंटे का समय होगा। अत: आवश्यकतानुसार समय विभाजन करके प्रशिक्षण आरंभ करें। ध्यान रखें किसी कालखण्ड या उसके किसी भाग के छूट जाने की गलती न हो जाए।

2. चतुर्थ कालखण्ड के अंतर्गत योगाभ्यास (आसन, प्राणयाम) मनोरंजक खेल(शब्द संग्रह बढ़ाओ, उल्टा पुल्टा मुहावरा, थोड़ा हँसी हँसी आदि), तथा कुछ मैदानी खेल(चौकोर, रस्साकस्सी, रूमाल लेकर भागो, उद्यम ढकेल आदि)प्रशिक्षक द्वारा प्रशिक्षण के पूर्व दिवसों में(समय सारिणी)प्रश्नोत्तरी एवं मनोरंजक खेल के समय पर कर लिए जाने से समय बच जाता है। अत: ऐसा किया जा सकता है।

3. स्वस्थ्य रहने की कला(कालखण्ड-2) एवं जीवन जीने की कला(कालखण्ड-3)के अन्तर्गत प्रायोगिक शिक्षण/प्रेरक अभ्यास में से कुछ चुने हुए लगभग 3-3 अभ्यासों को करायें। अधिक अभ्यास समय सीमा में संभव नहीं हो पायेंगे। अन्य आवश्यक शिक्षण छूट सकते हैं।

 4. प्रशिक्षण हेतु उपयोग में आने वाली सभी सामग्री की पूर्व व्यवस्था बना ली जाए।

5. प्रायोगिक शिक्षण आरंभ करने से पूर्व संस्कार शाला के भावी आचार्यों को चिन्हित सुनिश्चित करके उन्हें बाल संस्कार शाला मार्गदर्शिका (दो आचार्यों के बीच एक)प्रशिक्षण अवधि तक के लिए दे दिया जाए ताकि वे उसे देखते हुए प्रशिक्षण लें। प्रशिक्षण समाप्त होने पर वापस ले लें।

6. प्रशिक्षण समाप्त होने के बाद शिविरार्थियों को भावनात्मक रूप से तैयार करके, आगामी 15-20 दिनों में संस्कार शाला खोल लेने हेतु प्रेरित संकल्पित करें। खुलने वाली संस्कार शालाओं के आचार्यों के नाम (स्थानवार,मोहल्लेवार)पूरा पता, मोबाइल नं., संस्कार शाला खोलने की संभावित तिथि लिखित में ले लें।

7. अनुयाज करने वाले जिम्मेदार कार्यकत्र्ता या आयोजक उन तिथियों तक सतत् संपर्क बनाए रखकर संस्कार शाला खोलने में सहयोग करें, अपेक्षित सामग्री(यथा - बाल संस्कार शाला मार्गदर्शिका, किताब, फ्लैक्स)की आपूर्ति की व्यवस्था बनाएं।


 बाल संस्कार शाला - आचार्य प्रशिक्षण

प्रशिक्षण क्रम :-
1. बाल संस्कार शाला क्यों चलाएं?
2. बाल संस्कार शाला प्रारंभ पूर्व तैयारी(प्रयाज)।
3. प्रायोगिक प्रशिक्षण।
4. सफल संचालन के आवश्यक सूत्र।
1. बाल संस्कार शाला क्यों चलाएं ? :- ‘जन्मना जायते शूद्र: संस्काराद् द्विज उच्यते।’ मनुष्य जन्म से शूद्र होता है, संस्कार द्वारा ही द्विज,श्रेष्ठ बनता है। संस्कारों से ही मनुष्य में देवत्व का उदय होता है। संस्कारहीन व्यक्ति चाहे पढ़ा लिखा डिग्रीधारी क्यों न हो, मनुष्य के स्तर से गिर जाता है। मनुष्य बनने के लिए जीवन विद्या पढऩा आवश्यक है। बालक में सुसंस्कारों के जागरण एवु स्थापना पर भरतवर्ष में आरंभ से ही विशेष ध्यान दिया जाता रहा है। भारत संस्कारधनी रही है।

    बालकों को संस्कारवान बनाने के मुख्यत: तीन माध्यम रहें हैं - परिवार(माता-पिता), पाठशाला(शिक्षक), एवं समाज। आज इन तीनों की ही स्थिति बड़ी दयनीय एवं चिन्ताजनक बनी हुई है। आज प्राय: इन सभी स्थनों से बालकों को संस्कार तो मिलते नहीं बल्कि उल्टे कितने ही तरह की गलत प्रेरणाएं मिलती हैं व गलत आदतें बन जाती हैं। माता-पिता का अनगढ़ दाम्पत्य, परिवार का आत्मीयतारहित घुटन भरा वातावरण, कुसंस्कारी माता-पिता, लार्ड मैकाले के सपनों को साकार करते हमारे अधिकतर भारतीय स्कूल कॉलेज व तथाकथित सभ्य व आधुनिक समाज सभी आज हमारे ऋषियों की प्राचीन संस्कार परम्परा की धज्जियाँ उड़ा रहे हैं। हमारी नवीन पीढ़ी आज सांस्कृतिक अपंगता एवं मर्यादाविहीन अनैतिक आधुनिकता के दूषित सांचे में ढल रही है। इसे कौन बचाएगा? क्या समझदार लोग मूकबधिर बनकर देखते ही रह जाएंगे? नहीं, युग ऋषि की छत्रछाया में जिन्होने उनका प्राण पिया है, व्यक्तित्व निर्माण की विद्या पढ़ी है उन संस्कृति के रक्षक व पुराधा आप लोगों से आशा है कि अपने छोटे भाई बहिनों को आप भटकने नहीं देंगे।

(अधिक विस्तार से बाल संस्कार शाला-कार्यकत्र्ता मार्गदर्शिका पृष्ठ क्रं. 3-5 देखे सकते हैं)

    बाल संस्कार शाला सप्ताह में केवल एक दिन(रविवार) दो घंटे चलाई जाने वाली नि:शुल्क शाला है जिसमें 10 से 12 वर्ष के बालक बालिकाओं को खेल-खेल में रोचक तरीके से स्वस्थ रहने की कला,ध्यान,प्राणायाम,गुरु एवं माता पिता का आज्ञा पालन एवं अनुशासन, महापुरुषों की जीवनी, प्रेरणाप्रद संस्मरण, बालनीति कथाएं, जीवन जीने की कला, विविध प्रयोग, मनोरंजक खेल आदि सिखाए जाते हैं। यह जून से फरवरी-मार्च तक चलाई जाती है। कोई भी सामान्य प्रतिभा का 11 वीं 12 वीं पढ़ा हुआ व्यक्ति इसे चला सकता है। संस्कार शाला, मात्र एक श्यामपट और चाक डस्टर की न्यून व्यवस्था से 25-30 बच्चों के बैठने लायक स्थान पर आसानी से आरम्भ हो सकता है।

लाभ :-

1.बाल संस्कार शाला से न केवल बाल पीढ़ी संस्कारित होगी बल्कि उन बालाके के माध्यम से उनके परिवार का वाताराण पर भी सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा।
2. परिवार निर्माण में बालक भी अपने माता-पिता के सहयोगी बनेंगे।
3. तीसरा लाभ संस्कार शाला से जुड़े हुए आचार्यों को होगा। आपकी प्रतिभा निखरेगी, वाक् क्षमता बढ़ेगी, स्वयं स्वाध्याय करने के कारण पहले आप संस्कारित होंगे, अनुभव बढ़ेगा।
4. आचार्य की भूमिका निभाने वाले सम्मान पायेंगे। तीन विभूतियाँ आत्म्संताष, लाकमंगल एवं दैवी अनुग्रह के आप अधिकारी बनेंगे जो कि दुर्लभ है।

2. बाल संस्कार शाला प्रारम्भ पूर्व तैयारी(प्रयाज)
(बाल संस्कार शाला आचार्य मार्गदर्शिका पृष्ठ 6-7 देखें)


3. प्रायोगिक प्रशिक्षण
(बाल संस्कार शाला आचार्य मार्गदर्शिका पृष्ठ 13 से 28 तक देखें )
4. बाल संस्कार शाला सफल संचालन के आवश्यक सूत्र
(बाल संस्कार शाला आचार्य मार्गदर्शिका पृष्ठ 9-10 देखें)
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