(‘ आचार्य प्रशिक्षण’ से पहले दिन)
सामूहिक वाद-संवाद का अनुभवजन्य नमूना -
(कक्षा में प्रशिक्षक द्वारा सामूहिक प्रश्न)
प्रशिक्षक :- बेटा ईमानदारी से बताना, शिविर में कैसा लग रहा है? जबरदस्ती नहीं, सच ही बोलना।
शिविरार्थी :- बहुत अच्छा। चार दिन कैसे निकला, पता नहीं चला।
प्रशिक्षक :- आप शिविर में आने से पहले यहाँ के विषय में जो कुछ सोचे रहे होंगे, और वास्तव में आप जो यहाँ तहसूस कर रहे हैं, दोनों में कोई फर्क है?
शिविरार्थी :- हाँ बहुत फर्क है। बहुत अधिक फर्क है।
प्रशिक्षक :- यदि आप शिविर में किसी कारणवश नहीं आये होते, तो?
शिविरार्थी :- बहुत पछताते।
प्रशिक्षक :- अब शिविर में आ गए हैं तो क्या करेंगे?
शिविरार्थी :- यहाँ से जाकर जा सीखें है उसे करेंगे, दूसरों को बतायेंगे, अपने साथियों को शिविर में लायेंगे।
प्रशिक्षक :- अच्छा, आपको ऐसा नहीं लगता कि ये सारी बातें जो शिविर में अब आपको पता चल रही है वे बहुत पहले ही ज्ञात होनी थी और आप बहुत देर हो गए?
शिविरार्थी:- हाँ, पहले पता चलनी थी।
प्रशिक्षक :- तो गाँव में, आपके मोहल्ले में और भी तो आपके छोटे भाई बहिन हैं, सारा गाँव ही ऐसा है उनके लिए क्या कुछ किया जाना चाहिए? उन्हें भी तो आखिर ऐसा ज्ञान संस्कार चाहिए?
शिविरार्थी :- उन सभी को हम लोग जाकर सिखायेंगे।
प्रशिक्षक :- पक्का ऐसा संकल्प मन में आ रहा है?
शिविरार्थी :- हाँ जरूर बतायेंगे।
प्रशिक्षक :- परंतु उन्हें सिखाने के लिए तो आपको सीखना पड़ेगा।
शिविरार्थी :- हाँ सीखेंगे।
प्रशिक्षक :- यदि ऐसा है तो 10 से 12 वर्ष के बच्चों को संस्कारवान बनाने के लिए बाल संस्कार शाला चलाई जाती है। उसे चलाने के लिए प्रशिक्षण भी दिया जाता है। यदि उसे सीख ले तो यह कार्य बहुत आसान हो जाएगा। इसके लिए तैयार हैं-
शिविरार्थी :- हाँ।
प्रशिक्षक :- पक्का? कितने लोग अपने-अपने गाँव में बच्चों को बाल संस्कार शाला के माध्यम से शिक्षा देना चाहते हैं हाथ उठायेंगे? (लगभग 80 प्रतिशत हाथ उठ जाते हैं)
प्रशिक्षक :- बहुत सुन्दर! यही एक तरीका है कि आप यहाँ से जलता हुआ दीपक बनकर जाएँ और अपने गाँव में रोशनी फैलाएँ। तो ठीक है एक शिक्षा आन्दोलन का अभ्यास ही बचा था। कल आपको संस्कार शाला के आचार्य कैसे बनेंगे? बच्चों को क्या और कैसे सिखाएँगे? इसका प्रशिक्षण करेंगे। बहुत मजा आएगा, क्योंकि आपको छोटे बच्चों का रोल करना होगा। उसमें खेल मनोरंजन सब होगा।