सपने झूठे भी सच्चे भी

स्वप्नों में अभिव्यक्त सघन आत्मीयता

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सामान्य जीवन में भी आत्मिक घनिष्ठता का बहुत महत्व और मूल्य है। उसके आधार पर छोटे-बड़े आदान-प्रदानों का क्रम चलता रहता है। परायेपन का भाव आने और स्नेह सहयोग का आधार झीना रहने पर अन्य मनस्कता बनी रहती है, पर जब घनिष्ठता का संचार होता है तो व्यक्तियों का न केवल सहयोग ही प्रखर होता है वरन् आन्तरिक एकता भी सघन होती चली जाती है। इसकी प्रतिक्रिया दोनों पक्षों के लिए हितकारक बनती है। व्यावहारिक जीवन में मित्रता के लाभों से सभी परिचित हैं। सूक्ष्म जीवन में यह घनिष्ठता मरण काल का आभास आत्मीय जनों के सामने अदृश्य सूचना के रूप में जा पहुंचती है। कितने ही प्रसंग ऐसे हैं जिनमें एक मित्र या सम्बन्धी की मृत्यु होने पर उसकी सूचना द्वारा दूसरे पक्ष को जानकारी मिली है। कई बार तो यह सूचना स्वप्नों के माध्यम से मिलती है और कई बार ऐसे ही चौंका देने वाली विफलता के रूप में उभरती है। कई बार ऐसे आभास मिलते हैं कि मृतक की आत्मा स्वयं अपने मरण की सूचना देने और अन्तिम बार मिलने के उद्देश्य से सूक्ष्म शरीर के समीप आई है। ऐसे अनेकों प्रसंग हैं जिन्हें विश्वस्त एवं प्रामाणिक ही कहा जा सकता है।

स्वप्नों के सम्बन्ध में सोचा जाता है कि किसी पूर्व सम्भावना का दृश्य प्रत्यक्ष बन कर दीख सकता है, पर जब उस प्रकार की कोई कल्पना तक न हो तो उसे क्या कहा जाय? अति वृद्ध, अशक्त बीमारी से ग्रसित युद्ध क्षेत्र में लड़ते हुये अथवा ऐसी ही किसी विपन्न स्थिति में पड़े हुए व्यक्ति के सम्बन्ध में उसकी मृत्यु सम्भावना का कल्पना क्षेत्र में स्थान हो सकता है और उस स्तर के स्वप्न दीख सकते हैं किन्तु जो पूर्ण स्वस्थ एवं भली चंगी स्थिति में हैं उनके आकस्मिक निधन की सम्भावना किस की कल्पना में होगी और कोई क्यों उस प्रकार के स्वप्न देखेगा।

आकस्मिक मृत्यु की सूचना बिना किसी संचार साधन के जब स्वजन सम्बन्धियों को मिलती है तो उससे आत्मा के अस्तित्व और सूक्ष्म जगत में घटित होने वाली हलचलों का तथ्य रूप से प्रमाण मिल जाता है। घनिष्ठता स्नेह सूत्र में बंधे हुए लोगों के साथ किसी विशेष उत्तेजना के समय विशेष रूप से प्रभावित करती है। इस तथ्य को हम मृत्यु की अदृश्य सूचनाओं का विश्लेषण करते हुए सहज ही जान सकते हैं। ऐसी घटनायें एक नहीं अनेक हैं और ऐसी हैं जिन्हें किंवदंती नहीं, प्रामाणिकता की कसौटी पर खरा मानने में कोई अड़चन नहीं पड़ती।

ऐसी अनुभूतियां प्रायः स्वप्नावस्था अथवा अर्ध निद्रा की स्थिति में होती हैं। गहरी नींद को सुषुप्ति कहते हैं। वह उतनी प्रगाढ़ होती है कि उसमें मस्तिष्कीय तन्तु प्रायः पूरी तरह निःचेष्ट हो जाते हैं। उस स्थिति में कोई स्वप्न नहीं आता। तन्द्रावस्था में अन्तःर्मन सक्रिय रहता है और यदि उसमें सूक्ष्म जगत के साथ सम्पर्क बना सकने लायक संवेदना हुई तो रहस्यमय अदृश्य घटना चक्रों को समझने और पकड़ने में समर्थ हो जाता है। कभी-कभी मृत्यु जैसी घटनाएं अपने आप में इतनी प्रबल होती हैं कि वे सामान्य स्तर के व्यक्तियों को भी आत्मीयता का सूत्र जुड़ा रहने के कारण प्रभावित करती हैं और उन्हें उस प्रकार की सम्भावना का स्वप्न में आभास देती हैं। नेपोलियन जिस दिन मरा, उसी दिन सैकड़ों मील दूर अपनी मां से मिलने पहुंचा। मां ने यही समझा कि वह सहसा मिलने आ गया है। मृत्यु की तब तक कोई सूचना मिलने का प्रश्न भी तो नहीं था। नेपोलियन मां के पास पहुंच कर बोला—‘‘मां! अभी ही झंझटों से मुक्त हो पाया हूं।’’ अन्य तीन व्यक्तियों ने भी उसे देखा। बाद में पता चला, नेपोलियन की उसी समय मृत्यु हुई थी।

कवि वायरन ने भी ऐसी अनेक अनुभूत घटनाओं का वर्णन किया है। उनमें से एक यह है—

‘‘एक ब्रिटिश कैप्टिन किड गहरी नींद में सो रहे थे। सहसा उन्हें लगा—बिस्तर पर कोई भारी बोझ है। आंखें खोली तो देखा, सुदूर वेस्टइण्डीज में नौकरी कर रहा भाई बिस्तर पर बैठा है। उसका उस समय वहां होना असम्भव था। किड ने सोचा- सपना है और आंख मूंद लीं। थोड़ी देर बाद फिर देखा—भाई अभी भी वहीं है। तब भाई की ओर हाथ बढ़ाया। उसका कोट पानी से तर था। हड़बड़ा कर वे उठे। कुछ देर में भाई गायब हो गया। बाद में पता चला उसी समय भाई की पानी में डूब जाने से वेस्टइण्डीज में ही मृत्यु हो गई थी।’’

फिल्म-तारिका ओलिविया एक शाम को कुछ उदास थी। अपने एक मित्र के यहां से काम के बाद पैदल ही टहलती घर की ओर चल पड़ी। घर के पास वह पहुंची तो लगा—उसकी बांह के नीचे कोई हाथ है और साथ का व्यक्ति धीरे-धीरे एक गीत गुनगुना रहा है। वह बेहद थकी थी। स्वर व स्पर्श परिचित था। अतः मान लिया कि उसका वह मित्र अभी ही बाहर से आया होगा। घर आने पर यह जानकर कि मैं अमुक जगह काम पर गई हूं, वहां पहुंचा होगा। फिर वहां पता चला होगा कि मैं अभी-अभी पैदल ही घर चल दी हूं तो राह में आ पकड़ा है। यह उसकी आदत थी। ओलिविया को स्वभाविक ही खुशी हुई। वह चलती रही। फिर स्वयं भी उसके साथ गुनगुनाने लगी। जब घर के दरवाजे पर पहुंची तो उसने कहा—‘गुडनाइट’ और जाकर सो गई। सोचा- मित्र भी घर गया।

सुबह नाश्ते के समय अखबार पलट रही थी, तो अन्दर के पृष्ठ पर एक खबर छपी थी कि ओलिविया का वह मित्र एक दिन पूर्व दोपहर को मार डाला गया है। कैप्टिन फ्रेडरिक प्रथम वर्मा युद्ध में एक जहाज में कमांडर ऑफीसर के नाते ड्यूटी पर थे। एक रात सहसा उन्होंने एक व्यक्ति को अपने कैबिन में घुसते देखा। वे सतर्क हो गये और उस पर आक्रमण करना ही चाहते थे कि चांदनी के प्रकाश में उन्होंने स्पष्ट पहचाना उनका भाई। वे चौंक पड़े। भाई और पास आया। बोला—‘फ्रेड, मैं तुम्हें यह बताने आया हूं कि मैं मर चुका हूं।’ फ्रेड सभी घटनाओं का ब्यौरा लिख रखते थे। अतः इस घटना का भी समय व विवरण लिख लिया। इंग्लैण्ड लौटे तो पता चला, उसी घटना वाले दिन, ठीक उसी समय उनके भाई की मृत्यु हुई थी।

क्वीन्स टाउन की श्रीमती काक्स का अनुभव भी दिलचस्प है। जब वे मायके में थीं, उनका भाई, जो कि नेवी में अफसर था और हांगकांग में तैनात था, अपने छोटे बच्चे को उन्हीं की देखभाल में छोड़ गया था। एक रात जब वे नित्य की भांति उस भतीजे को कमरे में सुलाकर अपने कमरे में आईं, तो थोड़ी ही देर बात वह बालक भाग आया और डरी-डरी आवाज में बताया आंटी! मैंने अभी-अभी पिताजी को अपने बिस्तर के पास चलते हुए देखा। श्रीमती काक्स ने समझाया कि तूने सपना देखा होगा। बच्चा डरा था। अतः अपने कमरे में नहीं गया। वहीं सो गया। कुछ समय बाद श्रीमती काक्स भी लेट गईं। लेटने के थोड़ी देर बाद उन्होंने देखा—उनके भाई अंगीठी के पास कुर्सी पर बैठे हैं। उनके चेहरे पर पीलापन है। वे चौंक पड़ीं। बाद में वह छाया गायब हो गई। कुछ दिनों बाद पता चला कि उक्त घटना के कुछ घण्टों पहले श्रीमती काक्स के भाई की हांगकांग में आकस्मिक मृत्यु हो गई थी।

रूसी वैले नर्तक श्री सर्जेडक्रेंसकी 1919 में एक ड्रामे हेतु रिहर्सल करके लौटे और भोजन के पश्चात थकान दूर करने बिस्तर पर लेट गये। रात के पहले चरण में ही सर्जे न स्वप्न देखा कि जिस वृक्ष के नीचे क्रिसमस त्योहार मनाया जा रहा है वहां एक नाटक मन्त्र सजा है जिस पर ‘इस्फान्टो’ संगीत नाटिका दिखाई जाने वाली है। अचानक पेड़ पर से एक जलती हुई मोमबत्ती मंच पर गिरी और प्रेड्यूसर एडाल्फवाम मंच के पीछे भागते नजर आये और उस स्थान पर सुन्दर सफेद फलों का ढेर लगा हुआ है। इतना देख कर सर्जे की नींद भंग हो गई और सचमुच ही वह आयोजन जिसके लिए सर्जे रिहर्सल करके लौटे थे क्रिसमस के दो दिन पूर्व ही हुआ और तैयारी के बीच में ही सूचना मिली कि संचालक मौत का शिकार हो गया है और सर्जे ने अपनी आंखों से पुनः स्वप्न वाले सफेद फूल मृतात्मा की श्रद्धांजलि के रूप में देखे।

अर्थों का सामंजस्य न बिठाये जा सकने वाला एक स्वप्न नवम्बर 1917 को अमेरिका के डा. वाल्टर फैंकलिन प्रिंस को आया। उनने देखा स्वप्न में एक महिला ने आकर उनके हाथ में एक पर्चा दिया जिसमें लिखा था ‘पत्र वाहिका को सजाये मौत दी जाये लाल स्याही से लिखी इस बात को पढ़कर उनने उस महिला को बड़े ध्यान से निहारा इसी बीच उस महिला ने उनका हाथ पकड़कर जोर से दबा दिया। प्रिंस को ऐसा अनुभव हुआ कि महिला ने उनके दूसरे हाथ की अंगुलियां दांतों से चबा डालीं और ऐसा करते ही उस महिला का सिर धड़ से अलग होकर गिर गया। यह स्वप्न प्रिंस के मन-मस्तिष्क पर हावी रहा। उनने यह स्वप्न अमेरिका की परा-मनोविज्ञान शोध समिति की सदस्या किसटवी को सुनाया तो उनने भी नोट भर कर लिया और अधिक कर भी क्या सकती थीं वे, पर सुबह के समाचार पत्र में एक 37 वर्षीय महिला द्वारा रेल की पटरी पर लेट कर आत्महत्या करने का समाचार देखा उसका हैण्ड बैग उसका नाम ‘सारा-हैण्ड’ बता रहा था। डा. प्रिंस ने शव देखा तो स्वप्न वाली महिला का ही था। तब उन्हें ‘हैण्ड’ माने हाथ को दांत से काटना, सिर धड़ से अलग होना ये सारे संदर्भ जुड़ते नजर आये।

अमेरिका के उच्च सैनिक अधिकारी कर्नल गार्डिनर की पुत्री ‘जूलिमा’ और जल सेना के तत्कालीन सैक्रेटरी श्री थामस डब्ल्यू. गिलमर की पत्नी ‘ऐनी’ दोनों ने 27 फरवरी 1844 को स्वप्न में अपने-अपने पतियों की मृत्यु को देखा तो दूसरे ही दिन 28 फरवरी को वाशिंगटन में होने वाले राष्ट्रीय उत्सव में जाने से अपने-अपने पतियों को रोका, पर वे गये ही और उत्सव में प्रदर्शन होने वाली दो तोपों के वैरेल में ही गोले फट जाने से उन दोनों की मृत्यु हो गई।

‘जूलिमा’ सौ मील दूर बैठे अपने पति की स्थिति से अवगत (स्वप्न में) होने का दावा करतीं। एक स्वप्न में उनने अपने नव-विवाहित पति प्रेसीडेन्ट-टेलर का पीला चेहरा देखा—तब वे रिचमान्ड में थे। स्वप्न में वे हाथ में टाई और कमीज लिये हुए कह उठे ‘‘मेरा सिर थाम लो’’। स्वप्न टूटा पर घबराई हुई जूलिमा सुबह ही रिचमांड के लिए रवाना हो गई और प्रेसीडेंट टेलर को सकुशल पाया, पर जहां वे ठहरे थे उस होटल में दुर्घटना के कारण एक मृत्यु का ठीक वही दृश्य था।

श्रद्धायुक्त, स्वच्छ, पवित्र मन वाले उपासक आत्मचिन्तन करते हुए सार्थक स्वप्न देख मानव कल्याण का हेतु बन सकते हैं।

इंग्लैण्ड की एक 12 वर्षीय बालिका जेनी को भी सत्यसूचक स्वप्न आते थे। पहले तो उस पर कोई विश्वास न करता। किन्तु 29 जनवरी 1898 के दिन उसके पिता कप्तान स्प्रूइट एक जहाज पर कोयला लाद कर विदेश चल दिये। एक रात सहसा बालिका चीख पड़ी। कारण पूंछने पर उसने बताया—पिताजी का जहाज डूब गया है, पर उन्हें एक अन्य जहाज ने बचा लिया है। मां ने डांटकर जेनी को चुप कर दिया, पर 25 फरवरी को लौटकर स्प्रेइड ने जो कुछ बतलाया वह जेनी के स्वप्न के अनुसार पूरी तरह घटित हुआ था। सभी विस्मित रह गए।

वर्तमान के घटनाक्रमों का स्वप्न में दिखाई पड़ना इस आधार पर सही समझा जा सकता है कि सूक्ष्म जगत में हो रही हलचलें एक स्थान से दूसरे स्थान तक रेडियो तरंगों की तरह जा सकती हैं और बिना संचार साधनों के भी, उनका परिचय मिल सकता है, पर आश्चर्य तब होता है जब भविष्य में घटित होने वाली घटनाओं का बहुत समय पहले ही आभास मिल जाता है। ऐसे स्वप्नों की भी कमी नहीं जिनमें मृत्यु अथवा अन्य प्रकार के पूर्व संकेत स्वप्न में मिले हैं और वे सही सिद्ध होकर रहे हैं।

अमेरिका के एक नागरिक एलन बेधन ने एक रात स्वप्न देखा कि तत्कालीन राष्ट्रपति राबर्ट कनैडी एक भीड़ के साथ किसी पार्टी में जा रहे हैं। रास्ते में विरोधी दल का एक सदस्य उन्हें गोली मार देता है और राष्ट्रपति की मृत्यु हो जाती है।

एलन ने अपना सपना ‘स्वप्न अनुसंधान संस्था’ के रजिस्टरों में नोट कर दिया और अनुरोध किया कि वे इस सपने की बात राष्ट्रपति तक पहुंचा दें। इस के एक सप्ताह बाद सचमुच वह सपना सत्य हो गया और राष्ट्रपति गोली से मारे गये।

एक दिन एक आस्थावान छात्र अपने नास्तिक प्रोफेसर फ्रान्ज मेमर के पास प्रातःकाल ही पहुंच गया और बोला सर! आज बहस करने नहीं प्रमाण लेकर आया हूं। जेना विश्व-विद्यालय के ये प्रोफेसर एवं छात्र प्रायः आस्तिकतावाद पर विवाद करते रहते पर बिना प्रमाण प्रोफेसर महोदय मानने को तैयार नहीं होते। छात्र ने कहना प्रारम्भ किया आज रात मैंने एक स्वप्न देखा है किन्तु आपको बताऊंगा नहीं। मात्र इतना बताता हूं कि मेरी मृत्यु शीघ्र होगी। प्रसंग यहीं समाप्त हो गया। घटना घटित होने तक के क्षणों के लिए और हफ्ते भर बाले ही सोमवार को वह छात्र बीमार पड़ा और तीसरे दिन तक उसका काम ही हो गया। प्रोफेसर महोदय आतुर मन लिए अंत्येष्टि समाप्त होते ही छात्र के घर पहुंचे और उस दिन छात्र द्वारा मृत्यु के बाद बक्सा खोलकर देखने के लिए दिये संकेतानुसार बक्सा खेल कर उस दिन के स्वप्न का लिखित वृत्तांत पढ़ा। लिखा था—‘‘तारीख 17 दिन बृहस्पतिवार को प्रातःकाल पांच बजे मेरी मृत्यु हो जायगी। मुझे अमुक स्थान पर दफनाया जा रहा होगा तब मेरे माता-पिता आयेंगे और मुझे एक बार फिर बाहर रखकर देखेंगे। इसके बाद मुझे दफना दिया जायगा।’’ प्रोफेसर महोदय के आश्चर्य का ठिकाना न रहा लिखित विवरण अनुसार ही सारा नाटक आंखों से देख कर अन्ततोगत्वा उन्हें स्वीकार करना पड़ा उस सत्ता को जिसे हठ वश उपेक्षित किया जाता है।

अवोहर (पंजाब) से छपने वाले पत्र ‘दीपक’ में 7 अगस्त 1939 के अंक में एक घटना छपी कि लुधियाना के पुराना बाजार में एक ब्राह्मण के यहां झीवर नौकरी करता और प्रतिदिन पूजन के लिए विल्व-पत्र तोड़ लाता। उसने एक दिन स्वप्न देखा कि वह विल्व-पत्र तोड़ने पेड़ पर चढ़ा तो नीचे खड़ा एक भैंसा कह रहा है कि तुम नीचे उतरे और मैंने तुम्हें मार डाला। यह बात उसने गांव वालों को सुनाई पर किसी ने उस स्वप्न को महत्व नहीं दिया। किन्तु सचमुच ही जब वह दूसरे दिन प्रातःकाल विल्व-पत्र तोड़ने पेड़ पर चढ़ा तो एक क्रोधित भैंसा पेड़ के नीचे आ धमका। उसे देख वह भयभीत हो नीचे गिर पड़ा और मर गया।

एक रात हरफोर्ड के आर्क विशप की पत्नी ने स्वप्न देखा कि एक सुअर उनकी डाइनिंग टेबल पर भोजन कर रहा है। प्रातःकाल यह बात विशप से कहीं तो वे हंसकर रह गये। पर वास्तव में जब पत्नी-पति गिरजा घर से प्रार्थना करके लौटे तो देखा कि पड़ौसी का पालतू सुअर किसी प्रकार उनके घर घुस आया है और भोजन की टेबल पर सवार है। पति-पत्नी के लिए नौकर द्वारा लगाया गया नाश्ता उनके पहुंचने तक सुअर साफ कर चुका था।

एक दुर्घटना की पूर्व सूचना दुर्घटना, तथा दुर्घटना हो जाने के निश्चित समाचार लगातार एक ही स्वप्न के तीन बार आने के रूप में मैनचेस्टर की ही एक स्त्री का अनूठा अनुभव है। तीनों बार स्वप्न में उसने देखा कि उसकी लड़की की मृत्यु मोटर दुर्घटना से हो गई है। और प्रातःकाल सचमुच ही समाचार आ गया कि उसकी लड़की मोटर दुर्घटना में समाप्त हो गई है। एक ही स्वप्न की तीन बार पुनरावृत्ति के द्वारा, पहिले दुर्घटना के भविष्य की रचना, दूसरी बार दुर्घटना एवं तीसरी बार दुर्घटना के भविष्य की रचना, दूसरी बार दुर्घटना एवं तीसरी बार दुर्घटना हो चुकने के समाचार से अवगत कराया गया।

स्वयं डा. फ्राइड ने अपनी पुस्तक ‘इन्टर प्रिटेशन आफ ड्रीम’ में एक अनूठी घटना से सम्बन्धित स्वप्न के सम्बन्ध में लिखा कि....

‘‘मेरे शहर में एक प्रतिष्ठित व्यक्ति के पुत्र का देहावसान हो गया। रात्रि में अंत्येष्टि सम्भव न होने से प्रातःकाल करने का निर्णय कर शव के चारों ओर मोमबत्ती जला एक पहरेदार छोड़ मृतक का पिता अपने कमरे में जा सोया। नींद लगे थोड़ा ही सम हुआ होगा कि स्वप्न में उनका लड़का उनके सामने खड़ा हो कह रहा है कि क्या मेरी लाश यहीं जल जाने दोगे। यह स्वप्न देखते ही उसकी नींद टूटी और उसने झांक कर देखा तो लाश वाले कमरे में प्रकाश हो रहा था। वह वहां पहुंचा तो देखा कि पहरेदार सो गया है और मोमबत्ती गिर जाने से कफ़न में आग लगने से लाश ही क्या यदि विलम्ब हो जाता तो मकान ही जल जाता।’’

इस स्वप्न से फ्राइड को यह स्वीकार करना पड़ा कि स्वप्न जगत को दृश्य जगत एवं स्थूल वासनाजन्य कल्पनाओं तक सीमित करना भूल ही होगी। हां अक्षरशः सत्य निकलने वाले स्वप्नों की तह तक हम अवश्य ही नहीं पहुंच पाते।

भूतकाल में हुई घटनाओं के आभास कई बार स्वप्नों में मिलते हैं। इस सन्दर्भ में यह समझा जा सकता है कि जिस प्रकार मस्तिष्क में भूतकाल की स्मृतियां प्रसुप्त स्थिति में पड़ी रहती हैं और जब कभी अवसर आता है, तब वे उभर कर सामने आ जाती हैं। इसी प्रकार सूक्ष्म जगत में भूतकाल की घटना अपना अस्तित्व बनाये विचरण करती रहती होंगी और जब जहां उनका सम्पर्क बनता होगा वहां स्वप्न अथवा आभास रूप में जिस-तिस को उनका अनुभव हो जाता होगा।

परा मनोविज्ञान की वर्तमान खोजों में इस प्रकार के हजारों प्रमाण बहुत छान-बीन के बाद एकत्रित किये हैं और विशेषज्ञों ने तथ्यों का कारण समझ सकने में अपनी असमर्थता व्यक्त करते हुए भी इतना तो स्पष्ट रूप से स्वीकार किया है कि जिन सूत्रों से इन घटनाओं का संकलन पूरी छान-बीन के साथ किया गया है उनमें अतिशयोक्ति एवं किम्वदन्तियों का अंश कदाचित ही कहीं रहा होगा। अन्यथा वे विश्वस्त भी हैं और प्रमाणिक भी।

मैनचैस्टर की घटना है। एक पिता ने अपने दो पुत्रों को एक खण्डहर मकान में ले जाकर मार डाला और जलाकर हड्डियां गाढ़ दीं और पुलिस मैनचेस्टर के इस दम्पत्ति के साथ संवेदना व्यक्त करते हुए लड़कों की खोज करती रही, पर पता न लग सका। एक रात चिंतित माता को स्वप्न आया जिसमें उसने देखा कि उनके पति महाशय अपने दोनों लड़कों को साथ लेकर एक खण्डहर मकान में घुसे और उनको मौत के घाट उतार दिया। यह निर्मम दृश्य देख मां का हृदय चीत्कार कर उठा और नींद भंग हो गई। उसने स्वप्न का संदर्भ देते हुए पुलिस में रिपोर्ट की पर पुलिस बिना प्रमाण मानने तैयार नहीं हुई। तब उसने कहा ‘‘मैंने उस जगह स्वप्न में चेस्टर सिटी लिखा देखा था। यदि मुझे चेस्टर सिटी ले जाया जा सके, तो मैं उस स्थल को बता सकती हूं। पुलिस इस आधार पर उस महिला की मदद को तैयार हो गई। और चेस्टर-सिटी पहुंच कर महिला ने पहले कभी न देखे उस शहर के गली कूंचे पार करते हुए उस खण्डहर मकान में लेजाकर पुलिस को खड़ा कर दिया, जहां शब को जलाने के निशान मिले और गड्ढे में गाड़ी गई हड्डियां भी मिलीं।

स्वप्नों की दुनिया बच्चों की खिलवाड़। विसंगत कल्पनाओं का झुण्ड समुच्चय। चारपाई पर पड़े-पड़े बिना टिकट घण्टों देखा जाने वाला सिनेमा। अकारण कौतूहल और असमंजस में डालने वाली मृगमरीचिका। मस्तिष्क के मकड़े का अपने थूक से बुना बनाया गया ताना बाना। ऐसे ही और भी अनेक नाम इस असत् को सत् बना कद दिखा देने वाली माया जंजाल के नाम दिये जा सकते हैं, पर वस्तुतः बात इतनी छोटी नहीं। उनके पीछे यह तथ्य और रहस्य सुनिश्चित रूप से छिपा हुआ है कि हमारे सूक्ष्म जीवन और भगवान के सूक्ष्म जगत की स्थिति को देख सकना स्वप्नों के झरोखों में बैठ कर सम्भव हो सकता है।

मैडम डी. माइगोलन डालैण्ड सरकार की ओर से स्वीडन में राजदूत की धर्मपत्नी थीं। उनके पति को अपने देश के एक महाजन को 25 हजार पौंड का ऋण भुगतान करना था, सो उन्होंने कर भी दिया और उसकी रसीद लेकर किसी सुरक्षित स्थान में रख दी। यह बात माइगोलन को मालूम थी कि ऋण चुका दिया गया है किन्तु रसीद की उन्होंने कोई परवाह नहीं की। इसी बीच पति की मृत्यु हो गई। उसके कुछ दिन बाद वह महाजन आया और उसने श्रीमती माइगोलन से 25 हजार पौंड का ऋण भुगतान करने को कहा। वह जानती थीं कि ऋण दे दिया गया है किन्तु रसीद न होने के कारण कोई पुष्ट प्रमाण न दे सकी। तब यह लगभग निश्चित-सा हो गया कि भुगतान करना ही पड़ेगा। माइगोलन की बात किसी ने नहीं मानी।

एक सप्ताह बाद माइगोलन सो रही थी, तब उन्हें ऐसा लगा जैसे पति की आत्मा उनके पास आई हो और बताया हो कि रसीद अमुक स्थान पर रखी है। ठीक उसी समय नींद टूट गई। माइगोलन ने उस स्थान में जाकर देखा तो रसीद सुरक्षित रखी थी। आत्मा के अस्तित्व को प्रमाणित करने के लिये इससे अच्छा उदाहरण और क्या हो सकता है? यह जानकर तो और आश्चर्य होता है कि स्वप्नों के आधार पर अपराधियों की धरपकड़ भी की गयी है। रोम में की गयी एक हत्या का सुराग मृतक की पत्नी द्वारा देखे गये सपने के आधार पर मिला। बताया जाता है कि मृतक की पत्नी एमीलिया ने ही सर्व प्रथम पुलिस को यह सूचना दी कि उसके पति की हत्या की गयी है—जबकि उसके पति रूसो का शव एक दुर्घटनाग्रस्त क्षत-विक्षत कार में पाया गया था। जिनके सम्बन्ध में यह मान लिया गया था कि रूसो की मृत्यु कार दुर्घटना के कारण हुई है। जब पोस्ट मार्टम हुआ तब पता चला कि मृत्यु दुर्घटना नहीं एक तीव्र जहर है जो शराब में मिला कर पिलाया गया है।

एमीलिया ने स्वप्न में अपने पति का शव देखा था और उस पर बैठी हुई एक स्त्री भी जिसने हत्या की थी। इस स्त्री के सम्बन्ध में एमीलिया तो कुछ भी नहीं जानती पर वह उसके पति को फांसने वाली एक चालाक औरत थी, जिसने एक लम्बी रकम ऐंठने के बाद रूसो की हत्या करदी थी। लिसा और उसके सहयोगी भारि को गिरफ्तार कर लिया जिनने अपना अपराध कबूल कर लिया। एमीलिया ने लिसा को देखते ही पहचान लिया और कहा कि यही है वह औरत जिसे मैंने स्वप्न में अपने पति के शव पर बैठा देखा है। मैं इस रात वाली इसकी कुटिल मुस्कान को तो जिन्दगी भर नहीं भूल सकूंगी।

लिसा के सहयोगी भारि ने अपने बयान में एक विस्मय जनक बात कही कि जब वह और लिसा रूसो की लाश को खोह में छोड़ कर बाहर आ रहे थे, तो उन्हें लगा था कि खोह में उन दोनों के अलावा कोई तीसरा व्यक्ति भी मौजूद है यह अनुभूति बहुत तीव्र थी मैंने लिसा को बार-बार बताया भी कि कोई हमारा पीछा कर रहा है। इस घटना में प्रेम सम्बन्धों की प्रगाढ़ता से व्यक्तियों के घनिष्ठ और सूक्ष्म आन्तरिक सम्पर्क सूत्रों की प्रतीति होती है, जिसे भारतीय ऋषियों ने हजारों वर्ष पूर्व सिद्ध कर दिखाया है। अब इस प्रश्न का उत्तर आसानी से खोजा जा सकता है कि स्वप्न क्या केवल यौनेच्छाओं की प्रतीकात्मक तृप्ति का साधन है या और भी कुछ? यह तो ठीक है कि व्यक्ति अतृप्त आकांक्षाओं की पूर्ति स्वप्नों के माध्यम से भी करता है, पर उसमें केवल, यौन जीवन का ही सम्बन्ध नहीं है। स्वप्नों के माध्यम से भविष्य के संकेत भी प्राप्त किये जा सकते हैं। इस विद्या में प्राचीन ऋषियों ने काफी प्रगति भी की है।

आत्मा को हमारे शास्त्रों में त्रिकालदर्शी कहा गया है। यों भविष्य की कुछ बातें यन्त्रों की सहायता से भी मालूम हो जाती हैं पर वे बहुत मोटी हैं। मौसम सम्बन्धी थोड़ी जानकारी के अतिरिक्त विज्ञान कुछ नहीं जान पाता पर कई बार ऐसी विलक्षण घटनायें घटती हैं, जिन्हें देखकर यह मानना पड़ता है कि भौतिक मन से भी बहुत प्रचण्ड क्षमता वाली कोई शक्ति मनुष्य शरीर में है और वह अतीत की ही नहीं अनागत भविष्य की भी अनेक बातें काफी पहले जान लेती है, ऐसा क्यों होता है, यह कभी बाद में लिखेंगे, यहां एक घटना का उल्लेख करेंगे, जिससे सर्वदर्शी आत्मा के अस्तित्व का प्रमाण मिलेगा। यह घटना हिन्दुस्तान टाइम्स के 19 मई 1941 के अंक में प्रकाशित हुई थी और स्टाक होम के ‘डेजन्स नेहटर’ पत्र से उद्धृत की गई थी—

‘स्वीडन’ देश के स्टाकहोम की जुलाई 1940 की बात है। हन्स क्रेजर नानक एक क्लर्क अपनी चौथी मंजिल वाले कमरे में बैठा हुआ, दूर तक फैले हुए बाल्ठिक सागर को छूकर आ रही शीतल वायु का सेवन कर रहा था। एकाएक उसकी दृष्टि सामने वाले मकान के चौथी मंजिल वाले कमरे में दौड़ गई। उसने देखा एक युवती कमरे में बैठी कोई पुस्तक पढ़ रही है। अपनी ओर आकृष्ट करने के लिये हंस क्रेजर काफी देर तक उधर ताकता रहा। सहसा उसने एक अर्द्ध वयस्क व्यक्ति को कमरे में प्रवेश करते देखा। उसके हाथ में एक लम्बा खुला हुआ चाकू था और उसकी मुद्रा बहुत डरावनी हो रही थी। मनुष्य ने वहां पहुंचते ही उस युवती के पेट में चाकू भोंक कर हत्या कर दी, वह महिला चिल्लाकर धराशायी हो गई। यह सब इतनी शीघ्र हुआ कि क्रेजर सहायता के लिये भी नहीं पहुंच सका। वह खड़ा होकर चिल्लाया भी पर नीचे उसकी आवाज नहीं पहुंच सकी। वह काफी घबरा गया था।

क्रेजर शीघ्रता से नीचे उतरा और उस मकान के स्वामी के पास जाकर उक्त घटना का विवरण घबराते हुए सुनाया और शीघ्रता से ऊपर के कमरे में चलने का आग्रह किया। मकान का स्वामी हंसा और बोला—‘क्रेजर! तुम्हारा मस्तिष्क खराब हो गया है, चौथी मंजिल पर तो कोई किरायेदार रहता ही नहीं, वह कमरे खाली पड़े हैं, वहां किसकी हत्या होगी। पर क्रेजर माना नहीं उसने पुलिस को सूचना दी। पुलिस आई और क्रेजर के बताये कमरे में गई पर वहां न कोई आदमी, न कोई लाश। खून के धब्बे तो क्या पानी की बूंद भी वहां नहीं थी। फिर भी क्रेजर बराबर हठ करता रहा कि उसने सच-सच हत्या होते देखा है। अन्त में उसे पागल समझ कर पागल खाने भेज दिया गया। एक सप्ताह बाद एक स्त्री और एक पुरुष उस मकान के स्वामी के पास किराये के मकान के लिये आये। पहले तो मकान का स्वामी चौंका, क्योंकि वह स्त्री और वह पुरुष ठीक वैसे ही कपड़े पहने थे, जैसा कि क्रेजर बता रहा था, किन्तु फिर वह संभल गया, क्योंकि हत्या की घटना से इसकी कोई संगति नहीं बैठती थी। उस दम्पत्ति ने वह कमरा किराये पर ले लिया। तीन महीने बाद ऊपर के किरायेदार नीचे भागे आये और उन्होंने बताया कि उस कमरे में जोर की चीखने की आवाज आई है। पुलिस बुलाई गई और सब लोग ऊपर पहुंचे लोग यह देख कर आश्चर्यचकित रह गये कि हत्या की जो परिस्थितियां क्रेजर ने तीन महीने पहले बताई थीं ठीक उसी अवस्था में यह हत्या की गई थी है। पति ने स्वीकार किया कि उसने ईर्ष्यावश यह हत्या की है। बाद में डाक्टरों की एक समिति ने क्रेजर को पागलखाने से छुड़ाया ताकि उसके इस भविष्य-दर्शन का अध्ययन किया जा सके।

तीन महीने बाद की घटना का हूबहू चित्रण—क्या विज्ञान इस सम्बन्ध में कोई निश्चत निराकरण प्रस्तुत कर सकता है। अमेरिका जो विज्ञान में इतना बढ़ा-चढ़ा है कि चन्द्रमा और मंगल की यात्रा की तैयारी कर रहा है, वह अपने ही तीन यात्रियों की मृत्यु का पूर्वाभास न कर सका। बेचारे चन्द्रयान में ही सब देखते-देखते घुटकर जल मरे। यान्त्रिक मस्तिष्क और कम्प्यूटर गणित के थोड़े समीकरण हल कर सकते हैं, भविष्य दर्शन जैसी विलक्षण बातें आत्मा के गुण हैं, आत्मा के अस्तित्व का प्रमाण हैं, उसकी उपेक्षा नहीं की जा सकती।

स्वप्न में विचार, ज्ञान और स्मृति भी आत्मा के अस्तित्व को ही प्रमाणित करते हैं। फ्रायड लिखते हैं कि स्वप्न ‘इच्छा पूरक’ होते हैं और भूतकालीन समस्याओं के लिये नाटक की तरह हैं अर्थात् मनुष्य दिन में जो कुछ सोचता और करता है, उनमें से कई बातें ऐसी होती हैं, जिन्हें वह बहुत चाहता है पर कर नहीं पाता पर चूंकि वह उन पर विचार कर चुका होता है। इसलिये उस दमित विचार की फोटो अचेतन मस्तिष्क में जम जाती है और रात में जब मनुष्य सोता है, तब वही दृश्य उसे स्वप्न की तरह दिखाई देने लगते हैं।

आज स्वप्नों के बारे में लोगों की ऐसी ही या इसी से मिलती जुलती मान्यतायें हैं पर आत्म विज्ञान की दृष्ट में स्वप्न मनुष्य जीवन, की महत्वपूर्ण प्रक्रिया है। उसका सम्बन्ध भले ही अचेतन मन से हो पर वह होता सनातन अर्थात् जब से जीव का प्रादुर्भाव हुआ है, तब से और आगे होने वाली घटनाओं से भी सम्बन्ध रखता है। इसलिए स्वप्न को भी आत्मा के अस्तित्व के प्रमाण के रूप में लिया जा सकता है। ऐसे स्वप्न जो उपरोक्त घटना की तरह काफी समय बाद होने वाली घटनाओं का भी पूर्वाभास करा देते हैं, उसके प्रमाण माने जा सकते हैं।

व्वयाल शिमला में अफसर थे। उन्होंने एक रात स्वप्न देखा कि उनके श्वसुर की मृत्यु इंग्लैंड के ब्राइटन नगर में अमुक मकान में इस समय हुई। जबकि कुछ दिन पूर्व ही उनके स्वास्थ्य की कुशल-मंगल आई थी, इसलिये उन्हें इस तरह की कोई आशंका या चिंता भी नहीं थी, किन्तु बाद में उन्हें पत्र मिला जिसमें उनका स्वप्न बिल्कुल सत्य निकला।

इस सन्दर्भ में भारतीय मनीषियों का प्रतिपादन स्पष्ट है—दो प्रश्नों का सन्तोषजनक उत्तर प्राप्त करने के उपरान्त मुनि गार्ग्य सौयविणी ने महर्षि पिप्पलाद से तीसरा प्रश्न पूछा, ‘कौन देवता स्वप्नों को देखता है।’ मुनिवर के इस प्रश्न का उत्तर देते हुए महर्षि ने बताया था—

‘अत्रैष देवः स्वप्ने महिमानमनु भवति। यद् दृष्टं दृष्टमनुपश्यति श्रुतं श्रुतमेवार्थ मनुशृणोति। देश दिगन्तरैश्च प्रत्यनुभूतं पुनः पुनः प्रत्यनुभवति दृष्टं चादृष्टं च श्रुतं चाश्रुतं चानुभूतं चाननुभूतं च सच्चासच्च सर्व पश्यति सर्व पश्यति।’ —प्रश्नोपनिषद 4।5

हे महामुनि! स्वप्नावस्था में जीवात्मा ही मन और सूक्ष्म इन्द्रियों द्वारा अपनी विभूति का अनुभव करता है। इसने पिछले अनेक जन्मों में जहां कहीं भी जो कुछ बार-बार देखा, सुना और अनुभव किया हुआ है, उसी को स्वप्न में बार-बार देखता सुनता और अनुभव करता है। परन्तु यह नियम नहीं है कि जागृत अवस्था में इसने जिस प्रकार, जिस ढंग से, जिस जगह जो घटना देखी-सुनी और अनुभव की है, उसी प्रकार यह स्वप्न में भी अनुभव करता है, अपितु स्वप्न में जागृत की किसी घटना का कोई अंश किसी दूसरी घटना के किसी अंश के साथ मिलकर एक नये ही रूप में इसके अनुभव में आता है। अतः यह स्वप्न में देखे और न देखे हुए को भी देखता है, सुने और न सुने हुए को भी सुनता है, अनुभव किये और अनुभव में न आते हुए को भी अनुभव करता है, उसे भी देख लेता है। इस प्रकार स्वप्न में यह विचित्र ढंग से सब घटनाओं का बार-बार अनुभव करता है और स्वयं भी सब कुछ बनकर देखता है, उस समय जीवात्मा के अतिरिक्त कोई दूसरी वस्तु नहीं रहती।

अगले प्रश्न के उत्तर में महर्षि पिप्पलाद ने यह भी स्पष्ट कर दिया कि स्वप्नावस्था में मन उदान वायु के आधीन हो जाता है, उदान वायु द्वारा मन जब हृदय गुहा में पहुंच जाता है तो मन की शक्ति समाप्त होकर वह आत्मा में परिणत हो जाती है। उस मोहित अवस्था का नाम ही स्वप्न है और उस समय जो कुछ सुख-दुख की अनुभूति होती है, वह मन को नहीं आत्मा को ही होती है।

उपरोक्त तथ्यों के प्रमाण में उन स्वप्नों को रखा जा सकता है, जिनसे भविष्य में घटने वाली घटनाओं का पूर्वाभास स्वप्न में हुआ। अन्य व्यक्ति के साथ दूरस्थ स्थान में हो रही घटनाओं का आभास किसी और को और स्थान में हुआ और बाद में उन्हें पूर्णतया सत्य पाया गया। कुछ स्वप्न ऐसे भी हुए हैं, जिनमें किसी महत्वपूर्ण कार्य का ज्ञान या अनुभूति स्वप्न में हुई और उसके द्वारा कुछ विशिष्ट कार्य या आविष्कार तक सम्भव हुये।

यदि स्वप्न मन का ताना-बाना होता, जैसा कि फ्रायड और उसके अनुयाइयों का मत है तो इस प्रकार के पूर्वाभास और इन्द्रियातीत ज्ञान जागृत अवस्था में ही मिल जाया करते, क्योंकि उस समय मन अधिक सक्षम और क्रियाशील रहता एवं सुनियोजित ढंग से सोच सकता है पर जागृत अवस्था में ऐसे किसी पूर्वाभास की अनुभूति न होना यह बताता है कि स्वप्न सुख या दुःखों की अनुभूति वस्तुतः मन से भी परे किसी विश्व-व्यापी और सूक्ष्म सत्ता द्वारा हो सकता है, यह गुण आत्मा के गुणों से मेल खाते हैं, इसलिये यह मानने में कोई हिचक नहीं होनी चाहिये कि मनुष्य शरीर में ‘आत्मा’ नामक कोई त्रिकालदर्शी तत्व विद्यमान है और उसका पूर्ण ज्ञान प्राप्त किये बिना मनुष्य की समस्यायें सुलझ नहीं पातीं।

यों पूर्वजन्मों की घटनाओं और अनुभवों की सत्यता के स्पष्ट प्रमाण नहीं जुटाये जा सकते पर वर्तमान और भविष्य में घटने वाली घटनाओं के पूर्वाभास यह बताते हैं कि स्वप्न निःसन्देह आत्मा के विज्ञान का वह पहलू है जिससे उसके अनेक रहस्यों का प्रकट प्रमाण पाया जा सकता है। स्वप्नों से रेखाचित्र और अपनी तरह के निर्मित स्वप्न देखने के यन्त्र वैज्ञानिकों ने बनाये हैं, यदि इस दिशा में और प्रगति हुई और उन स्वप्न रेखाओं के विस्तृत अध्ययन का कोई सूत्र वैज्ञानिक निकाल पाये तो जीव पूर्वजन्मों में किस योनि में था और उसके साथ कैसी-कैसी घटनायें घटीं, यह सब जान लेना सम्भव हो जायेगा। अभी जो जानकारियां मिली हैं, उनके अनुसार स्वप्नावस्था में लिये गये चित्रों की रेखायें इलेक्ट्रानिक स्मृति कणों के फलस्वरूप ही होती हैं, यद्यपि अभी उनका विश्लेषण (एनालिसिस) किया जाना सम्भव नहीं हो पाया तो भी भविष्यदर्शी स्वप्नों के अनेक प्रामाणिक दृष्टान्त अवश्य हैं, जो आत्मा की गहराई की ओर स्पष्ट संकेत करते हैं।
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