सपने झूठे भी सच्चे भी

स्वप्नों द्वारा शरीर-मन के रोगों-विकारों का निदान

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स्वप्न हमारी अन्तःचेतना और प्रकट चेतना का पारस्परिक सम्वाद संभाषण है जो सांकेतिक भाषा में रहस्यमय लिपि में सम्पन्न किया जाता है। राजनीतिक दूतावासों में—सेना में—प्रायः रहस्यमय सम्वाद इस रहस्यमय ढंग से भेजे जाते हैं कि वांछनीय व्यक्तियों के अतिरिक्त कोई बाहर का आदमी उसे सुन समझ न सके। टेलीग्राम की डैमी खटकती रहती है, सामान्य बुद्धि के लिये वह खट-खट मात्र की ध्वनि है, पर उस कला को जानने वाले लम्बे चौड़े सम्वादों का प्रसंग और पारस्परिक वार्तालाप उसी आधार पर कर लेते हैं। सीने पर स्टेस्थेस्कोप लगाकर डॉक्टर लोग हृदय क्या कह रहा है यह सुन लेते हैं। वैद्य लोग नब्ज़ पर हाथ रखकर रोग का निदान किया करते हैं। सर्वसाधारण के लिए यह जानकारी सुलभ नहीं, पर विशेषज्ञों के लिए सांकेतिक भाषा बहुत कुछ बातें बता देती है।

स्वप्नों की भाषा भी ऐसी है। उन्हें निरर्थक नहीं समझा जाना चाहिये। जिस प्रकार दर्पण के सहारे हम अपना चेहरा देख सकते हैं उसी प्रकार स्वप्नों के आधार पर शरीर और मन की भीतरी परत किस स्थिति में है उसकी झांकी कर सकते हैं। मोटी परख तो उथली जानकारियां दे पाती है। उनके आधार पर सामान्य स्वास्थ्य, प्रत्यक्ष कष्ट, हर्ष, शोक जैसे प्रत्यक्ष विवरण ही विदित होते हैं। पर इतना ही सब कुछ नहीं है। सूक्ष्म भी बहुत कुछ है, और वह इतना है कि स्थूल से भी भारी समझा जा सकता है। इसे सही स्थिति में जानकर भावी स्वास्थ्य संकट और मानसिक विग्रह से सहज ही बचा जा सकता है। स्वप्नों का विश्लेषण यदि किया जा सके और उनके आधार पर निकलने वाले निष्कर्षों से अवगत रहा जा सके तो आत्म-ज्ञान की इसे एक महत्वपूर्ण सीढ़ी ही कहा जायगा।

स्टेम्फोर्ड विश्व विद्यालय के मनोविज्ञान प्राध्यापक श्री चार्ल्स टी. टार्ट ने स्वप्न प्रक्रिया सम्बन्धी शोध में भी यही निष्कर्ष निकाला है कि स्वप्न सर्वथा स्वच्छन्द नहीं होते, और न वे अकारण आते हैं। उनके पीछे कुछ ठोस कारण विद्यमान रहते हैं। हां, वे सीधे साधे तरीके से नहीं वरन् ‘पहेली बुझौअल’ की तरह कुछ विचित्र वेश बनाकर आते हैं और हमारी बुद्धि को चुनौती देते हैं कि उनकी रहस्यमयी गतिविधियों को समझें और सन्निहित कारणों को समझ कर अपनी शारीरिक, मानसिक गतिविधियों के मोड़-तोड़ का परिचय प्राप्त करें।

रूप की ‘सोवियत स्काया रशिया’ पत्रिका में डॉक्टर कत्सफिन का एक लेख छपा है जिसमें उन्होंने लिखा है कि मस्तिष्क में ऐसी अद्भुत शक्ति है कि वह शरीर में भीतर ही भीतर चल रही रुग्ण गतिविधियों को पहले से ही जान लेता है और स्वप्नों के आधार पर यह संकेत देता है कि स्वास्थ्य की स्थिति इन दिनों कैसी चल रही है और उसका मोड़ किधर जा रहा है। वे कहते हैं—स्वप्न न आना अस्वस्थता की निशानी है। जब शरीर की नाड़ियां अपनी अन्तःप्रक्रिया की बारीक रिपोर्ट मस्तिष्क को देना बन्द कर देती हैं तभी सपने दीखना बन्द हो जाता है।

निद्रा केवल शारीरिक विाम ही नहीं वरन् कुछ और भी है। स्वप्न मात्र मनोवैज्ञानिक हलचल ही नहीं वरन् इसके अतिरिक्त भी उनमें कुछ अन्य तथ्य विद्यमान हैं। यदि किसी को सोने न दिया जाय, निरन्तर जागृत रखा जाय तो वह कुछ ही दिन में पागल होकर मर जायगा। इसलिये निद्रा—जिसमें हम जीवन का एक तिहाई भाग खर्च करते हैं। जीवन का एक महत्वपूर्ण माध्यम है। निद्रा दो भागों में विभक्त है। एक वह जिसमें मनुष्य पूरी तरह सो जाता है और दूसरा वह जिसे अल्प निद्रा कह सकते हैं, स्वप्न इस दूसरी स्थिति में ही आते हैं। जागृत अवस्था की तरह निद्रा की महत्ता भी हमारे ध्यान में रहनी चाहिये। गहरी नींद शारीरिक और मानसिक विश्राम की आवश्यकता पूरी करती है, यदि वह ठीक तरह आ जाय तो शरीर और मस्तिष्क की सारी थकान दूर हो जाती है और एक नई ताजगी का अनुभव होता है। अल्प निद्रा का महत्व और भी अधिक है क्योंकि उसमें अचेतन मन को क्रीड़ा कल्लोल करने का—अपनी दबी अनुभूतियां ऊपर उभारने का अवसर मिलता है। जागृत मस्तिष्क तो अपनी संवेदनाओं को ज्ञानेन्द्रियों और कर्मेन्द्रियों की सहायता से चरितार्थ कर लेता है पर अचेतन मन का अपनी आकांक्षायें एवं अनुभूतियां स्वप्नों के माध्यम से ही साकार करने और अपने द्वारा रचे हुये उस स्वप्न दर्पण में अपना मुंह देखकर सन्तोष करने का अवसर मिलता है, इस प्रकार वह स्थिति भी उपेक्षणीय नहीं वरन् उपयोगी ही है। निद्रावस्था में मानवीय शरीर में अनेक परिवर्तन होते हैं। नाड़ी की गति, रक्त का परिभ्रमण, इन्द्रियों की क्रियाशीलता, विचारों की गति धीमी पड़ जाती है। यद्यपि हृदय, फेफड़े, आमाशय, गुर्दे आदि अपना काम करते रहते हैं। जागृत और निद्रा की मध्यवर्ती स्थिति में स्वप्न दीखते हैं।

नशे में पड़ा हुआ, अथवा भय एवं भ्रम ग्रसित व्यक्ति जिस प्रकार कुछ का कुछ देखने लगता है वही बात स्वप्नों में भी होती है। अनुभूति विकृत भले ही हो पर उसका कुछ आधार तो होता ही है। रस्सी का सर्प—झाड़ी का भूत दीखना भ्रमग्रस्त स्थिति में सम्भव है। पर उसमें सादृश्य का कुछ आधार हुआ ही, मनोवैज्ञानिकों का कहना है कि भूतकाल की घटनायें और जागृत अवस्था के अनुभव दोनों मिलकर स्वप्नों की चित्रकला का सृजन करते हैं।

कोलोरेडी विश्व विद्यालय में कुमारी डोरोवी मार्टिन और फ्रान्सिस स्ट्रिविक के तत्वाधान में 30000 स्वप्न दर्शियों द्वारा देखे गये स्वप्नों का एक वर्ष तक निरन्तर विश्लेषण किया। इस प्रयोग में करीब 300 विश्लेषणकर्त्ता मनोविज्ञानी नियुक्त किये गये।

ऐसे ही प्रयोग डा. लुसीन वारनेर के तत्वाधान में हुए और उसमें 250 स्वप्न दर्शियों ने भाग लिया विश्लेषण कर्त्ता के रूप में मनोविज्ञानी महिला मिलडर्ड फेविला ने भाग लिया। यद्यपि देखे गये स्वप्नों में से एक तिहाई के ही कुछ निष्कर्ष निकाले जा सके पर उससे इस नतीजे पर जरूर पहुंच जाया गया कि प्रयत्न करने पर अधिकांश स्वप्नों के आधार को ढूंढ़ निकाला जा सकता है और उससे मनुष्य की शारीरिक एवं मानसिक स्थिति का सही पता लगाया जा सकता है। जिस प्रकार शरीर शास्त्री मल, मूत्र, थूक, रक्त आदि का ऐक्सरे फोटो विश्लेषण करके रोगी की स्थिति का पता लगाते हैं ठीक उसी प्रकार स्वप्नों के माध्यम से मनुष्य की अविज्ञात सूक्ष्म परिस्थितियों को जाना जा सकता है। विशेषतया मानसिक विश्लेषण में तो उससे बहुत अधिक सहायता मिल सकती है।

निद्रावस्था में निःचेष्ट शरीर पर पड़ने वाले छोटे छोटे प्रभाव कई बार उस घटना को अति विस्तार देकर स्वप्न बन जाते हैं। जैसे सपने में बर्फीले पहाड़ या ठण्डे तूफान में फंस जाने का स्वप्न इस कारण भी हो सकता है कि शरीर पर से कंबल खिसक जाय और ठण्डी हवा का झोंका शरीर पर अपना प्रभाव डाल रहा हो। घर में चुहिया की खड़बड़ कानों को सुनाई पड़े और हो सकता है वह बादल गरजने की तरह सपना बन जाय। असुविधाजनक बिस्तर पर सोना, खटमल, पिस्सुओं और मच्छरों का काटना, अधिक भोजन कर लेने से पेट पर पड़ने वाला दबाव गहरी निद्रा में रुकावट डालते हैं और अधूरी एवं उचटी हुई नींद में असुविधाजनक कष्टकर दृश्य दिखाने वाले सपने दीख सकते हैं। मन पर जो चिन्ता, भय, निराशा या वियोग व्यथा सवार हो वही उलट-पुलट कर सपना बन सकती है। कोई किसी स्वजन सम्बन्धी की मृत्यु ने यदि मन पर गहरा प्रभाव डाला है तो वह बार-बार सपने में दिखाई पड़ सकता है। ईर्ष्या, प्रतिस्पर्धा और आत्महीनता की भावना के कारण जो असन्तोष रहता है उसकी तृप्ति अपनी या अपने किसी सम्बन्धी की विजय एवं उन्नति के रूप में दीख पड़े तो समझना चाहिए—अपना समाधान आप करने के लिए अचेतन मन सपने की सुनहरी नगरी बसाकर अपने को बहलाने का प्रयत्न कर रहा है। किसी शत्रु को हानि पहुंचाना या आशंकित आपत्ति का किसी डरावने रूप में आ खड़े होना जैसे सपने अपनी ही मकड़ी के बुने हुये जाले या ताने-बाने हैं।

डा. फ्रायड ने स्वप्नों की गम्भीर समीक्षायें की हैं और उन्हें अधिकांश मन में दबी हुई वासनाओं की अवचेतन मन में काल्पनिक स्थिति माना है। फ्रायड का कथन है कि मनुष्य दिन भर अनेक तरह की इच्छायें किया करता है, किन्तु साधनों के अभाव सामाजिक प्रतिबन्ध कानून के भय आदि के कारण वह इच्छायें पूरी नहीं कर पाता। मन स्वप्नावस्था में इन दमित इच्छाओं की ही मनचीती किया करता है। इस सम्बन्ध में निःसन्देह फ्रायड के तर्क और प्रस्तुत घटनायें जोरदार हैं, हमारे अधिकांश हलके स्वप्न सचमुच शरीर को गड़बड़ी, मन की दबी हुई इच्छाओं के द्योतक होते हैं किन्तु इस तरह के उदाहरण के बाद जैसा कि इस लेख की आरम्भिक पंक्तियों में दिया गया है—फ्रायड ने स्वीकार किया है कि स्वप्न का संसार दृश्य जगत तक और मन की स्थूल—वासना जन्य कल्पनाओं तक सीमित किया जाना भूल ही होगी अलबत्ता हम यह नहीं जानते कि जो स्वप्न भविष्य में हू-बहू सत्य हो जाते हैं उनका रहस्य क्या है?

(1) स्वप्न में मनुष्य अपने आपको उड़ता हुआ देखता है? फ्रायड ने उत्तर दिया—चिड़ियों को, जहाजों को उड़ते देखकर मन में स्वयं उड़ने की इच्छा आई होगी पर मनुष्य शरीर से उड़ना सम्भव न होने के कारण वह इच्छा जागृत अवस्था में दब गई और स्वप्न में उसी ने उड़ने का रूप ले लिया।

(2) स्वप्न में मनुष्य ऊपर से गिरता क्यों अनुभव करता है?—फ्रायड की बुद्धि ही तो थी—बुद्धि तो समुद्र की सतह तक की खोज कर लाती है फिर इस प्रश्न का तुक्का मिलाना उसके लिए कितनी बड़ी बात थी। फ्रायड बोले—मनुष्य बन्दरों की सन्तान है, बन्दर जंगलों में रहते थे और पेड़ों पर सोते थे। कभी उन्हें अच्छा आसन नहीं मिल पाता था तो वे सोते-सोते जमीन पर गिर जाते थे। बन्दर से विकसित होकर मन मनुष्य बन गया पर उसके संस्कारों में छाया, वह पेड़ से गिरने का भय न गया—उसी भय का परिणाम है कि मनुष्य सोते समय गिरने के दृश्य देखता है?

डा. फ्रायड की बातें सर्वथा निस्सार-निराधार नहीं। मन की अपनी कल्पनायें बेहिसाब हैं और मानसिक कल्पनाओं का महत्व भी कम नहीं। हमारी ज्ञात-अज्ञात कल्पनायें स्वप्न-जगत का सृजन करती हों तो आश्चर्य है?

लेकिन स्वप्नों का सम्पूर्ण क्षेत्र यहीं तक सीमित नहीं। वस्तुतः यह सीमा मनोविज्ञान की है। जो लोग मन की दौड़ व्यक्ति के शरीर से जुड़े, परिचित संसार तक ही सीमित मानते हैं, वे अवचेतन मन की भी अधिकाधिक परिधि परिवेश तक ही मानेंगे। उससे आगे भी मन जा सकता है। जो स्थूल शरीर ने न कभी देखा, न सुना, उसका भी वह अनुभव-अवलोकन कर सकता है, यह भला भौतिकतावादी क्यों कर मानेंगे?

तो भी, इतना तो पाश्चात्य मनोवैज्ञानिक भी मानते हैं कि अवचेतन मन ऐसी सूक्ष्मातिसूक्ष्म बातों को पकड़ लेता है, जिनकी सचेतन मन को जानकारी हो ही नहीं पाती। चेतन मन तो मोटी-मोटी बातों में ही उलझा रहता है, पर अचेतन मन इसी बीच सामान्यतः उपेक्षणीय प्रतीत होने वाली किन्तु अति महत्वपूर्ण बातें नोट करता रहता है और उनके आधार पर धारणायें बनाता, निष्कर्ष निकालता रहता है।

उदाहरण के लिए एक व्यापारी ने एक अन्य व्यापारी से बात-चीत की। कोई सौदा तय हो गया। रात सपने में पहले व्यापारी ने देखा कि वह दूसरा व्यापारी उसके सीने पर सवार है और गला दबा रहा है। भाव हो सकता है कि ऊपर से सभ्य दीखने वाला दूसरा व्यापारी कोई जालसाज हो। पहले व्यापारी का चेतन मन तो उसकी मीठी बातों में उलझ गया, पर बातचीत के दौरान उसका अचेतन मन दूसरे व्यापारी की उन छोटी-छोटी गतिविधियों को अंकित करता रहा, जो उसकी धूर्तता और मिथ्याचार के परिणामस्वरूप उसके अंगों और चेहरे से हो रही थीं जो मुद्रायें-भंगिमायें उभर और मिट रही थीं—जैसे पलकों का झपकना, मुंह में दौड़ने वाली भाव-तरंगें, माथे पर पड़ने वाले बल आदि। तात्पर्य यह है कि अवचेतन मन ‘लाई डिटेक्टर’ (झूंठ-खोजी) मशीन का काम कर रहा होता है। उस अवचेतन के वही अंकित प्रभाव तथा उनसे निकाले गये निष्कर्ष रात्रि में प्रतीक रूप में स्वप्न द्वारा अभिव्यक्त होते हैं।

ऐसे स्वप्न भविष्य में शतप्रतिशत सत्य सिद्ध होते अनेक बार देखे गये हैं।

किन्तु साथ ही, यह भी सदैव स्मरण रखना आवश्यक है कि स्वप्नों की प्रतीक भाषा उलझी हुई, जटिल और गूढ़ होती है। मनुष्य की शारीरिक एवं मानसिक स्थितियों का विवरण प्रस्तुत करने वाले स्वप्न भी होते छद्म रूप में ही हैं। सीधे सादे रूप में ऐसे स्वप्न बहुत ही कम होते हैं। स्पष्ट, क्रमागत और सीधे-साफ तो प्रायः अतीन्द्रिय-चेतना से सम्बन्धित स्वप्न ही होते हैं।

भीतरी शारीरिक दशाओं का वर्णन करने वाले स्वप्न तक प्रतीकात्मक ही होते हैं। उदाहरणार्थ यदि कोई व्यक्ति स्वयं को बार-बार पानी में तैरता देखे तो उसके भीतर जल तत्व या तो अधिक हो सकता है या कम भी। यौवन के प्रारम्भ में शारीरिक उभार के कारण जब कन्याओं का वक्षःस्थल कुछ भारी होने लगते हैं तो करवट या औंधे मुंह लेटने पर प्रायः वे ऐसा कुछ स्वप्न देखतीं हैं मानो उनके सीने पर कोई बोझ है और मुंह से आवाज नहीं निकाल पा रही है। इसी प्रकार किशोरों में यौन-उभार आने पर वे भी कामावेग के कारण तरह-तरह से ऐसे सपने देखते हैं, जिनमें टेढ़े-मेढ़े ढंग से उनकी कामेच्छा अभिव्यक्त होती है। ऐसे स्वप्न स्वाभाविक होते हैं। शरीर और मन की उमंगें-तरंगें स्वप्नों द्वारा अभिव्यक्ति पाती रहती हैं।

स्वप्नों में निहित रोग निदान

प्रत्येक स्थिति का व्यक्ति सोते, जागते स्वप्न देखता है। स्थूल उपलब्धियों का आनन्द बिना परिश्रम पुरुषार्थ किये न भी मिले, तो भी स्वप्नदर्शी होने का आनन्द तो हर कोई उठा सकता है। क्योंकि परमात्मा ने प्रत्येक मनुष्य के मन की संरचना इस प्रकार की है कि वह दौड़-भाग कर कहीं भी पहुंच सकता है। इसके लिए न कोई बाधा है न रुकावट। प्रतिबद्ध, शर्त, परिस्थितियों पर निर्भर रहने की विवशता अथवा श्रम करने की आवश्यकता जैसी कोई भी बात मन को रोकती नहीं। इसीलिए उन इच्छाओं को जो सहज पूरी नहीं होती मनुष्य स्वप्नों के माध्यम से पूरी होते हुए देख लेता है और उनकी तृप्ति का आनन्द लेता है।

आधुनिक मनोविज्ञान की स्वप्नों के सम्बन्ध में यही धारणा है। इसके अनुसार स्वप्नों का मुख्य उद्देश्य मन की दमित वासनाओं की पूर्ति है। कहा जाता है कि कोई व्यक्ति किन्हीं भी कारणों से अपनी भिन्न इच्छाओं को प्रत्यक्ष जीवन में पूरी नहीं कर पाता, उन्हें वह स्वप्न में पूरी कर लेता है। प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक सिगमण्ड फ्रायड ने इस आधार सिद्धान्त का विस्तार से विश्लेषण किया और स्वप्नों की नयी व्याख्या प्रस्तुत की। उनके अनुसार दमित वासनाओं को पूरा करने, बीते हुए सुखों के संसार में लौट जाने, जाग्रत जीवन के बन्धनों को तोड़ फेंकने और स्वच्छन्द आचरण करने जैसे कारणों से तरह-तरह के स्वप्न दिखाई देते हैं।

स्वप्नों का यह दर्शन एकांगी और अधूरा है। स्वप्न जागृत और प्रसुप्त मन की क्रीड़ा-किलोल है, यह ठीक तो है पर सच्चाई इतनी मात्र ही नहीं है दमित वासनाओं की पूर्ति और अपूर्ण इच्छाओं की तृप्ति स्वप्नों के माध्यम से हो तो जाती है लेकिन कई बार स्वप्न मनुष्य के शरीर, जीवन, भविष्य तथा अतीत पर भी रहस्यमय ढंग से प्रकाश डालते हैं। फ्रायड के बाद स्वप्न मनोविज्ञान के क्षेत्र में जो प्रगति हुई उसमें इन तथ्यों को भी स्वीकार किया गया है। हाल ही में स्वप्नों के माध्यम से रोग निदान करने की एक नयी विधि खोजी गयी है, जिसके अनुसार जटिल और न समझ में आने वाले रोगों से ग्रस्त रोगियों को अपने स्वप्न बताने के लिए कहा जाता है। फिर उन स्वप्नों की व्याख्या की जाती है और रोग का पता लगाया जाता है। निदान की यह पद्धति लगभग सभी मामलों में सी सिद्ध होती है। वैज्ञानिक उपकरण जिन रोगों का निदान करने में असमर्थ सिद्ध होते हैं, उन रोगों में स्वप्न निदान की पद्धति अचूक सफल होती देखी गयी है।

सन् 1972 की घटना है। रूस के पोल्याना शहर में स्थित जुबोस्क्वाय मेडिकल कालेज में भयंकर सिरदर्द के रोग से ग्रस्त एक लड़की लायी गयी। अक्सर उसके सिर में बड़े जोर का दर्द उठता था और वह प्रायः अचेत हो जाया करती थी। उसकी बढ़िया से बढ़िया चिकित्सा की गई, कई डाक्टरों ने उसका इलाज किया पर आराम होना तो दूर रहा, डॉक्टर इस बारे में भी एकमत नहीं हो सके थे कि रोग क्या है? उपरोक्त मेडिकल कालेज में ही डा. कासातकिन के एक मित्र काम करते थे। स्मरणीय है डा. कासातकिन स्वप्नों से रोग निदान की आधुनिक पद्धति के जनक कहे जाते हैं। उन डॉक्टर महोदय ने रोगिणी का स्वप्न परीक्षण किया और बताया कि उसे ब्रेन ट्यूमर है। बाद में अन्य उपकरणों ने भी उसके रोग की पुष्टि कर दी।

रूस के प्रसिद्ध वैज्ञानिक डा. कासातकिन ने 28 वर्षों के प्रयोगों, निरीक्षणों और विश्लेषणों के बाद यह प्रतिपादित किया है कि स्वप्नों द्वारा न केवल जटिलतम रोगों का निदान किया जा सकता है वरन् उनकी पूर्व सूचना भी प्राप्त की जा सकती है। उदाहरण के लिए कोई व्यक्ति आज बीमार पड़ता है तो आज से चार-छह महीने पहले ही यह जाना जा सकता है कि वह अमुक अवधि के बाद रोग शय्या पर होगा।

इसका कारण बताते हुए डा. कासातकिन का कहना है कि कोई भी रोग अपने लक्षणों सहित उभरने से काफी समय पूर्व ही शरीर में अपनी जड़ें जमाने लगता है। रोग की वह घुस-पैंठ शरीर दुर्ग के सजग प्रहरी और गुप्तचर अचेतन मन को तत्काल पता चल जाती है। इस आधार पर वह प्रतीकों, दृश्यों तथा रूप आकृतियों के माध्यम से इस बात की सूचना जागृत मस्तिष्क को देने लगता है। इन संकेतों को कोई समझ नहीं पाता, यह बात और है।

आजकल पश्चिमी देशों में स्वप्न निदान पद्धति पर काफी शोध प्रयास चल रहे हैं और प्रयास किये जा रहे हैं कि किसी प्रकार रोग के हावी होने से पूर्व ही उसे दुर्बल बना दिया जाय ताकि रोग के आक्रमण की सम्भावना ही समय रहते समाप्त की जा सके।

पश्चिमी देशों के वैज्ञानिकों को स्वप्नों में निहित व्याधियों के संकेत भले ही अब मालूम हुए हैं, पर भारतीय चिकित्सा ग्रन्थों ने इस विषय पर हजारों वर्ष पूर्व प्रकाश डाला था। आयुर्वेदशास्त्र में त्रिदोषों को ही रोग का कारण बताया गया है। आचार्य बराह मिहिर ने अपने चिकित्सा ग्रन्थ ‘कल प्रकाशिका’ में स्वप्नों के द्वारा त्रिदोष ज्ञान का अनुभूत विवेचन किया है। कल प्रकाशिका के अनुसार स्वप्नों के विश्लेषण से रोगों का पूर्व परिचय प्राप्त किया जा सकता है। उदाहरण के लिए जिस व्यक्ति के शरीर में वात-पित्त का प्रभाव आवश्यकता से अधिक हो जाता है वह स्वप्न में स्वयं को घिरा हुआ पाता है या अग्नि और उससे सम्बन्धित दृश्यों को देखता है। कपाल पर उष्णता के आभास सहित भयानक स्वप्न दिखाई दे तो पित्त विकार होता है। रक्तवर्ण की चीजें रक्त विकार या रक्त पित्त विकार की सूचक होती हैं। ज्वाला का दिखाई देना पित्त दोष तथा पुष्प का दिखाई देना ‘श्लेष्म’ का सूचक होता है।

डा. कासातकिन के अनुसार टान्सिल्स, अपेडिसाइटिस और पाचन सम्बन्धी रोगों का पता स्वप्नों द्वारा प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से रोग प्रारम्भ होने के दो चार दिन पहले ही लग सकता है, यदि सपनों का सही विश्लेषण किया जा सके तो ब्रेन ट्यूमर, कैंसर, हृदय रोग और क्षय रोग जैसी भयंकर बीमारी का पता, उनके आरम्भ होने से एक वर्ष पहले ही चल जाता है। यह निष्कर्ष भारतीय दर्शन की इस मान्यता को भी स्पष्ट करते हैं कि रोगों का कारण शरीर में उत्पन्न होने वाली गड़बड़ी अथवा आहार-विहार के दोष ही नहीं है। इन कारणों से भी रोग बीमारियां आती हैं तथा स्वास्थ्य को हानि पहुंचती है परन्तु पूर्व जन्मों के संस्कार स्वरूप भी बीमारियां खड़ी होती हैं। शास्त्रों में कहा गया है, ‘पूर्वजन्म मृतम् पापम् व्याधिरूपेण पीडयेत् ।’ अर्थात् पिछले जन्मों में किये गये पाप व्याधि के रूप में शरीर को पीड़ा देते हैं। कर्मफल के अकाट्य नियम के अनुसार पिछले जन्मों में किये गये अपराध, दुष्कर्म और पापों के दण्ड जो उसी जन्म में भोगने से रह जाते हैं, इस जन्म में भुगतने पड़ते हैं। उन दण्डों का एक रूप व्यक्ति भी हो सकता है। प्रश्न उठता है कि जिस शरीर के द्वारा पापकर्म हुए थे वह तो मृत्यु के साथ ही समाप्त हो गया। फिर इस शरीर को यह दण्ड क्यों?

उत्तर अति सहज है। शरीर न तो कर्म करता है न भोग भोगता है। जीव ही इन कर्मों का कर्त्ता, भोक्ता और नियोक्ता है। यहां जीवन से अर्थ मनुष्य की सीमाबद्ध चेतना ‘इगो’ से है। इस जीव को ही किये गये का भला बुरा परिणाम अनुभव होता है। शरीर की समाप्ति के बाद भी जीवसत्ता अपने सूक्ष्म और कारण शरीर सहित विद्यमान रहती है तथा नया शरीर धारण करती है। उस जन्म के संस्कार, न्याय, परिणाम इस जन्म में भी अपने कर्त्ता को खोज लेते हैं। इस सम्बन्ध में महर्षि व्यास का कहना है कि हजार गायों में भी बछड़ा जिस प्रकार अपनी मां को पहचान लेता है उसी प्रकार मनुष्य के कर्म उसे कहीं भी किसी भी रूप में ढूंढ़ और पहचान लेते हैं।

पूर्व जीवन में जिस शरीर ने कर्म किये थे वह मुख्य नहीं है। मुख्य है उन कर्मों की नियामक जीवसत्ता और वह सभी शरीरों में विद्यमान रहती है। अतः पिछले जीवन के सभी कर्म संस्कार, उनके दोष दुष्परिणाम, तत्सम्बन्धी सम्भावनायें अपने साथ लिए रहती है। उसी न्याय से इस जन्म में जीवसत्ता को पूर्वकृत पापों का दण्ड भुगतना पड़ता है। जाग्रत जीवन में उन कर्मों का, कर्मों के परिणामों का स्मरण ज्ञान न हो तो भी क्या, उस जीव चेतना को तो अपने सभी कर्मों और सम्भावित परिणामों का बोध रहता है। इसी से वर्तमान जीवन में अनागत रोगों का पता भी स्वप्नों के माध्यम से चल जाता है। शास्त्रकारों ने इस सम्बन्ध में स्पष्ट कहा है कि स्वप्नावस्था में जीव अपनी विभूति का अनुभव करता है। देखे हुए और न देखे हुए को, सुने हुए और न सुने हुए को, अनुभव किये हुए और न अनुभव किये हुए को, विद्यमान और अविद्यमान को सारी घटनाओं को देखता है। (प्रश्नोपनिषद् 4।5)

स्वप्न जाग्रत और प्रसुप्त, चेतन और अचेतन मन का क्रीड़ा कल्लोल तो है ही, जीवसत्ता का अनुभव क्षेत्र भी है और इस क्षेत्र में आगत-अनागत, स्थूल-सूक्ष्म, दृश्य-अदृश्य सभी बातों का अनुभव करने के साथ-साथ वह पूर्वजन्मों के दुष्कृत्यों तथा उनके परिणाम दण्डों को भी जानता रहता है। इसी आधार पर भारतीय आयुर्वेद ग्रन्थों में स्वप्नों के माध्यम से रोग निदान की पद्धति का विकास किया गया। पश्चिमी वैज्ञानिकों को उस स्थिति तक पहुंचने में अभी समय लगेगा तो भी अपने साधनों, अनुभवों और जानकारी के आधार पर वे स्वप्नों का मर्म पकड़ने के लिए निरन्तर प्रयासरत हैं।

खोज जारी है

अमरीका के प्रसिद्ध डा. आइसवुड ने बहुत समय तक स्वप्न पीड़ित लोगों की चिकित्सा की। एक दिन उन्हें खयाल आया चूंकि स्वप्न एक विचार एक स्पन्दन की तरह मस्तिष्क से निःसृत होते हैं अतएव क्या उन्हें टेप-रिकार्ड की तरह रिकार्ड नहीं किया जा सकता? उनकी इस जिज्ञासा ने ही ‘इलेक्ट्रोएन सेफ्लोग्राफ’ नामक यन्त्र का आविष्कार किया यह यन्त्र सोये हुए व्यक्ति के स्वप्नों को ध्वनि-तरंगों की भांति रिकार्ड कर देता है यदि उस व्यक्ति को स्वप्न की एक-एक बात याद रहे तो उन स्वप्न-रेखाओं से और भी विस्तृत जानकारियां प्राप्त की जा सकती हैं। अभी तक तो यही सम्भावना थी कि स्वप्नों को इस प्रकार अंकित कर लेने पर एक व्यक्ति के स्वप्न दूसरे लोग भी जब चाहे देख सकेंगे, स्वप्न खरीदे और बेचे भी जा सकेंगे। पर पीछे जब ‘मैंमी फ्ला स्वप्न अनुसन्धान संस्थान’ की स्थापना हुई और सभी आयु, वर्ग, देश, जाति के लोगों पर प्रयोग करके स्वप्नों का विश्लेषण किया गया। तब पता चला, स्वप्न एक सत्ता जगत है अर्थात् उस समय मानसिक चेतना का आत्मिक चेतना में आंशिक और पूर्ण विलय भी होता है। इस संस्थान ने यह पाया कि जो लोग अधिक पवित्र थे, जिनकी आत्मा में कम से कम मनोविकार, ईर्ष्या, द्वेष, घृणा, क्रोध, मनोमालिन्य, कामुकता आदि के भाव थे, उनके स्वप्नों में जहां भविष्य सम्बन्धी स्पष्ट जानकारियां थीं वहां जिन लोगों के मस्तिष्क दूषित थे जिनका आचार गरिष्ठ, मांस, मद्य से पूर्ण था उन के स्वप्न न केवल नितान्त अस्पष्ट थे वरन् उनकी मानसिक स्थूलता इतनी अधिक थी कि उन्हें हर स्वप्न में कुछ न कुछ भयानक दृश्य दिखाई देते हैं।

डा. केल्विन हाल ने मेक्सिको, आस्ट्रेलिया, नाइजीरिया के लोगों के लगभग 30 हजार स्वप्न एकत्रित किये और उनका विश्लेषण किया तो पाया कि स्वप्नों का लोगों के व्यक्तिगत चरित्र से घनिष्ठ सम्बन्ध है। जिनके आचार-विचार अच्छे नहीं उन्हें तीन में से दो स्वप्न भयानक देखने पड़ते हैं। जिन्हें रात में 7-7 स्वप्न आते हैं, वह भी ऐसे ही अस्थिर चित्त लोग होते हैं। ईश्वर भक्त, पुण्यात्माओं को यदि आहार में कोई गड़बड़ न हो तो रात में एक लम्बा, गहरा और इतना स्पष्ट स्वप्न दिखाई देता है जिसे बीसियों वर्षों तक ज्यों का त्यों याद रखा जा सकता है। इन्हें इन दृश्यों में सिनेमा के दृश्य से भी अधिक आनन्द आता है। उन्हें स्वप्न में संगीत, गायन नृत्यादि भी देखने सुनने को मिलते हैं।

स्काटलैंड यार्ड पुलिस के अपराध विशेषज्ञों ने स्वप्नों का एक-दूसरे ही रूप में लिया और किसी अर्थ में उसका भी अपना विशिष्ट महत्व यह सिद्ध हुआ कि जो चेहरे बाहर से बहुत सुन्दर आकर्षक, सभ्य और शिक्षित प्रतीत होते हैं आवश्यक नहीं कि वे भीतर से भी वैसे ही हों। लोग बाहर से कितनी ही बनावट क्यों न करें यदि उनका अन्तःकरण विकारग्रस्त और पापपूर्ण है तो उनके स्वप्न में उसका असर स्पष्ट पड़ेगा। एक और बात सामने आई वह ये कि स्वप्न में पूर्व किये गये अपराध पानी की लहर की तरह बार-बार टकराते हैं। इसलिये स्वप्नों को अंकित करने की पद्धति से अपराधियों की पकड़ का एक अच्छा क्रम चल पड़ा। आगे तो विज्ञान स्वप्नों द्वारा पूर्वजन्मों के कांड भी खोलने वाला है अब इसमें जरा भी सन्देह नहीं रह गया।

उदाहरण के लिए अमरीकी पुलिस ने एक बार अमेरिका के शिक्षित और संभ्रान्त माने जाने वाले 1000 व्यक्तियों के स्वप्नों का विश्लेषण किया तो पाया कि उनमें से 40 प्रतिशत व्यक्तियों का संबंध किसी न किसी अपराध से है। कई लोग अपनी धर्म-पत्नी के समक्ष बड़े चरित्रवान् बनते थे। पर स्वप्नों में यह सत्य आया कि यह उनके द्वारा किया गया सफेद धोखा था। सच यह था कि उनका लगाव कई भ्रष्ट स्त्रियों से रहा है। कई लोग बड़े त्यागी दीखते थे पर उन्होंने कभी न पकड़ में आने वाले लगन किये थे। कई लोगों चोरियां, कई ने मिलावट और कितनों ने हत्यायें तक की थीं। वह सब स्वप्न-विश्लेषण से सामने आया और लोगों ने स्वीकार भी किया। इससे अमेरिका में एक भय प्राप्त हो गया और लोगों ने स्वप्न विश्लेषण कराना बन्द कर दिया क्योंकि उससे उनके जीवन के अपराध चाहे कभी भी हुए हों सामने आ सकते थे।

वैज्ञानिकों ने खोज करके यह पाया है कि 98 प्रतिशत अपराधी स्वप्न बार-बार अवश्य आते हैं। कृत्रिम स्वप्नों द्वारा इन आवृत्तियों को उत्तेजित कर दिया जाता है जिससे किसी भी व्यक्ति के कितने प्राचीन अपराधी के दृश्य और रिकार्ड आ जाते हैं। एक दिन यह सम्भव है कि हर व्यक्ति के जीवन में ऐसे रिकार्ड रखे जायें और उनका सम्बन्ध उसी तरह के स्वप्न देखने वालों से जोड़ा जाय तो न केवल पुनर्जन्म प्रमाणित होगा वरन् कर्मफल भी अपने अनोखे रूप में प्रकट होगा। इन दृश्यों को ‘इलेक्ट्रोएन टेलीविजन’ पर देखा भी जा सकेगा। विज्ञान उस दिशा में तेजी से अग्रसर हो रहा है।

रूसी डा. बी. कसात्किन के अनुसार किसी रोग के बाहर प्रकट होने के कारण पहले ही अचेतन मन को उसकी जानकारी हो जाती है। इसलिए तपेदिक व फेफड़ों के अन्य रोग तथा पीलिया जैसे रोगों की जानकारी मनुष्य के समक्ष सपनों के रूप में आती है। उनके अनुसार यदि स्वप्नों में पर्वत शिखर पर चढ़ते और उस दौरान सांस भर आने, दम फूलते देखें अथवा किसी दुर्घटना के बाद छाती पर कुछ बोझ जैसा देखें या नदी-तालाब में तैरकर बाहर निकलने में कष्ट लगे और छाती पर भार या दबाव का अनुभव हो तो किसी रोग के आक्रमण की सुनिश्चित सम्भावना माननी चाहिये।

शरीर—मन की आन्तरिक स्थितियों की अभिव्यक्ति स्वप्नों में होती है। उनको जानने की एक सुविकसित, सुनिश्चित विद्या का स्वरूप निर्धारित हो जाने पर उनसे शारीरिक-मानसिक रोगों-विकारों का निदान तथा उपचार जाना जा सकता है। पैथालाजी की ही तरह विश्वस्त एवं प्रामाणिक यह जानकारी भी हो सकती है।
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