सपने झूठे भी सच्चे भी

सपनों में सन्निहित जीवन-सत्य

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‘‘दि अण्डर स्टैंडिग आफ ड्रीम्स एण्ड देय एन्फलूएन्सेस आन दि हिस्ट्री आफ मैन’’ हाथर्न बुक्स न्यूयार्क द्वारा प्रकाशित पुस्तक में एडाल्फ हिटलर के एक स्वप्न का जिक्र है जो उसने फ्रांसीसी मोर्चे के समय 1917 में देखा था। उसने देखा कि उसके आस-पास की मिट्टी भरभरा कर बैठ गई है, वह तथा उसके साथी पिघले हुए लोहे में दब गये हैं। हिटलर बचकर भाग निकले किन्तु तभी बम विस्फोट होता है—उसी के साथ हिटलर की नींद टूट गयी। हिटलर अभी उठकर खड़े ही हुए थे कि सचमुच एक तेज धमाका हुआ, जिससे आस-पास की मिट्टी भरभरा कर ढह पड़ी और खन्दकों में छिपे उसके तमाम सैनिक बन्दूकों सहित दब कर मर गये। स्वप्न और दृश्य का यह सादृश्य हिटलर आजीवन नहीं भूले।

स्वप्नों में भविष्य के इस प्रकार के दर्शन की समीक्षा करने बैठते हैं तो यह स्पष्ट हो जाता है कि चेतना मनुष्य शरीर में रहती है वह विश्व ब्रह्माण्ड के विस्तार जितनी असीम है और उसके द्वारा हम बीज रूप से विद्यमान अदृश्य के वास्तविक दृश्य चलचित्र की भांति देख और समझ सकते हैं। यह बात चेतना के स्तर पर आधारित है। इसीलिये भारतीय मनीषी भौतिक जगत के विकास की अपेक्षा अतीन्द्रिय चेतना के विकास पर अधिक बल देते हैं। हिन्दू धर्म और दर्शन का समस्त कलेवर इसी तथ्य पर आधारित रहा है और उसका सदियों से लाभ लिया जाता रहा है।

‘‘वुस्साद साल के खुसखी महीने के छठवें दिन गुरुवार की रात मैंने सपना देखा कि एक खूबसूरत जवान से मैं मजाक कर रहा हूं उस समय मुझे भीतर ही भीतर यह भी आश्चर्य हो रहा था कि मैं किसी से मजाक का आदी नहीं हूं फिर ऐसा क्यों कर रहा हूं तभी उस जवान ने निर्वस्त्र होकर दिखाया कि वह तो औरत है। मुझे उस घड़ी अहसास हुआ कि मराठे औरत वेष में हैं। मुझे लगा कि मैंने इसी से मजाक किया। उसी साल के उसी महीने के आठवें रोज मैंने मराठों पर हमला किया तो वे औरतों की तरह भाग निकले और मेरे स्वप्न का एहसास पक्का हो गया।’’ इस तरह सैकड़ों स्वप्न टीपू की मूल नींध किताब में हैं उनकी हकीकत के वाक्य भी हैं। यह सब एकाग्रता द्वारा चित्त की प्रखरता के लाभों की ओर भी संकेत करते हैं। मन को किसी एक ध्येय की ओर लगाया जा सके तो उस सम्बंध की अनेकों जानकारियां स्वतः ही मिलती चली जाती हैं।

अपने स्वप्नों पर टीपू सुल्तान को आश्चर्य हुआ करता था सो वह प्रतिदिन अपने स्वप्न डायरी में नोट किया करता था उनके सच हुए स्वप्नों के कुछ विवरण इस प्रकार हैं। ‘‘शनिवार 24 तारीख रात को मैंने सपना देखा। एक वृद्ध पुरुष मेरे कांच का एक पत्थर लिये मेरे पास आये हैं और वह पत्थर मेरे हाथ में देकर कहते हैं सेलम के पास जो पहाड़ी है उसमें इस कांच की खान है यह कांच मैं वहीं से लाया हूं। इतना सुनते मेरी नींद खुल गई।

टीपू सुल्तान ने अपने एक विश्वास पात्र को सेलग भेजकर पता लगवाया तो ज्ञात हुआ कि सचमुच उस पहाड़ी पर कांच का भण्डार भरा पड़ा है। इन घटनाओं से इस बात की भी पुष्टि होती है कि समीपवर्ती लोगों को जिस तरह बातचीत और भौतिक आदान-प्रदान के द्वारा प्रभावित और लाभान्वित किया जा सकता है उसी तरह चेतना के विकास के द्वारा बिना साधना भी आदान-प्रदान के सूत्र खुले हुए हैं।

वापी (गुजरात) के पास सलवास नाम का एक गांव है वहां बाबूलाल शाह नाम के एक प्रतिष्ठित अनाज के व्यापारी हैं सन् 1973 की घटना है। उनका पुत्र जयन्ती हैदराबाद मेडिकल कॉलेज का छात्र था। एक रात वह सिनेमा देखकर लौट रहा था तभी कुछ डाकुओं ने उसका अपहरण कर लिया और बाबूलाल शाह को पत्र लिखा—यदि बच्चे को जीवित देखना चाहते हैं तो अमुक स्थान पर 50 हजार रुपये पहुंचाने की व्यवस्था करें। श्री शाहजी बहुत दुःखी हुये और मित्रों की सलाह से वे एक सन्त के पास गये और आप बीती सुनाकर बच्चे की जीवन रक्षा की प्रार्थना की। स्वामी जी ने उन्हें आश्वस्त किया और कहा तुम लोग जाओ जयन्ती 19 जुलाई को स्वतः घर पहुंच जायेगा। जिस दिन स्वामी जी ने आश्वासन दिया वह 17 जुलाई थी। उस रात डकैत जयन्ती को लेकर एक गुफा में पहुंचे। जयन्ती बेहद घबड़ाया हुआ था साथ ही दस दिन का थका हुआ था। तीन बन्दूकधारी डकैतों के बीच उसका भी बिस्तर लगाया गया। थका होने के कारण जयन्ती को नींद आ गई। उसने स्वप्न में देखा कोई साधु कह रहे हैं ‘‘डकैत सो गये हैं तुम यहां से भाग निकलो’’ साथ ही उसकी नींद भी टूट गई, पर उसकी उठने की हिम्मत न हुई। सहमी अवस्था में उसे फिर नींद आ गई तब उसने फिर वैसा ही स्वप्न देखा। इस बार उसे विश्वास हो गया कि कोई शक्ति उसके साथ है और उसकी मदद कर रहा है उसने आंखें घुमाकर देखा सचमुच डकैत गहरी नींद में सो रहे थे। जयन्ती उठकर गुफा के बाहर आया और वहां से भाग निकला सीधे स्टेशन पहुंचा गाड़ी बिल्कुल तैयार थी उसमें सवार होकर तह ठीक 19 जुलाई को घर आ गया। इस स्वप्न ने न केवल बालक जयन्ती की जीवन रक्षा की अपितु उसे विश्वास भी हो गया कि अतीन्द्रिय जगत वस्तुतः दिव्य आत्माओं का निवास स्थल है उस आश्रय स्थल पर पहुंच कर न केवल अपनी आत्मिक क्षमतायें प्रखर की जा सकती हैं अपितु उच्च आत्माओं का स्नेह सान्निध्य भी पाया जा सकता है।

स्वप्नों का, स्थान विशेष से भी सम्बन्ध होता है। इस सम्बंध में डॉ. फिशर द्वारा उल्लखित एक स्त्री का स्वप्न बहुत महत्व रखता है वह स्त्री जब एक विशेष स्थान पर सोती तो उसे सदैव यही स्वप्न आता कि कोई व्यक्ति एक हाथ में छुरी लिये दूसरे से उसकी गर्दन दबोच रहा है। पता लगाने पर ज्ञात हुआ कि उस स्थान पर सचमुच ही एक व्यक्ति ने एक युवती का इतना गला दबाया था जिससे वह लगभग मौत के समीप जा पहुंची थी। स्थान विशेष में मानव विद्युत के कम्पन चिरकाल तक बने रहते हैं। कब्रिस्तान की भयानकता और देव-मन्दिरों की पवित्रता इसके साक्ष्य के रूप में लिये जा सकते हैं।

16 फरवरी 1975 के धर्मयुग अंक में स्वप्नों की समीक्षा करते हुये एक अन्धे का उदाहरण दिया गया है अन्धे से पूछा गया कि क्या तुम्हें स्वप्न दिखाई देते हैं इस पर उसने उत्तर दिया मुझे खुली आंख से भी जो वस्तुयें दिखाई नहीं देती वह स्वप्न में दिखाई देती हैं। इससे फ्रायड की इस धारणा का खण्डन होता है कि मनुष्य दिन भर जो देखता और सोचता-विचारता है वही दृश्य मस्तिष्क के अन्तराल में बस जाते और स्वप्न के रूप में दिखाई देने लगते हैं। निश्चय ही यह तथ्य यह बताता है कि स्वप्नों का सम्बन्ध काल की सीमा से परे अतीन्द्रिय जगत से है अर्थात् चिरकाल से चले आ रहे भूत से लेकर अनन्त काल तक चलने वाले भविष्य जिस अतीन्द्रिय चेतना में सन्निहित हैं स्वप्न काल में मानवीय चेतना उसका स्पर्श करने लगती है। इसका एक स्पष्ट उदाहरण भी इसी अंक में एक बालक द्वारा देखे गये स्वप्न की समीक्षा से है बच्चे ने पहले न तो काश्मीर देखा था न नैनीताल किन्तु उसने बताया मैंने हरा-भरा मैदान कल-कल करती नदियां ऊंचे बर्फीले पर्वत शिखर देखे, कुछ ही क्षणों में पट-परिवर्तन हुआ और मेरे सामने जिस मैदान का दृश्य था वह मेरे विद्यालय का था। मेरे अध्यापक महोदय हाथ में डण्डा लिये मेरी ओर बढ़ रहे थे तभी मेरी नींद टूट गई।’’ इससे एक बात स्वप्नों की क्रमिक गहराई का भी बोध होता है। स्पर्श या निद्रा जितनी प्रगाढ़ होगी स्वप्न उतने ही सार्थक, सत्य और मार्मिक होंगे। सामयिक स्वप्न उथले स्तर पर अर्थात् जागृत अवस्था के अन करीब होते प्रतीत होते हैं, पर यह तभी सम्भव है जब अपना अन्तःकरण पवित्र और निर्मल हो। निकाई किये हुये खेतों की फसल में एक ही तरह के पौधे दिखाई देते हैं वे अच्छी तरह विकसित होते और फलते-फूलते भी हैं। पर यदि खेत खर-पतवार से भरा हुआ हो तो उसमें क्या फसल बोई गई है, न तो इसी बात का पता चल पाता है और न ही उस खेत के पौधे ताकतवर होते हैं, ये कमजोर पौधे कैसी फसल देंगे इसका भी सहज ही अनुमान किया जा सकता है। मन जितना अधिक उच्च-चिन्तन उच्च संस्कारों से ओत-प्रोत शान्त और निर्मल होगा स्वप्न उतने ही स्पष्ट और सार्थक होंगे।

जब मन सो जाता है तो वह अपने ही संकल्प विकल्प से अभीष्ट वस्तुओं के निर्माण की क्षमता से ओत-प्रोत होता है। सुख-दुःख की सामान्य परिस्थिति भी जागृत जगत की तरह ही उस स्थिति में भी जुड़ी रहती है। जिस तरह जागृत में जीव के संस्कार उसे आत्मिक प्रसन्नता और आह्लाद प्रदान करते और निश्चिन्त भविष्य की रूप रेखा बनाते रहते हैं उसी तरह संयत और पवित्र मन में भी जो स्वप्न आयेंगे वे भविष्य की उज्ज्वल सम्भावनाओं के प्रतीक होंगे। भगवान महावीर के जन्म से पूर्व रानी त्रिशला ने 14 मार्मिक स्वप्न देखे थे प्रथम में हाथी द्वितीय में बैल तृतीय में सिंह, चतुर्थ में लक्ष्मी, पंचम में सुवास्ति पुष्पों की माला, षष्टम में पूर्ण चन्द्र, सप्तम में सूर्य दर्शन, अष्टम जल भरे मंगल कलश, नवम नीले स्वच्छ जल वाला सरोवर, दशम लहलहाता सागर, एकादश सिंहासन, द्वादश देव विमान, त्रयोदश रत्नराशि, चतुर्दश तेजस्वी अग्नि।

स्वप्न का फलितार्थ मर्मज्ञों ने इस प्रकार किया—हाथी सहायक साथी धैर्य-मर्यादा और बड़प्पन का प्रतीक है उसके पेट में प्रविष्ट होने का तात्पर्य प्रलम्ब बाहु पुत्र जन्म का द्योतक है वह महान् धर्मात्मा अनन्त शक्ति का स्वामी, मोक्ष प्राप्त करने वाला, यशस्वी, अनासक्त ज्ञानी, सुख-शान्ति का उपदेष्टा, महान् गुणों वाला, शान्त और गम्भीर, त्रिकालज्ञ, देवात्मा और महान् होगा। भगवान महावीर का जीवन इस स्वप्न का पर्याय था इसमें सन्देह नहीं। उपरोक्त सभी प्रतीकों का अर्थ मर्मज्ञों ने उन-उन वस्तुओं के गुण प्रभाव आदि की दृष्टि से निकाला जो उपयुक्त ही सिद्ध हुआ। अपने स्वप्नों की समीक्षा करते समय देखी गई वस्तुओं की उपयोगिता उनकी महत्ता और गुणों के विश्लेषण के रूप में किया जा सके तो बहुत सारे अस्पष्ट स्वप्नों के अर्थ भी निकाल सकते और उनसे अपने जीवन को संवार सकते हैं।

बुखार आने से पहले अंगड़ाई आने लगती है। कै होने से पहले जी मिचलाना है। फल आने से पहले फूल आता है। प्रसव होने से पहले पेट में दर्द होता है यह पूर्वाभास है। कोई घटना अपने दृश्य में आने से पहले ही अन्तरिक्ष में विकसित होने लगती है। शरीर यकायक ही बीमार नहीं हो जाता रोग कीटाणु काफी समय पहले देह में प्रवेश कर चुके होते हैं। भले ही सामान्य व्यक्ति को ज्ञान न हो पर विशेषज्ञ रक्त आदि की परीक्षा कर उस सम्भावित रोग के कुछ ही समय में प्रकट होने की पूर्व घोषणा कर सकते हैं। अस्त-व्यस्त स्वभाव के व्यक्ति के सम्बन्ध में यह भविष्यवाणी सहज ही की जा सकती है कि वह असफल रहेगा। चोर और डाकुओं में से अधिकांश को जेल भुगतनी पड़ती है। इन कार्यों में लगे हुए व्यक्तियों के अन्धकार भरे भविष्य की यदि कोई भविष्य वाणी करता है तो सम्भावना यही रही कि वह पूर्व कथन प्रायः सही ही निकलेगा। सटोरियों का व्यवसाय आर्थिक सम्भावनाओं के सही अन्दाज लगाने पर ही निर्भर रहता है। दूरदर्शी राजनीतिज्ञ भावी राजनैतिक हलचलों का बहुत कुछ अनुमान लगा लेते हैं। पैनी दृष्टि और तीखी सूझ-बूझ वर्तमान घटना क्रम के आधार पर भावी निष्कर्ष निकालने में प्रायः खरी ही उतरती है। यह स्थूल जगत की बात हुई। ठीक इसी तरह सूक्ष्म जगत में जो होने जा रहा है उसका आधार पहले से ही बन चुका होता है। उसे जो व्यक्ति या मन समझ सके उसके लिए भविष्य वाणियां करना—भावी सम्भावनाओं को समझना कुछ कठिन नहीं होता। भविष्य के घटना क्रम की झांकी करने वाले सपने प्रायः उसी आधार पर आते हैं। अनेक अलौकिकताओं से भरा-पूरा मानवी अचेतन यदि थोड़ा परिष्कृत हो तो सूक्ष्म जगत में हो रही हलचलों और उनके फलस्वरूप निकट भविष्य में घटित होने वाली बातों का पूर्वाभास प्राप्त कर सकता है भविष्यवाणी कर सकता है।

कुछ दिव्य स्वप्न ऐसे भी होते हैं जो भावी घटना क्रम का स्पष्ट संकेत देते हैं। अभी जो सपना देखा गया—वह उस समय तो अटपटा और असम्भव लगता था पर कुछ ही समय में यह आश्चर्य पूर्वक देखा गया कि वह स्वप्न में देखा गया दृश्य आगे चलकर एक वास्तविकता बन गया। ऐसा वर्तमान स्थिति के बारे में भी होता है। दूरस्थ दो व्यक्ति यदि उनमें घनिष्ठता और आत्मीयता की समुचित मात्रा विद्यमान हो तो ऐसे आत्मीय बिना किसी पत्र, तार या सन्देश के अनायास ही पारस्परिक स्थिति जान लेते हैं। मृत्यु या आपत्ति जैसी अधिक महत्व पूर्ण घटनाओं के बारे में तो ऐसे आभास और भी अधिक सच निकलते हैं।

‘ट्रू एक्सपीरियन्सेज इन प्रोफेसी’ (भविष्य वाणी के सत्य अनुभव) नामक पुस्तक की लेखिका मार्टिन एबान ने ‘चार काले घोड़े’ नामक शीर्षक से अपने जीवन के उन चार स्वप्नों का वर्णन बड़े ही मार्मिक ढंग से प्रस्तुत किया है। वह इस तरह है—

मुझे अनेक बार अपने परिवार और परिचित मित्रों की मृत्यु का पूर्वाभास एक ही ढंग से हुआ है। पहला स्वप्न मुझे तब आया जब मैं छोटी बच्ची थी। मैंने देखा मैं एक ऐसी घोड़ा गाड़ी में सवार हूं, जिसमें चार काले घोड़े जुते हुए हैं। जैसे ही मैं गाड़ी में बैठी किसी अदृश्य शक्ति ने मुझे कुछ आदेश दिये। गाड़ी एक मकान के किनारे रुक गई मैं उसके पिछले भाग में गई। दो कमरों के बीच एक शयन कक्ष (बैड-रूम) पड़ता था, वहां पहुंचकर मुझे ऐसा लगा, कोई अधेड़ आयु (मिडिल एज्ड मैन) लेटा है, उसकी सांस से दुर्गन्ध निकल रही है, मैं चिल्लाई पर उस व्यक्ति पर उसका कोई असर नहीं हुआ। इसी बीच मुझे अनेक स्त्रियां दिखाई दीं। उन्होंने एक कम उम्र की प्रौढ़ा (शर्ट मिडिल एज्ड वूमन) को घेर रखा था और उसे धीरज बंधा रही थीं। इसके बाद नींद टूट गई और मैं समझ नहीं पाई कि यह सब क्या था पर उस स्वप्न का कुछ विशेष प्रभाव मेरे मन में था, क्योंकि नींद टूट जाने के बाद भी उसे मैं एकाएक भुला न सकी वह दृश्य बार-बार मस्तिष्क में उठता रहा और मैं उपेक्षा करती रही—अब सोचती हूं ऐसी उपेक्षाओं ने ही मनुष्य जीवन के अनेक आवश्यक आध्यात्मिक पहलुओं को गौण बना दिया है और उसी के फलस्वरूप मनुष्य जीवन सत्य से दूर हटता चला जा रहा है।

उन दिनों मैं टोरन्टों की एक मीटिंग में भाग लेने गई थी। दूसरे ही दिन मेरे कमरे की साथी (रूप मेट) आलेन्दा जोकि क्युबेक की निवासिनी थी, ने मुझे बुलाया और बताया कि उसके पिता बीमार हैं, उसके कुछ दिन बाद ही पिता की मृत्यु का समाचार भी आ गया बस इस घटना का पहला पटाक्षेप यहीं हो गया।

उसी वर्ष जुलाई में मैं क्यूबेक शहर गई। अचानक मेरी दृष्टि एक मकान पर स्थिर हो गई। मैंने देखा हूबहू वही मकान जिसे मैंने स्वप्न में देखा था। दो कमरे बीच में शयन-कक्ष, उसी कमरे में एक चित्र टंगा था, वो बिलकुल उसी आकृति का था, जैसा मैंने स्वप्न में देखा था, यह मकान ओलेन्दा का था और उसने ही बताया कि यह चित्र उसके पिता का है तो मैं स्तब्ध रह गई और सोचने लगी, क्या वह स्वप्न मुझे इसी घटना के पूर्वाभास के रूप में देखने को मिला था। यदि ऐसा ही था तो वह स्वप्न ओलेन्दा को क्यों नहीं दीखा? क्या मेरी मानसिक स्थिति धर्म-मुखी और पवित्र होने के कारण स्वप्न मुझे स्पष्ट दीखा और ओलेन्दा को न दीखा। यह प्रश्न सोचते-सोचते मैं एक गहराई में डूब जाती हूं और यह मानने लगती हूं कि इस संसार में सचमुच ही कोई सर्वव्यापी, सर्वदृष्टा शक्ति है, जब मनुष्य उसमें खो जाता है तो स्वयं भी वैसा ही अनुभव करने लगता है।

पूर्वाभास वाले सपने प्रायः रात्रि के अन्तिम प्रहर में ही आते हैं। तब तक शारीरिक, मानसिक थकान दूर हो लेती है ब्रह्ममुहूर्त की प्रभातकालीन ब्रह्मचेतना जीवन दायिनी वायु के साथ-साथ अदृश्य जगत की सूचनाओं का प्रवाह भी साथ ही लिये फिरती है। जिनका मन अपेक्षाकृत अधिक निर्मल है वे प्रायः ऐसे संकेतों को अनायास अनुभूतियों में अथवा स्वप्न संकेतों के रूप में समझ लेते हैं। जिन लोगों के बीच गहरी घनिष्ठता है उनकी तात्कालिक स्थिति का विवरण अपने मन दर्पण में दूरदर्शी टेलीविजन की तरह देखा और दूरभाषी टेलीफोन की तरह सुना जा सकता है। उस प्रकार के यथार्थ परिचय संकेत देने वाले स्वप्नों को दिव्य स्वप्न कहा जा सकता है। सच होने वाले सपनों की संख्या कम नहीं है। ऐसी घटनाएं समस्त विश्व में देखने, सुनने को मिल सकती हैं जिनसे सिद्ध होता है स्वप्न मन का विनो ही नहीं वरन् उनमें भवतव्यताओं के संकेत भी रहते हैं।

प्रमाण ही प्रमाण

स्वप्नों में मिले आभास की सत्यता सिद्ध करने वाले अनेक प्रमाण उपलब्ध हैं।

लन्दन के एक नागरिक ए. जेरमन ने 10 नवम्बर 1947 की रात को सपना देखा कि लेसिस्टर नामक स्थान में होने वाली घुड़दौड़ में टुवेन्टी घोड़ा जीतने वाला है। वह सवेरे उठते ही घुड़दौड़ की इनामी टिकट बेचने वाली केम्बल कम्पनी के डायरक्टर श्री एम. वी केम्वेल से मिले और बीस नम्बर के घोड़े पर दांव लगाने के लिये उन्हें धन प्रस्तुत किया।

वास्तव में इतने घोड़े दौड़ने वाले नहीं थे। उन्होंने कह दिया बीस नम्बर का घोड़ा कोई नहीं है। निराश जेरमन अपना धन वापिस लेकर लौट आये। घुड़दौड़ यथा समय हुई, और 17 नवम्बर के अखबारों में छपा कि—‘टुवेन्टी’—नामक घोड़ा जीता और उस पर दांव लगाने वालों को पुरस्कार मिले।

जेरमन सिर धुन कर रह गया। उसने सपने के शब्दों को यथावत् न समझकर उसका अर्थ ‘बीस’ लगाया और इस नम्बर को तलाश करने के चक्कर में घूमता रहा। पैसा तो उसे नहीं मिला पर सपने की यथार्थता को प्रमाणित करते हुए केम्वल कम्पनी ने यह प्रकाशित कराया कि वस्तुतः जेरमन का सपना सही था और उसने उस नम्बर के बारे में बहुत पूछ-ताछ और बहुत झंझट किया था। पर घोड़े के नाम और नम्बर का भ्रम खड़ा हो जाने से वह टिकट प्राप्त न हो सका।

स्काटलेण्ड के एडन स्मिथ नामक किशोर को एक सपना कई बार आया कि उसके मकान के देहरे के सामने सत्रहवीं शताब्दी में पहने जाने वाली पोशाक पहने हुए कोई व्यक्ति खुदाई करता है। लड़के ने अपने घर में यह बात कही। खुदाई की गई तो तांबे के एक बर्तन में 80 स्वर्ण मुद्रायें निकलीं जो सत्रहवीं शताब्दी की थीं। स्पेन के एक रेलवे कर्मचारी की तीन लड़कियां थीं। उनकी मां उन्हें बहुत चाहती थी और भरपूर प्यार करती थी, पर उन्हें एक बुरा सपना बार-बार दीख पड़ता था कि उनकी मां डायन हो गई है और उन्हें खाने को दौड़ती है। पहले तो वे लड़कियां इसे बताने में ही संकोच करती रहीं पर पीछे जब कई बार तीनों एक ही सपना एक ही समय देखने लगीं तो वे डर गईं और उन्होंने उसकी चर्चा की। ऐसा कोई प्रत्यक्ष कारण नहीं था, इसलिये उस स्वप्न को निरर्थक एवं ऊटपटांग माना गया पर कुछ समय बाद एक विचित्र बात हुई। उनकी मां पागल हो गई और एक रात उसने सोती हुई तीनों लड़कियों को बुरी तरह घायल कर दिया।

कैम्बल एण्ड कम्पनी रिचमांड सूरी के डाइरेक्टर श्री एम.बी. कैम्पवेल ने भी एक घटना का उद्धरण देते हुए यह स्वीकार किया कि स्वप्नों में कुछ सत्य है और उसका मनुष्य जीवन से गहन सम्बन्ध है उनके अनुसार ए.ए. जर्मन नामक एक लन्दन-वासी ने मुझे बताया कि लेसिस्टर की घुड़दौड़ में 20-20 नम्बर का घोड़ा प्रथम आयेगा, यह उसने स्वप्न में देखा है।

17 नवम्बर को जब अखबारों में उक्त घटना प्रकाशित हुई और साथ ही इस प्रतियोगिता के परिणाम जिसमें 20-20 नम्बर घोड़ा ही प्रथम आया था तो पाठक आश्चर्य में डूब गये। लोगों ने अनुभव किया स्वप्न निरर्थक ही नहीं होते। उनमें जीवन के अदृश्य भाग का दर्शन भी छिपा है।

श्री उदयकुमार वर्मा रूप में पढ़ने वाले भारतीय स्नातक तब ‘‘दोम अस्पीरान्तोव उनीवरसितेतस्काया ताशकंद 15’’ में रहते और ताशकंद में ही पढ़ते थे। जब भारत-पाकिस्तान समझौता वार्ता के लिये वहां श्री लाल बहादुर शास्त्री तत्कालीन भारत के प्रधान मंत्री पाकिस्तान के राष्ट्राध्यक्ष श्री अयूब और रूसी प्रधान मंत्री श्री कोसीगिन एकत्रित हुए थे। एक दिन श्री वर्मा के पड़ौस में रहने वाली एक सोवियत छात्रा उनके पास आई और बोली—आप हमें श्री शास्त्री जी के आज दर्शन करादें अन्यथा फिर उनके दर्शन न हो पायेंगे। उसने यह भी बताया कि मैंने स्वप्न में देखा है कि उनकी मृत्यु हो गई है। श्री वर्मा जी ने उस बात का बुरा माना। तो भी उन्होंने कुछ कहा नहीं था। उस दिन श्री शास्त्रीजी का प्राच्य भाषा संस्थान ताशकंद में भाषण था। श्री वर्मा जी उक्त छात्र के साथ वहां गये और शास्त्रीजी के दर्शन किये थे।

उसी रात श्री वर्मा जी ने स्वयं भी स्वप्न में देखा कि वे श्री शास्त्रीजी को विदा करने हवाई अड्डे पहुंचे वहां कोई छात्रा कह रही है शास्त्रीजी तो मर गये हैं क्या आप उनके शव को विदा करने आये हैं। उसके बाद नींद टूट गई। श्री वर्मा जी ने छात्रा को बुलाकर नाराजी प्रकट की और कहा—देखो तुम्हारी उन बातों का मेरे अवचेतन मन पर प्रभाव पड़ा और मैंने भी वैसा ही अशुभ स्वप्न रात में देखा। पर श्री वर्मा जी को यह नहीं मालूम था कि अवचेतन से भी अवचेतन कोई एक सत्ता जीवन प्रवाह के रूप में बाहर-भीतर सर्वत्र प्रवाहित हो रही है उसमें सारी अतीन्द्रिय क्षमताएं हैं और उसकी अनुभूतियां एकाएक गलत नहीं हो सकतीं।

सारा संसार जानता है कि 10 जनवरी 66 की उसी रात शास्त्रीजी का देहान्त हो गया। 11 को जब श्री वर्मा उन्हें काबुल प्रस्थान के लिये विदा करने जाने वाले थे तभी उन्हें समाचार मिला—शास्त्रीजी नहीं रहे तो वे स्तब्ध रह गये।

लिंकन का सपना

प्रातःकाल उठकर राष्ट्रपति अब्राह्मलिंकन ने प्रातः क्रियायें सम्पन्न कीं, नाश्ता किया और उसके बाद ही अपने राजोद्यान में भ्रमण पर जाने की अपेक्षा अपने जीवनी लेखक वार्ड लेमन को फोन करके तुरन्त ह्वाइट हाउस (अमरीका का राष्ट्रपति भवन) पहुंचने का आग्रह किया। उनकी गम्भीरता यह बता रही थी कि आज कुछ विशेष बात हुई है पर क्या? यह अभी तक भी अज्ञात था।

वार्ड-लेमन के आते ही राष्ट्रपति लिंकन ने पूछा—‘‘क्या आपको स्वप्नों की सच्चाई पर विश्वास है, यदि नहीं तो आइये और सुनिये मैंने आज एक विचित्र स्वप्न देखा है और मुझे न मालूम क्यों यह विश्वास सा हो गया है कि यह स्वप्न न होकर किसी देव-शक्ति का दिया हुआ सत्य-संदेश है’’ इसके बाद राष्ट्रपति उस रात को देखा वह ऐतिहासिक स्वप्न सुनाने लगे जो आज तक भी उनके जीवन प्रसंग में जुड़ा हुआ हर पाठक से प्रश्न किया करता है—स्वप्नों में सचाई का रहस्य क्या है स्वप्नों के माध्यम से भविष्य में घटित होने वाली सत्य-घटनाओं की सूचना कौन देता है?

राष्ट्रपति कहने लगे—मैं ह्वाइट हाउस के प्रत्येक कक्ष में घूमा पर मुझे सब कमरे खाली और सूनेपन से घिरे दिखाई दिये तभी पूर्वी भाग से कुछ लोगों के रोने की ध्वनि सुनाई दी मैं उधर पहुंचा तो देखा कि बहुत से लोग एक शव को घेरे खड़े रो रहे हैं इनमें मेरे परिवार के सभी लोग, मित्र स्वजन सम्बन्धी भी हैं और दूसरे राजनयिक भी। कौतूहल वश मैंने पूछा क्या बात है? यह शव किसका है?—एक आकृति ने मेरी ओर देखकर कहा—राष्ट्रपति की हत्या करदी गई है यह शव उन्हीं का है—यह आखिरी दृश्य था नींद टूट गई पर मुझे लगता है इस स्वप्न का मेरे जीवन से कोई घनिष्ठ सम्बन्ध है।

वार्ड लेमन ने घटना ‘‘शार्ट हेण्ड’’ में नोट तो कर ली पर राष्ट्रपति के इस अन्ध विश्वास जैसे प्रसंग पर वे हंसे बिना न रह सके। राष्ट्रपति लिंकन का ध्यान बंटाने के लिये वे इधर-उधर की बातें करते रहे पर लिंकन का मन उस दिन किन्हीं और बातों में लगा ही नहीं। इतिहास प्रसिद्ध घटना है कि इस स्वप्न के 3-4 दिन पश्चात् ही लिंकन की ठीक उन्हीं परिस्थितियों में हत्या करदी गई जैसी की उनने स्वप्न में देखी थी। तब से आज तक यह प्रसंग राष्ट्रपति के जीवन के साथ जुड़ा हुआ है पर आजतक भी उसकी कोई वैज्ञानिक व्याख्या नहीं हो सकी।

स्वप्नों में इन्द्रियातीत अनुभूति और भविष्य में घटित होने वाली घटनाओं के पूर्वाभाव के लिये अमरीका के एक कर्नल की धर्मपत्नी श्रीमती नाड़ियन डोरिस बहुत प्रसिद्ध हुईं। इंग्लैंड के अनेक मनोविज्ञान शास्त्रियों और वैज्ञानिकों के सम्मिलित सहयोग से बनी ‘‘सोसाइटी फार साइकिकल रिसर्च लंदन को दिये गये अपने एक बयान, जो ‘‘हैव नो च्वाइस’’ शीर्षक से छपा, में श्रीमती डोरिस ने एक भविष्य सूचक स्वप्न का विवरण देते हुए लिखा है—

उन दिनों मैं बहुत परेशान रहा करती थी और चाहती थी कि मुझे कोई ऐसा जीवन साथी मिल जाये जिसके साथ मैं सुखद दाम्पत्य जीवन बिता सकूं। रात सोई तो मुझे स्वप्न में दिखाई दिया कि मेरे आस-पास बहुत से लोग खड़े हैं। तभी फोन की घन्टी बजी, फोन पर किसी ने बताया कि मैं अमुक व्यक्ति हूं और आपसे शादी का प्रस्ताव कर रहा हूं मैंने प्रस्ताव स्वीकार कर लिया और वहां उपस्थित सब लोगों को निमन्त्रण भी दे दिया। इस तरह स्वप्न का पटाक्षेप हो गया।

जागने पर मुझे बहुत हंसी आई और सोचने लगी कि फ्रायड का यह कथन, ‘स्वप्न अचेतन इच्छा तुष्टि है, मन दिन भर इच्छायें करता है पर सांसारिक परिस्थितियां ऐसी होती हैं कि हर इच्छा की पूर्ति नहीं होती। यह दमित इच्छायें ही स्वप्न में अपनी काल्पनिक रचना द्वारा तुष्टि प्राप्त करना चाहती हैं। कोई असत्य नहीं है पर उस दिन शेष जो घटनायें घटीं उन्होंने मुझे तुरन्त अपने विचार बदलने को विवश कर दिया और अब मैं यह मानती हूं कि स्वप्न केवल दमित वासनाओं का काल्पनिक चित्रण मात्र नहीं वरन् उनमें जीवन की गहराइयां भी छिपी हुई हैं और यदि उन गुत्थियों का रहस्य ढूंढ़ा जा सके तो मनुष्य जीवन से सम्बन्धित अनेक दुरूह प्रश्नों का भी समाधान निकाला जा सकता है।

हुआ यह कि उस दिन मेरे कई परिचित मित्र और सहेलियां घर मिलने आये। अभी हम उनसे बातचीत कर ही रहे थे कि किसी ने फोन पर बुलाया। इसके बाद जो-जो घटित हुआ, वह सब रात को देखे स्वप्न का अक्षरशः सत्य स्वरूप था। मुझे सब कुछ स्वप्न में कैसे मालूम हो गया। मैं इसे आज तक नहीं जान पाई। जब भी विवाह की वर्षगांठ आती है, यह स्वप्न मुझे मनुष्य जीवन के सत्यों की शोध को प्रेरित करता है पर मैं अपने को उसके लिये विवश ही पाती हूं।

ऐसे स्वप्न जिन्होंने अपनी सत्यता के ऐतिहासिक पृष्ठ खोले हैं एक सुविस्तृत श्रृंखला है। शेक्सपीयर ने जूलियस सीजर नाटक में सम्राट सीटर के स्वप्न को यथावत चित्रित किया है। सीजर की पत्नी कार्नोलिया को अपने पति की हत्या का पूर्वाभास स्वप्न में हो गया था इसलिये उस दिन उसने पूरा जोर लगाकर सीजर को राजदरबार जाने से रोका था। पर सीजर को स्वप्नों पर विश्वास नहीं था। इसलिये उसने बात नहीं मानी थी और उसी का परिणाम था कि वह दरबार गया और उसी दिन उसकी हत्या कर दी गई। सम्राट क्रीसस ने अपने पुत्र ऐथिस की हत्या का सारा दृश्य स्वप्न में ही देख लिया था।

कहते हैं कि गांधीजी को अपनी मृत्यु की बात स्वप्न में ही कई दिन पूर्व ही मालूम हो गई थी। ऐतिहासिक महापुरुषों के जीवन के इन प्रसंगों को देखकर ही ‘विजडम आफ ओवर ऐल्फ’ पुस्तक में ‘पाल ब्रन्टन’ ने लिखा है कि विज्ञान और बुद्धिवादी लोग भले ही इसे रूढ़िवाद या केवल मानसिक कल्पना कहें पर स्वप्न जीवन के कोई गम्भीर अध्याय हैं। उनके विश्लेषण द्वारा आत्मा के गहन रहस्यों तक पहुंचने में बड़ी मदद मिल सकती है।

कोई मनुष्य निरन्तर जागृत नहीं रह सकता। यदि किसी को सोने न दिया जाय तो वह मर जायेगा। मनुष्य जीवन का एक-तिहाई भाग निद्रा में व्यतीत करता है। निद्रा का अधिकांश भाग स्वप्नों से घिरा होता है। इससे पता चलता है कि अचेतन अवस्था जीवनी शक्ति का स्रोत है पर उस समय भी चेतना का अस्तित्व बना रहता है अर्थात् वह पदार्थ नहीं जो जाती। यही वह प्रकाश था जिसने भारतीय तत्वदर्शियों को पुनर्जन्म और लोकोत्तर जीवन के बीच के रहस्यों को जानने का द्वार खोला है। स्वप्न की स्थिति में मनुष्य के शरीर में अनेक परिवर्तन होते हैं। नाड़ी की गति मध्यम हो जाती है। रक्तचाप भ्रमण धीमा पड़ जाता है। सम्पूर्ण इन्द्रियां धीमी पड़ जाती हैं। हृदय की धड़कन और फेफड़ों द्वारा रक्त शुद्धि का कार्य भी जारी रहता है। पर विचार शिथिल हो जाते हैं। देखने, सुनने, सूंघने, स्पर्श करने, चखने आदि की शक्ति नहीं रह जाती पर स्वप्न अवस्था में यह सारी क्रियायें इन्द्रियातीत अवस्था में अनुभव होती रहती हैं मनुष्य सामान्य निद्रावस्था में भी जब कि उसके शरीर के से दृश्यों का अनुभव होता है उससे यह प्रमाणित होता है कि विकास है।

स्वप्न यों अस्थिर दिखता है पर जीवन भी अस्थिर ही तो है। स्वप्न में जैसे थोड़ी देर के लिए हम सूक्ष्म और विराट अदृश्य और भविष्य के दृश्य सत्य-सत्य देख लेते हैं पर जागृत में वह कभी सत्य कभी असत्य प्रतीत होते हैं उसी प्रकार यह संसार है। हम जब तक बाह्य व्यवहार से बंधे हैं तब तक सब कुछ असत्य होकर भी सत्य दीखता है पर वस्तुस्थिति का पता तो तभी चलता है जब चेतना स्वप्न जैसी मूल स्थिति में आती है इसलिये स्वप्नों का मनुष्य जीवन में बड़ा भारी महत्व है। स्वप्न में जिस प्रकार मनुष्य की चेष्टायें काम करती रहती हैं उसी प्रकार लोकोत्तर जीवन में अर्थात् आत्मा अमर है। यदि हम उसे जीवित अवस्था में ही जान लें तो विराट चेतना की सर्वदर्शी, सर्वव्यापकता, सर्वज्ञता के वह सभी गुण अपने अन्दर विकसित कर सकते हैं जो स्वप्नों में थोड़े समय के लिए और बहुत अस्पष्ट छायाचित्र से दिखाई देते हैं।

भविष्य सूचक स्वप्नों का विश्लेषण करते समय देखा गया है कि मनुष्य शारीरिक दबाव, रोग अपवित्रता की स्थिति में भयानक और दुखान्त स्वप्न देखता है पर वह जितना अधिक शुद्ध और पवित्र होता है उसके स्वप्न उतने ही स्पष्ट, सुखद और भविष्य के गूढ़ रहस्यों की भी स्पष्ट ध्वनि देने वाले होते हैं इससे यह भी प्रमाणित होता है कि चिदाकाश अर्थात् आत्मा या मूल चेतना नितान्त शुद्ध और पवित्र है उस अवस्था की एक क्षणिक झलक से यदि जीवन के किसी महत्व पूर्ण भाग का दृश्य दिख सकता है तो अपना जीवन नितान्त शुद्ध और भौतिक कामनाओं से हटाकर ही सारे जीवन के दृश्यों का पूर्वाभास पाया जा सकता है। यही नहीं प्रगाढ़ निद्रा में भी मनुष्य जाग्रत अवस्था से भी अधिक बढ़कर दूसरे लोगों को सन्देश और प्रेरणायें देने के पारमार्थिक कार्य कर सकता है। जिस दिन वीर शिवाजी शाइस्ताखां से अस्त्र रहित भेंट करने वाले थे उस दिन रात में समर्थ गुरु रामदास ने स्वप्न में ही उन्हें बता दिया था कि शाइस्ताखां जैसे अपने से अधिक शक्तिशाली व्यक्ति को ढेर कर दिया था। इसी तरह की अतीन्द्रिय प्रेरणा द्वारा महर्षि अरविन्द ने फ्रांस से श्रीयज्ञ-शिखा मां और विवेकानन्द ने आयरलैंड से नोबल मार्गरेट को प्रेरणा देकर बुलाया था। स्वप्न जीवन की गहराइयों के मापक और उत्प्रेरक सत्य हो सकते हैं यदि हम उन्हें गम्भीर दृष्टि से देखें और उनकी स्पष्टता के लिए अपना जीवन शुद्ध बनायें। यदि मनुष्य भी सचमुच वृक्ष-वनस्पति की तरह केवल रासायनिक अस्तित्व या जड़ मात्र है तो जो बातें बड़ी-बड़ी मशीनें नहीं बता सकतीं, वह स्वप्नावस्था में कैसे मालूम हो गया। स्वप्नों के यह पूर्वाभास हमें यह सोचने के लिये विवश करते हैं कि आत्मा कोई चेतन तत्व है और वह अमरत्व, सर्वव्यापकता, सर्वअन्तर्यामिता आदि गुणों से परिपूर्ण है अन्यथा निद्रावस्था में हम उन सत्य बातों का आभास कैसे पा लेते, जिन्हें पदार्थ के किसी कण या मशीन द्वारा जान पाना सम्भव नहीं है।

मनुष्य जितनी अधिक प्रगाढ़ निद्रा में होता है, पदार्थ विज्ञान के अनुसार उसे सांसारिक बातों का उतना ही विस्मरण होना चाहिए, किन्तु इलेक्ट्रो इनकेफेलोग्राम (एक प्रकार का यन्त्र को मस्तिष्क में पैदा होने वाली विद्युत तरंगों की गणना करता है) के द्वारा प्रसिद्ध वैज्ञानिक डा. क्लीटमन ने यह सिद्ध किया कि निद्रावस्था जितनी ही गहरी होती है, उतने ही स्वप्न अधिक स्पष्ट और सार्थक होते हैं। उन्होंने दावा किया है कि स्वप्न देखना भी सांस लेने की तरह जीव की एक स्वाभाविक क्रिया है। स्वाभाविक क्रियायें यदि सत्य बातों का ज्ञान करा सकती हैं तो उनकी अनुभूति करने वाले तत्व को जड़ नहीं कहा जा सकता है। उनका यह भी कहना है कि निद्रा की गहराई रात में एक या दो घन्टे के लिए ही आती है। इसीलिये तमाम रात सार्थक स्वप्न न देखकर वह अनुभूतियां बहुत थोड़े समय के लिए होती हैं। प्रातःकाल जब बाह्य प्रकृति भी स्वच्छ हो जाती है और थोड़े समय के लिए मनुष्य भी गहरी निद्रा में उतरता है तो उसे ऐसे स्वप्न दिखाई देते हैं, जिनमें किन्हीं सत्य घटनाओं का पूर्वाभास मिलता है। इसलिये कोई यदि यह तर्क करे कि यदि स्वप्न आत्म-चेतना के प्रमाण हैं तो सबको ऐसे स्वप्न क्योंकि नहीं दिखाई देते तो उसका खण्डन इस उपरोक्त कथन से हो जायेगा। डा. क्लीटमन ने भी लिखा है कि अस्त-व्यस्त स्वप्न प्रायः भोजन में गड़बड़ी के कारण होते हैं। तीखे और उत्तेजक पदार्थों के सेवन से शरीर की स्थूल प्रकृति उत्तेजित बनी रहती है, इसलिये स्वप्न साफ नहीं दिखाई देते पर चेतना जैसे ही गहराई में उतर जाती है, और सार्थक स्वप्नों का क्रम चल पड़ता है।

आखिर स्वप्न भविष्य में सत्य क्यों होते हैं इस संबंध में चाहे पूर्ववासी हों चाहे पश्चिमी अन्वेषक। अन्ततः हमारी शास्त्रीय खोजों पर ही उतरना पड़ेगा। भारतीय शास्त्र स्वप्न को दृश्य और अदृश्य के बीच का सन्धि द्वार मानते हैं।

स हि स्वप्नो भूत्वेमं लोकमतिक्रामति। तस्य वा एतस्य पुरुषस्य द्वे एव स्थाने भवतः इदं च परलोकं स्थानं च संध्यं तृतीयं स्वप्न स्थानं तस्मिन्सन्धे स्थाने तिष्ठन्नेते उभे स्थाने पश्यतीदं च परलोक स्थानं च। —वृहदारण्यक 4।3।9

अर्थात्—वह आत्मा ही स्वप्न अवस्था में जाकर इस लोक का अतिक्रमण करता है। इस पुरुष के दो स्थान होते हैं—एक तो यह लोक, दूसरा, परलोक और तीसरा सन्धि स्थान। यह सन्धि स्थान जहां से उस लोक को भी देखा जा सकता है इस लोक को भी स्वप्न स्थान कहते हैं।

दो कमरों के बीच दरवाजे पर खड़ा मनुष्य जिस प्रकार इस कमरे को भी देख सकता है उस कमरे को भी। उसी प्रकार स्वप्न में जीव-चेतना या मन अपने दृश्य जगत से सम्बन्धित कल्पना तरंगों के चित्र भी देख सकती है और आत्मा के अदृश्य विराट जगत में झांक कर भूत और भविष्य की उन गहराइयों तक की भी थाह ले सकती है जो समय और ब्रह्माण्ड की सीमा से परे केवल विश्व-व्यापी मूल चेतना में ही घटित होते रहते हैं। जो स्वप्न जितना गहरा और भावनाओं के साथ दिखता है वह इस अदृश्य जगत की उतनी ही गहरी अनुभूतियां पकड़ लाता है। योगियों का मन अत्यन्त सूक्ष्म हो जाने और प्रगाढ़ निद्रा आने के कारण वे अपने मन को आत्मा के व्यापक क्षेत्र में प्रविष्ट कराकर स्वप्न में आत्म जगत का आनन्द ही नहीं लिया करते वरन् अपने भूत को जानकर वर्तमान को सुधारने और भविष्य को जानकर होतव्यता से बचने का भी उपक्रम करते रहते हैं इसीलिये योगी ‘‘अविजित’’ रहता है उस पर सांसारिक परिस्थितियां हावी नहीं होने पातीं। वह उन पर स्वयं ही हावी बना रहता है। स्वप्न ने ही योगी को इस शरीर में रहते हुए विराट आत्मा के रहस्य खोले हैं जो मन को अधिक पवित्र और सूक्ष्म बनाने के साथ स्वतः खुलते जाते हैं—

य एष स्वप्ने महीय मानश्च मानश्च रव्येष आत्मेति । —छान्दोग्य उपनिषद् 8।10।1 तद्यत्रेतत् सुप्तः समस्त संप्रसन्नः स्वप्न न विजानात्मेष आत्मेति । —छान्दोग्य उपनिषद् 8।11।1

अर्थात्—स्वप्न में जो अपने गौरव के साथ व्यक्त होता है वह आत्मा है। प्रगाढ़ निद्रा में आनन्दित होता हुआ जो उस स्वप्न से भी बढ़कर शाश्वत है वह आत्मा है, उसका कभी अन्त नहीं होता।

जीव-चेतना जब स्वप्न में कल्पना-तरंगों का ही आनन्द ले रही होती है। मन जब कल्पना, विनोद, उछल-कूद में ही व्यस्त और मस्त होता है, उस समय के सपने झूठे होते हैं। उनकी मात्र काल्पनिक सत्ता होती है, क्योंकि वे मनोविनोद और मन के भ्रमण के उद्देश्य से ही देखे जाते हैं। जब यही मन सूक्ष्म-सत्ता की ओर अभिमुख होकर विराट जगत की झांकी लेता है, उस समय स्वप्न के झरोखे से अदृश्य, अतीत या अनगित के सही और सच्चे दृश्य एवं घटनाक्रम देखे जा सकते हैं। उनका सही और सच्चा होना मन के सच्चे और पवित्र होने से सम्बन्धित है। मन जितना ही सूक्ष्मग्राही, परिष्कृत, सात्विक और संयमी होगा, सपने उतने ही सच्चे तथा गहराई तक के दृश्य सामने लाने वाले होंगे।
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